Poem On Village In Hindi : दोस्तों इस पोस्ट में कुछ गाँव पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं. की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.
गाँव पर कविता, Poem On Village In Hindi
1. Poem On Village In Hindi – जहाँ खुले आकाश के नीचे
जहाँ खुले आकाश के नीचे
हम खेले दौड़े नंगे पाँव
अमराई में कोयल कूके
वही हमारा गाँव
बड़ी भोर ही चूल्हा सुलगे
सोंधी गरम जो रोटी महके
भूख भी आए नंगे पाँव
वही हमारा गाँव
हुक्का पानी बातों के संग
कक्का दद्दा बैठें मिल के
सहलाएँ एक दूजैं के घाव
वही हमारा गाँव
धरती उगले सोना चाँदी
महकें खेतों की माटी
हर घर प्रेम की दिखती छाँव
वही हमारा गाँव
मन आजाद परिंदा सा
उड़ उड़ ढूँढे अपनी ठाँव
वही हमारा गाँव
2. गाँव पर कविता – रचा बसा यादों में गाँव
रचा बसा यादों में गाँव
नीम आम महुआ की छाँव
दादुर मोर पपीहे के स्वर
कोयल कूक काग की काँव
पहलवान दंगल के दाँव
लग बिग जाना ठाँव कुठाँव
यदा कदा झगड़ा झंझट पर
सदा सदा फिर साँव पटांव
अगल बगल के गाँव गेराँव
राम रहीम भगत के नाँव
याद हमेशा आते रह रह
निज भौजी के भारी पाँव
3. Village Poem in Hindi
मम्मी जी तुम मुझे बताओं कैसा होता गाँव?
कैसा पनघट कैसा पोखर
कैसी तालतलैया
कैसा होता है चरवाहा
कैसी होती गइया
कैसे बहे गाँव में नदियाँ
पुरवाई क्या होती?
पेड़ों की ऊंची डाल पर
चिड़ियाँ कैसे सोती
मम्मी जी कैसी होती है देखूं पीपल की छाँव
गेंहूँ दाल चना चावल की
खेती कैसे होती
ये किसान की धरती मइया
सोना कैसे देती?
चलकर मुझको एक बार तुम
ऐसा गाँव दिखाओ
चलो शहर से दूर चलो अब
मुझको गाँव घुमाओ
नदी किनारे जा देखूंगा कैसी होती नाव?
“आशा पाण्डेय”
4. Hindi Poem On Village
आँगन में पीपल की छाँव
हमको प्यारे लगते गाँव
अमवा पर कौआ की काँव
हमको प्यारे लगते गाँव
कोयल की मीठी बोली
पक्के रंगों की होली
गाँव की कच्ची राहों पर
भीगे बच्चों की टोली
और सने मिट्टी में
हमको प्यारे लगते गाँव
हरे भरे लहराते खेत
पनघट पर सखियों का हेत
उड़ती अच्छी लगती है
सोन सी मुट्ठी में रेत
पानी में कागज की नाव
हमको प्यारे लगते गाँव
चोरी से अंबिया लाना
छत पर छुप छुप कर खाना
नन्ही मुनिया जब मांगे
उसे अंगूठा दिखलाना
माली की मुछों पर ताव
हमको प्यारे लगते गाँव
बच्चों की लम्बी सी रेल
गिल्ली डंडों का वो मेल
खेतों में पकड़ा पकड़ी
आँख मिचौली का वह खेल
पहलवान के दीखते दांव
हमको प्यारे लगते गाँव
5. Short Poem On Village In Hindi Language
अबकी बार किसी छुट्टी में
गाँव अगर जाना पापा
कैसा होता गाँव! मुझे भी
गाँव दिखा लाना पापा
कैसे भला किसान गाँव में
अपनी फसलें बोता है
कैसे गन्ना गुड़ बन जाता
कोल्हू कैसा होता है?
खेत और खलिहान दिखाना
बाग़ कुआँ तालाब नहर
कैसे होते हैं गाँवों के
मिट्टी वाले कच्चे घर
अक्सर आप बताते रहते
गाँवों की कितनी बातें
मन करता है देखू सचमुच
गाँवों के दिन औ रातें
6. पंचों में यह हुई सलाह
पंचों में यह हुई सलाह,
गाँव सुधारें इस सप्ताह
सोमवार को ले गोबर,
लीपे सबने अपने घर
खेत निराए मंगलवार
कुआं साफ़ किया बुधवार,
सब जुट पड़े ब्रहस्पतिवार
पक्की सड़क हुई तैयार
शुक्रवार को हिल मिलकर
साफ़ किया पंचायतघर
टूटा पुल जोड़ा शनिवार
जिससे सब हो जाएं पार
पंचायत बैठी रविवार
सबको भाया गाँव सुधार
7. तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है
तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है,
और तू मेरे गांव को गँवार कहता है,
ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है,
तू चुल्लू भर पानी को भी वाटर पार्क कहता है,
थक गया है हर शख़्स काम करते-करते,
तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है।
गांव चलो वक़्त ही वक़्त है सबके पास,
तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है,
मौन होकर फ़ोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं,
तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है,
जिनकी सेवा में खपा देते थे जीवन सारा,
तू उन माँ बाप को अब भार कहता है,
वो मिलने आते थे तो कलेजा साथ लाते थे,
तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है,
बड़े-बड़े मसले हल करती थीं पंचायतें,
तु अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है,
बैठ जाते थे अपने पराये सब बैलगाडी में,
पूरा परिवार भी न बैठ पाये उसे तू कार कहता है,
अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे हैं,
तू इस नये दौर को संस्कार कहता है।
8. भोर भए से शाम ढले तक
भोर भए से शाम ढले तक
काम करे वो काम करे।
खेतों और खलिहानों में
बागों और मैदानों में।
जेठ तपे या शीत गले
कर्मभूमि पर डटा रहे॥
भोर भए से शाम ढले तक
काम करे वो काम करे।
काम करे वो काम करे॥
बंजर धरती उपजाऊ कर
फसलों में नवजीवन भर।
खेतों में हरियाली फैलाकर
पीली चादर से सजाकर॥
भोर भए से शाम ढले तक
काम करे वो काम करे॥
स्वर्ण और रजत सम
अमृत अन्न कर।
बैलों के संग कांधे हल रख॥
अथक परिश्रम सम कर्तव्य करे
भोर भए से शाम ढले तक
काम करे वो काम करे॥
बाधाओं में कष्टों में
बीमारी मजबूरी में।
चुनौतियों भरे जीवन में
शांत रहे संतोष करे॥
भोर भए से शाम ढले तक
काम करे वो काम करे॥
9. वो पेड़ों की छाया, वो गाँवों की माया
वो पेड़ों की छाया, वो गाँवों की माया।
वो गन्ने के खेतों में जीवन का पलना॥
वो शीतल बयारें हमें फिर पुकारें।
जहाँ बचपन का वो सपना सजाया॥
वो पीपल के नीचे चबूतरा बड़ा।
जहाँ गुड़ियाँ गुड्डों का खेल रचाया॥
वो बाग का झूला वो गाँव का मेला।
वो सूरज की किरणों का रौशन सवेरा॥
वो चिड़ियों की सरगम, वो फूलों की सुगंध।
वो भवरों का महकी कलियों पे फेरा॥
वो बैलों की जोड़ी का खेतों में चलना।
वो ट्रॅकटर की आवाज कानों में पड़ना॥
खेतों में लहलहाती फसलों का पकना।
वो कृषकों के चेहरे पर मुस्कान खिलना॥
वो बारिश में खेतों में झरती फुहारें।
वो मेड़ों पर चलना गिरकर संभलना॥
वो आसमानों का घिर – घिर बरसना।
वो पत्तों पर बूंदों का हर – पल फिसलना॥
वो जीवन का चलना यादों का पलना।
यादों के पन्नों का फिर – फिर उभरना॥
वो सालों पीछे हमें लेकर जाना।
बड़ा याद आता है गुजरा जमाना॥
वो पेड़ों की छाया, वो गाँवों की माया।
वो गन्ने के खेतों में जीवन का पलना॥
10. खुशहाली और संस्कारों की नीव
खुशहाली और संस्कारों की नीव
जहाँ से पनपी है।
सभ्यता में सौम्यता की शांति
जहाँ से जनमी है॥
हर तीज और त्यौहार में रौनक
जहाँ से चमकी है।
वह हैं देश के गाँव संस्कृति
जहाँ से सवरी है॥
प्रेम भाव सद्भाव की पवन
जहाँ से बिखरी है।
मानवता के प्रति संवेदना की लहर
जहाँ से फैली है॥
इक के दुख में दुखी हो आत्मा
वहीं की पिघली है।
वह हैं देश के गाँव जहाँ वाणी में
मिश्री घुलती है॥
होली के रंगों की असली रंगत
वही से रंगती है।
दिवाली के दीपों में ज्ञान की
रौशनी खिलती है॥
व्रत और उपवासों की परंपरा
वही पे मिलती है।
वह हैं देश के गाँव जहाँ हरियाली
की चादर बिछती है॥
11. बुला रहा हमारा गाँव हमें
बुला रहा हमारा गाँव हमें,
जिसे वर्षो पहले हम छोड़ आये
बुला रहा वो घर आँगन
जहाँ हमारा बचपन बिता
बुला रही गाँव की मिट्टी
जिस पर खेल हम बड़े हुवे
बुला रहे वो बंजर खेत
जिसमे कभी फसल लहराती थी
बुला रही वो गाँव की नदी
जहाँ हम नहाया करते थे
बुला रहा वो पीपल का पेड़
जिसकी छाया मे,हम बैठते थे
राह तक रहा गाँव का रास्ता
की कब कोई गाँव के तरफ आये
ओर इस खंडर पड़े गाँव को
फिर एक सुन्दर गाँव बनाये |
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