Jaamun Par Kavita – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ जामुन पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.
जामुन पर कविता, Jaamun Par Kavita
1. जामुन पर कविता
ये जामुन काले काले हैं
जब बादल जल बरसाते है
ये पेड़ों पर पक जाते है
भौरों सा रूप दिखाते है
करते सबको मतवाले है
होते सब खूब रसीले है
बैंगनी लाल या नीले हैं
सबके सब रंग रंगीले हैं
सुंदर सुकुमार निराले है
देखों डालों पर लटके है
गिरते जब लगते झटके है
बच्चे खाते डट डट के हैं
बेचते इन्हें फलवाले हैं
मानो रस में ही पगते हैं
सबको ही अच्छे लगते है
ले भी लो बिलकुल सस्ते है
सब पर जादू सा डाले है
ये जामुन काले काले है
2. Jaamun Par Kavita
आओ बाबू, आओ आओ
मेरे काले जामुन खाओ
झटपट पैसे इधर बढ़ाओं
ले लो दाना, गप कर जाओ
एक बार इनको खाओगे
तो तुम बार बार आओगे
इनको नहीं भूल पाओगे
जीभ चटाचट चट्काओगे
बड़े जायके वाले जामुन
कैसे काले काले जामुन
देखो ये भौंराले जामुन
झट घुल जाने वाले जामुन
जामुन नहीं फ्रेंदे है ये
खिले हुए गुल गेंदे हैं ये
पीलें नहीं मगर हैं काले
मन को बहुत लुभानेवाले
इनमें गुठली नाम नाम की
यह रबड़ी है बिना दाम की
भूल जाएगी यह आम की
सुधि न रहेगी काम धाम की
बिलकुल सस्ता किया भाव है
दो आने में एक पाव है
सस्ता करके कर दी हलचल
बच्चे आते है दल के दल
चुनमुन आओ मुनमुन आओ
आकर मेरे जामुन खाओं
जल्दी करों न देर लगाओ
आओ जल्दी मत शरमाओं
क्या कहते है पास न पैसे
सभी खड़े हो चुप चुप ऐसे
अजी फिकर क्या हाथ बढाओं
ले लो दोना जामुन खाओ
पापा से जब पैसे पाना
आकर तब मुझको दे जाना
वाह वाह मतवाले जामुन
मेरे काले काले जामुन
3. हम बच्चे मिलजुलकर सारे
हम बच्चे मिलजुलकर सारे
चलो चलें जी नदी किनारे
अजब रसीले काले काले
गुदेवाले स्वाद निराले
मीठे मीठे जामुन खाकर
आ जाएंगे मन बहलाकर
4. देखो काली-काली जामुन
देखो काली-काली जामुन
भाए डाली डाली जामुन l
कुछ पक्की कुछ कच्ची जामुन
कुछ मीठी कुछ खट्टी जामुन l
गुच्छे में खूब लटक रही है
बच्चों को खूब खटक रही है l
कुछ काली कुछ लाल हरी
लेकिन जामुन खूब फरी l
बच्चे चढ़कर तोड़ रहे हैं
कुछ बीन रहे कुछ छोड़ रहे हैं l
कोई ऊपर से फेंक रहा है
कोई नीचे से लोक रहा है l
बीन -बीन कर जेब के अंदर
लपक रहे हैं जैसे बंदर l
उतनी मीठी जितनी काली
खाकर मुंह में आए लाली l
काटो तो रस निकले लाल
बच्चे खाकर हुए निहाल l
पानी पाकर झट से पकती
हवा चले तो खूब टपकती l
बच्चों को अति भावे जामुन
बड़े प्रेम से खाए जामुन l
बूढ़ो को ललचाए जामुन
पेट को साफ बनाए जामुन l
5. चलो, आज जामुन खाएँगे
चलो, आज जामुन खाएँगे
कुछ घर पर भी ले आएँगे
जामुन के फल बहुत रसीले
पके हुए, हैं गहरे नीले
भैय्या ज़रा संभल कर चढ़ना
कहीं न हो जाए दुर्घटना
बहुत दूर ऊपर मत जाना
बस, वह पतली डाल हिलाना
जामुन पके टपक जाएँगे
फूँक फूँक कर हम खाएँगे
अरे! नहीं, वह गरम नहीं है
धूल लगी बस कहीं-कहीं है
खाने में जल्दी मत करना
गुठली थूको, नहीं निगलना
दाग़ लग गए हैं जी भर कर
छुटकी की सफ़ेद फ्रॉक पर
हुए हाँथ, मुँह नीले सारे
मजा आ गया, लेकिन प्यारे।
6. घर के कोने में लगा जामुन का पेड़
घर के कोने में लगा जामुन का पेड़
जिसके पत्ते, फूल और गुच्छों में लगे
हरे, लाल, बैंगनी फल झर-झर के
मेरे आँगन में बिखरा करते थे
कभी पत्थर मार के उनको तोडना
कभी किसी लठ से उनको छेड़ना
जिस से वो फल और पत्ते टूटकर
मेरे आँगन में गिरा करते थे
खाने में खट्टे मीठे, काले जामुन
जिनका स्वाद भुलाये ना भूलता
उनकी तारपीन सी सुगंध
मेरे आंगन में महका करती थी
पत्तों का घना विस्तार
जिसमें से छन छन कर
आती हुई धूप, खिल कर
मेरे आंगन में पसरा करती थी
पेड़ के होने से मिलती थी जो छाँव
उस में दीवार की दूसरी तरफ पनाह पाता
आता जाता राहगीर, जिसकी आवाज़
मेरे आंगन में सुना करती थी
आज ना वो पेड़ रहा, ना उसके फल
ना उसके पत्ते और ना ही कोई राही
उस कच्ची मुंडेर की मुरम्मत हो गयी
जामुन के पेड़ की जगह एक ईमारत बन गयी
Amita
7. ये बचपन भी बड़ा अबोध होता है न
ये बचपन भी बड़ा अबोध होता है न,
अत्यंत प्रिय थे जामुन उसे पर कैसे आते हैं
एक उत्सुकता सी मन में रहती
जानने की,
एक दिन पूछा पिता से कि ये
जामुन कैसे बनते हैं
पिता ने भोलेपन को समझाया ये पेड़ों पे लगते हैं,
तो हम भी अपने आंगन में लगा
देते हैं
इक जामुन का पेड़।
अरे बाबू जो जामुन तुम खाते हो उसी की गुठली से
ही निकलता है जामुन का पेड़।
ठीक है मैं आज ही अपनी बगिया में जामुन की गुठली दबा
देता हूँ बाबा।
सांसारिक बातों से अंजान वो
अबोध बालक सारी रात अपने
आंगन में जामुन के पेड़ के
सपने देखता है।
कभी लड़ता है मोहल्ले के बच्चों
से कि मेरे जामुन के पेड़
से मत तोड़ो रे जामुन,
सुबह जल्दी से जाग कर दौड़ कर जाता है
अपने गुठली वाले जामुन के पेड़ को देखने वो,
पर निराश हताश सा रोते हुए
आता है बाबा के पास,
आप तो कहते थे जामुन का पेड़ उगेगा आंगन में,
वहां तो कुछ भी नहीं है।
होगा ज़रूर होगा।
सब्र से,कर्म कर ,जल सींच,
उसकी रक्षा कर।
आज उस अबोध बालक के पोते जामुन खा रहे हैं,
पिता से पूछते हैं जामुन कैसे
बनते हैं,
पिता बड़े ही प्यार से समझाते हैं
जामुन की गुठली से,
पेड़ उगते हैं,
सब्र से,कर्म से ,जल सींच।
रक्षा कर,
जामुन ज़रूर आएंगे।
जामुन ज़रूर आएंगे।।
संजय भाटिया
8. हरे पेड़ की डाली
हरे पेड़ की डाली।
जामुन काली काली।
मीठा है, रसवाली।
जामुन काली काली
लाठी लेकर महंगू।
करता है रखवाली।
जामुन काली काली।
हरे पेड़ की डाली।
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