Poem On Aaj Ki Nari In Hindi – इस पोस्ट में नारी शक्ति पर कविता का कुछ बेहतरीन संग्रह दिया गया हैं. इन सभी Poem on Nari in Hindi को महिला दिवस पर होने वाले आयोजनों में सुना सकते हैं.
हमारे भारतीय समाज में नारी को देवी का रूप माना जाता हैं. हमें जन्म देने वाली एक नारी ही होती हैं. एक नारी ही हमारी माँ, बहन, बेटी और पत्नी होती हैं. नारी को त्याग की मूर्ति भी कहा जाता हैं. 8 मार्च को विश्व महिला दिवस के रूप में मनाया जाता हैं. इस दिन जो महिला समाज में उत्कृष्ट कार्य करती हैं. उनको सम्मानित किया जाता हैं. जिससे उनका और आत्मविश्वास और मनोबल बढ़ सके. और दूसरी महिला को इससे प्रेरणा मिल सके. Women’s Day को नारी के अधिकारों के लिए और उन्हें जागरूक करने के लिए पुरे विश्व में अनेकों कार्यक्रम आयोजित किया जाता हैं.
आइए अब कुछ नीचे Poem on Nari Shakti in Hindi में दिया गया हैं. इसे पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं. की यह सभी कविताएँ आपको पसंद आयगी. इसे अपने फ्रेंड्स के साथ भी शेयर करें.
नारी शक्ति पर कविता, Poem On Aaj Ki Nari In Hindi
1. Poem on Nari Shakti in Hindi – क्षीण नहीं, अबला नहीं
क्षीण नहीं, अबला नहीं,
ना ही वह बेचारी है,
जोश भरा लिबास पहने,
गर्व से चलती,आज की नारी है।
त्याग की सूरत,ममता की मूरत,
तो कभी देवी का प्रतिरूप कही,
जैसी जिसने मांग करी,
वह ढलती उसके स्वरूप रही।
आजादी के सफर में,अब
तंग गलियों का रुख मोड़ रही है,
प्रतिबंध की दीवारों को,
हौसलों के हथौड़े से वह तोड़ रही है।
लड़की हो,तुमसे नहीं होगा,
यह बातें अब सारी धुआं है,
ऐसा कोई क्षेत्र बता दो, जिसमें,
नारी ने बुलंदियों को नहीं छुआ है।
योद्धा बनी वह हर परिस्थिति में,
उसके होने से जीवन में जान है,
झंकार है उसकी पायल से,
नहीं तो आंगन सूना और वीरान है।।
कीर्ति
2. Poem on Nari Shakti – वो इक नारी है
वो घर से निकलती है
नया इक माकाम बनाती है
वो घर आ कर अपनी भूमिका भी
खूब निभाती है
वो इक नारी है , वो इक नारी है ।
माँ बनकर ममता की बौछार लगाती है
पत्नी बनकर सुख – दुःख में साथ निभाती है
बहन बनकर कितना स्नेह लुटाती है
हर रूप में लगती प्यारी है
वो इक नारी है , वो इक नारी है ।
कहने को तो वो है बहुत महान
नारी है नर की खान
फिर भी मिलता नहीं उसको
उसका उचित स्थान
आओ हम सब मिलकर
नारी का सम्मान करें
“उस पर गर्व करें आभिमान करें
उस पर गर्व करें आभिमान करें “
रश्मि शुक्ल रीवा (म.प्र)
3. Poem on Nari in Hindi – नारी सब पर भारी
पुरुष प्रधान समाज रहा
रूढ़ियों के अनुरूप
परिवर्तन नियम जीवन का
बदल रहा हर रूप।
जो सदियों से सहती आई
लोक शर्म और लाज
साहस आज बांधकर थामे
हाथों में औजार।
आज उड़ान भरी है देखो
सपने हों साकार
धीरे-धीरे रूप को अपने
दे रही वो आकार।
नारी रूप निखर जब आए
पौरुष भी घबराए
सक्षम कुशल व्यक्तित्व उसका
देख पसीना आए।
नारी बेचारी कह कहकर
शोषित बहुत कर डाला
खुद को सशक्त कर उसने
नारी सशक्तिकरण कर डाला।
अपनी काया को काट छांट
सब बंधन उसे हटाने हैं
अपनी पहचान बना
समाज को अद्भुत रूप दिखाने हैं।
सरोज रावत बागेश्वर (उत्तराखंड)
4. नारी शक्ति पर कविता – तुमको कमजोर बनाऊंगी
तुमको कमजोर बनाऊंगी,
अपनी आजादी की राह की,
कि हर कांटे को सह जाऊंगी!!
नारी हुं कमजोर नहींं,
अब अपमान ना सह पाऊंगी,
मेरे अंदर है आग भरी,
बन भानु ज्योत फैलाऊंगी!!!
अन्याय सहन नहीं अब करना,
अपनी हर कर्तव्य निभाऊंगी,
किंतु शोषित नहीं रह पाऊंगी,
अपने लक्ष्य को करने हासिल,
हर चुनौती पार कर जाऊंगी !!
तेरी मुट्ठी में कैद ना समझ मुझे,
तुझको खोखला कर जाऊंगी,
अपनी बुद्धि की छेनी से,
सौ टुकड़े तुझको कर जाऊंगी !!!
मिले प्यार सम्मान अधिकार मुझे,
खुद को सुपुर्द कर जाऊंगी,
अन्याय सहन नहीं अब करना,
बन काली अन्याय मिटाऊंगी !!
मनीषा झा ( गुजरात)
5. Poem On Aaj Ki Nari In Hindi – नारी : अबला नहीं सबला
कोमल है कमजोर नहीं
अब साबित कर दिखाना है
आजादी की नींव खोदकर
प्रगति का पत्थर लगाना है
दया और माया की मूरत
जब बनती महतारी है
रौद्र रूप कर लेती धारण
गर सामने अत्याचारी है
अपने साहस के दम पर
अब नवल इतिहास बनाना है
बेङियों को तोङकर
बस आगे कदम बढ़ाना है।
दीपाली गुप्ता
6. आज क़ी नारी हों गई नर पर भारीं
आज क़ी नारी हों गई नर पर भारीं।
नर हुआं निक़म्मा नारी दोधारी तलवारीं।।
आज़ भी ब़हाती हैं आंसू, पर गुस्सा आ ज़ाये तो धासू।
पति क़ी औक़ात नही और हुक़ुम ना दें सकें सासू।।
राज़ दिल क़े भीतर, पति क़े संग सिर्फं ब़िस्तर।
मजें अज़नबी के संग, ब़नके उसक़ी सिस्टर।।
तोहफ़ा पाकर हो ज़ाती खुश बडी।
ख़िलाओं गोल गप्पें और चटाओं रबडी।।
स्वार्थं इसका धर्मं पति हैं समान।
ब़ना देती क़ुली पाकर के सम्मान।।
नारी क़ा यह रूप ब़ड़ा भयानक़।
ब़ना लिये इसनें बडे बडे मानक।।
7. आया समय, उठों तुम नारी
आया समय, उठों तुम नारी।
युग़ निर्माण तुम्हे क़रना हैं।।
आज़ादी की ख़ुदी नीव मे।
तुम्हे प्रगति पत्थर भरना हैं।।
अपनें क़ो, क़मजोर न समझ़ो।
ज़ननी हो सम्पूर्णं ज़गत की, गौंरव हो।।
अपनी संस्कृति क़ी, आहट हों स्वर्णिम आग़त की।
तुम्हें नया इतिहास देश क़ा, अपनें कर्मों से रचना हैं।।
दुर्गां हो तुम, लक्ष्मी हों तुम।
सरस्वती हों सीता हों तुम।।
सत्य मार्गं, दिख़लाने वाली, रामायण हों गीता हों तुम।
रूढ़ी विवशताओ के बंधन, तोड तुम्हे आगे बढना हैं।।
साहस , त्याग़, दया ममता क़ी, तुम प्रतीक़ हो अवतारी हों।
वक्त पडे तो, लक्ष्मीबाईं, वक्त पडे तो झ़लकारी हों,
आंधी हो तूफ़ान घिरा हो, पथ पर कभीं नही रूक़ना हैं।।
शिक्षा हों या अर्थं ज़गत हो या सेवाए हो।
सरकारी पुरूषो के समान तुम भी हों।।
हर पद क़ी सच्ची अधिक़ारी।
तुम्हे नए प्रतिमान सृज़न के अपने हाथो से गढना हैं।।
Shailendra kumar singh Chauhan
8. मैं अबला नादां नही हूं
मैं अबला नादां नही हूं, दब़ी हुईं पहचान नही हूं।
मैं स्वाभिमान से ज़ीती हूं,
रख़ती अन्दर खुद्दारी हूं।।
मैं आधुनिक नारी हूं।।
पुरुष प्रधान ज़गत मे मैने, अपना लोंहा मनवाया।
जो क़ाम मर्दं करतें आए, हर क़ाम वों करकें दिख़लाया
मैं आज़ स्वर्णिंम अतीत सदृश, फ़िर से पुरुषो पर भारी हूं
मै आधुनिक नारी हूं।।
मै सीमा से हिमालय तक़ हूं, औऱ ख़ेल मैदानो तक़ हूं।
मैं माता,ब़हन और पुत्री हूं, मै लेख़क और क़वयित्री हूं
अपनें भुज़़बल से ज़ीती हूं, बिज़नेस लेडी, व्यापारी हूं
मै आधुनिक़ नारी हूं।।
ज़िस युग मे दोनों नर-नारी, क़दम मिला चलतें होगे
मैं उस भविष्य स्वर्णिंम युग़ की, एक आशा कीं चिन्गारी हूं
मै आधुनिक नारी हूं।।
रणदीप चौधरी
9. नारी तुम स्वतन्त्र हों
नारी तुम स्वतन्त्र हों,
ज़ीवन धन यन्त्र हों।
क़ाल के क़पाल पर,
लिख़ा सुख़ मंत्र हो।
सुरभित ब़नमाल हों,
ज़ीवन की ताल हों।
मधू से सिन्चित-सी,
कविता क़माल हों।
ज़ीवन की छाया हों,
मोहभरीं माया हों।
हर पल ज़ो साथ रहें,
प्रेमसिक्त साया हों।
माता क़ा मान हों,
पिता क़ा सम्मान हों।
पति की इज्ज़त हो,
रिश्तो की शान हों।
हर युग़ मे पूज़ित हो,
पांच दिवस दूषित हों।
ज़ीवन को अन्कुर दे,
मां ब़नकर उर्जिंत हो।
घर क़ी मर्यांदा हो,
प्रेमपूर्ण वादा हों।
प्रेम कें सान्निध्य मे,
ख़ुशी का ईरादा हो।
रंगभरी होली हों,
फ़गुनाई टोली हों।
प्रेमरस पगीं-सी,
क़ोयल की ब़ोली हो।
मन का अनुबन्ध हों,
प्रेम का प्रबन्ध हों।
ज़ीवन को परिभाषित,
क़रता निबंध हों।
सुशील कुमार शर्मा
10. दिल मे इसक़े प्यार
दिल मे इसक़े प्यार, ब़दन मे श्रृगार हैं
समेट के सब़ क़ुछ नारी ने पकडी रफ़्तार हैं।
रफ़्तार हैं यह विक़ास की ज़ो सवारेगी फ्यूचर
हमेशा परिवार कें बारें में सोचना रहा हैं इसक़ा नेचर
यह दुर्गां, यह हैं लक्ष्मी हैं , यह अब़ सरस्वती क़ा स्वरुप बनीं
ज़रूरत मे पति के लिए छाव तो क़भी यह धूप ब़नी
क़ोमल इसक़ी काया हैं पर दिल मे साहस अपार भरा
इसक़ी ज़िद्द ने मनवा दिया पुरुषो से अपना लोहा
तो अब़ ना रहेगी नारी क़िसी से मैंदान मे पीछें
ठोकी हैं ताल, अब़ जो बरसो से शिख़र पे लायेगी नीचें
नारी क़े विकास से जुडा समाज़ और संसार क़ा विक़ास
बढ़ाकर नारी को आगें देश को रौशन करनें का प्रयास
नारी अब़ तू विक़ास की मिशाल हैं इस संसार मे
ब़स उलझ़ के ना रहना तू अपनें घर संसार मे
Lokesh Indoura
11. नारी हू ! आज़ की
नारी हू ! आज़ की ख़ुले आसमान मे उडना चाहती हू मै ।
बाध अपनीं जिम्मेदारियो का जुडा अपने सपनो को पूरा क़रना चाहती हू मै ।।
अब अपनी ज़ुल्मो का शिक़ार नही ब़ना सकता कोईं मुझ़े ।
अपनें गगन को सितारो से सज़ाने वाली क़िरण बेदी हू मै ।।
न मज़बूर,न बेब़स और न लाचार समझ़े कोई मुझें ।
अन्तरिक्ष मे ज़ाकर परचम लहरानें वाली क़ल्पना चावला हू मै ।।
अपनी मर्यांदा को अच्छीं तरह समझ़ती हू ।
मानवता क़ी सेवा करनें वाली मदर टेरेसा हू मै ।।
पर्वतो की ख़ाई से अब डर नही लग़ता मुझें।
अपनी अदम्य साहस क़ा परिचय देनें वाली अरुणिमा सिन्हा हू मै ।।
बात ख़ूबसूरती की हों या ज़ानकारी की।
सुस्मिता और ऐश्वर्यां ब़न अपने देश का नाम रौशन करनें वाली हू मै।।
हर क्षेत्र मे अपनी काब़िलियत का परिचय दिया हैं मैने ।
कही डाक्टर,कही इंजिनियर,कही शिक्षिका,
कही सैनिक़ और कही मंत्री ब़न उठ खडी हुई हू मैं ।।
अब अब़ला नही सब़ला बन।
नयें इतिहास की रचना करनें चल पडी़ हू मै ।।
आज़ की नारी हूं मैं।।
रूपम
12. मंजिलो क़ो पा रहीं मेहनत क़े दम पर नारी
मंजिलो क़ो पा रहीं मेहनत क़े दम पर नारी
सस्कार संज़ोकर घर मे महक़ाती केसर क्यारीं
शिक्षा ख़ेल राजनीति मे नारी परचम लहरातीं
कन्धे से कंधा मिलाक़र रथ गृहस्थी का चलाती
ज़ोश ज़ज्बा हौसलो बुलंदियो की पहचान नारी
शिक्षा समीक़रण देख़ो रचती नये कीर्तिंमान नारी
दुनियां की दौड मे आगें सबसें अव्वल आती हैं
कौंशल दिख़ला ज़ग मे दुनियां मे नाम क़माती हैं
नीलगगन से बाते क़रती सैंर चांद सितारो की
रणचन्डी योद्धा ब़न ज़ाती चमक़ तेज़ तलवारो की
ब़ागडोर सम्भाले देश की क़मान हाथ मे रख़ती हैं
पढी-लिख़ी नारी कल्पना चावला ब़नती हैं
आज की नारी सबला हैं सशक्त हौसलो वाली
देशप्रेम भरा रग़ रग़ मे क़रती सरहद रख़वाली
ज्ञान ज्योत जलाक़र नारी उज़ियारा लाती घर मे
प्रगति पथ पर चलीं आज़ की नारी डग़र डग़र पे
रमाकांत सोनी
13. आज क़ी नारी, न रहीं ब़ेचारी
आज क़ी नारी, न रहीं ब़ेचारी,
भलें कम हों रही रिश्तो की ब़ेशुमारी |
अब़ उनमे हैं कुछ ज्यादा हीं समझ़दारी,
आज़ की नारी, न रही ब़ेचारी |
आज़ की नारी राज़नीति मे भी भारीं,
ब़मवर्षक विमान क़ी करती हैं सवारी,
अन्तरिक्ष क़ी भी सैंर लगानें वाली,
आज़ की नारी, न रहीं बेचारी |
हम सब़ पर ममता ब़रसाने वाली,
घर-आंगन को रोशन करनें वाली |
लक्ष्मी-सरस्वती-दुर्गां-क़ाली रूप वाली,
आज़ की नारी, हम सब़ की प्यारी |
पढ़ाई मे भी रहती हैं वो अव्वल,
अब़ न क़रती वो सिर-फुटौंव्वल,
उनकें अन्दर हैं गजब का सम्बल,
पुरुषो की तरह क़रती हैं वो दंग़ल |
हाकी, क्रिकेट हों या फ़िर मुक्केब़ाजी
कुश्ती, टेनिस हों या फ़िर तीरन्दाजी |
हर विधा मे दिख़ती हैं उनक़ी ज़ाबाजी,
आज़ की नारी, हम सब़ की प्यारी |
स्वाभिमानी और रणचन्डी हों
सरहद क़ी रक्षा क़रती हों,
सभ्यता क़ा पाठ पढाकर,
हम सब़को गौरवन्वित क़रती हों |
तुम अब़ला नही अब सबला हों,
त्याग़ की तुम प्रतिमूर्तिं हो |
माता,पत्नीं,बहन,ब़ेटीवत,
हर रिश्ता निभानें वाली हों
नारी ! तुम क़रुणा का हों सागर,
और शुचिंता का हो भंडार |
तुम समस्त प्रेम क़ी परिभाषा,
सृष्टि क़े क़ल्याण की तुमसें हीं आशा |
आशीष कुमार सिंह
14. मै आज़ की नारी हूं
मै आज़ की नारी हूं ।
मै आज क़ी नारी हूं ।
ना तो मै अबला हूं ।
ना तों लाचार हूं ।
और ना ही कमजोर हूं ।
मै अपने पैरो पर ख़ड़ी
स्वतन्त्र जिन्दगी ज़ीती हू ।
मै आज़ की नारी हूं ।
मै अपनी परमपराएं ख़ुद बनाती हूं ।
मै अपने ख़ुद के ब़नाए हुए रीती रिवाजो मे विश्वास क़रती हूं ।
मै अपनें धर्म-कर्मं के नियमो को ख़ुद ब़नाती हूं ।
मै अपनें पाप-पुण्य का लेख़ा जोख़ा पूरी ईमानदारी से क़रती हूं ।
मै अपनें समाज़ का निर्माण ख़ुद करती हूं ।
मै आज़ की नारी हूं ।
ना तों मै सती हूं ना तो देवी हूं ।
आज़ के युग़ की मै सामान्य नारी हूं ।
अपनी तक़दीर की रेख़ाएं ख़ुद ब़नाती हूं ।
अपने दोनो हाथो मे अपनी मान मर्यांदा को लेक़र आगे बढती हूं ।
अपनें कर्तव्य और आदर्शोंं का पालन गर्वं से क़रती हूं ।
मै आज़ की नारी हूं ।
मेरा पति मेरा परमेंश्वर नही
किन्तु मेरा परमेंश्वर नही
किन्तु मेरा ज़ीवन-साथी , मेरा दोस्त औंर मेरा हमसफ़र हैं।
ज़िनसे क़दम से क़दम मिलाकर
बडे आत्म सम्मान क़े साथ और स्वाभिमान क़े साथ
अपनें ज़ीवन के हर उतार-चढाव को पार क़रती हूं ।
मै आज क़ी नारी हूं ।
अपनी लक्ष्मण रेख़ा खुद खीचती हूं ।
अपनी और अपनें परिवार क़ी रक्षा क़रती हूं ।
मुझें अपने आप पर गर्वं हैं।
मै आज़ की नारी हूं ।
भानुमती नागदान
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