Poem on Kite in Hindi : दोस्तों इस पोस्ट में कुछ बेहतरीन और लोकप्रिय पतंग पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. पतंग बच्चों को बहुत आकर्षित करते हैं. इन्हें पतंग उड़ने और लुटने में बहुत मजा आता हैं. नीचे दी गई Kite Poem in Hindi से हमें प्रेरणा भी मिलती हैं. की पतंग बिना पंख के एक डोर के सहारे आसमान में उड़ती हैं. इससे हमें सिख मिलती हैं की हम जीवन में चाहे जितना भी आगे बढ़ जाएँ. लेकिन हमें अपने जड़ को कभी भी नहीं भूलना चाहिए.
अब आइए नीचे कुछ Best Poem on Kite in Hindi में दिए गए हैं. इसे पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी पतंग पर कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.
पतंग पर कविता
1. मौसम आज पतंगों का है
मौसम आज पतंगों का है
नभ में राज पतंगों का है
इन्द्रधनुष के रंगों का है
मौसम नई उमंगों का है
निकले सब ले डोर पतंगें
सुन्दर सी चौकोर पतंगें
उड़ा रहे कर शोर पतंगें
देखो चारों ओर पतंगें
उड़ी पतंगें बस्ती बस्ती
कोई मंहगी, कोई सस्ती
पर न किसी में फूटपरस्ती,
उड़ा-उड़ा सब लेते मस्ती
चली डोर पर बैठ पतंगें
इठलाती सी ऐंठ पतंगें
नभ में कर घुसपैठ पतंगें
करें परस्पर भेंट पतंगें
हर टोली ले खड़ी पतंगें
कुछ छोटी कुछ बड़ी पतंगें
आसमान में उड़ी पतंगें
पेच लड़ाने बढ़ी पतंगें
कुछ के छक्के छूट रहे हैं
कुछ के डोर टूट रहे हैं
कुछ लंगी ले दौड़ रहे हैं
कटी पतंगें लूट रहे हैं
– शिव मृदुल
2. उडी पतंग
सर-सर सर-सर उडी पतंग
फर-फर फर-फर उडी पतंग
इसको काटा, उसको काटा,
खूब लगाया सैर सपाटा।
अब लड़ने में जुटी पतंग,
अरे कट गई, लुटी पतंग।
सर-सर सर-सर उड़ी पतंग,
फर-फर फर-फर उड़ी पतंग।
3. मेरी पतंग
सर्र-सर्र, फर्र-फर्र, उड़ चली पतंग,
छूने दूर गगन।
सहेली भी है डोर
उमंगों का नहीं छोर।
पल-पल बढ़ती जाये मतवाली
रंग-बिरंगी, प्यारी-प्यारी।
ऊँचे-ऊँचे उड़ती जाती
मुश्किलों से बचती जाती।
कहती, सपने देखो ऊँचे,
उन्हें सच करना भी है सिखलाती।
“अनुपमा अनुश्री”
4. पतंग हूँ मैं
किसने मुझे कहा, पतंग हूँ मैं
अपनी ही मस्ती में, मलंग हूँ मैं।
करती हूँ कभी सात समंदर पार
तो कभी एवरेस्ट चढ़ती
अब तो अंतरिक्ष पर भी
ध्वजा पहरा दी है अपने नाम की
सचमुच हौसलों में बुलंद हूँ मैं
किसने मुझे कहा, पतंग हूँ मैं.
अष्ट भुजाएं है मेरी
करती हूँ संभाल – देखभाल
अपनों की, जिम्मेदारियों की
जब बाहर निकलती हूँ
अच्छी खबर लेती हूँ दुश्वारियों की
प्रतिभा, प्रेम, धैर्य, साहस का
खिला इंद्रधनुषी रंग हूँ मैं
किसने मुझे कहा, पतंग हूँ मैं
हां, पतंग पसंद बहुत है मुझे
रंग बिरंगी प्यारी प्यारी
भर जाती है मुझ में भी
जोश ए जुनूं सपनों को
सच करने की तैयारी
कायनात का मधुर मृदंग हूँ मैं
किसने मुझे कहा, पतंग हो मैं.
ग़र मान भी लो पतंग मुझको
तो भी यह पक्का कर लो
अपनी डोर कभी दी नहीं तुमको
डोर भी मेरी और उड़ान भी मेरी
अपने फ़ैसले खुद करती, दबंग हूँ मैं
किसने मुझे कहा, पतंग हूँ मैं.
– अनुपमा अनुश्री
5. रंगबिरंगी पतंगों पर कविता
गुन-गुन धूप तोड़ लाती हैं,
सूरज से मिलकर आती हैं,
कितनी प्यारी लगे पतंगें,
अंबर में चकरी खाती हैं।
ऊपर को चढ़ती जाती हैं,
फर-फर फिर नीचे आती हैं,
सर्र-सर्र करती-करती फिर,
नीलगगन से बतियाती हैं।
डोरी के संग इठलाती हैं,
ऊपर जाकर मुस्काती हैं,
जैसे अंगुली करे इशारे,
इधर-उधर उड़ती जाती हैं।
कभी काटती, कट जाती हैं,
आवारा उड़ती जाती हैं,
बिना सहारे हो जाने पर,
कटी पतंगें कहलाती हैं।
तेज हवा से फट जाती हैं,
बंद हवा में गिर जाती हैं,
उठना-गिरना जीवन का क्रम,
बात हमें यह समझाती हैं।
6. रंग बिरंगी मेरी पतंग
रंग बिरंगी मेरी पतंग
उड़ी आसमान में लेके उमंग
धीरे-धीरे उड़ती जाए
चरखी से डोर खुलती जाए
मन मेरा खुश होता जाए
उड़ान यह जब भर्ती जाए
लाल पीली नीली हरी
चार रंगों की पतंग मेरी
खींचू जब मैं डोर इसकी
पास में जब कोई पतंग आए
डर लगता है मुझको इसका
आके पतंग कोई काट ना जाए
_Pooja Mahawar
7. पतंग रानी
पतंग रानी पतंग रानी
झट से तुम उड़ जाती हो
रंग बिरंगी लाल पीली
आसमान से इठलाती हो
धूप से तुम तनिक न डरती
वर्षा में तुम गल जाती हो
बच्चों के मन को हर्षाती
बड़ों को भी तुम लुभाती हो
सुबह शाम तुम खूब इतराती
आसमान में धूम मचाती हो
एक दूजे से पेच लड़ाती
वह कट्टा कह चिढ़ाती हो
“मधु माहेश्वरी”
8. पतंग
देखो देखो उड़ी पतंग
देखो देखो उड़ी पतंग
कभी पेड़ पर कभी ढेर पर
देखो देखो उड़ी पतंग
कभी रुक जाए कभी उड़ जाए
देखो देखो उड़ी पतंग
कभी चिढ़ाती कभी मनाती
देखो देखो उडी पतंग
कभी तार पर कभी धार पर
देखो देखो उडी पतंग
कभी अमित की कभी ललित की
देखो देखो उड़ी पतंग
कभी हँसाए कभी रुलाए
देखो देखो उड़ी पतंग
कभी ढील पर कभी मील पर
देखो देखो उड़ी पतंग
कभी चाँद पर कभी मांद पर
देखो देखो उड़ी पतंग
कभी लहराती कभी बहलाती
देखो देखो उड़ी पतंग
कभी काटती कभी भागती
देखो देखो उड़ी पतंग
9. उस पतंग को खूब छ्काएं
आँखों की कसरत करने को
आओ चलो पतंग उड़ाएं
इसे काटने आए जो भी
उस पतंग को खूब छ्काएं
थोड़ा सा ऊपर ले जाकर
थोड़ा नीचे इसे घुमाएं
दाएं से फिर बाएँ लाकर
ठुमके देकर इसे नचाएँ
पेंच लड़ाने की उलझन से
इसको सदा बचाते जाएं
आओ चलो, पतंग उड़ाएं
जीरा मिर्ची मिले कुरकुरे
आलू के पापड़ भुनवाएं
इमली अदरक लहसुन वाली
धनिए की चटनी पिसवाएं
महक रही घी की खुशबू से
बैठ धूप में तहरी खाएं
आओ चलो पतंग उड़ाएं
10. पतंग और डोरी
आसमान की रानी हूँ मैं
घूम घूम कर कहे पतंग
डोरी तुझको सैर कराऊं
झूम झूम कर कहे पतंग
मैं डोरी ही तुझे उड़ाऊ
भूल न जाना अरी पतंग
बिन मेरे तू कब उड़ सकती
मत इतरा तू अरी पतंग
मत झगड़ों यों आपस में तुम
चुनमुन बोला सुनो पतंग
इक दूजे के बिना अधूरे
खाली खाली डोर पतंग
हवा उड़ाए तुम दोनों को
सुन री डोरी, सुनों पतंग
अंबर में ना चले हवा तो
कब उड़ पाए डोर पतंग?
चुनमुन ने समझाया उनको
शरमाई तब बड़ी पतंग
नजर झुका ली डोर ने भी
छोड़ा झगड़ा बदला रंग
11. उड़ चली गगन छूने पतंग
तितली से लेकर पर उधार
मुर्गे की कलगी सिर सँवार
बंदर की लम्बी लगा पूंछ
मछली सी करती जल विहार
इसकी विचित्र है चाल ढाल
है बड़े निराले रंग ढंग उड़ चली…
राकेट से बहुत पुरानी है
यह नील गगन की रानी है
सूरज को छूना चाह रही
हिम्मतवाली, सैलानी है
इसके तन में कितनी फुर्ती
इसके मन में कितनी उमंग
उड़ चली गगन छूने पतंग
खींचो तो यह तन जाती है
नागिन सी शीश उठाती है
पर चुटकी के संकेतों से
यह ठुमठुम नाच दिखाती है
लो वे आईं दो चार और
नीली, पीली, जम गया रंग
उड़ चली गगन छूने पतंग
वह लड़ा पेंच, वह कटा दांव
वह बूढी किया उसने बचाव
जामुनी पास में देख लाल
झपटी न आव देखा न ताव
दो चार कटीं, मच गया शोर
अंबर में होने लगी जंग
उड़ चली गगन छूने पतंग
बादल से बातें करती है
बगुलों के साथ विचरती है
हिरणी सी इन्द्रधनुष वाले
आँगन में कूदी फिरती है
कितनी भी ऊँची चढ़ जाए
फिर भी रहती धरती के संग
उड़ चली गगन छूने पतंग
“सीताराम गुप्त”
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