Poem on Milk in Hindi : दोस्तों इस पोस्ट में कुछ दूध पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं. की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.
दूध पर कविता, Poem on Milk in Hindi
1. दूध पर कविता
दूध दही घी माखन खाओ,
हृष्ट-पुष्ट बच्चो बन जाओ।
सुनो दूध की लीला न्यारी,
सभी तत्व इसमें हैं भारी।
दूध मलाई जो खाएगा,
बलशाली वह हो जाएगा।
सबसे अच्छा दूध गाय का,
पीकर देखो, चखो जायका।
काजू किशमिश मेवा डालो,
और दूध को जरा उबालो।
थोड़ी चीनी और मिला लो,
झटपट गटको मूँछ बना लो।
मेवे वाली शाही खीर,
सब्जी खाओ मटर पनीर।
मथुरा वाले पेड़े खाओ,
रबड़ी खाओ, खाते जाओ।
और जलेबी देशी घी की,
बिना दूध के लगती फीकी।
गर्म दूध में डालो खाओ,
और पेट पर हाथ घुमाओ।
गाजर हलवा, लौकी हलवा,
रसगुल्ले का देखो जलवा।
तड़के वाली छाछ निराली,
लस्सी पिओ भटिण्डे वाली।
एप्पल, मेंगो शेक पिओ जी,
आइस्क्रीम का कप ले लोजी।
दूध पूर्ण भोजन है भाई,
देखो मुनिया टॉफी लाई।
2. Poem on Milk in Hindi
साइकिल पर दो कोठी बांधे
कमर पर देखो धोती बांधे
मोटी तोंद का आता लाला
दूध दूध चिल्लाता लाला
पानी जैसा दूध है उसका
बिकता लेकिन खूब है उसका
जबसे नल पर लटका ताला
दूध दूध चिल्लाता लाला
सुबह सुबह बस्ती में आता
तुरत तुरत है सबको जगाता
मुर्गा सोता बैठा ठाला
दूध दूध चिल्लाता लाला
पैसे लेने आता जिस दिन
दूध ही क्या बातों में मक्खन
अगले दिन फिर घोटाला
दूध दूध चिल्लाता लाला
3. Hindi Poem On Milk
आमृत बन क्षीर धरा बरसा
बिन दूध क्षीण जीवन तरसा
प्रथम पेय यह प्रथम खाद्य
क्या निर्धन या फिर धनाड्य
हे प्रथम पान तुम ममता के
हे जान दान तुम जनता के
तुम संजीवनी बीमारों के
तुम घी हो शक्ति अखाड़ों के
तुम सुंदर रूप हसीनो के
उपटन बन बदन निखरोगे
तुम्ही सहारा बूढ़ो के
बन रक्तधार सा पचते हो
तुम पोषक पालनहार शिशु के
सींच सींच तन रचते हो
तुम ही जीवन का स्वाद क्षीर
खट्टा हो दही या मधु खीर
लस्सी रबडी सब्जी पनीर
कुल्फी की ठंडक गर्मी में
चाय की गर्मी सर्दी में
तुम कलाकंद रसगुल्ला हो
चिंताहर चाय का प्याला हो
है दुनिया में कई चीज
पर चीज तुम्ही बन पाते हो
सोचो जो धारा में दूध न हो
ये जीवन काला काला हो
काफी न चाय का प्याला हो
गायें न गांव में ग्वाला हो
बिन माखन कहाँ से कान्हा हो
ममता न मोह हो जाये का
सब बने संपोले फिर होते
जीवन पाते ही जी खाते
बस तुम्ही एक हो शांति दूत
जो शावक भी पीते है दूध
ये भोलापन है बचपन का
जब तक मिलता है रस थन का
पा तुम्हे धन्य जीवन हरषा
अमृत बन क्षीर धारा बरसा
बिन दूध क्षीण जीवन तरसा
Deepesh kumar Tiwari
4. Short Poem On Milk In Hindi Language
चुप्पी साध मोड़ मुख बैठी, बन कर बैठी छुईमुई?1
घरवालों से आँख बचा कर, हम शैतानी करते थे।
अगर कभी हम पकड़े जाते, डाँट सभी मिल सहते थे।2
दूध-मलाई खाती रहती, होती जाती वह मोटी।
सूखी रोटी हम को मिलती, बात लगे हमको खोटी।3
कभी मित्रतावश हमको भी, उनका स्वाद चखाती थी।
पार्टी जैसे हुई हमारी, बात यही मन आती थी।4
पूछ रहे हम किस्सा क्या है, उत्तर मिले नहीं इसका।
कुछ उपाय के द्वारा आओ, दूर करें हम गम उसका।5
शायद खाना नहीं मिला है, इसी बात पर है गुस्सा।
हम खाने को कुछ ले आएं, उसको को भी दें हिस्सा।6
मौन स्वरों में भौं-भौं ने भी, सहमति निज जतलाई।
चलो कहीं से हम ले आएं, कुछ रोटी दूध-मलाई।7
– कर्नल प्रवीण त्रिपाठी
5. दूध-दूध!’ – रामधारी सिंह “दिनकर”
पर, शिशु का क्या हाल, सीख पाया न अभी जो आंसू पीना?
चूस-चूस सुखा स्तन माँ का सो जाता रो-विलप नगीना।
विवश देखती माँ, अंचल से नन्ही जान तड़प उड़ जाती,
अपना रक्त पिला देती यदि फटती आज वज्र की छाती।
कब्र-कब्र में अबुध बालकों की भूखी हड्डी रोती है,
‘दूध-दूध!’ की कदम कदम पर सारी रात सदा होती है।
‘दूध-दूध!’ ओ वत्स! मंदिरों में बहरे पाषाण यहाँ हैं,
‘दूध-दूध!’ तारे, बोलो, इन बच्चों के भगवान् कहाँ हैं?
‘दूध-दूध!’ दुनिया सोती है, लाऊं दूध कहाँ, किस घर से?
‘दूध-दूध!’ हे देव गगन के! कुछ बूँदें टपका अम्बर से!
‘दूध-दूध!’ गंगा तू ही अपने पानी को दूध बना दे,
‘दूध-दूध!’ उफ़! है कोई, भूखे मुर्दों को जरा मना दे?
‘दूध-दूध!’ फिर ‘दूध!’ अरे क्या याद दुख की खो न सकोगे?
‘दूध-दूध!’ मरकर भी क्या टीम बिना दूध के सो न सकोगे?
वे भी यहीं, दूध से जो अपने श्वानों को नहलाते हैं।
वे बच्चे भी यही, कब्र में ‘दूध-दूध!’ जो चिल्लाते हैं।
बेक़सूर, नन्हे देवों का शाप विश्व पर पड़ा हिमालय!
हिला चाहता मूल सृष्टि का, देख रहा क्या खड़ा हिमालय?
‘दूध-दूध!’ फिर सदा कब्र की, आज दूध लाना ही होगा,
जहाँ दूध के घड़े मिलें, उस मंजिल पर जाना ही होगा!
जय मानव की धरा साक्षिणी! जाय विशाल अम्बर की जय हो!
जय गिरिराज! विन्ध्यगिरी, जय-जय! हिंदमहासागर की जय हो!
हटो व्योम के मेघ! पंथ से, स्वर्ग लूटने हम आते हैं,
‘दूध, दूध! …’ ओ वत्स! तुम्हारा दूध खोजने हम जाते हैं!
रामधारी सिंह “दिनकर”
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