Umeed Shayari – दोस्तों आज के इस पोस्ट में आपको कुछ उम्मीद पर शायरी का संग्रह दिया गया हैं. आइए इसे पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की आपको यह सभी Umeed Shayari in Hindi में पसंद आयगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.
उम्मीद पर शायरी, Umeed Shayari in Hindi
(1) न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ
इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं
-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
(2) एक चराग़ और एक किताब और एक उम्मीद असासा
उस के बा’द तो जो कुछ है वो सब अफ़्साना है
– इफ़्तिख़ार आरिफ़
(3) है ये उम्मीद मिरे ख़्वाब में आप आएँगे
एक दर आँख का रखता हूँ खुला रात के वक़्त
– आसिम वास्ती
(4) आख़िरी उम्मीद भी आँखों से छलकाए हुए
कौन सी जानिब चले हैं तेरे ठुकराए हुए
– अजीत सिंह हसरत
(5) एक उम्मीद से दिल बहलता रहा
इक तमन्ना सताती रही रात भर
~ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
(6) फूटने को थी उम्मीद की इक किरन
हो गई फिर उन की मेहरबानी नई
~ क़ैसर ख़ालिद
(7) उम्मीद कीजिए अगर उम्मीद कुछ नहीं
ग़म खाइए बहुत जो ख़याल-ए-सुरूर है
~ इस्माइल मेरठी
(8) मेरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा
~ अमीर क़ज़लबाश
(9) खेत जल-थल कर दिए सैलाब ने
मर गए अरमान सब दहक़ान के
अफ़ज़ल हज़ारवी
(10) आसार-ए-रिहाई हैं ये दिल बोल रहा है
सय्याद सितमगर मिरे पर खोल रहा है
असद अली ख़ान क़लक़
(11) तर्क-ए-उम्मीद बस की बात नहीं
वर्ना उम्मीद कब बर आई है
फ़ानी बदायुनी
उम्मीद पर शायरी
(12) नई नस्लों के हाथों में भी ताबिंदा रहेगा
मैं मिल जाऊँगा मिट्टी में क़लम ज़िंदा रहेगा
आलोक यादव
(13) पूरी होती हैं तसव्वुर में उमीदें क्या क्या
दिल में सब कुछ है मगर पेश-ए-नज़र कुछ भी नहीं
लाला माधव राम जौहर
(14) झूटे वादों पर थी अपनी ज़िंदगी
अब तो वो भी आसरा जाता रहा
अज़ीज़ लखनवी
(15) इसी उम्मीद पर तो जी रहे हैं हिज्र के मारे
कभी तो रुख़ से उट्ठेगी नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
हाशिम अली ख़ाँ दिलाज़ाक
(16) बिछड़ के तुझ से मुझे है उमीद मिलने की
सुना है रूह को आना है फिर बदन की तरफ़
नज़्म तबातबाई
(17) उमीद-ओ-बीम के मेहवर से हट के देखते हैं
ज़रा सी देर को दुनिया से कट के देखते हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
(18) रख न आँसू से वस्ल की उम्मीद
खारे पानी से दाल गलती नहीं
शेख़ क़ुद्रतुल्लाह क़ुदरत
(19) फिर मिरी आस बढ़ा कर मुझे मायूस न कर
हासिल-ए-ग़म को ख़ुदा-रा ग़म-ए-हासिल न बना
हिमायत अली शाएर
(20) मुझ को औरों से कुछ नहीं है काम
तुझ से हर दम उमीद-वारी है
फ़ाएज़ देहलवी
(21) वो उम्मीद क्या जिस की हो इंतिहा
वो व’अदा नहीं जो वफ़ा हो गया
अल्ताफ़ हुसैन हाली
Umeed Shayari in Hindi
(22) इंक़लाब-ए-सुब्ह की कुछ कम नहीं ये भी दलील
पत्थरों को दे रहे हैं आइने खुल कर जवाब
हनीफ़ साजिद
(23) बस अब तो दामन-ए-दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदो
बहुत दुख सह लिए मैं ने बहुत दिन जी लिया मैं ने
साहिर लुधियानवी
(24) उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती
वा’दा न वफ़ा करते वा’दा तो किया होता
चराग़ हसन हसरत
(25) तुम कहाँ वस्ल कहाँ वस्ल की उम्मीद कहाँ
दिल के बहकाने को इक बात बना रखी है
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
(26) मौजों की सियासत से मायूस न हो ‘फ़ानी’
गिर्दाब की हर तह में साहिल नज़र आता है
फ़ानी बदायुनी
(27) कुछ कटी हिम्मत-ए-सवाल में उम्र
कुछ उमीद-ए-जवाब में गुज़री
फ़ानी बदायुनी
(28) अब रात की दीवार को ढाना है ज़रूरी
ये काम मगर मुझ से अकेले नहीं होगा
शहरयार
(29) कहते हैं कि उम्मीद पे जीता है ज़माना
वो क्या करे जिस को कोई उम्मीद नहीं हो
आसी उल्दनी
(30) किस से उम्मीद करें कोई इलाज-ए-दिल की
चारागर भी तो बहुत दर्द का मारा निकला
लुत्फ़ुर्रहमान
(31) इतने मायूस तो हालात नहीं
लोग किस वास्ते घबराए हैं
जाँ निसार अख़्तर
(32) शाख़ें रहीं तो फूल भी पत्ते भी आएँगे
ये दिन अगर बुरे हैं तो अच्छे भी आएँगे
अज्ञात
Umeed Shayari
(33) मैं अब किसी की भी उम्मीद तोड़ सकता हूँ
मुझे किसी पे भी अब कोई ए’तिबार नहीं
जव्वाद शैख़
(34) एक चराग़ और एक किताब और एक उम्मीद असासा
उस के बा’द तो जो कुछ है वो सब अफ़्साना है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
(35) ख़्वाब, उम्मीद, तमन्नाएँ, तअल्लुक़, रिश्ते
जान ले लेते हैं आख़िर ये सहारे सारे
इमरान-उल-हक़ चौहान
(36) ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम कर
आस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है
फ़ानी बदायुनी
(37) साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का
उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ
कैफ़ भोपाली
(38) आरज़ू हसरत और उम्मीद शिकायत आँसू
इक तिरा ज़िक्र था और बीच में क्या क्या निकला
सरवर आलम राज़
(39) इतना भी ना-उमीद दिल-ए-कम-नज़र न हो
मुमकिन नहीं कि शाम-ए-अलम की सहर न हो
नरेश कुमार शाद
(40) यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
निदा फ़ाज़ली
(41) अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उमीदें
ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ
अहमद फ़राज़
(42) यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
शकील बदायूनी
(43) तिरे वा’दों पे कहाँ तक मिरा दिल फ़रेब खाए
कोई ऐसा कर बहाना मिरी आस टूट जाए
फ़ना निज़ामी कानपुरी
(44) न कोई वा’दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
फ़िराक़ गोरखपुरी
(45) मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा
अमीर क़ज़लबाश
(46) हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
मिर्ज़ा ग़ालिब
(47) दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
(48) मंज़िलें क्या हैं, रास्ता क्या है
हौसला हो तो फ़ासला क्या है
(49) भँवर से कैसे बच पाया किसी पतवार से पूछो
हमारा हौसला पूछो, तो फिर मझधार से पूछो
(50) महसूस कर रहा था उसे अपने आस पास
अपना ख़याल ख़ुद ही बदलना पड़ा मुझे
(51) सब की हिम्मत नहीं ज़माने में
लोग डरते हैं मुस्कुराने में
एक लम्हा भी ख़र्च होता नहीं
मेरी ख़ुशियों को आने जाने में
(52) ये दिल मलूल भी कम है उदास भी कम है
कई दिनों से कोई आस पास भी कम है
हमें भी यूं ही गुजरना पसंद है और फिर
तुम्हारा शहर मुसाफ़िर-शनास भी कम है
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