1. जय दोस्त भाई
जय दोस्त भाई, जय दोस्त भाई ।
करते हो तुम, दोस्तों की भलाई ॥
तुमको जो जान जाता है ।
जीवन भर सुख पाता है ॥
आधी रात को तुम बुलाते ।
फिर गप्पें तुम लड़ाते हो ॥
तुम बिन बेकार है सारी कमाई ।
जय दोस्त भाई, जय दोस्त भाई ॥
मुश्किल मैं साथ देते हो ।
काम हमसे भी लेते हो ॥
तुम्हारी महिमा दुनियाँ जान ना पाई ।
शिकायत एक घर पहुँच ना पाई ॥
क्या खूब तुम समझाते हो ।
बेईमानों को चूना लगाते हो ॥
बेईमानी तुम्हे खलती है ।
पूरी रात पार्टी चलती है ॥
अलगाव ना कभी दिखाते हो ।
सबूत पार्टी का मिटाते हो ॥
तुम्हारी गाथा ‘राना’ रहा सुनाई ।
जय दोस्त भाई…जय दोस्त भाई…॥
तुमसे जो टकराता है ।
चूर-चूर वो हो जाता है ॥
ज्यादा जो इठलाता है ।
घुटने टेकने पर मजबूर वो हो जाता है ॥
दुश्मनों से कभी तुमने मात ना खाई ।
जय दोस्त भाई…जय दोस्त भाई…॥
लौंग ड्राइव पर जब निकल जाते ।
चैन आयेगा जब हो सबसे आगे ॥
धीरे कभी तुमने गाड़ी ना चलाई ।
जय दोस्त भाई…जय दोस्त भाई…॥
पोल को ना खोलते हो ।
जी चाहे जो बोलते हो ॥
दोस्तों को नहीं लगता बुरा ।
चाहे बात को ना तोलते हो ॥
दोस्त की तुम गाड़ी उठाते,
कहते दो मिनट मैं अभी आते;
दो दिन मैं तुम आते हो ।
पता नहीं कहाँ तुम जाते हो ॥
फिर भी ‘राना’ करै ना बुराई ।
जय दोस्त भाई… जय दोस्त भाई ॥
अगर रूठ तुम जाते हो ।
मुश्किल से मनाऊ आते हो॥
रुठने का बहाना होता है ।
अन्दर ही अन्दर मुस्कुराते हो ॥
लाख आये तूफान दोस्ती अपनी टूट ना पाई ।
जय दोस्त भाई…जय दोस्त भाई…॥
2. करीलपुरा-परिचय
राजस्थान के धौलपुर मैं, है करीलपुरा गाँव ।
चलती है मंद बयार यहाँ, है पेडो की सीतल छाँव ॥
बसेङी तहसील मैं, जारगा बागथर के बीच बसा है।
पसरी है हरियाली यहाँ, करीलों से यह सजा है॥
तरह-तरह के फूल, तरह-तरह के झार यहाँ।
कई रास्तो पर बहती, खार की धार यहाँ॥
सपेरे साँपो को पकड कर ले जाते हैं।
कभी-कभी गाँव मैं अपना खेल दिखाते हैं॥
महन्त रोज गाँव मैं चक्कर लगाते हैं।
मेहतर सुबह गाँव मैं फिर जाते हैं॥
नहीं किसी मैं तकरार यहाँ।
है बेरों की भरमार यहाँ॥
हैं श्वछ द्वार, और साफ नलियाँ यहाँ।
प्यारी, सुन्दर, और चौडी गलियाँ यहाँ॥
हैं पंडित जी और खान यहाँ।
जाट वीर हैं, करीलपुरा की जान यहाँ॥
फूल, सब्जी और फलों की लताएँ यहाँ।
‘अनिल आर एस राना’ की मधुर कविताएँ यहाँ॥
मिलजुलकर सब रहते हैं।
गाँव को परिवार कहते हैं॥
नहीं बैर-भाव का काम यहाँ।
है देव,गोगा और शंकर का थान यहाँ॥
हैं अच्छे लोग, और बडी मिशाल यहाँ।
कैला माँ और बाबू महाराज का बना मन्दिर विशाल यहाँ॥
कई प्रजातियो के अनेक पेङ यहाँ।
मगर कैंथ का पेङ एक यहाँ॥
राना जी का कैंथ बडी दूर है।
मुखिया जी तो चल बसे, लेकिन उनका आम मशहूर है॥
मनमौजी एनीकट मैं नहाते हैं।
ददू पिचासी लड्डू खाते हैं॥
निहाल करीलपुरिया चुटकुले सुनाते हैं।
ङा॰सा मरीजो की जान बचाते यहाँ॥
आलू जी गाँव लम्बू कहाते हैं।
बीरो जी मूछो मै ताव लगाते यहाँ॥
दुदियाजी दूध को डालते हैं।
नन्दू जी धीरे-धीरे चालते यहाँ॥
कई तरह के रंग, कई तरह के भेष यहाँ।
सुबह-शाम करते बन्दे,सङको पर रेस यहाँ॥
मिल जाए. एक जगह पर, गप्पें खूब पेलतें हैं।
मिलकर दोहपर को पत्ते छकडी खेलतें हैं॥
बाबा राणा चोबसिंह जी हमैं बताते थे।
राणा मरजाद सिंह यहाँ के शेर कहाते थे ॥
करीलपुरा के डकैत महारासिंह जी कहाये।
छोडकर ङकैती की राह जिन्होने करीलपुरा के मान बढाये॥
फैला है चारों तरफ बसन्ती चोला यहाँ।
है मामा का मशहूर ढोला यहाँ॥
झमन्न बाबू आल्हा सुनातें हैं।
जिन्हे देख लोग मन्द-मन्द मुस्कातें हैं॥
जहाँ अतिथि को भगवान माना ।
ऐसा है करीलपुरा सुन अनिल आर एस राना ॥
हैं निराले लोग, हैं निराले ठाट यहाँ।
करीलपुरा मैं मिलजुल कर रहते, हिन्दु-मुस्लिम जाट यहाँ॥
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