पहाड़ी जीवन पर कविता, Poem On Mountain Life in Hindi

Poem On Mountain Life in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ पहाड़ी जीवन पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

पहाड़ी जीवन पर कविता, Poem On Mountain Life in Hindi

Poem On Mountain Life in Hindi

1. Hindi Poem on Mountains

हम पहाड़ पर रहते हैं
देवदार की बाँह यहाँ
करती शीतल शांह यहाँ

भेड़ें चरती है घाटी में
झर झर झरने बहते हैं
हम पहाड़ पर रहते हैं

जगह जगह फैला वन है
सीधा सादा जीवन है

कभी कष्ट भी आन पड़े तो
हंसकर के हम सहते हैं
हम पहाड़ पर रहते हैं

हम मेलों में जाते हैं
झूम झूमकर गाते हैं
सबकी बातें सुनते हैं हम
सबसे अपनी कहते हैं
हम पहाड़ पर रहते हैं.

2. Poetry on Mountains in Hindi

इन पहाङी वादियो में धूल सी क्यों छा गयी,
यह विकास की आंधी कैसी आयी है।
दरक रहे हैं न जाने कितने हिस्से मेरे पहाङ के,
ये टूटते पत्थर, फिसलती मिट्टी, न जाने कब कहर बन जायेगी।

प्रकृति को प्रकृति ही जुदा करने की
किसने यह तरकीब बनायी है।
सङकों के माया जाल में,
हम बन बैठे अनजान हैं।

ये कल-कल करती नदियाँ,
हर पल गिरते झरने,
और पुराने बजारो की रौनक,
कहीं गुम होते जा रहे हैं।

वो सूरज का ढलना, पहाङो में छिपना,
धूल की चादर में सिमटता जा रहा है।
चिङियों का चहकना, नदियों का कल-कल,
मशीनी आवाजों से दबता जा रहा है।

फिर आती है वर्षा, करती है तांडव,
मंजर तबाही का हमको है दिखाती।
रुलाता है हमको हर छोटा नुकसान अपना,
पर पेङों का कटना, बेघर जानवरों का होना,
क्यों नहीं हमको हे रुलाता।

जिन्दगी जीने का मायना बदला है हमने,
हर जगह मोल- भाव करते हैं यूँ ही।
विकास की आँधी चली कुछ इस कदर है,
भूल जाते हैं हम, हमको इसी प्रकृति ने है बनाया।

संजोयेंगे हम तो, प्यार करती रहेगी,
बिखेरेंगे हम तो, सन्तुलन वो खुद है बनाती।
इंतजार क्यों उस दिन का है करना,
जब बनना पड जाये मूकदर्शक हमको।

3. पहाड़ी जीवन पर कविता

तेरी खूबशूरती का दीदार करते हैं,
जब भी मन हो घूमनें का
तेरी ही बात करते हैं
ख्यालों में हम हरदम
तेरी वादियों में होते हैं।
ये पहाड़ियाँ होती ही ऐसी हैं,
सबको अपना बनाती हैं।

हम जाते हैं बिताने
सबसे हँसी लम्हा पहाड़ों पर।
पर कभी ना सोचा हमने
क्या छोड़कर बदले में आते हैं।

चार धाम, पंच प्रयाग,
या फिर कश्मीर की हँसी वादियाँ।
सब कुछ तो मिलता है इन पहाड़ों में
फिर भी हम लौटते हैं ऐसे,
जैसे फिर वापस ना आयेंगे।
फैलाते है हर तरफ कचरा,
कहीं प्लासटिक तो कहीं बोतल।
क्या हम घूमने थे आये,
या कोई दुश्मनी पुरानी है।

सहम जाते हैं ये पर्वत,
जब देखते हैं यह मंजर।
खूबशूरत है जो दुनिया
उसे यूँ बरबाद ना करना।
आओ जब भी पहाड़ों पर
इसे बच्चों की तरह सहेज कर रखना।

4. Poem On Mountain Life in Hindi

कहते हैं पहाड़ सी होती जिन्दगानी,
यहाँ पहाड़ पर बसती देखी जिंदगानी ।
दूर देखो तो मंजिल नहीं आती समझ,
पास जाओ तो उलझन तुरन्त जाती सुलझ ।
छल कपट से दूर भावों में घुली मधुरता,
शानो शौकत से दूर, कर्तव्य में पूर्ण सजगता ।
ठूंसे दिखते पत्थर, पर दिल में रमी नरमायई,
जोश जिनके इरादों में वही चढ़ते हैं चढ़ाई ।

धन्यवाद है पर्वतों जो दे रहे हो इतना सहारा ,
ढाल ढाल फसल तो कहीं खाल खाल धारा ।
सर्पीली राहें बनायीं अपना सीना काटकर ,
कच्चे पक्के भवन तराशे काया अपनी छाट कर ।
फैला अपनी बाँहें, बसा गावों को दिया नाम,
चरणों में शहर, विराजमान चोटी पर धाम ।
एक सतह जो ऊंचाई से अभी दिखती नीची ,
कुछ ही मोड़ बाद वही दिखने लगती ऊँची ।
अभी जो ऊंचा है पल में हो जायेगा नीचा ,
जो दिख रहा नीचा , पल में हो जायेगा ऊँचा ।
ऊँच नीच का यह भेद मिटा देता एक मोड़ ,
और इसी खेल में समाया जीवन का निचोड़ ।
पहाड़ों को चीरती बहती नदी की छटा निराली ,
तो रात को रोशनी घर घर की बन जाती दीवाली ।
किया श्रृंगार ओढ़ जिस हरियाली का परिधान ,
दावानल व कटाव सह तड़प रहा है बेजुबान ।
ढूँढ रहे रौनक दिनोंदिन जो होते जा रहे वीरान ,
सँवार दो वो घर पुनः सुना कोई सुरीली तान ।
रुक जाये यहीं अब पहाड़ का पानी और जवानी ,
क्योंकि पहाड़ सी नहीं पहाड़ पर भी जिन्दगानी ।

तनुजा जोशी

5. पहाड़ खड़ा है

पहाड़ खड़ा है
स्थिर सिर उठाए
जिसे देखता हूँ हर रोज़
आत्मीयता से

बारिश में नहाया
या फिर सर्द रातों की रिमझिम के बाद
बर्फ़ से ढका पहाड़
सुकून देता है

लेकिन जब पहाड़ थरथराता है
मेरे भीतर भी
जैसे बिखरने लगता है
न ख़त्म होने वाली आड़ी-तिरछी
ऊँची-नीची पगडंडियों का सिलसिला

गहरी खाइयों का डरावना अँधेरा
उतर जाता है मेरी साँसों में
पहाड़ जब धसकता है
टूटता मैं भी हूँ
मेरी रातों के अँधेरे और घने हो जाते हैं

जब पहाड़ पर नहीं गिरती बर्फ़
रह जाता हूँ प्यासा जलविहीन मैं
सूखी नदियों का दर्द
टीसने लगता है मेरे सीने में

यह अलग बात है
इतने वर्षों के साथ हैं
फिर भी मैं गैर हूँ
अनचिन्हें प्रवासी-पक्षी की तरह
जो बार-बार लौट कर आता है
बसेरे की तलाश में

मेरे भीतर कुनमुनाती चींटियों का शोर
खो जाता है भीड़ में
प्रश्नों के उगते जंगल में
फिर भी ओ मेरे पहाड़ !
तुम्हारी हर कटान पर कटता हूँ मैं
टूटता-बिखरता हूँ
जिसे देख पाना
भले ही मुश्किल है तुम्हारे लिए
लेकिन
मेरी भाषा में तुम शामिल हो
पारदर्शी शब्द बनकर !

यह भी पढ़ें:-

पृथ्वी पर कविता
घड़ी पर कविता
बंदूक पर कविता
मोबाइल फोन पर कविता

आपको यह Poem On Mountain Life in Hindi कैसी लगी अपने Comments के माध्यम से ज़रूर बताइयेगा। इसे अपने Facebook दोस्तों के साथ Share जरुर करे.

Leave a Comment