बुलबुले पर कविता, Poem on Bubbles in Hindi

Poem on Bubbles in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ बुलबुले पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

बुलबुले पर कविता, Poem on Bubbles in Hindi

Poem on Bubbles in Hindi

1. बुलबुले पर कविता

बुलबुला बुलबुला
साबुन का बुलबुला
अभी मिटा अभी बना
साबुन का बुलबुला

भोलू की नाक पर
रानी की चाट पर
मोती की पूंछ पर
दादा जी की मूंछ पर
बुलबुला बुलबुला
साबुन का बुलबुला

मम्मी की बिंदिया पर
छोटी सी चिड़ियाँ पर
चिन्नी के हाथ पर
मिन्नी के दांत पर
बुलबुला बुलबुला
साबुन का बुलबुला

जलते हुए बल्ब पर
संतरे के पल्प पर
कहाँ कहाँ नहीं उड़ा
पानी का बुलबुला
बुलबुला बुलबुला
साबुन का बुलबुला

बच्चों का प्यारा है
बिलकुल ही न्यारा है
मिश्री बिल्ली के बाद
माँ का दुलारा है
बुलबुला बुलबुला
साबुन का बुलबुला

बुलबुला बुलबुला
साबुन का बुलबुला
यहाँ उड़ा वहां उड़ा
साबुन का बुलबुला
ममता शर्मा

2. Poem on Bubbles in Hindi

मैंने कल समुंद्र किनारे.
एक अद्भुत नजारा देखा!
अथाह समुंद्र के शांत गरभ से.
एक बुलबुले को निकलते देखा!
जैसे ही उस बुलबुले ने.
अथाह समुंद्र से जीवन पाया!
सूर्य की प्रथम किरण को पाकर .
स्वयं के जीवन को सतरंगी पाया !
अपने जीवन को सतरंगी पाकर .
स्वयं को स्थिर रोक न पाया !
उसकी चंचलता को देख.
स्वयं समुंद्र भी मुस्काया !
कभी उछलकर कभी कूदकर.

अपने अभिमान को प्रकट करने लगा!
इस समय उसकी उद्दंडता तो देख.
समुंद्र की शांत लहरों से टकरा गया!
बुलबुले को टकराते देख.
सहसा एक शांत लहर बोली .
अरे नादान अभिमान के वश में हो.
हमसे क्यों टकराता है!
अपने इस क्षणभंगुर जीवन को.
हमारी छोटी सी हलचल से क्यों खोता है !

रे नादान क्षणभंगुर जीवन को.
अभिमान में लिप्त हो यू व्यर्थ ना कर!
समय बहुत कम शेष बचा है.
जा देव का नाम ले सज्जनता से जीवन का निर्माण कर!

न जाने कब उसका आदेश हो.
समुंद्र की शांत गर्भ से ऐसी अशांत लहर आएगी!
जीवन में कुछ कर न सकेगा.
क्षणभर में स्वयं में विलीन कर जाएगी!

* दिलजीत कादरी *

3. जीवन दरिया, बहता पानी

जीवन दरिया, बहता पानी,
जीवन आकाश, अनन्त अनादि,

जीवन प्राण, जीवन वायु,
जीवन रेत, जीवन खेत,
जीवन आशा, जीवन निराशा,
जीवन धूप, जीवन छाँव

जीवन रंग, जीवन संगीत,
जीवन गीत,जीवन मीत,
जीवन हार, जीवन जीत

जीवन डगर, जीवन मंज़िल
जीवन समंदर, जीवन साहिल

जीवन पंछी, जीवन उड़ान,
जीवन आस्था, जीवन विश्वास
जीवन वृक्ष, जीवन समर्पण

जीवन बुलबुला…
क्षणभंगुर!!

4. हो गई मौन बुलबुले-हिंद

हो गई मौन बुलबुले-हिंद!

मधुबन की सहसा रुकी साँस,
सब तरुवर-शाखाएँ उदास,
अपने अंतर का स्वर खोकर
बैठे हैं सब अलि विहग-वृंद!
चुप हुई आज बुलबुले-हिन्द!

स्वर्गिक सुख-सपनों से लाकर
नवजीवन का संदेश अमर
जिसने गाया था जीवन भर
मधु ऋतु की जाग्रत वेला में
कैसे उसका संगीत बन्द!
सो गई आज बुलबुले-हिन्द!

पंछी गाने पर बलिहारी,
पर आज़ादी ज़्यादा प्यारी,
बंदी ही हैं जो संसारी,
तन के पिंजड़े को रिक्त छोड़
उड़ गया मुक्त नभ में परिंद!
उड़ गई आज बुलबुले-हिंद!

5. जिंदगी एक बुलबुला है

जिंदगी एक बुलबुला है।
बनता सा, मिटता सा,
हवाओं में बहता सा।
मेलों की गलियों में,
सांसो की नालियों में,
साबुन के झागों में,
तो शहरों के बागों में,
गिरते हुए पानी में,
मीठी से पानी में,
वास्तव में कुछ और है,
इतना बस दिखने में।
जन्म की पहली चीख में,
कभी भोजन की भीख में,
स्कूल की उस छुट्टी में,
यह जुते खेत की मिट्टी में
सपनों में ख्वाबों में,
उन अनपढ़ी किताबों में,
जिंदगी एक बुलबुला है,
बनता सा, मिटता सा,
हवाओं में बहता सा।

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