Famous Sahir Ludhianvi Shayari : दोस्तों आज इस पोस्ट में कुछ बेहतरीन और लोकप्रिय साहिर लुधियानवी की शायरी का संग्रह दिया गया हैं. इनका जन्म 1 मार्च 1921 को पंजाब के लुधियाना में हुआ था. इन्होने कई फिल्मों के लिए लोकप्रिय गीत लिखे हैं. साहिर लुधियानवी की शायरी और गीत में रूमानियत, पल पल छलकती हैं.
अब आइये यहाँ पर कुछ नीचे Famous Sahir Ludhianvi Shayari in Hindi में दिए गए हैं. इसे पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी साहिर लुधियानवी की शायरी आपको पसंद आयगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.
साहिर लुधियानवी की शायरी, Famous Sahir Ludhianvi Shayari
(1) ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम
(2) कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
(3) तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम
(4) कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया
(5) ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया
(6) हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं
(7) देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से
(8) तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही
तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ
(9) हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया
(10) वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
(11) किस मंज़िल-ए-मुराद की जानिब रवाँ हैं हम
ऐ रह-रवान-ए-ख़ाक-बसर पूछते चलो
(12) तुम ने सिर्फ़ चाहा है हम ने छू के देखे हैं
पैरहन घटाओं के जिस्म बर्क़-पारों के
साहिर लुधियानवी की शायरी
(13) उधर भी ख़ाक उड़ी है इधर भी ख़ाक उड़ी
जहाँ जहाँ से बहारों के कारवाँ निकले
(14) जंग इफ़्लास और ग़ुलामी से
अम्न बेहतर निज़ाम की ख़ातिर
(15) आओ इस तीरा-बख़्त दुनिया में
फ़िक्र की रौशनी को आम करें
(16) क्या मोल लग रहा है शहीदों के ख़ून का
मरते थे जिन पे हम वो सज़ा-याब क्या हुए
(17) हर-चंद मिरी क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार है महबूस
ख़ामोश मगर तब-ए-ख़ुद-आरा नहीं होती
(18) बहुत घुटन है कोई सूरत-ए-बयाँ निकले
अगर सदा न उठे कम से कम फ़ुग़ाँ निकले
(19) ऐ आरज़ू के धुँदले ख़राबो जवाब दो
फिर किस की याद आई थी मुझ को पुकारने
(20) बरतरी के सुबूत की ख़ातिर
ख़ूँ बहाना ही क्या ज़रूरी है
(21) मिरी नदीम मोहब्बत की रिफ़अ’तों से न गिर
बुलंद बाम-ए-हरम ही नहीं कुछ और भी है
(22) जम्हूरियत-नवाज़ बशर-दोस्त अम्न-ख़्वाह
ख़ुद को जो ख़ुद दिए थे वो अलक़ाब क्या हुए
(23) वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है
बड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो
(24) जज़्बात भी हिन्दू होते हैं चाहत भी मुसलमाँ होती है
दुनिया का इशारा था लेकिन समझा न इशारा, दिल ही तो है
Sahir Ludhianvi Two Line Shayari
(25) मुजरिम हूँ मैं अगर तो गुनहगार तुम भी हो
ऐ रहबरना-ए-क़ौम ख़ता-कार तुम भी हो
(26) रंगों में तेरा अक्स ढला तू न ढल सकी
साँसों की आँच जिस्म की ख़ुश्बू न ढल सकी
(27) इन्क़िलाबात-ए-दहर की बुनियाद
हक़ जो हक़दार तक नहीं पहुँचा
(28) सर्द झोंकों से भड़कते हैं बदन में शो’ले
जान ले लेगी ये बरसात क़रीब आ जाओ
(29) ख़ून अपना हो या पराया हो
नस्ल-ए-आदम का ख़ून है आख़िर
(30) इस तरफ़ से गुज़रे थे क़ाफ़िले बहारों के
आज तक सुलगते हैं ज़ख़्म रहगुज़ारों के
(31) जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
(32) इस तरह निगाहें मत फेरो, ऐसा न हो धड़कन रुक जाए
सीने में कोई पत्थर तो नहीं एहसास का मारा, दिल ही तो है
(33) नालाँ हूँ मैं बेदारी-ए-एहसास के हाथों
दुनिया मिरे अफ़्कार की दुनिया नहीं होती
(34) जुर्म-ए-उल्फ़त पे हमें लोग सज़ा देते हैं
कैसे नादान हैं शो’लों को हवा देते हैं
(35) ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में
बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो
(36) आओ कि आज ग़ौर करें इस सवाल पर
देखे थे हम ने जो वो हसीं ख़्वाब क्या हुए
Sahir Ludhianvi Shayari in Hindi
(37) हम से अगर है तर्क-ए-तअल्लुक़ तो क्या हुआ
यारो कोई तो उन की ख़बर पूछते चलो
(38) मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी कभी
होती है दिलबरों की इनायत कभी कभी
(39) हर कूचा शो’ला-ज़ार है हर शहर क़त्ल-गाह
यक-जेहती-ए-हयात के आदाब क्या हुए
(40) तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो
तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो
(41) हमीं से रंग-ए-गुलिस्ताँ हमीं से रंग-ए-बहार
हमीं को नज़्म-ए-गुलिस्ताँ पे इख़्तियार नहीं
(42) इस रेंगती हयात का कब तक उठाएँ बार
बीमार अब उलझने लगे हैं तबीब से
(43) अँधेरी शब में भी तामीर-ए-आशियाँ न रुके
नहीं चराग़ तो क्या बर्क़ तो चमकती है
(44) ऐ ग़म-ए-दुनिया तुझे क्या इल्म तेरे वास्ते
किन बहानों से तबीअ’त राह पर लाई गई
(45) मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने
ज़माने अब तो ख़ुश हो ज़हर ये भी पी लिया मैं ने
(46) कभी मिलेंगे जो रास्ते में तो मुँह फिरा कर पलट पड़ेंगे
कहीं सुनेंगे जो नाम तेरा तो चुप रहेंगे नज़र झुका के
(47) दूर रह कर न करो बात क़रीब आ जाओ
याद रह जाएगी ये रात क़रीब आ जाओ
(48) ये किस मक़ाम पे पहुँचा दिया ज़माने ने
कि अब हयात पे तेरा भी इख़्तियार नहीं
Famous Sahir Ludhianvi Shayari
(49) तरब-ज़ारों पे क्या गुज़री सनम-ख़ानों पे क्या गुज़री
दिल-ए-ज़िंदा मिरे मरहूम अरमानों पे क्या गुज़री
(50) आँखें ही मिलाती हैं ज़माने में दिलों को
अंजान हैं हम तुम अगर अंजान हैं आँखें
(51) जज़्बात भी हिन्दू होते हैं चाहत भी मुसलमाँ होती है
दुनिया का इशारा था लेकिन समझा न इशारा दिल ही तो है
(52) ज़मीं ने ख़ून उगला आसमाँ ने आग बरसाई
जब इंसानों के दिल बदले तो इंसानों पे क्या गुज़री
(53) दिल के मुआमले में नतीजे की फ़िक्र क्या
आगे है इश्क़ जुर्म-ओ-सज़ा के मक़ाम से
(54) दुल्हन बनी हुई हैं राहें
जश्न मनाओ साल-ए-नौ के
(55) तुझे भुला देंगे अपने दिल से ये फ़ैसला तो किया है लेकिन
न दिल को मालूम है न हम को जिएँगे कैसे तुझे भुला के
(56) संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है
इक धुँद से आना है इक धुँद में जाना है
(57) जान-ए-तन्हा पे गुज़र जाएँ हज़ारों सदमे
आँख से अश्क रवाँ हों ये ज़रूरी तो नहीं
(58) बस अब तो दामन-ए-दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदो
बहुत दुख सह लिए मैं ने बहुत दिन जी लिया मैं ने
(59) हम जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा पाएँगे तन्हा
जो तुझ से हुई हो वो ख़ता साथ लिए जा
(60) तुम्हारे अहद-ए-वफ़ा को मैं अहद क्या समझूँ
मुझे ख़ुद अपनी मोहब्बत पे ए’तिबार नहीं
(61) मायूसी-ए-मआल-ए-मोहब्बत न पूछिए
अपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम
(63) लो आज हम ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उमीद
लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम
(64) हर एक दौर का मज़हब नया ख़ुदा लाया
करें तो हम भी मगर किस ख़ुदा की बात करें
(65) कोई तो ऐसा घर होता जहाँ से प्यार मिल जाता
वही बेगाने चेहरे हैं जहाँ जाएँ जिधर जाएँ
(66) अब आएँ या न आएँ इधर पूछते चलो
क्या चाहती है उन की नज़र पूछते चलो
(67) उन का ग़म उन का तसव्वुर उन के शिकवे अब कहाँ
अब तो ये बातें भी ऐ दिल हो गईं आई गई
(68) किस दर्जा दिल-शिकन थे मोहब्बत के हादसे
हम ज़िंदगी में फिर कोई अरमाँ न कर सके
(69) फिर न कीजे मिरी गुस्ताख़-निगाही का गिला
देखिए आप ने फिर प्यार से देखा मुझ को
(70) वफ़ा-शिआर कई हैं कोई हसीं भी तो हो
चलो फिर आज उसी बेवफ़ा की बात करें
(71) तुझ को ख़बर नहीं मगर इक सादा-लौह को
बर्बाद कर दिया तिरे दो दिन के प्यार ने
(72) मेरे ख़्वाबों में भी तू मेरे ख़यालों में भी तू
कौन सी चीज़ तुझे तुझ से जुदा पेश करूँ
(73) अरे ओ आसमाँ वाले बता इस में बुरा क्या है
ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएँ
(74) अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़ल्वत में
कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैं ने
(75) जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया
जो खो गया मैं उस को भुलाता चला गया
(76) यूँही दिल ने चाहा था रोना-रुलाना
तिरी याद तो बन गई इक बहाना
(77) माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके
कुछ ख़ार कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम
(78) ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है
ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा
(79) इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़
(80) तू मुझे छोड़ के ठुकरा के भी जा सकती है
तेरे हाथों में मिरे हाथ हैं ज़ंजीर नहीं
(81) मैं जिसे प्यार का अंदाज़ समझ बैठा हूँ
वो तबस्सुम वो तकल्लुम तिरी आदत ही न हो
(82) दुनिया ने तजरबात ओ हवादिस की शक्ल में
जो कुछ मुझे दिया है वो लौटा रहा हूँ मैं
(83) जब तुम से मोहब्बत की हम ने तब जा के कहीं ये राज़ खुला
मरने का सलीक़ा आते ही जीने का शुऊर आ जाता है
(84) बर्बादियों का सोग मनाना फ़ुज़ूल था
बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया
(85) चंद कलियाँ नशात की चुन कर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ
(86) उन के रुख़्सार पे ढलके हुए आँसू तौबा
मैं ने शबनम को भी शोलों पे मचलते देखा
(87) जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
(88) अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिब
अभी हयात का माहौल ख़ुश-गवार नहीं
(89) फिर खो न जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ में
मिलती है पास आने की मोहलत कभी कभी
(90) गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफ़ाक़ से
पूछेंगे अपना हाल तिरी बेबसी से हम
(91) हम ग़म-ज़दा हैं लाएँ कहाँ से ख़ुशी के गीत
देंगे वही जो पाएँगे इस ज़िंदगी से हम
(92) औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया
(93) वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बर्बाद किया है
इल्ज़ाम किसी और के सर जाए तो अच्छा
(94) तुम हुस्न की ख़ुद इक दुनिया हो शायद ये तुम्हें मालूम नहीं
महफ़िल में तुम्हारे आने से हर चीज़ पे नूर आ जाता है
(95) बे पिए ही शराब से नफ़रत
ये जहालत नहीं तो फिर क्या है
(96) तुम मेरे लिए अब कोई इल्ज़ाम न ढूँडो
चाहा था तुम्हें इक यही इल्ज़ाम बहुत है
(97) हम अम्न चाहते हैं मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़
गर जंग लाज़मी है तो फिर जंग ही सही
(98) मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया
(99) इस तरह ज़िंदगी ने दिया है हमारा साथ
जैसे कोई निबाह रहा हो रक़ीब से
(100) आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें
हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं
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