Poem On Tobacco in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ तम्बाकू पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.
तम्बाकू पर कविता, Poem On Tobacco in Hindi
1. तम्बाकू पर कविता
बाबा क्यों तम्बाकू खाते
कहते रोज चुनौटी लाओ
चूना रगड़ों खूब मिलाओ
मलते परेशान होता हूँ
पढ़ने का अवसर खोता हूँ
पिचिर पिचिर नित थूका करते
तम्बाकू भी सदा उगलते
मुझको परेशान वो करते
गंदे मुहं पर ध्यान न धरते
बोलो क्या आनन्द उठाते
बाबा क्यों तम्बाकू खाते?
2. Poem On Tobacco in Hindi
आम दुकानों पे बिकता मरने का सामान…
सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकू, खैनी गुटखे तमाम…
नही कोई प्रतिबंध, ना कोई रोक टोक सरकार की…
खुल्लम खुल्ला बिक्री चलती मौत के औजार की…
मोटे मोटे टैक्स आते हैं, सरकारी खजाने मे..
तभी देता नहीं कोई ध्यान, इसको रुकवाने में…
कहती है सरकार भी केवल धूम्रपान निषेध है…
ऊपरी मन का नाटक है ये, इनकम इससे विशेष है…
छोटे छोटे बच्चे भी, अपने बचपनें को जला रहे हैं…
अपने ही हाथों अपने फेफड़ों पे बंदूकें चला रहे हैं..
बड़े बड़े दफ्तरों के भी, मालिक अकल बंद हैं..
काम की स्ट्रेस हटाने को स्मोकिंग जोन का प्रबंध है..
कुछ खुल्लम खुल्ला पीते हैं,
कुछ छुपके धुआं उड़ाते हैं…
कुछ ओकेजन के नाम पर भर भर डिब्बी पी जाते हैं…
बड़े बड़े शहरों में इसको,
शान समझा जाता है…
पता नही इसका नुकसान क्यों इनको दिख नही पाता है..
असत्मा, टीबी, कैंसर, तम्बाकू की देन…
अपने और परिवार की खातिर, कर दो इसको बेन…
छोड़ दो बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, बन जाओ निरोग…
स्वस्थ और समृद्ध भारत मिलकर बनाओ सब लोग…
आओ मिलकर प्रण करें, तम्बाकू नही छूएंगे…
अपने और अपनों की खातिर बिन तम्बाकू जियेंगे..
अपने और अपनों की खातिर बिन तम्बाकू जियेंगे..
– अभिषेक गर्ग
3. Short Poem on Tobacco in Hindi
यह जो तंबाकू रगड़ते हो अपने हाथों से
और फिर बड़ी ही तहजीब से दबाते हो दांतों के नीचे
फिर धीरे-धीरे नशे का आनंद लेते हो
जानते हो ना, तंबाकू और अपने रिश्ते के बारे में
अजी!! वह भी खूब वफादार है
वफा बेखूबी निभाएगा ऐसे ही
धीमे धीमे जकड़े का तुमको
और तुम्हें फिर अपनी मोहब्बत में फना कर जाएगा
-डॉ. निताशा
4. Kavita Hindi Poem on Tobacco
खैनी, गुटखा, ज़र्दा, पान मसाला,
पैकेट खोल फट से मुँह में डाला,
सस्ता-सा ‘नशा’, मगर होती है शान,
हाँ, मैं भी रखता हूँ ऐब में अपना इक नाम.
धीरे-धीरे उस एक रूपए के पाउच ने,
ऐसा रस घोला मेरे माउथ में,
खाली-खाली सा कुछ लगता है ,
जब गुटखे से मुँह नहीं भरता है.
एक अलग सी महक, एक अलग सा सुकूँ,
क्या हर्ज़ है इसमें, जो मैं इसको चबा लूं ?
लड़की,दारु का शौक नहीं मुझे ,
सिर्फ तम्बाकू की लत से ही तो दिन बुझे.
अब जवानी की उम्र में भी, अगर कोई शौक न किया ,
तो क्या बुढ़ापे में चबायेंगे, हम तम्बाकू की पुड़िया ?
खैनी रगड़ कर जैसे ही जुबां के नीचे रखता हूँ ,
त्यौहार मनाने का दुगना मज़ा अपनी धमनियों में भरता हूँ ,
ज़र्दे की डिबिया से बढ़ती है मेरे कोट की शान ,
पान-मसाला देते ही पार्टी में हो जाती है पहचान.
लम्बे-लम्बे से कश जब सिगरेट के जलते हैं,
कॉलेज की कैंटीन में लड़कियों के दिल मचलते हैं,
वो रह-रह के धुओं के छल्ले उड़ाना ,
सिगरेट पीने का तरीका अपने जूनियर्स को सिखाना.
उम्र चौबीस की जैसे ही मेरी आयी ,
मैं डॉक्टर के पास पहुंचा लेने दवाई ,
भूख लगना एकदम बंद सा हो गया था,
हर खाने का स्वाद, बेस्वाद हो गया था.
मुँह को खोला जब तो दाँत गल गए थे ,
जुबान पर तम्बाकू के निशान छप गए थे ,
गालों में बच रहा था, सिर्फ कुछ चमड़ी का नज़ारा ,
माँ रो रही थी कि बचा लो इसे, ये मेरा लाल है प्यारा.
‘मुँह के कैंसर’ का नाम जैसे ही डॉक्टर ने सुनाया ,
मेरे पैरों तले की धरती में, मानो भूचाल आया
अभी तो इतने सपने बाकी थे मेरे ,
कैसे छूट गए अधूरे वो बिन पढ़े फेरे.
क्यूँ इस तम्बाकू को मैंने गले लगाया ?
अपनी ही कश्ती को पानी में डुबाया ,
जीवन जीने की चाह एक ओर तलबगार थी ,
दूसरी ओर मृत्यु मेरे सर पर सवार थी.
तीन महीने बिस्तर पर मैं तिल -तिल कर मरता रहा ,
अपने अंतिम क्षणों में अपनी नासमझी की कीमत भरता रहा ,
बेज़ार पड़ा बिस्तर पर बस यही एक लेख लिख पाया हूँ ,
‘मुँह के कैंसर’ को मत दो दावत, जिससे मैं अब तक न उभर पाया हूँ.
बहुत से सपने टूट गए, बहुत सी उम्मीदें बह गईं ,
परिवार के लिए न कर सका कुछ, उसकी सूनी माँग भी भरने से रह गयी ,
जलाओ जब भी मुझे तुम शमशान में ले जाकर ,
एक तस्वीर खींच लेना मेरे खुले हुए मुँह की, जनता को दिखाकर.
5. तम्बाकू का कमाल – पिचके हाल
चबा चबा के बना कोई हनुमान
तो किसी के पिचके गाल
तम्बाकू कर गया देखो
सेहत संग गाल बेहाल
हाल थूकना पिचक पिचक
दीवारें सड़कें गन्दी
शॉपिंग मॉल सी ज़िन्दगी
बना दी सब्जीमंडी
सब्जीमंडी की ताज़ी सब्जियाँ
भी ना पहुंचाये फायदा
मुंह में छालों का आना जाना
बिगड़ा मसालों का जायका
जायका बनाया रगड़ के जर्दा
ऊपर से डाला पान मसाला
किसी ने मिलाई सुपारी खैनी
फिर लगाया रख मुंह में ताला
ताला मुंह में लगाकर
इशारों से समझाये
होवे ऑफर मिठाई चॉकलेट
तो हायराम समस्या कैसे खाये
खाये तो जाये भाड़ में
गुटखा अपना एकदम असली
क्यों खाये मिलावटी मिठाईयाँ
और आइसक्रीम नकली नकली
नकली है सब कुछ यहाँ
पर तम्बाकू ऑर्गेनिक बिल्कुल
कोई खाये खुल्लम खुल्ला
कोई घरवालों को बनाके अप्रैल फूल
फूल बना रहे फ़िल्मी हीरो
बोल के दाने दाने में केसर
खाते पगले फैन जमकर
रोग लगा बैठे कैंसर
कैंसर में है तम्बाकू की खुश्बू
जो गला देती है जीवन
छोड़ इसे बचाओ पैसा
और ज़िन्दगी बनाओ चन्दन
6. किसी ने रगड़ रगड़ के ऐसे
किसी ने रगड़ रगड़ के ऐसे
फिर मुंह में ठूंसे ऐसे वैसे
लाये बार बार चबाने को पैसे
गुटखे के बिन रहा जाये जी कैसे
खाके मारे सड़क पे पिचकारी
कोई हवा में फूंके फुव्वारी
किसी की आये संडास जाने की बारी
कोई करे प्रेशर ज़माने की तैयारी
ऐसे ही यह तम्बाकू रजा
चाय के बाद खाने का मजा
खाने के बाद भी तलब जगा
ना मिले तो बड़ी कठोर सजा
कैसर कैसर का हर दाने में दम
खाके साथ में जी पचाओ गम
चले मुंह में ऐसे जैसे चले च्युइंगम
बन गया यह तो दिल की धड़कन
धड़कन ही एक दिन कर देगा बंद
जो यह लत छोड़ने का ना किया प्रबंध
समझो प्यारे लिखे प्यार से छंद
कही गुटखे की वजह से बुद्धि तो ना हुई जी मंद
Lokesh Indoura
7. बाली उमर और ये गुट्खा
बाली उमर और ये गुट्खा,
कैसे-कैसे रोग बुलाते।
तड़प-तड़पकर निश्छल नन्हे,
हाय मौत को गले लगाते।
सरकारी हो-हल्ले में भी,
तम्बाकू को जहर बताते।
पता नहीं क्यों अब भी बच्चे,
गुटखा खाते नहीं अघाते।
मर्ज कैंसर हो जाने पर,
लाखों रुपए रोज बहाते।
कितनी भी हो रही चिकित्सा,
फिर भी प्राण नहीं बच पाते।
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