Baste Par Kavita : दोस्तों इस पोस्ट में कुछ बेहतरीन और लोकप्रिय बस्ते पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. इसे पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी बस्ते पर कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.
बस्ते पर कविता
1. बस्ता
इतना भारी भरकम बस्ता
कर देती है हालत खस्ता
सब बच्चों के भार से भारी
करता रहता मगर सवारी
कॉपी पेन्सिल, कलम किताब
हिंदी इंग्लिश और हिसाब
दुनिया भर के विषय निराले
सब बच्चों के देखे भाले
बात बताएं बिलकुल सच्ची
बहुत हो गई माथा पच्ची
काश! कोई जादू कर जाए
बस्ता खुद चलकर घर जाए
“माधव कौशिक”
2. मेरा बस्ता
मेरा बस्ता मेरा बस्ता
यह पुस्तक वाला गुलदस्ता
इसके भीतर भरी सरसता
क्यों हो मेरी हालत खस्ता
इसमें मेरी पेन्सिल कॉपी
इसमें मेरी बिस्कुट टॉफी
इसमें मेरी पूरी चीजे
होने देती इसे न भारी
हम हैं मैडम के आभारी
3. भारी बस्ता
बहुत सताए भारी बस्ता
मुझे न भाए भारी बस्ता
पापा, थोड़ा कम करवा दो
नींद में आए भारी बस्ता
बस्तें की है लीला न्यारी
सब जाते है इस पर बलिहारी
भांति भांति के स्वप्न दिखाकर
मन भरमाए भारी बस्ता
पापा थोड़ा कम करवा दो
नींद में आए भारी बस्ता
कठिन हुआ खेलना खाना
भूल गये हंसना मुस्काना
चैन चुराए रैन चुराए
नाच नचाए भारी बस्ता
पापा, थोड़ा कम करवा दो
नींद में आए भारी बस्ता
लेकर इसे चला नहीं जाता
इसके बोझ से सिर चकराता
हम नन्हें मुन्ने बच्चों को
बहुत रुलाए भारी बस्ता
पापा थोड़ा कम करवा दो
नींद में आए भारी बस्ता
“बलवंत”
4. कहानी बस्ते की
कैसे किस किस समझाऊं
बस्ते की है अजब कहानी
इधर उधर क्यों पड़ी किताबें
याद दिलाती दादी नानी
अपने वस्त्रों के संग करना
बस्ते की भी साफ़ सफाई
बस्ते को तो ढोना ही है
करनी आगे और पढ़ाई
कॉपी और किताबें भर भर
बस्ता जल्दी फट जाता है
खानी पड़ती डांट पिता की
मेरा वजन भी घट जाता है
कभी अगर ऐसा हो जाए
तो हम सब हो जाए निहाल
कक्षा में ही कार्य पूर्ण हो
शेष समय बस मचे धमाल
हल्का बस्ता हो जाए तो
उसे ठीक से रखूं सम्भाल
विद्यालय से घर आने पर
तब न पलंग पर गिरू निढ़ाल
5. नहीं आऊँगी
बस्ता नया नया दद्दू का
देखो मेरा है भद्दा सा
नया मंगा दो वर्ना शाला
नहीं जाउंगी नहीं जाउंगी
दद्दा पढ़ते मेज बैठकर
थकू फर्श मैं पोंछ पोंछकर
प्यार करो वर्ना मैं खाना
नहीं खाऊँगी नहीं खाऊँगी
बाबा जब भी बर्फी लाते
मुझको कम दद्दा सब पाते
मांगेगे दद्दा जो चीजे
नहीं लाऊंगी नहीं लाऊँगी
करूँ समय से चौका बरतन
फिर भी क्या खुश होता है मन?
मुंह पर ताला डाल दिया अब
नहीं गाऊँगी नहीं गाऊँगी
कभी भरा होता बांहों में
मैया रोती हूँ रातों में
जाओ घर से विदा किया तो
नहीं आउंगी नहीं आउंगी
“मोहम्मद साजिद खान”
6. बस्ता भारी
इस भारी बस्ते को भैया,
अब तू दूर हटा दे
कमर टूटती है नित मेरी
इससे मुझे बचा ले
सुबह लादकर जब मैं
पाठशाला ले जाता
मेरी हालत पर भैया
यह मंद मंद मुस्काता
मैं नन्हा सा बालक छोटा
यह भैंसा सा भारी
चढ़ा पीठ पर मेरी बैठा
करता मारा मारी
7. बस्ते का बोझ
इक ऐसी तरकीब सुझाओ, तुम कंप्यूटर भैया
बस्ते का कुछ बोझ घटाओ, तुम कंप्यूटर भैया
हिंदी इंग्लिश जीके का ही, बोझ हो गया काफी
बाहर पड़ी मैथ की कॉपी, कहाँ रखें ज्योग्राफी
रोज रोज यह फूल फूलकर बनता जाता हाथी
कैसे इससे मुक्ति मिलेगी परेशान सब साथी
होमवर्क इतना मिलता है खेल नहीं हम पाते
ऊपर से ट्यूशन का चक्कर झेल नहीं हम पाते
पढ़ते पढ़ते ही आँखों पर, लगा लेंस का चश्मा
भूल गया सारी शैतानी, कैसा अजब करिश्मा
घर बाहर सब यही सिखाते अच्छी भली पढ़ाई
पर बस्ते के बोझ से भैया मेरी आफत आई
अब क्या करूं कहाँ जाऊं कुछ नहीं समझ में आता
देख देखकर इसका बोझा मेरा सिर चकराता
घर से विद्यालय, विद्यालय से घर जाना भारी
लगता है मंगवानी होगी मुझको नई सवारी
पापा से सुनते आए हैं तेज दिमाग तुम्हारा
बड़े बड़े जब हार गए, तब तुमने दिया सहारा
मेरी तुमसे यही प्रार्थना, कुछ भी कर दो ऐसा
फूला बस्ता पिचक जाए, मेरे गुब्बारे जैसा
8. भारी बस्ता उतर कमर से
भारी बस्ता उतर कमर से पलकों पर आ ठहरा है !
बच्चों के तन-मन पर देखो रेडिएशन का पहरा है !!
किसको अपना दर्द बताएं ज़ख्म बहुत ही गहरा है !
जब अपना हाकिम ही यारो, शायद अंधा-बहरा है !!
मज़दूरों के बच्चे भी क्या सच में ही यूं पढ़ लेंगे ?
क्या ये सारे छः-छः घण्टे, रेडिएशन से लड़ लेंगे ?
क्या इनकी नन्ही आँखों को है कोई वरदान मिला ?
तो फिर इन मासूमों को, क्यों ऐसा फ़रमान मिला ?
मैं ही बतला देता हूँ, ग़र अपना हाकिम है अंजान !
रेडिएशन से तिल-तिल कर मरता है आख़िर इंसान !
इसी वजह से गोरैया नें अब घर-आँगन छोड़ दिया !
तितली-कीट-पतंगों नें भी हमसे नाता तोड़ दिया !!
सोचो आख़िर किस क़ीमत पर हम ये शिक्षा पायेंगे ?
अपनी आँखों के तारों को जानें कितने रोग लगायेंगे ?
अनिद्रा-अवसाद-जनक है ब्रेन-ट्यूमर-कैंसर-कारक है!
रेडिएशन, तनाव-बदन-दर्द और नेत्र-रोग उत्पादक है!
प्रतिरक्षा प्रणाली को दरअसल ये कमज़ोर बनाता है !
इसीलिए इंसान अनेकों रोगों का घर बन जाता है !!
कोरोना के कहर में तो ये घातक भी हो सकता है !
इसकी जद में बच्चा अपनी इम्यूनिटी खो सकता है!!
इससे अच्छा है बच्चों तक पुस्तकें पहुंचाई जायें !
और जल्दी से ये ऑनलाइन शिक्षा रुकवाई जायें !!
वरना इसके दुष्परिणामों को झेल नहीं पायेंगे हम !
अपने ही बच्चों के संग में खेल नहीं पायेंगे हम !!
वैसे भी ये शिक्षा साधन-सम्पन्नों तक सीमित है !
ये भी देखों आख़िर इसकी कितनी ऊंची क़ीमत है !!
वरना, बहुतों के सपनें तो, अश्क़ों में बह जायेंगे !
साधनहीन तो इस शिक्षा से वंचित ही रह जाएँगे !!
… अरविन्द सिंहानिया
9. बस्ते पर एक कविता
भारी, भारी बस्ते पीठ पर,
मानो सरस्वती को ढो रहे हैं।
पुस्तकें हैं सरस्वती।
पुस्तकों में तुलसी के दोहे।
तुलसी थे निर्धन ।
भोगी जीवन की पीड़ा ।
निर्धनता सा जीवन में कोई दुःख नहीं।
झूठा भोजन कर पेट भरते।
पत्नी से प्रताड़ित।
दुखों को डुबाया राम भक्ति में।
संताप हरने की ,
की प्रार्थना श्री राम से।
याचना ही बन गई सरस्वती।
ये भारी भारी बस्ते पीठ पर।
मानो सरस्वती को ढो रहे हैं।
पुस्तकों में हैं कबीर के दोहे।
कबीर थे वर्ण भेद से व्यथित।
मन की व्यथा को मुख से गा ,गा कर।
राम को सुनाया।,
जीवन हुआ भक्ति रस में सराबोर
ये भारी भारी बस्ते।
मानो सरस्वती को ढो रहे है।
सूरदास थे अंधे।
नेत्र बिन जीवन है निराधार।
थे उपेक्षित।
पुस्तकों में हैं पद सूर के।
सूर ने मांगा श्याम का सानिध्य।
जीवन देखा श्याम की नेत्रों से।
जीवन में बही प्रेम की रसधार।
ये भारी बस्ते पीठ पर ।
मानो सरस्वती को ढो रहे हैं।
कवियों ने अपने दुखों को ढोया।
भक्ति रस में डूब कर अपने दुखों को धोया।
विद्यार्थी कवियों की रचनाओं में डूब।
जीवन की राह ढूंढ रहे हैं।
ये भारी भारी बस्ते पीठ पर।
मानो सरस्वती को ढो रहे हैं।
Vijaya Gupta
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