Poem on Summer Season in Hindi – यहाँ पर आपको कुछ बेहतरीन Hindi Poems on Seasons पर दिया गया हैं. यह सभी गर्मी पर कविता को हमारे हिन्दी के लोकप्रिय कवियों द्वारा लिखी गई हैं. स्कूलों में बच्चों को भी Garmi Ke Mausam Par Kavita लिखने को दिया जाता हैं. यह सभी Summer Season in Hindi Poem उन बच्चों के लिए भी सहायक होगी.
उपहार स्वरूप प्राकृतिक ने हमें कई प्रकार के मौसम दिए हैं. प्रत्येक मौसम का एक अपना अलग ही माजा हैं. अनके लोगों को ठण्ड का मौसम पसंद आता हैं. तो कुछ लोगों को वर्षा का मौसम पसंद आता हैं. तो कुछ लोगों को गरमीयों का मौसम पसंद आता हैं. वैसे तो गर्मी में तेज धूप हमारी शरीर को झुलसा देने वाली होती हैं. लेकिन इसी मौसम में बच्चों की स्कूल में गर्मी की छुट्टी होती हैं. तो सभी बच्चें मस्ती के मुड में रहते हैं.
आइए अब कुछ नीचे Poem on Summer Season in Hindi में दिया गया हैं. इसे पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की आपको यह सभी Hindi Poems on Seasons पर पसंद आएगी. इस गर्मी पर कविता को अपने दोस्तों के साथ भी Share करें.
गर्मी पर कविता, Poem on Summer Season in Hindi
1. Poem on Summer Season in Hindi – गर्मी आई गर्मी आई
गर्मी आई गर्मी आई,
धूप पसीना लेकर आई।
सूरज सिर पर चढ़ आता है,
अग्नि के बम बरसाता है।
मुझे नहीं यह बिलकुल भाई।
गर्मी आई गर्मी आई।
चलो बरफ के गोले खाएं,
ठेले से अंगूर ले आएं।
मम्मी दूध मलाई लाई।
गर्मी आई गर्मी आई।
2. Summer Season in Hindi Poem – जाड़े के दिन बीत गए हैं
जाड़े के दिन बीत गए हैं
गर्मी के दिन आए सोनू
सोनू बोला बहुत ही दिक्कत
इस गर्मी में आती मोनू
धरती तपती अंबर तपता
क्यारी सुखी, सूखे खेत
दुबे भी मांगे हैं पानी
पक्षी होते बड़े बेचैन
लूँ की हवाएं चलती तेज
आग नियन है तन को लगती
सूख जाते हैं नदिया तालाबें
रूप यौवन है मुरझा जाती
धूप के चलते वक्त डूबता
घर से निकले ना पंथी
आलस से दिन बीत है जाता
विरान है पनघट,विरान है नदी
मोनू बोला तब सोनू से
बहुत ही होती है परेशानी
इसका एक उपाय है भाई
दुनिया जागे पेड़ लगाए
पेड़ पौधों से मिलेगी छाया
बैठ नीचे कुछ काम करेंगे
गर्मी फिर महसूस ना होगी
दिन ना जाएगा ऐसे जाया
सूरज निषाद
3. Hindi Poems on Seasons – कैसा ये गर्मी का मौसम आया
कैसा ये गर्मी का मौसम आया
तपती हुई हवाओं संग
अग्न ने छुआ है तन को
सूखे गले की प्यास बुझाने
शरबतों के मेले ने छुआ है मन को
पीले फलों का अंबर लगा
दही और छाछ के झमेले हैं
झुलसती हुई पथ में दिखी
मटकी भरी जल अमृत है
तपती धूप में चलते राही
बरगद की छांव तलाशते
उम्मीदों का दामन पकड़े
बढ़ते थके-हारे भोजन से
निहारते स्वर्ग सी छाया मिले
पंखे और कूलरों ने
ऐसा अपना वर्चस्व बनाया
बिना इसके कहीं चैन न पाया
फिर ए सी (AC) ने आकर
सबसे आगे अपना स्थान बनाया
आइसक्रीम और बर्फ के गोले
इनका क्या कहना है भाई
इनके बिना तो खुशमिजाजी भी घबराई
सुबह शाम की ठंडी हवाओं में
सैर सपाटा का है तांता लगा
देखो देखो है गर्मी आई
बच्चों की छुट्टी है संग लाई
उछलेंगे, कूदेंगे, मौज-मस्ती जमकर करेंगे
कोई जाए रिश्तेदारों के घर
कोई जाए नैनीताल, शिमला, कश्मीर
मेहमान बन कर खातिर कराएं, या मेहमानों की करें खातिर
बड़ी असमंजस में पड़ी है सोच
ले लें घूमने का मजा या बंद होकर रहें कमरों में
सोच-सोच कर गर्मी है बीती
देखो कैसी है यह गर्मी आई
Archana Snehi
4. Garmi Ke Mausam Par Kavita – गर्मी आई गर्मी आई
गर्मी आई गर्मी आई
पंखे कूलर कुल्फी लाई।
सूरज दादा लगे भड़कने
धूप करारी लगी कड़कने,
दरखत की छाया मन भाई
गर्मी आई गर्मी आई
सूनी सड़कें सूनी गलियाँ
बंद दरवाजे खुली खिड़कियाँ,
दोपहरी में बंद घुमाई
गर्मी आई गर्मी आई।
बाहर जाना ही आफत है
घर के अन्दर कुछ राहत है,
बिन बिजली सांसें घबराई
गर्मी आई गर्मी आई।
अमरस शरबत और ठण्डाई
आईसक्रीम सबके मन भाई
‘कुल्फी लूं’ मुन्नी चिल्लाई
गर्मी आई गर्मी आई।
5. गर्मी पर कविता – ओ सूरज भगवान क्यों करते परेशान
ओ सूरज भगवान क्यों करते परेशान
इतने गरम क्यों होते कि निकले सबकी जान,
क्यों तरस न हम पर करते
हम पल-पल गर्मी में मरते
गलियाँ सूनी पड़ जातीं
जब तुम हो शिखर पर चढ़ते,
राहत कैसे हम पायें
कुछ देदो हमको ज्ञान
ओ सूरज भगवान क्यों करते परेशान
इतने गरम क्यों होते कि निकले सबकी जान।
जो बिजली चली जाती पल में गीले हो जाते
फिर काम न होता कोई सब लोग ढीले हो जाते
कभी गलती से जो मौसम बदले
पाकर बारिश का पानी फिर सब छैल छबीले होते,
पर जब रूप दिखाते अपना
दुविधा में पड़ता सारा जहान
ओ सूरज भगवान क्यों करते परेशान
इतने गरम क्यों होते कि निकले सबकी जान।
6. Poem on Summer Season in Hindi – स्कूल की दूर हुई भागम-भगाई
स्कूल की दूर हुई भागम-भगाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।
आराम से उठ मैनें ली अंगड़ाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।
मम्मी नहीं आज मुझ पर चिल्लाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।
पिकनिक पर जा सब मौज मनाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।
हाहा ठीठी संग करी मिल भाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।
जमकर खेला लूडो, आई-स्पाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।
टीवी, वीडियो से पापा ने पाबंदी हटाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।
7. Summer Season in Hindi Poem – तपा अंबर
तपा अंबर
झुलस रही क्यारी
प्यासी है दूब।
सुलगा रवि
गरमी में झुलसे
दूब के पांव।
काटते गेहूं
लथपथ किसान
लू की लहरी।
रूप की धूप
दहकता यौवन
मन की प्यास।
डूबता वक्त
धूप के आईने में
उगता लगे।
सूरज तपा
मुंह पे चुनरिया
ओढ़े गोरिया।
प्यासे पखेरू
भटकते चौपाये
जलते दिन।
खुली खिड़की
चिलचिलाती धूप
आलसी दिन।
सूखे हैं खेत
वीरान पनघट
तपती नदी।
बिकता पानी
बढ़ता तापमान
सोती दुनिया।
ताप का माप
ओजोन की परत
हुई क्षरित।
जागो दुनिया
भयावह गरमी
पेड़ लगाओ।
सुर्ख सूरज
सिसकती नदियां
सूखते ओंठ।
जलते तृण
बरसती तपन
झुलसा तन।
तपते रिश्ते
अंगारों पर मन
चलता जाए।
दिन बटोरे
गरमी की तन्हाई
मुस्काई शाम।
8. Hindi Poems on Seasons – गर्मी का मौसम है आया
गर्मी का मौसम है आया
सबको इसने बहुत सताया,
आसमान से आग है बरसे
सूरज ने फैलाई माया।
कूलर, पंखे, ए.सी. चलते
दिन भी न अब जल्दी ढलते,
पल भर में चक्कर आ जाते
थोड़ी दूर जो पैदल चलते।
जून का है जो चढ़े महीना
टप टप टप टप बहे पसीना,
खाने का कुछ दिल न करता
मुश्किल अब तो हुआ है जीना।
सूखा है जल नदियों में
पंछी है प्यासा भटक रहा,
कहीं छाँव न मिलती है उसको
देखो खम्भे पर लटक रहा।
कुल्फी वाला जब आता है
हर बच्चा शोर मचाता है,
खाते हैं सब बूढ़े बच्चे
दिल को ठंडक पहुंचाता है।
सूनी गलियां हो जाती हैं
जब सूर्या शिखर पर होता है,
रात को जब बली गुल हो
तो कौन यहाँ पर सोता है?
न जाने ये है कहाँ से आया
हमने तो इसको न बुलाया,
परेशान इससे सब हैं
ये किसी के भी न मन को भाया।
गर्मी का मौसम है आया
सबको इसने बहुत सताया,
आसमान से आग है बरसे
सूरज ने फैलाई माया।
9. Garmi Ke Mausam Par Kavita – गरमी में प्रात: काल पवन
गरमी में प्रात: काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हाकरी आती है।
जब मन में लाखों बार गया-
आया सुख सपनों का मेला,
जब मैंने घोर प्रतीक्षा के
युग का पल-पल जल-जल झेला,
मिलने के उन दो यामों ने
दिखलाई अपनी परछाईं,
वह दिन ही था बस दिन मुझको
वह बेला थी मुझको बेला;
उड़ती छाया सी वे घड़ियाँ
बीतीं कब की लेकिन तब से,
गरमी में प्रात:काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हाकरी आती है।
तुमने जिन सुमनों से उस दिन
केशों का रूप सजाया था,
उनका सौरभ तुमसे पहले
मुझसे मिलने को आया था,
बह गंध गई गठबंध करा
तुमसे, उन चंचल घड़ि यों से,
उस सुख से जो उस दिन मेरे
प्राणों के बीच समाया था;
वह गंध उठा जब करती है
दिल बैठ न जाने जाता क्योंन;
गरमी में प्रात:काल पवन,
प्रिय, ठंडी आहें भरता जब
तब याद तुम्हाहरी आती है।
गरमी में प्रात:काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हाकरी आती है।
चितवन जिस ओर गई उसने
मृदों फूलों की वर्षा कर दी,
मादक मुसकानों ने मेरी
गोदी पंखुरियों से भर दी
हाथों में हाथ लिए, आए
अंजली में पुष्पों से गुच्छेह,
जब तुमने मेरी अधरों पर
अधरों की कोमलता धर दी,
कुसुमायुध का शर ही मानो
मेरे अंतर में पैठ गया!
गरमी में प्रात: काल पवन
कलियों को चूम सिहरता जब
तब याद तुम्हा री आती है।
गरमी में प्रात: काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हाकरी आती है।
हरिवंशराय बच्चन
10. गर्मी पर कविता – तपता अम्बर, तपती धरती
तपता अम्बर, तपती धरती,
तपता रे जगती का कण-कण !
त्रास्त विरल सूखे खेतों पर
बरस रही है ज्वाला भारी,
चक्रवात, लू गरम-गरम से
झुलस रही है क्यारी-क्यारी,
चमक रहा सविता के फैले
प्रकाश से व्योम-अवनि-आँगन !
जर्जर कुटियों से दूर कहीं
सूखी घास लिए नर-नारी,
तपती देह लिए जाते हैं,
जिनकी दुनिया न कभी हारी,
जग-पोषक स्वेद बहाता है,
थकित चरण ले, बहते लोचन !
भवनों में बंद किवाड़ किये,
बिजली के पंखों के नीचे,
शीतल ख़स के परदे में
जो पड़े हुए हैं आँखें मींचे,
वे शोषक जलना क्या जानें
जिनके लिए खड़े सब साधन !
रोग-ग्रस्त, भूखे, अधनंगे
दमित, तिरस्कृत शिशु दुर्बल,
रुग्ण दुखी गृहिणी जिसका क्षय
होता जाता यौवन अविरल,
तप्त दुपहरी में ढोते हैं
मिट्टी की डलियाँ, फटे चरण !
महेन्द्र भटनागर
11. गरम तवे सी तपती धरती
गरम तवे सी तपती धरती, मौसम गर्मी का
लू की लपटे आंधी अंधड़ मौसम गर्मी का
घर से बाहर निकल न पाएं सब दुबके बैठे
आने जाने पर पाबंदी, मौसम गर्मी का
टप टप चुए पसीना तन से मुश्किल है जीना
कैसा आया गर्म महीना, मौसम गर्मी का
सुबह सुबह ही सूरज दादा आएं रॉब जमाते
तिल सी रातें ताड़ हुए दिन मौसम गर्मी का
शरबत आइसक्रीम जलजीरा ठंढाई लस्सी
ए सी कूलर पंखे साथी मौसम गर्मी का
घास ढूंढती गोरी गैया सोन चिरैया प्यासी
पानी पानी सबकी बानी मौसम गर्मी का
12. एक बार फिर से मौसम ने
एक बार फिर से मौसम ने
सूरजजी को डांटा
कम्बल कोट रजाई भागे
कहकर सबको टाटा
छत पर चढ़कर धूप सेंकना
नहीं किसी को भाता
फ्रिज, कूलर एवं पंखों से
जुड़ा सभी का नाता
भरी दुपहरी आग बरसती
सड़कों पर सन्नाटा
दुबक गये सब घर के अंदर
लगा रही लू चांटा
गरम चाय काफी सब भूले
शरबत खूब सुहाता
पेय अनगिनत लेकिन गन्ने
का रस रंग जमाता
13. कंधे अब तो थके हमारे
कंधे अब तो थके हमारे
स्वेटर का वजन उठाते
दिवस क्यों नही गर्मी वाले
अब जल्दी से आ जाते
आए मजा नहाने में भी
तन मन हल्का फुल्का हो
जाएं सुबह सैर को हम भी
मिले रंगीली तितली को
खेल खेलकर न्यारे न्यारे
हम लम्बी दौड़ लगाते
दिवस क्यों नहीं गर्मी वाले
अब जल्दी से आ जाते
ठंडा पानी जूस शिकंजी
पीएं जितना मन माने
हम पापा के संग रोज ही
जा पाएं कुल्फी खाने
देकर सभी परीक्षाएं हम
छुट्टी रोज मना पाते
दिवस क्यों नहीं गर्मी वाले
अब जल्दी से आ जाते
लूटें हम भी मजे आम के
नाना जी के घर जाकर
लाड़ करेगे दादा दादी
गाँव हमें ले जाते चाचा
किस्से भी रोज सुनाते
दिवस क्यों नहीं गर्मी वाले
अब जल्दी से आ जाते
14. भरी दुपहरी चलती है लू, क्या गर्मी है
भरी दुपहरी चलती है लू, क्या गर्मी है
बातें करती सनन सनन सू क्या गर्मी है
सूरज कैसी आँख दिखाए
देख पसीना छूटा जाए
चैन सभी का हुआ उड़न छू
क्या गर्मी है
खरबूजों का मौसम आया
आम देखकर जी ललचाया
मन भाए लीची की खुशबु
क्या गर्मी है
बिजली भागी भागा पानी
आए याद सभी को नानी
भूल गये सब हा हा
हू हू क्या गर्मी है
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