Ghalib Shayari on Love – दोस्तों यहाँ पर इस पोस्ट में आपको Mirza Ghalib ki Shayari का कुछ कलेक्शन दिया गया हैं. जो आपके दिल को छु जाएगी. यह सभी गालिब की शायरी आपको बहुत पसन्द आएगी. जब भी कहीं पे शेर – ओ – शायर की बात होती हैं. तो सभी के जहन में सबसे पहले महान शायर मिर्जा गालिब का नाम आता हैं.
मिर्जा गालिब की शायरी (Mirza Ghalib ki Shayari) में इश्क, जुदाई, प्यार, दर्द, गम, रूह का बेहतरीन जिक्र मिलता हैं. आज गालिब के निधन के 151 वर्ष हो चुके हैं. फिर भी गालिब की शायरी आज भी लोगो के जुबान पर हैं.
मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसम्बर 1797 को आगरा में हुआ था. वह एक तुर्क परिवार से थे. गालिब का पूरा नाम “मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां” था. जब वह छोटे थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था. Ghalib Shayari on Love.
11 वर्ष के उम्र से ही गालिब ने कविता लिखना शुरू कर दिया था. इनका विवाह 13 वर्ष की आयु में ही उमराव वेगम से हो गई थी. अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर सह जफर के ग़ालिब दरवारी शायर थे. मिर्जा ग़ालिब का निधन 15 फरवरी 1869 को हुआ था.
ग़ालिब शायरी, Ghalib Shayari on Love, Mirza Ghalib ki Shayari
(1) दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है।
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।।
Dil-E-Nadan Tujhe Hua Kya Hain?
Akhir Is Dard Ki Dawa Kya Hai.
(2) इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’।
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे।।
Ishq Par Jor Nahi Hain Ye Aatish “Galib”,
Ki Lagaaye Naa Lage Bujhaye Na Bujhe..
(3) इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया।
वर्ना हम भी आदमी थे काम के।।
Ishq Ne Galib Nikamma Kar Diya,
Warna Ham Bhi Aadami The Kaam Ke..
(4) उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़।
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।।
Un Ke Dekhe Se Jo Aa Jati Hai Munh Pe Raunak,
Wo Samjhate Hai Ki Bimaar Ka Hal Achchha Hain..
(5) काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’।
शर्म तुम को मगर नहीं आती।।
Kaba Kis Muh Se Jaoge “Galib”,
Sharm Tum Ko Magar Nahi Aati..
(6) रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी।
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है।।
Rahi N Takat-E-Guftaar Aur Agar Ho Bhi,
To Kis Ummid Pe Kahiye Ke Aarzoo Kya Hai..
(7) नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को।
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं।।
Nazar Lage N Kahi Usake Dast-O-Baju Ko,
Ye Log Kyun Mere Zakhme Jigar Dekhate Hai..
(8) वाइज़!! तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिलाके देख।
नहीं तो दो घूंट पी और मस्जिद को हिलता देख।।
Vaiz teri Duwaon Me Asar Ho To Masjid Ko Hilake Dekh,
Nahi To Do Ghut Pee Aur Masjid Hilata Dekh..
(9) हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब।
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते।।
Hatho Ki Lakiron Pe Mat Ja E “Galib”,
Nasib Unake Bhi Hote Hai, Jinake Hath Nahi Hote.
Ghalib Shayari on Love
(10) दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए।
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए।।
Dard Jab Dil Me Ho To Dawa Kijiye,
Dil Hi Jab Dard Ho To Kya Kijiye?
(11) न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता।
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता।।
N Tha Kuchh To Khuda Tha, Kuchh N Hota To Khuda Hota,
Duboya Mujh Ko Hone Ne N Hota Main To Kya Hota..
(12) हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे।
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और।।
Hai Aur Bhi Duniya Me Sukun-Var Bahut Achchhe,
Kahate Hai Ki “Galib” Ka Hain Andaaz-E-Bayan Aur..
(13) हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले।
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।।
Hazaron Khwahishe Esi Ki Har Khwahish Pe Dam Nikale,
Bahut Nikale Mire Armaan Lekin Fir Bhi Kam Nikale..
(14) कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में।
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते।।
Kitana Khauf Hota Hai Shaam Ke Andhero Me,
Punchh Un Parindo Se Jinake Ghar Nahi Hote.
(15) मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का।
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले।।
Mohabbat Me Nahi Hai Farq Jeene Aur Marane Ka,
Usi Ko Dekh Kar Jeete Hai Jis Kafir Pe Dam Nikale..
(16) क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां।
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन।।
Karz Ki Peete The May, Lekin Samjhate The Ki Ha,n,
Rang Lavegi Hamari Faka-Masti Ek Din.
(17) आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक।
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक।।
Aah Ko Chahaiye Ek Umar Asar Hote Tak,
Kaun Jeeta Hai Tiri Zulfo Ke Sar Hone Tak..
(18) दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ।
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ।।
Dard Minnat Kash-E-Dawa N Hua,
Main N Achchha Hua Na Bura Hua.
(19) दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई।
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई।।
Dil Se Teri Nigah Jigar Tak Utar Gayi,
Dono Ko Ek Adaa Me Rajamand Kar Gayi.
(20) इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना।
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।।
Esharat-E-Katara Hai Dariya Me Fana Ho Jana,
Dard Ka Had Se Guzarana Hain Dawa Ho Jana..
Ghalib Shayari on Love
(21) ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता।
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता।।
Ye N Thi Hamari Kisamat Ki Visaal-E-Yaar Hota,
Agar Aur Jeete Rahate Yahi Intizaar Hota..
(22) ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे।
वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है।।
Ye Rashk Ki Wo Hota Hai Hamsukhan Hamase,
Warana Khuf-E-Bdamoji-E-Adu Kya Hai..
(23) जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा।
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है।।
Jula Hai Zism Janha Dil Bhi Jal Gaya Hoga,
Kudarate Ho Jo Ab Raakh Justaju Kya Hain..
(24) बना है शह का मुसाहिब, फिरे है इतराता।
वगर्ना शहर में “ग़ालिब” की आबरू क्या है।।
Bana Hai Shah Ka Musaahib Fire Hai itraana,
Vagana Shahar Me “Galib” Ki Abaru Kya Hai..
(25) तेरे ज़वाहिरे तर्फ़े कुल को क्या देखें।
हम औजे तअले लाल-ओ-गुहर को देखते हैं।।
Tere Zawahire Tarfe Kal Ko Kya Dekh,
Ham Auze Tale Laal-O-Guhar Ko Dekhate Hai…
(26) कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज़।
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले।।
Kaha May-Khane Ka Darwaza “Galib” Aur Kaha Vayiz,
Par Itana Janate Hain Kal Wo Jata Tha Ki Ham Nikale..
(27) निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन।
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले।।
Nikalana Khuld Se Adam Ka Sunate Aaye Hai Lekin,
Bahut Be-Aabaru Ho Kar Kire Kunche Se Ham Nikale..
(28) वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं।
कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं।।
Wo Aaye Ghar Me Hamare, Khuda Ki Kudarat Hai,
Kabhi Ham Unako Kabhi Apane Ghar Ko Dekhate Hain..
(29) ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं।
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते हैं।।
Ye Ham Jo Hizr Me Deewaar-O-Dar Ko dekhate Hai,
Kabhi Saba Ko, Kabhi Namaabar Ko Dekhate Hai..
(30) वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त अज़ीज़।
सिवाए बादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू क्या है।।
Wo Chiz Jisake Liye Hamako Ho Bahisht Azez,
Siwaye Bada-E-Gulfaam-e-E-Mushkabu Kya Hai..
Ghalib Shayari on Love
(31) हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है।
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है।।
Har Ek Baat Pe Kahate Ho Tum Ki Tu Kya Hai,
Tumhi Kaho Ki Ye Andaaz-E-Guftagu Kya Hain..
(32) हुआ जब गम से यूँ बेहिश तो गम क्या सर के कटने का।
ना होता गर जुदा तन से तो जहानु पर धरा होता।।
Hua Jab Gham Se Yun Behish To Gham Kya Sar Ke Katane Ka,
Na Hota Gar Juda Tan Se To Jahanu Par Dhara Hota..
(33) तुम न आए तो क्या सहर न हुई
हाँ मगर चैन से बसर न हुई।
मेरा नाला सुना ज़माने ने
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई।।
Tum N Aaye To kya Sahar N Huyi,
Han Magar Chain Se Basar N Huyi,
Mera Nala Suna Zamane Ne,
Ek Tum Ho Jise Khabar N Huyi..
(34) यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं।
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो।।
Yahi Hai Aazamana To Satana Kisko Kahate Hai,
Adu Ke Ho Liye Jab Tum To Mera Inthaan Kyu Ho..
(35) बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे।
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे।।
Bagicha-E-Atafaal Hai Diniya Mire Aage,
Hota Hai Shab-O-Roz Tamasha Mire Aage..
Mirza Ghalib ki Shayari
(36) बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना।
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना।।
Bas-KI-Dushwaar Hai Har Kaam Ka Aasaan Hona,
Aadami Ko Bhi Mayassar Nahi Insaan Hona..
(37) कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को।
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।।
Koi Mere Dil Se Puchhe Tere Teer-E-Neem-Kash Ko,
Ye Khalish Kaha Se Hoti Jo Jigar Ke Paar Hota..
(38) रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ‘ग़ालिब’।
कहते हैं अगले ज़माने में कोई ‘मीर’ भी था।।
Rekhte Ke Tumhi Ustaad Nahi Ho “Galib”,
Kahate Hai Agale Zamaane Me Koi Meer Bhi Tha
(39) हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन।
दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़्याल अच्छा है।।
Hamko Malum Hai Zannat Ki HAQIQAT Lekin,
Dil Ke Khush Rakhane Ke “Galib” Ye Khyaal Achchha Hain..
(40) तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान, झूठ जाना।
कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता।।
Tere Wade Par Jiye Ham, To Yah Jaan, Jhuth Jana,
Ki Khushi Se Mar N Jate, Agar Etbaar Hota..
Mirza Ghalib ki Shayari
(41) हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है।
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता।।
Huyi Muddat Ki “Galib” Mar Gaya Par Yaad Aata Hai,
Wo Har Ek Baat Pe Kahata Ki Yun Hota To Kya Hota..
(42) न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा।
कोई बताओ कि वो शोखे-तुंदख़ू क्या है।।
N Shole Me Ye Larishma N Barq Me Ye Adaa,
Koi Batao Ki Wo Shokhe-Tandukhu Kya Hain..
(43) चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन।
हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है।।
Chipak Raha Hai Badan Par Lahu Se Pairahan,
Hamari Zeb Ko Ab Hajat-E-Rafu Kya Hai ..
(44) रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल।
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।।
Rango Me Daudate Firane Ke Ham Nahi Kayal,
Jab Ankh Hi Se N Tapaka To Fir Lahu Kya Hai..
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hello, sir , best for Mirza Ghalib Sher
सपना