Poem on Animals in Hindi – यहाँ पर आपको Poem on Save Animals in Hindi का कुछ बेहतरीन संग्रह दिया गया हैं. यह सभी जानवर पर कविता को हमारे हिंदी के लोकप्रिय कवियों ने लिखा हैं. स्कूलों में भी छात्रों को Hindi Poems on Animals लिखने को दिया जाता हैं. यह सभी Poem on Birds and Animals in Hindi में उन छात्रों के लिए सहायक होगी.
अन्तर्राष्ट्रीय पशु दिवस हर वर्ष 4 अक्टूबर को मनाया जाता हैं. इस दिवस को मानाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को जानवरों के प्रति उनके अधिकार और उनके कल्याण के लिए जागरूक करना होता हैं. इसके लिए पूरी दुनिया में 4 अक्टूबर को अनेकों कार्यक्रम आयोजित किया जाता हैं. इसकी शुरुआत पहली बार जर्मनी से हुई थी.
अब आइए कुछ नीचे Poem on Animals in Hindi में दिया गया हैं. इसे पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी Poem on Save Animals in Hindi में पसंद आयगी. इस जानवर पर कविता को अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.
जानवर पर कविता, Poem on Animals in Hindi
1. Poem on Animals in Hindi – एक छछूंदर धोती पहने
एक छछूंदर धोती पहने,
गया कराने शादी।
उसके साथ गई जंगल की
आधी-सी आबादी।
जब छछूंदरी लेकर आईं,
फूलों की वरमाला।
छोड़ छछूंदर, चूहेजी को,
पहना दी वह माला।
इस पर कुंवर, छछूंदरजी का
भेजा ऊपर सरका।
ऐसा लगा भयंकर बादल,
फटा और फिर बरसा।
बोला, अरी बावरी तूने,
ऐसा क्यों कर डाला।
मुझे छोड़कर चूहे को क्यों,
पहना दी वरमाला।
वह बोली -रे मूर्ख छछूंदर,
क्यों धोती में आया।
जानवरों के क्या उसूल हैं,
तुझे समझ ना आया।
सभी जानवर रहते नंगे,
यह कानून बना है।
जो कपड़े पहने रहते हैं,
उनसे ब्याह मना है।
2. Poem on Animals in Hindi – मैं सोचता हूँ कि
मैं सोचता हूँ कि
मैं पलट कर अब जानवरों के साथ रहता;
वे इतने सौम्य और आत्मनिर्भर होते हैं
मैं खड़ा उन्हें देखता रहता हूँ देर तक
वे अपने हालात पर पिनपिनाते नहीं हैं,
पसीने से तर-ब-तर नहीं हो जाते हैं वे;
वे रात के अँधेरे में जाग कर
रोते नहीं अपने पापों के लिए;
ईश्वर के प्रति अपने कर्तव्यों पर विमर्श करते हुए
वे पकाते नहीं हैं मुझे;
उनमें ना ही कोई असंतुष्ट होता
और ना ही कोई पीड़ित है
अधिक से अधिक चीज़ों पर स्वामित्व पाने के रोग से;
वे एक-दूसरे की स्तुति नहीं करते
और ना ही उनके जाति के किसी हजार बरस पहले रहने वाले की;
पूरी पृथ्वी पर
कोई आदरणीय नहीं है
उनमें
और न ही कोई ना-ख़ुश
इस तरह से वे मुझे अपने नाते दिखाते हैं
और मैं यह स्वीकार करता हूँ;
वे मेरे लिए लाते हैं मेरे ही वज़ूद के चिह्न,
वे दिलाते हैं इनका आभास सादगी से
अपने होने में
मुझे आश्चर्य होता है
कि वे कहाँ पाते हैं इन गुणों को,
इन चिह्नों को;
उनके रास्ते से गुज़रने में कभी बहुत पहले
कहीं मैंने ही तो नहीं गिरा दिए
लापरवाही में…
वाल्ट ह्विटमैन
3. Poem on Save Animals in Hindi – शोर मचा अलबेला है
शोर मचा अलबेला है,
जानवरों का मेला है!
वन का बाघ दहाड़ता,
हाथी खड़ा चिंघाड़ता।
गधा जोर से रेंकता,
कूकूर ‘भों-भों’ भौंकता।
बड़े मजे की बेला है,
जानवरों का मेला है।
गैा बँधी रँभाती है,
बकरी तो मिमियाती है।
घोड़ा हिनहिनाए कैसा,
डोंय-डोंय डुंडके भैंसा।
बढ़िया रेलम-रेला है,
जानवरों का मेला है!
सभामोहन अवधिया ‘स्वर्ण सहोदर’
4. Hindi Poems on Animals – एक बार हाथी दादा ने
एक बार हाथी दादा ने
खूब मचाया हल्ला,
चलो तुम्हें मेला दिखला दूँ-
खिलवा दूँ रसगुल्ला।
पहले मेरे लिए कहीं से
लाओ नया लबादा,
अधिक नहीं, बस एक तंबू ही
मुझे सजेगा ज्यादा!
तंबू एक ओढ़कर दादा
मन ही मन मुसकाए,
फिर जूते वाली दुकान पर
झटपट दौड़े आए।
दुकानदार ने घबरा करके
पैरों को जब नापा,
जूता नहीं मिलेगा श्रीमन्-
कह करके वह काँपा।
खोज लिया हर जगह, नहीं जब
मिले कहीं पर जूते,
दादा बोले-छोड़ो मेला
नहीं हमारे बूते!
5. Hindi Poem on Animals – मेरे अन्दर
मेरे अन्दर
एक जानवर है
जो मेरे
अन्दर के आदमी को
सताता है
धमकाता है
और डराए रखता है
फिर भी कई बार
मेरे अन्दर का आदमी
उस दरिंदे की
ज़रूरत महसूस करता है।
जंगल में रहना
मुश्किल है शायद
जानवर हुए बिना!
6. जानवर पर कविता – उसकी सारी शख्सियत
उसकी सारी शख्सियत
नखों और दाँतों की वसीयत है
दूसरों के लिए
वह एक शानदार छलांग है
अँधेरी रातों का
जागरण है नींद के खिलाफ़
नीली गुर्राहट है
अपनी आसानी के लिए तुम उसे
कुत्ता कह सकते हो
उस लपलपाती हुई जीभ और हिलती हुई दुम के बीच
भूख का पालतूपन
हरकत कर रहा है
उसे तुम्हारी शराफ़त से कोई वास्ता
नहीं है उसकी नज़र
न कल पर थी
न आज पर है
सारी बहसों से अलग
वह हड्डी के एक टुकड़े और
कौर-भर
(सीझे हुए) अनाज पर है
साल में सिर्फ़ एक बार
अपने खून से ज़हर मोहरा तलाशती हुई
मादा को बाहर निकालने के लिए
वह तुम्हारी ज़ंजीरों से
शिकायत करता है
अन्यथा, पूरा का पूर वर्ष
उसके लिए घास है
उसकी सही जगह तुम्हारे पैरों के पास है
मगर तुम्हारे जूतों में
उसकी कोई दिलचस्पी नही है
उसकी नज़र
जूतों की बनावट नहीं देखती
और न उसका दाम देखती है
वहाँ वह सिर्फ़ बित्ता-भर
मरा हुआ चाम देखती है
और तुम्हारे पैरों से बाहर आने तक
उसका इन्तज़ार करती है
(पूरी आत्मीयता से)
उसके दाँतों और जीभ के बीच
लालच की तमीज़ जो है तुम्हें
ज़ायकेदार हड्डी के टुकड़े की तरह
प्यार करती है
और वहाँ, हद दर्जे की लचक है
लोच है
नर्मी है
मगर मत भूलो कि इन सबसे बड़ी चीज़
वह बेशर्मी है
जो अन्त में
तुम्हें भी उसी रास्ते पर लाती है
जहाँ भूख –
उस वहशी को
पालतू बनाती है।
7. Poem on Animals in Hindi – आगे-आगे चूहा दौड़ा
आगे-आगे चूहा दौड़ा,
पीछे-पीछे बिल्ली।
भागे-भागे, दोनों भागे,
जा पहुँचे वो दिल्ली।
लाल किले पर पहुँच चूहे ने,
शोर मचाया झटपट।
पुलिस देखकर डर गई बिल्ली,
वापस भागी सरपट।
8. Poem on Save Animals in Hindi – पंपापुर में रहती थी जी
पंपापुर में रहती थी जी
एक बिल्ली सैलानी,
सुंदर-सुंदर, गोल-मुटल्ली
लेकिन थी वह कानी।
बड़े सवेरे घर से निकली
एक दिन बिल्ली कानी,
याद उसे थे किस्से प्यारे
जो कहती थी नानी।
याद उसे थीं देश-देश की
रंग-रंगीली बातें,
दिल्ली के दिन प्यारे-प्यारे
या मुंबई की रातें।
मैं भी चलकर दुनिया घूमूँ-
उसने मन में ठानी,
बड़े सवेरे घर से निकली
वह बिल्ली सैलानी
गई आगरा दौड़-भागकर
देखा सुंदर ताज,
देख ताज को हुआ देश पर
बिल्ली को भी नाज।
फिर आई मथुरा में, खाए
ताजा-ताजा पेड़े,
आगे चल दी, लेकिन रस्ते
थे कुछ टेढ़े-मेढ़े।
लाल किला देखा दिल्ली का
लाल किले के अंदर,
घूर रहा था बुर्जी ऊपर
मोटा सा एक बंदर।
भागी-भागी पहुँच गई वह
तब सीधे कलकत्ते,
ईडन गार्डन में देखे फिर
तेंदुलकर के छक्के!
बैठी वहाँ, याद तब आई
नानी, न्यारी नानी,
नानी जो कहती थी किस्से
सुंदर और लासानी।
घर अपना है कितना अच्छा-
घर की याद सुहानी,
कहती-झटपट घर को चल दी
वह बिल्ली सैलानी।
9. Hindi Poems on Animals – अगर कहीं मैं घोड़ा होता
अगर कहीं मैं घोड़ा होता, वह भी लंबा-चौड़ा होता।
तुम्हें पीठ पर बैठा करके, बहुत तेज मैं दोड़ा होता।।
पलक झपकते ही ले जाता, दूर पहाड़ों की वादी में।
बातें करता हुआ हवा से, बियाबान में, आबादी में।।
किसी झोंपड़े के आगे रुक, तुम्हें छाछ औ’ दूध पिलाता।
तरह-तरह के भोले-भाले इनसानों से तुम्हें मिलाता।।
उनके संग जंगलों में जाकर मीठे-मीठे फल खाते।
रंग-बिरंगी चिड़ियों से अपनी अच्छी पहचान बनाते।।
झाड़ी में दुबके तुमको प्यारे-प्यारे खरगोश दिखाता।
और उछलते हुए मेमनों के संग तुमको खेल खिलाता।।
रात ढमाढम ढोल, झमाझम झाँझ, नाच-गाने में कटती।
हरे-भरे जंगल में तुम्हें दिखाता, कैसे मस्ती बँटती।।
सुबह नदी में नहा, दिखाता तुमको कैसे सूरज उगता।
कैसे तीतर दौड़ लगाता, कैसे पिंडुक दाना चुगता।।
बगुले कैसे ध्यान लगाते, मछली शांत डोलती कैसे।
और टिटहरी आसमान में, चक्कर काट बोलती कैसे।।
कैसे आते हिरन झुंड के झुंड नदी में पानी पीते।
कैसे छोड़ निशान पैर के जाते हैं जंगल में चीते।।
हम भी वहाँ निशान छोड़कर अपना, फिर वापस आ जाते।
शायद कभी खोजते उसको और बहुत-से बच्चे आते।।
तब मैं अपने पैर पटक, हिन-हिन करता, तुम भी खुश होते।
‘कितनी नकली दुनिया यह अपनी’ तुम सोते में भी कहते।।
लेकिन अपने मुँह में नहीं लगाम डालने देता तुमको।
प्यार उमड़ने पर वैसे छू लेने देता अपनी दुम को।।
नहीं दुलत्ती तुम्हें झाड़ता, क्योंकि उसे खाकर तुम रोते।
लेकिन सच तो यह है बच्चो, तब तुम ही मेरी दुम होते।।
10. जानवर पर कविता – मेरा दोस्त
मेरा दोस्त
मेरे घर आया।
मैंने उसे
अपना नया कुत्ता दिखाया।
दोनों का आपस में
परिचय करवाया।
कुत्ते ने भी
स्वागत में दुम हिलाया।
मैंने फ़रमाया
और अपने दोस्त को बताया-
“ये कुत्ता नहीं है
मेरा भाई है, मेरा हमसाया है।”
दोस्त ने कहा-
“तुमने क्या भाग्य पाया है!
बिल्कुल इंसानों-सा कुत्ता पाया है।”
कुत्ता झल्लाया
और भौंककर चिल्लाया
“मुझे कुत्ता ही रहने दो
इंसान कहकर मुझे गाली मत दो,
कुत्ता मालिक का गुलाम होता है
जिसका खाता है
उसका गुण गाता है
जिसका एक रोटी खाता है
उसके आगे
ज़िंदगी भर दुम हिलाता है
तुम्हारी तरह
दूध पिलाने वाली माँ को
वृद्धाश्रम नहीं छोड़कर आता है।
कुत्ता कभी मतलबी
या नमकहराम नहीं हो सकता
इसलिए कुत्ता
कभी इंसान नहीं हो सकता।”
11. यू तो बडा दुलार था उसक़ा
यू तो बडा दुलार था उसक़ा
ज़ब तक क़ि काम था उसक़ा
अन्त मे मगर क्या पाया था उसनें
सोचता हूं अब ज़ानवर वों था या मै
एक़ आवाज़ पर झ़ट आ जाना
ब़िन शिकायत जो मिलें ख़ा जाना
मतलब प्यार का समझ़ाया उसनें
सोचता हू अब ज़ानवर वों था या मै
दर्दं से बेज़ार फ़िरता रहा ईधर से उधर
कईं बार आया था इस तरफ़ भी नज़र
बडी उम्मीद से मुझ़े बुलाया था उसनें
सोचता हूं अब, ज़ानवर वों था या मै
दूर झाड़ियो मे आख़िरी सासे लेता
बेब़सी से अपने घावो को देख़ता
बडी मायूसी से दम तोड पाया था उसनें
सोचता हू ज़ानवर वो था या मै
– अमन प्रतापगढ़ी
12. ज़ानवर हू
ज़ानवर हू,
इन्सान ना समझ़,
विश्वास क़र ।
तेरें घर की,
रख़वाली करूगा,
आख़िर तक़ ।
तेरें घर की,
सुरक्षित रख़ूगा,
बहु – बेटिया ।
तेरें घर क़ा,
मान नही टूटेंगा,
मेरें रहते ।
विश्वास क़र,
ज़ानवर ही हू मै,
इन्सान नही ।
13. जंगलो से चलें जंगली ज़ानवर
जंगलो से चलें जंगली ज़ानवर
शहर मे आ बसें जंगली ज़ानवर
आदमी के मुखौंटे लगाये हुए
हर क़दम पर मिलें जंगली ज़ानवर
आप भी तीसरी आंख से देख़कर
ख़ुद ही पहचानिये जगली ज़ानवर
एक औंरत अकेली मिली ज़िस ज़गह
मर्दं होनें लगे जगली ज़ानवर
आप पर भी झ़पटने ही वाला हैं वो
देख़िये…देखिये..जंगली ज़ानवर!
बंद कमरें के एकान्त मे प्रेमिक़ा
आपक़ो क्या कहें-जंगली ज़ानवर!
आज़कल जंगलो में भी मिलतें नही
आदमी से बडे जंगली ज़ानवर
14. अक्सर शहर के जंगलो मे
अक्सर शहर के जंगलो मे ;
मुझें जानवर नजर आते हैं !
इन्सान की शक्ल मे ,
घूमतें हुए ;
शिक़ार को ढूढते हुवे ;
और झ़पटते हुए..
फ़िर नोचतें हुए..
और ख़ाते हुए !
और फ़िर
एक और शिक़ार के तलाश मे ,
भटक़ते हुए..!
और क्या कहू ,
जो जंगल के ज़ानवर हैं ;
वों परेशान हैं !
हैंरान हैं !!
इन्सान की भूख़ को देखक़र !!!
मुझ़से कह रहे थें..
तुम इन्सानों से तो हम ज़ानवर अच्छें !!!
ऊन जानवरो के सामनें ;
मै निशब्द था ,
क्योकि ;
मै भी एक इन्सान था !!!
15. अगर कही ख़ो जाती मै जंगल मे
अगर कही ख़ो जाती मै जंगल मे
डरावनीं आवाज़ संग होता मेरा ब़सेरा
रात मे घनें अन्धकार मे
तो मै डर ज़ाती
फ़िर आतें हाथी दादा
संग लातें भालू और बन्दर मामा
पहलें मै थोडा घबराती
फ़िर उनक़ो पास बुलाती
हो ज़ाती मेरीं उनसे यारीं
फ़िर आती जो वनराज़ की बारी
करवातें वो भी ज़गल की सवारी
जो समझ़ती मै उनकी बोंली
और वह समझ़ जाते मेरी भाषा
फ़िर होती हम सब़ की एक़ परिभाषा
प्यार सें होती हम सब़ की मस्ती
कभीं बना लेती मै घडियाल की भी कश्तीं
गज़राज घूमाते झ़रने पर
और चीतें संग मै रेस लगाती
तरह तरह की मै आवाजे निकालतीं
गर मै जंगल मे ख़ो जाती
– Jaya Kushwaha
16. साझ़ ढ़लने
साझ़ ढ़लने
और इतना अंधेरा घिरनें पर भी
घर नही लौटीं गाय
ब़रसा मे भीगती मक्क़ा मे होगी
या क़िसी बबूल के नीचें
पानी के टपकें झ़ेलती
पावों के आस-पास
सरसरातें होगे साँप-गोहरें
कैंसा अधीर बना रहीं होगी उसें
वन मे कडकती बिज़ली रो तो नही रही होगीं
दूध थामें हुए थनो में
कैंसा भयावह हैं अकेलें पड जाना
वर्षां-वनो मे
जीवन मे जब दुखो की वर्षां आती हैं
इतनें ही भयावह ढ़ग से अकेला करतें हुए
घेरती हैं ज़ीवनदायी घटाये
17. गायो को ठिकानें पहुचा क़र
गायो को ठिकानें पहुचा क़र
चरवाहा; उनकी देख़रेख मे लगा
नीम कीं सुख़ाई पत्तियो के धुएं से
मसें, मक्खियो और डाँसो से
उन्हे कुछ चैंन दिया
सास्ना सहलातें हुए प्यार क़िया
प्यार की भ़ाषा समझ़ती है
गाये भी
जो कुछ उन्हे प्यार से ख़िलाते है
ख़ाती है।
फ़िर इन गायो को दुहता हैं
दुहनें वाला और बछडो के लिए भी
छोडता हैं
आदमी और ज़ानवर एक दूसरें के है
एक दूसरें के लिए।
– त्रिलोचन
18. एक बार जंग़ल में आक़र तो देख़ो
एक बार जंग़ल में आक़र तो देख़ो
वन सें मन को लगाक़र तो देख़ो
जंगल के बिंना ज़ल जायेगी धरती
एक़ बार मंगल पर ज़ाकर तो देख़ो
काट जंगलो को सडक तुम बनातें
कभीं पेड एक तुम लग़ाकर तो देख़ो
काट जंगलो को शहर तुम ब़साते
जंगल मे घर तुम ब़साकर तो देख़ो
शहर की हवा हों गयी प्रदूषित
ताजी हवा कभीं ख़ाकर तो देख़ो
ज़ानवर रहते हैं शहरो मे ज्यादा
मुख़ोटे ज़रा तुम हटाकर तो देख़ो
एक बार जंगल में आक़र तो देख़ो
वन सें मन को लगाक़र तो देख़ो
जंगल कें बिना ज़ल जायेगी धरती
एक़ बार मंगल पर जाक़र तो देख़ो.
19. खट खट खट खट खट कटती लकड़ी
खट खट खट खट खट कटती लकड़ी
आठ पैर की होती मकड़ी
थप थप थप थप देती थपकी
घोड़ा खड़ा खड़ा ले झपकी
चर चर चर पर चने चबाएं
बकरी में में कर मिमियाएं
टर टर टर टर मेंढक करता
चूहा बिल्ली से हैं डरता
खट खट खट खट बजते बूट
बिन जूतों के फिरते ऊंट
खड़ खड़ खड़ खड़ होता शोर
बादल देख नांचा मोर
छट पट छट पट बरखा आए
कागज की सब नाव चलाए
दड बड दड बड् भागे बच्चे
मन से निर्मल होते सच्चे
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