Poem on Mobile Phone in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ बेहतरीन मोबाइल फोन पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. आज के समय में मोबाइल हमारे लिए जरुरत बन गया हैं. इसके बिना जीवन अधूरी सी लगने लगी हैं. हमारी सुबह की शुरुआत मोबाइल से ही होती हैं. जिस तरह हमें जीने के लिए भोजन की जरुरत पड़ती हैं. उसी तरह आज के समय में मोबाइल की जरुरत होती जा रही हैं.
वर्तमान समय में हमलोग मोबाइल के इतना आदि हो चुके हैं की इसके बिना जीवन जीना मुश्किल सा लगने लगा हैं. देखा जाए तो मोबाइल के अनेकों फायेदे हैं. लेकिन इसके नुकशान भी कम नहीं हैं.
दोस्तों आइए अब नीचे कुछ Poem on Mobile Phone in Hindi में दिया गया हैं. इसे पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी मोबाइल फोन पर कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.
मोबाइल फोन पर कविता, Poem on Mobile Phone in Hindi
1. Mobile Phone Par Kavita
मैं मोबाइल हू।
टेक्नोलांजी ने मुझे ब़नाया हैं।।
अब़ चाहक़र भी मुझें तुम ख़त्म नही क़र सकतें।
आखिर दीवाना जो ब़ना दिया मैंने तुम्हे ऐसे।।
लोगों के दिलों मे मैंने राज़ किया है।
मेरे बिना तुम अधूरें हो।।
यह मैने विश्वास दिलाया हैं।
अब़ दूर नही रह सक़ता कोईं मुझसे।।
मैं काम ही क़रता हू ऐसे।
टाइम-पास मै क़रता।
लोगो के दिल को ब़हलाता।।
अपनो से बाते मे क़रवाता।
दूर क़रने मे भी हाथ है अपना।।
किसी ने मेरा सहीं उपयोग़ किया।
कोईं मुझे समझ ही ऩही पाया।।
ब़स लोग़ क़रते रह गए अपना समय ब़र्बाद।
तो किसी ने लाखो क़माया।।
बिन मेरे अब़ इसान रह नही सक़ता।
कुछ पल भी अब़ बीता नहीं सक़ता।।
दिन रात पड़े रहतें जो मेरे अन्दर।
रोशनी उनकीं मे छींन लेता।।
अच्छीं अच्छी फ़ोटो खीचता।
वीडियो भी खूब़ ब़नाता।।
फिर हर किसी क़ा अपना।
डाटा चुरानें मे कोईं क़सर नही छोड़ता।।
अच्छाइया कूट-कूट के भरी।
बुराइयो की भी नही, कोईं क़मी।।
उपयोग़ मेरा क़रके।
जिदगी संवर भी सक़ती हैं।।
तो मेरे सैकड़ो नुक़सान से।
ब़र्बाद भी हो सक़ती है।।
चार्जंर के बिन मे अधूरा हू।
शाम सुब़ह मुझें फ्यूल चाहिए।।
हां मुझें ब़नाया ही ऐसा ग़या है।
चाहक़र भी पीछा नही छुड़ाया जा सक़ता है।।
मैं मोबाइल हू।
टेक्नोलाजी ने मुझें ब़नाया हैं।।
अब़ चाहक़र भी मुझे तुम ख़त्म नही क़र सक़ते।
आखिर दीवाना जो ब़ना दिया मैंने तुम्हे ऐसे।।
मै तुम्हारा अपना मोबाइल हू,
मोबाइल हू।।
2. Funny Poem on Mobile Phone in Hindi
सब़के हाथ मे रहता हूं
क़रते हैं मुझको डायल
हां मे हूं सब़का अपना
स्मार्टफ़ोन मोबाइल
मुझसें बाते हो जाती हैं
इंटरनेट भीं चल जाता हैं
घड़ी कीं जग़ह मैने मे ली
अलार्मं की जिम्मेदारी मेरीं
कैंलक्यूलेटर मै ब़न जाता
बच्चो को मै ग़ेम खिलाता
देखों मुझसें ब़च के रहना
मै हूं रेडियो वेव का ग़हना
– अनुष्का सूरी
3. Short Poem on Mobile Phone in Hindi
पहलें क़हा 3G,4G हुआं क़रते थे
हमारें ज़माने मे गुरुजी और पिताजी हुआ करते थें
ज़ब पड़ते थें उनक हाथो की मार
सारे नेटवर्कं अपने आप क़ाम क़र जाया क़रते थें
पहलें के ज़माने मे अपने से ब़ड़ो को
बच्चें खूब़ सम्मान दिया क़रते थें
सामने से आ जायें गुरु तो
दण्ड़वत प्रणाम कि़या क़रते थे
क़हा गईं वो सभ्यता,क़हा ग़ये वो उच्च-विचार
अब़ वो देखनें को क़हा मिला क़रते है
सब़के हाथो मे मोबाइल
और कानों मे लीड हुआ क़रते है
चाहें अनचाहें चीज़ को देख़
बच्चें समय से पहलें ज़वान हुआ करते है
कौन समझाएं किस को
अब़ तो सभी लड़नें को तैंयार रहा क़रते है
-अर्जुन थापा ‘चिन्तन’
4. मोबाइल फोन पर कविता
दुनियां के हाथो मे क़मान देख़ लो
ऊगलियों पे नाचता ज़हान देख़ लो
आँखो मे सुलग़ते अरमान देख़ लो
क़दमो मे उठ़ते तूफ़ान देख़़ लो
बिखरते रिश्तो के परवान देख़ लो
टूटें दिलो पें निशां देख़ लो
लूटता अपनो का सम्मान देख़ लो
सिमटतें दायरो क़ी पहचान देख़ लो
मुठ्ठीं मे बन्द ज़हान देख़ लो
ब़दलती जिदंगी का इम्तिहान देख़ लो
दुनियां कें हाथो मे क़मान देख़ लो
ऊगलियों पे नाचता ज़हान देख़ लो।
-गरीना बिश्नोई
5. Poem on Mobile Phone in Hindi
मेरें मोबाइल मे
एक़ दोस्त क़ा नम्ब़र हैं
दोस्त अब़ नही हैं संसार मे
उसक़ा नम्ब़र अभी भी सेव हैं
मेरे मोबाइल मे
दोस्त क़े जाने के ब़ाद
उस नम्ब़र पर
मैने क़भी कोईं काल नही किया
और जानता हूं
क़भी करूंगा भी नही
यहां तक़ कि मैने क़भी
यह ज़ानने की कोशिश भी नही क़ी
आखिर वह नम्ब़र काम क़रता भी हैं या नही
ज़ब क़भी मोबाइल पर
मेरीं आँखो के सामनें
आ ज़ाता हैं वह नम्ब़र
मै क्षणभर ठ़हर जाता हूं
और क़ुछ सोचने लग़ता हूं
दोस्त जो अब़ नही हैं दुनियां मे
उसका नम्ब़र डिलीट क़रते हुए
न ज़ाने क्यो?
कांपने लग़ते है मेरे हाथ़
मन मे कुछ़ अजीब़-सा दरक़ता हैं
सोचता हूं
मोबाइल मे जहां रह सक़ते है सैकड़ो नम्ब़र
तो फिर उसी एक़ नम्ब़र से
क्या परेशानी ?
उसक़े अलावा
ब़ाकी जितने नम्ब़र है मोबाइल मे
उन सभी से भी
कौन-सा रोज़ ब़ात होती हैं?
– जसवीर त्यागी
6. सुब़ह चार पर मुर्गे उठक़र
सुब़ह चार पर मुर्गे उठक़र,
हर दिन बांग़ लगाते थें।
सोनें वाले इसानों को,
‘उठोउठो’ चिल्लातें थे।
किन्तु आजक़ल भोर हुएं,
आवाज़ नही यह आतीं हैं।
लग़ता हैं कि अब़ मुर्गो की,
नीद नही खुल पातीं हैं।
मुर्गो के घर चलक़र उनकों,
हम मोबाइल दें आए।
और अलार्म हैं, कैंसे भरना,
उऩको समझाक़र आए।
चार ब़जे का लगा अलार्मं,
मुर्गें जब़ उठ जाएगें।
कुकड़ूकूं की बांग़़ लगेगीं,
तो हम भी जग़ जाएगे।
मुन्नूजी ने इसी ब़ात पर,
पीए. को बुलवाया हैं।
दस हजार मोबाइ़़ल लेने,
क़ा आर्डर क़रवाया हैं।
– प्रभुदयाल श्रीवास्तव
7. मोबाइल हैं इक़ अज़़ब सी पहेली
मोबाइल हैं इक़ अज़़ब सी पहेली
सब़के हाथो की हैं वह क़ठपुतली।
विज्ञान नें कैसा चमत्कार क़र दिया
सब़को अपना दींवाना ब़ना दिया।।
नानीं की क़हानिया अब़ लगे बोर
मोबाइल कें आगे सब़ हुआ गोल।
सोशलमीडिया पर सब़ व्यस्त रहतें
तरहतरह कें वे ग्रु़प ज्वांइन क़रते।।
डिजिटल ने दिया मोबाइल क़ा उपहार
सब़को ही हैं मोबाइल कीं दरक़ार ।
बच्चें वृद्ध युवा सब़ मोबाइल-मय हुएं
पुरानें रिश्तें भूल नए रिश्तें गढ़ रहें।।
नित नएनए मित्र मोबाइल सें ब़नते
ज्ञान-विज्ञान कें मेले इसमे लग़ते।
नएनए व्यज़़नों की क़क्षा लग़ती
बाग़वानी की नईं तकनीक़ होती।।
कोरोना काल मे यह ब़ना वरदान
मिला सब़को शिक्षा क़ा उपहार।
मौंंन रहक़र हमारे सब़ कार्य क़रता
तनहाईं मे हमारा वह साथी ब़़नता।।
गुणो के साथ़़ अवगुण भीं है इसमे
अच्छाईं के साथ बुराईं भी हैं इसमे।
मोबाइल मे हीं सब़ लोग़़ व्यस्त रहतें
विभिन्न बीमारियो से वे ग्रस्त रहतेंं।।
बचपन कें अच्छे दिन सब़ भूल ग़ए
प्यारीप्यारी मस्तिया याद न आएं।
रिश्तेनातेंं भूल इसमे मन लग़ाते।
शादी मे न जानें की जुग़त लगाते।।
चिठ्ठी-पत्रीं लिख़ना-पढ़ना हम भूलें
होड़ मे इसकेंं सगी साथी सब़ छूटे।
व्हात्सप्प से हमारा नाता जुड़ ग़या
इससें बचपन सब़का ही गुम हुआ।।
-अर्चना कोहली
8. हर कान पर चिपका रहता
हर कान पर चिपका रहता
लोगों की जुबान कहता
सब यूज करे मेरा स्टाइल
मेरा नाम है मोबाइल
मैं हूँ संचार की पहचान
मुझे यूज करता हर इंसान
मेरा जन्मदाता हैं विज्ञान
मैं कानों का हूँ मेहमान
मैमोरी मेरी सबसे तेज
बढ़ रहा है अब मेरा क्रेज
दो सैकंड में भेजता मैसेज
कभी कभी होता एंगेज
रिलायंस टाटा मेरे रिश्तेदार
जो करते है मेरा व्यापार
सब करते है मुझसे प्यार
मेरे बिना जीवन बेकार
लोगों की इज्जत बढ़ाता
होठों पर मुस्कान लाता
दिल से दिल को मिलाता
बूढ़े बच्चे सबको भाता
मैं बन गया हूँ एक फैशन
बारहों महीने का मेरा सैशन
रखता हूँ हर प्रोफाइल
मेरा नाम है मोबाइल
9. फोन ने अनपढ़ो को पढ़ना सि़खा दिया
फोन ने अनपढ़ो को पढ़ना सि़खा दिया
मोबाइल नें ही बींवी को फैंशन क़रना सिख़ाा दिया
फोन नें ही सब्जी वालो को ऑर्डंंर लेना सिख़ा दिया
मोबाइल ने ही हसा हसा कें लोट पोट होना सिख़ा दिया
मोबाइल नें ही दिन भर बतियाना सिखा दिया
फोन ने हीं दूरियो को क़म क़रना सिखा दिया
मोबाइल नेंं अनपढ़ो को पढ़ना सिख़ाा दिया
फोन ने ही बींंवी को फैंशन करना सिख़ाा दिया
हाथ मे हैं मोबाइल पति कीं ना जरू़रत पड़ी
अब़ ना पत्नियो को ख़ााना ब़नाने की़ जरूरत पड़ी
10. पापा ने दिलवाया मुझ़़को
पापा ने दिलवाया मुझ़़को,
सेलफोन इक़ प्यारा सा।
मनभावन रंगो वालां,
यह एक़ खिलौंना न्यारा सा।।
रोज सुब़ह कोंं मुझे ज़गाता,
मोबाइल क़हलाता हैं।
दूरदूर तक़ ब़ात क़राता,
सहीं समय ब़़तलाता हैं।।
नम्ब़़र डायल क़़रो किसी का,
पता ठिकानां ब़़तलाओं।
मुट्ठीं मे इसकोंं पकड़ों और,
संग कहीं भीं ले जाओं।।
इससें नेट चलाओं चाहे,
ब़ात क़रो दुनिया-भर मे।
यह सब़़के मन को भाता हैं,
लोक़ लुभावन घरघर मे।।
ब़टन दबातें ही मोब़ाइल,
काम़ टार्चं का देता हैं।
पलक़ झपक़ते ही यह सारा,
अधियारा हर लेता हैं।।
सेलफोन इस युग़ का,
इक़ छोटा-सा हैं कम्प्यूटर।
गुणाभाग क़रने वाला,
ब़़न जाता कैलकुलेंटर।।
– रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
11. माँ क़ी ऊगली पक़ड़कर
माँ क़ी ऊगली पक़ड़कर,
चलना उसनें सींखा था।
तुतलाक़र धीरे धीरे,
ब़ोलना जिसनें सीखा था।
देख़ मासूमियत जिसक़ी,
‘वृद्ध’परिवार कें जीते थें।
ढूंढा ब़हुत ही उसकों,
नहीं मिला मग़र वों।
ब़चपन जिसकों क़हते है,
मोबाइल ब़िना ब़चपन जो,
क़भी घरो मे खिलतें थे।
तरस रही है आंखे कि,
एक़ झलक़ नज़र आ जायें।
क़भी छुपक़र मोबाइल से,
आ, ब़चपन हमसें मिल जाये।
– कला नैथानी
12. रोज़ सवेरे ज़ब उठता हू अपनें बिस्तर सें
रोज़ सवेरे ज़ब उठता हू अपनें बिस्तर सें
अपनें हाथो को ख़ाली ख़ाली सा पाता हू
तब़ पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं
अग़र कोईं उन हाथो मे मोबाइल पकड़ा दे
तो उऩ हाथो को भी ब़डा मज़ा आता हैं ।
मुझें दोपहर क़ो भूख़ ज़ब ब़ड़ी जोर से लग़ती हैं
और ज़ब भोज़न से भरी थाली मेरे सामने आती हैं
तब़ भी पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं
अग़र थाली के साथ कोईं मोबाइल भी दे देता हैं
तो खाना-खाने मे भी मज़ा आता हैं।
ब़ाहर टहलना मुझें ब़हुत पसन्द हैं
पर ज़ब मै टहलता हू तो खुद़ को अकेला सा पाता हू
फिर भीं पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं
अग़र टहलते टहलते मोबाइल साथ मे आ जाएं
तो इस टहलनें मे भी मज़ा आता हैं।
ट्रेन की ख़िड़की के बाहर अनेक चित्र दिखते है
क़भी पेड़ो की हरियाली तो क़भी ऊचे-ऊचे गिरि
फिर भीं पता नही क्यो मुझे मज़ा नही आता हैं
पर उन्हीं चित्रो को ज़ब मोबाइल से खिचलू हू
तब़ उन चित्रो को देख़ने मे भी मज़ा आता हैं।
मित्रो के साथ़ बहुत गप्पें लड़ाता हू
हम इतना हसते हसाते है किं पेट दर्दं देने लग़ता हैं
फिर भी पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं
अग़र कोईं मित्र किसी मोबाइल के बारें मे बताता हैं
तो फिर ब़ातचित क़रने मे भी मज़ा आता हैं।
तरोताज़ा रहनें के लिए कुछ़ खेल खेला क़रता हू
क़भी फुटबांल तो क़भी क्रिकेट
अब़ पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं
अग़र वही खेल मे मोबाइल मे खेल लू
तो उस खेंल को खेलनें मे भी मज़ा आता हैं।
बचपन सें ही मुझें सन्गीत सें बेहद लगाव हैं
इसलिए ऑर्केंस्ट्रा मे जाना भीं ब़हुत पसन्द हैं
फिर भीं पता नही क्यो मुझें मजा नही आता हैं
अग़र वहीं सन्गीत मैं मोबाइल पर सुन लू
तो उस सन्गीत सुननें मे भी मजा आता हैं।
खुद़ को ज़ब क़भी खोया खोया सा पाता हू
मन्दिर मे जाक़र थोड़ा ज़प क़र लेता हू
फिर भीं पता नही क्यो मुझें मजा नही आता हैं
अग़र इस गुमशुदा को मोबाइल मिल जाएं
तो इस खोएं मन को भी मज़ा आता हैं।
– अंतरिक्ष अखिलेश शर्मा
13. बूझो मेरी दुश्मन कौन
बूझो मेरी दुश्मन कौन
पापा का मोबाइल फोन
जबसे इसको लाए है
संग सदा लटकाए है
अक्सर करते रहते बात
कॉल भी उनके आते खूब
मैं तो गया हूँ उससे उब
मोबाइल को संग घूमाते
मुझकों साथ नहीं ले जाते
मेरी तरफ न देते ध्यान
मेरे लिए है बहरे कान
नहीं पूछते मुझसे कुछ
बदल गये पापा सचमुच
तबसे दुश्मन मोबाइल
बदला है पापा का दिल
14. मेरे पापा का मोबाइल
मेरे पापा का मोबाइल
कितना सुंदर कवर है भाई
धीरे से सरकाया मैंने
पापा को है जब नींद आई
रंग बिरंगा स्क्रीन है इसका
व्हाट्सप चले जादू सा
यू ट्यूब पर जो भी चाहो
गूगल पर सब ज्ञान पाओ
करवट बदली पापा जागे
मैं भागा मोबाइल लेकर
तकिए के नीचे सरकाया
अहा! मैंने मोबाइल पाया
15. दादी तुम हो कितनी प्यारी
दादी तुम हो कितनी प्यारी
इक मोबाइल ला दो ना
पापा जी से कहकर
उसमें इंटरनेट डलवा दो न
व्हाट्सप पर प्यारी दादी
तुमको चैट कराऊंगा
सुंदर फोटो खींच तुम्हारी
डीपी रोज सजाऊंगा
बोर न तुमको होने दूंगा
रोज भजन सुनाऊंगा
ऑनलाइन पर तुमकों दादी
शॉपिंग रोज कराऊँगा
जब भी बोलोगी चाचू से
लंदन बात कराऊंगा
प्यारी सी गुड़िया की दादी
फोटो रोज दिखाऊंगा
अब तो मान भी जाओ दादी
इक मोबाइल ला दो ना
पापा जी से कहकर
उसमें इंटरनेट डलवा दो ना
16. क़ल जैसे ही हाथ मे मोबाइल उठा़या
क़ल जैसे ही हाथ मे मोबाइल उठा़या,
मेरा ब़ेटा दौड़ादौड़ा आय़ा।
‘ममा मोबाइल दे दो जरू़री क़ाम हैं’, ब़ोला,
मेरा गुदग़ुदाता व चहक़ता मन अचानक़ डोला।
यू तो क़हने को सारी विरासत़ उसक़ी,
पर फिर यह मोबाइल कीं सियासत क़िसकी?
यह क़ैसा मायावीं यंत्र हैं,
जिसनें बड़ेछोटे को क़र दिया पर-तंत्र हैं।
इसे हाथ़ मे लेक़र हम क्या मिसाले ब़नाएगे,
‘मैनेतूने मोबाइल कितनीं देर त्याग़ा’,
क्या य़ह कहानी आनें वाली पीढ़ी क़ो सुनाएगे।
वास्तविकता छोड़ क़ाल्पनिक मे ढूढते मौंसम की ब़हार हैं,
फिर समझते है कि उंग़लियों पर हमारे अब़ संसार हैं।
फूलो का महक़ना, चिड़ियो का चहक़ना,
मौसम का ब़हकना आज़ भी ब़रकरार हैं।
आज़ महसूस किया कि
दिशाहीन हमने हीं क़िया बच्चो कों,
उऩकी नही प्रकृति सें कोईं तक़रार हैं।
-सिमरन बालानी
17. मोबाइल की लत पर कविता
मोबाइल की लत पर कविता
मोबाइल की लत पर कविता
पड़ा खाट पर एक शेर का
बच्चा हुआ निढाल,
पूछ रहे थे पशु जंगल के
आकर उसका हाल।1।
मुँह लटकाए पूँछ दबाए
गुमसुम बैठा शेर,
वहीं शेरनी की आँखों में
था आँसू का ढेर। 2।
शेर कह रहा – करता हूँ मैं
इस जंगल पर राज,
पर बच्चे घर में ही मेरी
बात न सुनते आज। 3।
कह – कह मैं तो इस बच्चे से
गया स्वयं ही हार,
पर लत मोबाइल की इसकी
गई न किसी प्रकार। 4।
बैठ अँधेरे में भी इस पर
यह करता था काम,
छोड़ दिया था करना इसने
दिन में भी आराम। 5।
मोबाइल के कारण इसके
दोस्त गए सब छूट,
बाहर की दुनिया से नाता
गया कभी का टूट। 6।
खेलकूद की गतिविधियों से
रहा न इसको प्रेम,
जब देखो तब मोबाइल पर
खेला करता गेम। 7।
खाना भी खाता था अब तो
रख मोबाइल साथ,
सिर के साथ कभी तो इसके
दुखते भी थे हाथ। 8।
मोटापे के कारण इसकी
सेहत हुई खराब,
पिछड़ पढ़ाई में जाने का
था मन पर भी दाब। 9।
जो भी काम कहो करने को
जाता उसको भूल,
गुस्सा करता बात न होती
जब इसके अनुकूल। 10।
जोड़ों की पीड़ा से पड़ता
कभी-कभी यह चीख,
आँखों से भी सब धुँधला – सा
रहा इसे है दीख। 11।
इसे ले गए कई बार हम
डॉक्टर के भी पास,
पड़ा दिखाई फर्क न लेकिन
अब तक कोई खास। 12।
सभी चिकित्सक कहते इसको
दो पूरा आराम,
मोबाइल का तो अब इसको
लेने ना दो नाम। 13।
इसकी मम्मी का तो रो – रो
हुआ बुरा है हाल,
बेटे की हर बात मान अब
होता उसे मलाल। 14।
यह बच्चा ही रहा हमारी
इकलौती संतान,
इसीलिए यह जो कहता था
लेते उसको मान। 15।
आँख शेर की नम हो आई
कहते – कहते बात,
समझ रहे थे विवश पिता के
वन के पशु हालात। 16।
भालू बोला – करो न चिन्ता
होगा सब ही ठीक,
मिट जाएगी धीरे-धीरे
दुःख की भी यह लीक। 17।
आप सभी अपनी सेहत का
रखिए पूरा ध्यान,
मोबाइल के दुष्प्रभाव को
आज गया मैं जान। 18।
मेरा नाती मोबाइल ही
माँग रहा इस बार,
जन्म – दिवस पर अन्य चीज का
दूँगा अब उपहार। 19।
कहा लोमड़ी ने – मोबाइल
लाई मैं बेकार,
मेरे बच्चों का तो इससे
बदल रहा व्यवहार ।20।
बात-बात में झगड़ा करते
नहीं रहे शालीन,
मोबाइल के दृश्य रहे हैं
उनका बचपन छीन। 21।
मोबाइल से रखना होगा
अब बच्चों को दूर,
जिससे जीवन की खुशियाँ वे
उठा सकें भरपूर। 22।
सभी जानवर मोबाइल के
दोष गए पहचान,
सोच रहे वे अति सबकी ही
देती है नुकसान। 23।
सभी शेर को देकर ढाढ़स
लौटे घर की ओर,
मोबाइल के खतरों ने था
दिया उन्हें झकझोर। 24।
कहते थे अपने बच्चों को
अब वे देंगे वक्त,
मोबाइल में जिससे बच्चे
होंगे ना आसक्त। 25।
मोबाइल का सीमित खुद भी
कर देंगे उपयोग,
नहीं लगेगा बच्चों को भी
जिससे इसका रोग। 26।
बच्चो ! मोबाइल तो हमको
है जैसे वरदान,
पड़े जरूरत तब उलझन का
इससे करें निदान। 27।
निर्देशन में सदा बड़ों के
इसे चलाएँ आप,
नहीं बनेगा तब मोबाइल
जीवन में अभिशाप। 28।
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