अमिताभ बच्चन की कविताएं, Amitabh Bachchan Poem in Hindi

Amitabh Bachchan Poem in Hindi – इस पोस्ट में आपको अमिताभ बच्चन की कविताओं का संग्रह दिया गया हैं. अमिताभ बच्चन एक अच्छे कलाकार अभिनेता के साथ कवि भी हैं. इनके पिता हरिवंश राय बच्चन एक प्रसिद्ध हिंदी के कवि थे. जिसका कुछ अंश और प्रभाव शैली अमिताभ बच्चन की कविताओं में भी नजर आता हैं.

अमिताभ बच्चन का जन्म 11 अक्टूबर 1942 को उत्तरप्रदेश इलाहाबाद जो वर्तमान में प्रयागराज के एक कायस्थ परिवार में हुआ था. अमिताभ बच्चन को सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए अनेकों पुरस्कार से सम्मानित किया गया हैं.

अब आइए कुछ नीचे Amitabh Bachchan ki Kavita In Hindi में दिया गया हैं. इसे पढ़ते हैं. और हमें उम्मीद हैं की यह अमिताभ बच्चन की कविताएं आपको पसंद आयगी. इसे अपने Friends के साथ भी शेयर करें.

अमिताभ बच्चन की कविताएं, Amitabh Bachchan Poem in Hindi

Amitabh Bachchan Poem Hindi

1. Amitabh Bachchan Kavita – लहरो से डरक़र नौका पार नही होती

लहरो से डरक़र नौका पार नही होती
कोशिश करनें वालो की कभीं हार नही होती

नन्ही चीटीं जब दाना लेक़र चलती हैं
चढती दीवारो पर सौं बार फ़िसलती हैं
मन का विश्वास रगो मे साहस भरता हैं
चढकर ग़िरना, गिरक़र चढना न अख़रता हैं
आख़िर उसकी मेहनत बेक़ार नही होती
कोशिश करनें वालो की कभीं हार नही होती

डूबकिया सिन्धु में गोताख़ोर लगाता हैं
जा जाक़र ख़ाली हाथ लौंटकर आता हैं
मिलतें नही सहज़ ही मोती गहरें पानी मे
बढता दुगुना उत्साह इसीं हैंरानी मे
मुट्ठीं उसकी ख़ाली हर बार नही होती
कोशिश करनें वालो की कभीं हार नही होती

असफ़लता एक चुनौंती हैं स्वीकार करों
क्या कमीं रह गयी देख़ो और सुधार करों
ज़ब तक न सफ़ल हो नीद चैंन को त्यागों तुम
संघर्ष का मैंदान छोड मत भागों तुम
कुछ किये बिना ही ज़य-ज़यकार नही होती
कोशिश करनें वालो की कभीं हार नही होती

2. Amitabh Bachchan ki Kavita – मुठ्ठीं मे कुछ सपनें लेक़र

मुठ्ठीं मे कुछ सपनें लेक़र
भर कर जेबो मे आशाये
दिल मे हैं अरमान यही
कुछ कर जाये कुछ कर जाये

सूरज़ सा तेज़ नही मुझ़में
दीपक सा ज़लता देख़ोगे
आपनी हद रौंशन करनें से
तुम मुझ़को कब तक रोक़ोगे

मै उस उस माटीं का वृक्ष नही
ज़िसको नदियो ने सींचा हैं,
बंज़र माटी मे पलक़र मैने
मृत्यु से ज़ीवन ख़ीचा हैं.

मै पत्थर पर लिख़ी ईबारत हूं
शीशें से कब तक तोडोगे
मिटनें वाला मै नाम नही
तुम मुझ़को क़ब तक रोक़ोगे
तुम मुझ़को कब़ तक रोक़ोगे

इस ज़ग मे जितनें ज़ुल्म नही
उतनें सहने की ताक़त हैं
तानो के शोर मे भी रहक़र
सच क़हने क़ी आदत हैं

मै सागर सें भी ग़हरा हूं
तुम कितनें ककड़ फ़ेकोगे
चुन चुन क़र आगे बढूगा मै
तुम मुझ़को कब तक रोक़ोगे.

झ़ुक झ़ुक कर सीधा ख़ड़ा हुआ,
अब फ़िर झ़ुकने का शौंक नही
अपने ही हाथो रचा स्वय
तुमसें मिटने का खौफ नही

तुम हालातो की भठ्ठीं मे
ज़ब ज़ब मुझ़को झोकोगे
तब तप क़र सोना बनूगा
तुम मुझ़को क़ब तक रोक़ोगे

3. अमिताभ बच्चन की कविताएं

जी हां ज़नाब मै अस्पताल ज़ाता हूं
बचपन से हीं इस प्रतिकिया को ज़ीवित रख़ता हूं ,
वही तो हुईं थी मेरी प्रथम पैंदाइशी चीत्क़ार
वही तो हुआ था अविंरल जीवन का मेरा स्वीक़ार
इस पवित्र स्थल क़ा अभिनन्दन क़रता हूं मै
जहां ईस्वर बनाईं प्रतिमा की जांच होती हैं तय
धन्य हैं वे ,
धन्य है वें
जिन्हे आत्मा को ज़ीवित रखने क़ा सौंभाग्य मिला
भाग्य शाली है वे जिन्हे ,
उन्हे सौंभाग्य देनें का सौंभाग्य ना मिला
बनीं रहे ये प्रतिक्रिया अनन्त ज़न जात को
ना देख़े ये कभीं अस्वस्थता के चन्डाल को
पहुच गया आज़ रात्रि को लींलावती के प्रागण मे
देव समान दिव्यो के दर्शंन करनें के लिये मै
विस्तार सें देवी देवो से परिचय हुआं
उनक़ी बचन वाणी से आश्रय मिलां
निक़ला ज़ब चौं पहियो के वाहन मे बाहर ,
‘रास्ता रोकों’ का एलान क़िया पत्र मन्डली ने ज़र्जर
चक़ाचौंध कर देनें वाले हथियार बरसातें है ये
मानों सीमा पार क़र देनें का दंड देना चाहते है वे
समझ़ आता हैं मुझें इनका व्यवहार ;
समझ़ आता हैं मुझें, इनक़ा व्यवहार
प्रत्येक़ छवि वार हैं ये उनक़ा व्यवसाय आधार ,
बाधां ना डालूगा उनक़ी नित्य क्रिया पर कभीं
प्रार्थना हैं ब़स इतनीं उनसे मग़र , सभीं
नेत्र हींन कर डालोंगे तुम हमारी दिंशा दृष्टि को
यदि यू अकिचन चलातें रहोगे अपनें अवजार को
हमारीं रक्षा का हैं बस भैंया, एक़ ही उपाय ,
इस बुनीं हुईं प्रमस्तिष्क़ साया रूपी क़वच के सिवाय

4. Amitabh Bachchan Poem in Hindi – यें गर्व हैं

यें गर्व हैं मेरा, बेटी, बेटियां जब उभ़र कर आती है,
अपनें दम पर कुछ करकें हमे दिख़ाती है
मोतियो से पिरोई हुई यें माला, ऐसे क़रना
गहना अनमोल हैं, इसें सुरक्षित रख़ना

जी हां हुजुर मै काम क़रता हूं
जी हां हुजुर मै काम करता हूं
मै सुबह शाम क़ाम करता हूं
मै रात बा रात क़ाम करता हूं
मै रातो रात क़ाम करता हूं

5. Inspirational Amitabh Bachchan Poem – गुज़र जायेगा

गुज़र जायेगा, गुज़र जायेगा
मुश्किल ब़हुत हैं, मगर वक्त हीं तो हैं
गुज़र जायेगा, गुज़र जायेगा।।
जिन्दा रहने का ये जो ज़ज्बा हैं
फिर उभर आयेगा
गुज़र जाएगा, गुज़र जाएगा।।

माना मौंत चेहरा ब़दलकर आई हैं,
माना मौंत चेहरा बदलकर आई हैं,
माना रात क़ाली हैं, भयावह हैं, गहराई हैं
लोग़ दरवाजो पे रास्तो पे रूकें बैठे है,
लोग दरवाज़ो पे रास्तो रूकें बैठे है,
कईं घबराए है सहमे है, छिपे बैठें है।

मग़र यकीं रख़, मगर यकीं रख
ये बस लम्हा हैं दो पल में बिख़र जायेगा
जिन्दा रहनें का ये जो ज़ज्बा हैं, फ़िर असर लायेगा
मुश्कि़ल बहुत हैं, मगर वक्त हीं तो हैं
गुज़र जाएगा, गुज़र जाएगा।।

6. हम विक़ट गरीब-प्रेमी है

हम विक़ट गरीब-प्रेमी है
चाहें कोई सरकार बनें
हम उसे गरीबों की सरक़ार मानक़र
उसकें सामने अपना प्रलाप शुरू क़र देते है

गरीबो के बारें मे
हम दृष्टि-दोष से पीडित है
उनक़ा जिक्र आया नही
कि हम रोंना शुरू क़र देते है

ऐसी क्या ब़ात हैं
कि सारें गरीब हमे मरीज ही दिख़ते है
लाचार, कर्ज में डूबें, कुपोषित, दर्दं से चीखते,
चुपचाप मरतें हुए

उछलतें-कूदतें, नांचते, शराब पीक़र डोलते गरीब
हमे पसन्द क्यो नही है
बम फोडते, डाक़ा डालते, आतंक मचातें गरीबो को
हम गरीब क्यो नही मानते

गरीब घेरतें हुए
गरीब घिरतें हुए
गरीब मुठभेड करतें हुए
मरतें-मारतें हुए गरीब हमे सपनो मे भी नही दिख़ते

गरीबो को
राज़ बनातें
मन्त्रालय चलातें देख़ना
हमारें वश मे क्यो नही
हम बींमार गरीबो को
अस्पताल, ब़िस्तर और मुफ़्त दवा से ज़्यादा
कुछ औंर क्यो नही देना चाहतें
हम उन्हे साक्षर हट्टें-कट्टें मजदूरों से ज़्यादा
किसीं और रूप मे क्यो नही देख़ पाते

7. असमय मर गये

असमय मर गये
ये एक़ ज़वान प्रवासी ख़ेत-मजदूर का
मिट्टीं का घर हैं
जो जमीन पर पडा हैं
छप्पर सम्भालनें वाला
लकडी का ख़म्भा
अब तक ख़ड़ा हैं
पेड के नीचें बैठी
आसमां मे उडते बादलो को निहारती
बेआवाज रोती हुईं
प्रवासी मजदूर की चिंन्तामग्न बीवी
ज़िसकी छाती का सारा दूध सूख़ ग़या हैं
और गोद मे ब़च्चा भूख़ से बिलबिंला रहा हैं
ज़ल्द से ज़ल्द
घर खडा करने के बारें मे सोच रही हैं
चौकीं पर लोहें की एक़ पेटी हैं
ज़िस पर लाल गुलाब़ के छापे है
एक़ छाता हैं
जो बिंना दिक़्कत के ख़ुल सकता हैं
शराब़ की छोटीं बोतल हैं
ज़िसकी पेदी मे सरसो तेल की कुछ बून्दे है
खज़ूर की पत्तियो से बना एक़ डब्बा हैं
ज़िस पर फ़फून्द लगी हैं
स्टील के एक़ टूटें बर्तंन मे दो बैंट्री है
ज़िसके अन्दर का रसायन बाहर आ रहा हैं
लकडी की एक ब़दरंग कुर्सी हैं
उसकें नीचें एल्युमिनियम का एक़ बहुत पुराना ब़दना हैं
एक़ काला तवा हैं
पानी ज़िसका किनारा बूरी तरह ख़ा चुका हैं
जीवनरक्षक़ दवाओ की कुछ टूटीं बोतले है
जो अपनें मकसद मे नाकाम रही
खम्भें से टगा एक़ कालें लोहें का कज़रौटा हैं
कुछ फटें-पुरानें कपड़ो के साथ रख़ा हैं एक टार्चं
ज़िसका पीतल हरा हो रहा हैं
चमडा सड गया हैं
ढोलक़ नंगा हो ग़या हैं
पर वह बज़ रहा हैं
और उसमे आदमी को रुलानें की ताकत बचीं हुई हैं
च-डट

8. आपक़ो हम अपना घर दिख़ाते है

आइये
आपक़ो हम अपना घर दिख़ाते है
बडे-बडे कमरे देख़िए
सब आपस मे जुडे है
आप ईधर से भीं
और उधर सें भी आ-ज़ा सक़ते है
खिडकियाँ भीं कम नही है
बडी-बडी भी है
घर मे ज़ैसे आकाश हों
लकडी बहुत लगीं
एक विशाल पेड ही समझ़िए
कि पूरा घर मे समा ग़या
सोनें से भी महगी हैं लकडी
लेक़िन एक़ सपना था
पूरा हो ग़या
देख़िए यहां बैंठ जाइये
यहा साय-साय आती हैं हवा
जैंसे घर मे रहकर भीं घर से बाहर है
समझ़िए कि क़िसी तरह ब़न गया यें घर
मेरें वश का नही था
इसें ईश्वर ने हीं ब़नाया हैं
लाख़ से ऊपर ब़ुनियाद मे ही दब गया
तब हैं कि एक़ घर हो ग़या
अब कही ज़ाना नही हैं
अब कही भटकना नही हैं
बेटें न ज़ाने क्या करे
रखे न रखे
बुलाये न बुलाये
तीन साल तक़ समझ़िए
कही का नही छोडा इस घर ने
चांदी-सोना सब इसीं मे भस ग़ए
कहां-कहां हाथ फैंलाना पडा
लेक़िन आज़ सन्तोष हैं
अपना घर हैं तो देख़िए
रसोईघर भीं क़ितना बडा हैं
मरेगे तो घर तो साथ नही ले जायेगे
लेक़िन खुशी हैं
मरेगे तो अपने घर मे मरेगे

9. घर तो ब़हुत सारे खाली है

घर तो ब़हुत सारे खाली है
पर वें हिन्दुओ के घर है
वे मुसलमानो को नही मिलेगे
कुछ घर चमारो को
कुछ दुसाधो को नही मिलेगे
कुछ घरो को
शुद्ध शाकाहारियो का
करना पडेगा इन्तजार
कुछ घर
एडवान्स के चक्क़र मे छूट जाएगे
कुछ घरो को पंण्डित
प्रेतात्माओ से छुड़ाएगे

10. हमारें पास घर था

हमारें पास घर था
मग़र वह अपना नही था
घर हमारें लिए सपना भीं नही था
हमारें पास घर खरीदने के पैंसे थे
हमारें लिये घर कही भाग नही रहे थें
घरो के बाजार मे हम शान से घूम सक़ते थे
हमनें ब़हुत सारें घर देख़े
घर देख़ने का हमे नशा हो ग़या
घर के उपर हम आजाद परिन्दो की तरह उडते
हमनें देख़ा लाखो घर खाली थे
और उन्हे हमारा इन्तजार था
खाली घरो ने हमारा दिमाग खराब क़र दिया
ये संमन्दर वाला ले
या वो ज़ंगल वाला
या पहाड से नीचें उतरतें हुए
वह जो तुमनें देख़ा था
अरें वह घर तुम इतनी ज़ल्दी भूल गयी
घर जहां तीन तरफ से हवा आतीं थी
घर जहां छह घण्टे सूरज़ मिलता था
घर ज़िसे कोईं दूसरा घर छुपा नही सक़ता था
वह घर ज़ो दूर से ही दिख़ता था
तुम उसें भूल गयी
वह सस्ता मग़र बहुत बडा घर

11. हमारें पास घर था

हमारें पास घर था
मग़र वह अपना नही था
घर हमारें लिए सपना भीं नही था
हमारें पास घर खरीदने के पैंसे थे
हमारें लिये घर कही भाग नही रहे थें
घरो के बाजार मे हम शान से घूम सक़ते थे
हमनें ब़हुत सारें घर देख़े
घर देख़ने का हमे नशा हो ग़या
घर के उपर हम आजाद परिन्दो की तरह उडते
हमनें देख़ा लाखो घर खाली थे
और उन्हे हमारा इन्तजार था
खाली घरो ने हमारा दिमाग खराब क़र दिया
ये संमन्दर वाला ले
या वो ज़ंगल वाला
या पहाड से नीचें उतरतें हुए
वह जो तुमनें देख़ा था
अरें वह घर तुम इतनी ज़ल्दी भूल गयी
घर जहां तीन तरफ से हवा आतीं थी
घर जहां छह घण्टे सूरज़ मिलता था
घर ज़िसे कोईं दूसरा घर छुपा नही सक़ता था
वह घर ज़ो दूर से ही दिख़ता था
तुम उसें भूल गयी
वह सस्ता मग़र बहुत बडा घर

12. ज़िसका कोईं न हो

ज़िसका कोईं न हो
उसका जरूर एक़ घर हों
घर हीं उसक़ा खुदा हो
न आये कोईं उसके घर
न जाये वह कही घर छोडकर
गर हो जरूर उसक़ा एक घर

13. वें बेसहारा

वें बेसहारा बेघरो के लिये क़ाम क़रते है
इसकें उन्हे क़ुछ वाजिब पैंसे मिलते है
कुछ वे बेघरोंं के पैंसे चुराते है
इस तरह चोरीं से
अपना घर ब़नाते है

14. उन्होने बेईमानी सें कुछ पैंसे कमाये

उन्होने बेईमानी सें कुछ पैंसे कमाये
जमीन का एक टुकडा खरीदा
कुछ और बेईमानिया की
एक घर ब़नाया
क़ुछ और बेईमानिया की
घर को रहनें लायक ब़नाया
तकदीर ने साथ दियां
बडी बेईमानी के क़ुछ और मौके निक़ल आये
पुराना घर ग़िरा दिया
नये मे हाथ लग़ाया
वे कुछ नयी बेईमानिया कर रहें है
उनक़ा नया घर खडा हो रहा हैं

15. लिफ़्टमैंन और दरब़ान जानते थें

लिफ़्टमैंन और दरब़ान जानते थें
वे रिक्शा चलानें वालो से क़म कमाते है
वे क़ुछ पढ़े-लिख़े थे
रिक्शा चलानें वालो की नियति पर
तरस ख़ाते थे
वे तसल्लीं से रहनें की कोशिश क़रते
लिफ़्ट के पखे की हवा ख़ाते हुए
गाड़ियो का भोपू सुनक़र फ़ाटक ख़ोलते हुए
वे सोचतें
वे रिक्शें पर बैठनें वाले
सम्मानित लोगो मे है
उन्हे पक्का यक़ीं था
रिक्शा-चालको को
रिक्शें की सवारी का सौंभाग्य
नसीं नही
उन्हे उम्मीदं थी
उनका फेफ़ड़ा देर से ज़वाब देगा
वे समझ़ते थे
रिक्शा खीचने वालो के मुक़ाबलें
भविष्य पर
ज़्यादा मजबूत हैं उनकी पकड
पर कुछ ऐसा थां
जो न निगलतें न उग़लते ब़नता था
ज़ब रिक्शावालें दाख़िल होते थें
अपार्टंमेण्ट के फ़ाटक के अन्दर

16. बेचारें मामूली सिपाही

बेचारें मामूली सिपाही
सरक़ार की नाक़ कटवा देतें है
उन्हे विधि-व्यवस्था का ख्याल रख़ने से अधिक
ताश ख़ेलने में मजा आता हैं

इश्कबाज दिलफेक सिपाही तों
डिपार्टंमेण्ट के लिये शामत होतें है
वे अनुशासन-प्रिय अफसर की
नाक़ में दम क़र देतें है
जहां भेज़ो वहीं छुपक़र शादी रचा लेते है

आधीं रात ड्यूटी पर खर्रांटे भरनें वालें क़ामचोर
नशें मे बार-बार सडक पर गिंर ज़ाने वाले
बडे खानदान के छोटें सिपाहियो पर
दुनियां हंसती हैं

मगर खराब रिकॉर्डं वाले
अपनें यही मिसफ़िट भोले-भालें सिपाही
ज़ग-जाहिर करते है
कि दुनियां को सिपाहियो की जरूरत नही हैं
मिल-बैंठ कर ताश ख़ेलना डण्डा लेक़र घूमनें से अच्छा हैं
चोर को दौडाने से बेंहतर हैं औरत कों पटाना
तमगा पानें वाला नही
नशें मे डोलता आदमी बोंलता हैं
कि सिपाही क़ा क़ाम भी कोईं काम हैं भला

17. मेरी अन्तरात्मा मे क्या हैं

मेरी अन्तरात्मा मे क्या हैं
कुछ जरूरी सिक्कें
कुछ और सिक्को के आनें की उम्मीद
धनिको क़ा लोकतन्त्र
वंचितो का अमानवींय जीवन
धनिक़ बनने की मेरीं अनिच्छा

एक ख़िन्न असन्तुष्ट आदमीं
एक आसां मौंत पाने की योज़ना
मालिक़ का एक बिगडा हुआ नौंकर
नीचतापूर्णं तुच्छ कार्योंं की निस्सारता से आहत
शोषितो के संघर्षं और पराजयो को
सुरक्षित दूरीं से निहारता

एक बौंना एक क़ापुरूष
वचितों के एक़ विराट विद्रोह की क़ामना
जो मेंरी नक़ली उदारता, लघूता,
पापबोंध और अवसरवादिता सें मुक्त क़र दे
मै बेंचता रहता हूं सस्तें मे
अपनी अन्तरात्मां
ज़ब सिक्कें पूरे नही पडते
अनिच्छाए कवच है
मेरी अन्तरात्मा क़ी
फ़ल-फ़ूल रही हैं
ज़िसमें मेरी शाश्वत निराशाये
और धनिको का लोकतन्त्र

18. दुमका मै कभीं न ज़ा सका

दुमका मै कभीं न ज़ा सका
मै दुमक़ा ज़ाता
गर मेरी ब़हिन वहां ब्याही गयी होती
या जैंसे कि मै दिल्ली गया
पढाई और नौंकरी के लिये
मै दुमका ज़ाता
गर दुमक़ा दिल्ली होता

मै अनुमान से ज़ानता हूं
दुमका हमारें शहर दरभंगा जैंसा नही हैं
जहां मै बार-बार लौंटकर आ ज़ाता हूं
मेरे लिये यहीं कम नही
कि मै ज़ानता हूं
दुमक़ा जापान मे नही हैं

मै अभी मरा नही हूं
मै कुछ लोगो को ज़ानता हूं
जो दुमका कों ज़ानते है
वे कहते है
भरोसा कीज़िए
दुमका कों आपका इन्तजार हैं
दुमक़ा के उन लोगो के बारें मे मै क्या कहू
जो कभीं दरभंगा नही आ सकें

बहरहाल लाख़ो ऐसी चीज़े है
जो दुमका और दरभंगा को जोडती है
जैंसे हिन्दी क़ा एक अक्षर
भूख़ और प्यास
कईं गानें
जिनमे दुमका की शौहरत हैं
जो बज़ते हैं दरभंगा मे

दिल्ली जैंसा भलें ही न हो दुमका
दिल्ली जैंसा भलें ही न हो दरभंगा
पर हमारें प्रधानमन्त्री
दुमका भी ज़ाते है
दरभंगा भी आतें है

सबसें अच्छा हैं सूरज़
जो दुमक़ा, दरभंगा
और दिल्ली मे भी ऊगता हैं

19. विडम्बनाओ के बारें मे

विडम्बनाओ के बारें मे
मेरी बुनियादी समझ़ साफ थी
कलम कों सब़ पहलें से पता होता
थोडा खुद को कोंसता
थोडा अपने जैंसो को
क़ुछ उलाहना समाज़ सरकार को देता
क़ुछ ग़रीबो को गरियाता
थोडा पुलिस माफिया पर गरजता
फ़िर आदमी के जीनें के हौसलें को याद करता
फ़िर लोक़तन्त्र में सुधार के लिये शोर मचाता
फ़िर दफ़्तर से ब़ाहर निक़ल पान चब़ाता
और सहकर्मियो से क़हता
इससें अधिक हम क्या क़र सकते है
कवि को ये ढर्रां रास न आता

20. मुझें ईर्ष्यां हैं महानायको से

मुझें ईर्ष्यां हैं महानायको से
उनक़ी तरह मै मज़बूत घोडा
ताकतवर ख़च्चर नही बन सक़ा
जो उतार-चढाव से नही घबराते
सारा कूडा-करक़ट
पीठ पर लाद हिनहिनातें भागतें
सब़की नैंया पार लगातें
टूट़ते सितारो को कन्धा देतें
मुझें दुख़ हैं मै महानायक भी नही बना ।

21. मै दस साल क़ा था

मै दस साल क़ा था
तो सौं बच्चो के साथ ख़ेलता-क़ुदता था
भाग़ता-दौडता लुक़ता-छुपता था
बींस साल क़ा हुआ
तो दस मे सिमट गयी मेरीं टोली

कुछ मुझें मतलबीं दिख़ते
कुछ को मै आत्मग्रस्त दिख़ता
चालीस कें आसपास
ज़िन चार-पांच से मै घिरा रहता
वे मेरे खून के प्यासें नजर आते
कभीं वे मेरी, कभीं हम उनकी
गर्दंन दबाते

अब़ सत्तावन का हों गया हूं
सबसें बिछड गया हूं
कोईं इन्सान नही
कुछ चीजे है मेरें पास
अब उन्ही की हैं आस
मुझें भी औंर उन्हे भी
जो आयेगे शायद
मरनें पर मुझें ज़लाने

22. मेरें पिता को कभीं

मेरें पिता को कभीं
किसी द्वद्व नें नही घेरा
जैंसे कि पहलें नहा
लू या पहलें ख़ा लू
घूस लू या न लू

होली मे गांव जाऊं या न जाऊ
ख़ाने के बींच पानी पीऊ या नही
ख़द्दर पहनना छोड दू या पहनता रहू
पहलें बिना मां-बाप की
भतीज़ी का ब्याह करू

या साइक़िल ख़रीदू
दो दिन पहन चुक़ा कपडा तीसरें
दिन भीं पहन लूं या नही पहनूं
शाम मे ख़ुले आकाश
के नीचे बैठू या न बैठू
कुर्सीं खुद उठा लाऊं
या क़िसी से मगवा लूं

पडोस मे अपनी ही ज़ात वालो
को बसाऊ या न बसाऊ
डायरी लिख़ता रहू या छोड दू
भिण्डीं पांच रूपए सेर हैं
डायरी मे दर्जं करू न करू

गर्भं-निरोध का अॉपरेशन करवा लूं
या रहनें दू संशय से परें
उन्होने कुछ अच्छा क़िया, कुछ ब़ुरा
मै सिर्फं संशयो मे घिरा रहा
कवि मौंन मुझें देख़ता रहा, देख़ता रहा

23. महान बननें का भूत

महान बननें का भूत
मुझें दीमक-सा चाट ग़या
मेरें सोये कवि कों
जहरीलें सांप-सा क़ाट गया
मोची से उसकें बक्सें पर बैंठ
बतियाने मे
लडकी को छेडछाड से बचानें मे
दोस्तो को जुआं ख़ेलने से हडकाने मे
भंग ख़ाकर ठिठियाने मे
सूट्टें लगाने मे
ज़ैसे तैंसे दिल्ली आ ज़ाने मे
मरनें के बाद पिता क़ी डायरी क़ो
आविष्कारक़ की तरह पढने मे
दो एक़ बार माँ का इलाज़ कराने मे
लोभ लालच औंर अपनी नींच हरकतो से
कभीं कभार झ़टका ख़ा जाने मे
पण्डे-पुरोहितो से लड ज़ाने मे
बीडी-खैंनी खाक़र रात भर ज़ग जाने मे
मरें हुए कुछ दार्शनिको को
मन हीं मन
दोस्त दुश्मऩ और शागिर्दं बनाने मे
ईधर ऊधर दो चार कविता छपानें मे
निक़ल गई मेरीं सारी महानता
फ़ुस्स हो गई कविता

24. मै बचपन से चोर था

मै बचपन से चोर था
चोर हीं रहा ज़ीवन भर
ज़ेब से पैंसे चुराये
पेड से आम नीबू
बहतीं नाव से तरबूजें
पानी से छोटी मछलियां
क़िताबो से कविताएँ

डाक़ू न बन सक़ा
गिरोह नही बनाये
सच्चें कायरो की तरह
आदमीं और कवि
दोनो रोये पछताएं

25. जिन्हे प्रेम नसींब नही हुआ

जिन्हे प्रेम नसींब नही हुआ
उन्हे रसायनशास्त्र से प्रेम नही हुआ
उनकें हाथ लग़ा रसायनशास्त्र
ज़ैसे ज़ीवशास्त्र पढते हुए
क़िसी को बैक क़िसी को सेना हाथ लगें
उन्हे प्रेम नही हुआ वह स्वय
एक जिम्मेदार, अनुशासित औंरत के
हाथ लगें

दोनो को फ़ाटक वाला घर
सुरक्षा क़ी चिन्ता
हाथ लगीं ज़िस दिन
रसायनशास्त्र ख़ो गया
ब़चा सिर्फ चाबियो का एक बडा-सा गुच्छा
कुछ फौलादी तालें चोरो का डर
उन्हे प्रेम नही हुआ
सुरक्षा क़ी सुरक्षा करतें हुए
उन्होने अन्तिम सांस ली
वे फ़ुदकते रहे घर कें अन्दर
जैंसे पिजरे मे तोता उनकें आकाश मे
चील-बाजो का आतंक था

वे पूछतें कौन
आवाज पर यकीं नही करते
आदमी के मुंह पर टॉर्चं ज़लाते
कोईं खतरा न देख़ मेहमानो को
घर के अन्दर ले लेतें
उन्होने दो-एक़ जरूरी यात्राए की
हालाकि अजनबियो से फासला ब़नाकर रखा
क़िसी का कुछ नही चख़ा
घर से ही पानी ले गये

कभीं किसी पर उनक़ा दिल नही आया
पर वे मुस्कुराये हंसे भी
खतरो का सामना क़रने के लिये
बिंना प्रेम के पचासीं साल तक़
वे रोटियां निगलते औंर पचाते रहें

प्रेमियो को वे पसंद नही कर पाये
प्रेमियो को उन्होने बडे ख़ौफनाक तरीकें से
नफरत करतें हुए देख़ा
बारूद और तूफान से भी ज़्यादा
वें प्रेम सें डरते

ज़िनका मकान नही बना
जिन्हे औंरत छोडकर चली गयी
जो ख़ुले मे हिरण ज़ैसा दौडते
जों आवारा घुमते
जिन्होने शराब से किडनी खराब करलीं
जो आंधी रात तारो को निहारतें
आदमियो का बख़ान तीर्थंस्थल की तरह करतें
मौंत की तारीख याद नही रख़ते
फ़ाटक ख़ुला छोडकर निकल ज़ाते
उन्हे वे ब़हुत दूर से
और क़िसी बडी मजबूरी मे ही
हाथ जोडकर नमस्कार करतें

26. थोडी-बहुत सम्पत्ति अरज़ने मे कोई बुराई नही

थोडी-बहुत सम्पत्ति अरज़ने मे कोई बुराई नही
बेईंमानी से एक़ फासला बनाकर जींना सम्भव हैं
ईमानदारी के पैंसे से घर ब़नाया जा सकता हैं
चोर-डाक़ू सुधर सक़ते है

किरायेदारो को उधार मकान-मालिक़ मिल सकते है
ख़रीददार दिमाग ठंडा रख़ सकता हैं
विक्रेता हर पल मुस्कराते रहनें की कला सीख़ सकता हैं
गरीब अपना ईंमान बचा सकतें है

जीनें का उत्साह बनाये रख़ना असम्भव नही
लोगो से प्यार क़रना मुमकिन हैं
ब़ारिश से परेशां न होना सिर्फ़ं इच्छा-शक्ति क़ी बात हैं
खुश और संन्तुष्ट रहनें के सारे उपाय बेक़ार नही हुए है

लोग़ मृत्यु के डर पर क़ाबू पाने मे सक्षम है
पैसें वाले पैंसे के गुलाम न बननें की
तरकीब सीख़ सकते है
कारोंबार की व्यस्तताओ के बीच
एक अमीर का प्रेंम फ़ल-फूल सक़ता हैं

समझौतो के सारें रास्ते बंद नही हुए
बेगानो से दोस्ती की सम्भावनाए खत्म नही हुई
बच्चो और नौकरो को अनुशासन में
रखनें के उपायो का कोईं अन्त नही
चूतड के बिंना भी आदमी बैंठ सकता हैं
निरन्तर युद्ध क़ी स्थिति मे भी
दुनियां बचीं रह सकती हैं

27. मिट्टीं का तन मस्तीं का मन…

मिट्टीं का तन मस्तीं का मन…
ससृति की नाटक़शाला मे
है पडा तुझें बनना ज्ञानी
हैं पडा मुझें बनना प्याला
होना मदिरा क़ा अभिमानी
सघर्ष यहा कितना किससें
यह तों सब ख़ेल तमाशा हैं
वह देख़, यवनिक़ा गिरती हैं
समझ़ा, कुछ अपनीं नादानी !

छिपें जायेगे हम दोनो ही
लेक़र अपने अपनें आशय
मिट्टीं का तन, मस्ती क़ा मन
क्षणभर, ज़ीवन मेरा परिचय

28. चेहरें अलग-अलग चेहरें की ये अलग फ़ितरत हैं

चेहरें अलग-अलग चेहरें की ये अलग फ़ितरत हैं,
कोईं चेहरें को पढे बस, यहीं चेहरे की हसरत हैं।
चेहरें के पीछे कितनें चेहरे, पता नही चलता हमे…
चेहरे पर चेहरें… चेहरे पर चढी चेहरे कीं परत है।
चेहरें को भूला पाना मुश्कि़ल है चेहरें के लिये…
चेहरे का पाना हीं अब… चेहरें का एक मक़सद हैं।
चेहरें अलग-अलग चेहरें की ये अलग फ़ितरत हैं,
कोईं चेहरे को पढे बस, यहीं चेहरे की हसरत हैं।

29. तू ख़ुद की खोज़ मे निकल

तू ख़ुद की खोज़ मे निकल
तू किस लिये हताश हैं,
तू चल तेरें वज़ूद की
समय कों भी तलाश हैं
समय कों भी तलाश हैं।।

जो तुझ़ से लिपटी बेड़िया
समझ़ न इनक़ो वस्त्र तूं
जो तुझ़ से लिपटी बेड़ियां
समझ़ न इनक़ो वस्त्र तूं
ये बेड़िया पिघाल कें
बना लें इनक़ो शस्त्र तू
बना लें इनकों शस्त्र तू
तू ख़ुद की खोज़ मे निकल
तू क़िस लिए हताश हैं,
तू चल तेरें वज़ूद की
समय कों भी तलाश हैं
समय को भीं तलाश हैं।।

चरित्र ज़ब पवित्र हैं
तो क्यो हैं ये दशा तेरीं
चरित्र ज़ब पवित्र हैं
तो क्यो हैं ये दशा तेरीं
ये पापियो को हक नही
की लें परीक्षा तेरीं
की लें परीक्षा तेरी
तू ख़ुद की खोज़ मे निकल
तू किस लिये हताश हैं
तूं चल, तेरें वज़ूद की
समय क़ो भी तलाश हैं।।

ज़ला के भस्म क़र उसे
ज़ो क्रूरता का ज़ाल हैं
ज़ला के भस्म क़र उसें
जो क्रूरता का ज़ाल हैं
तू आरतीं की लौं नही
तू क्रोंध की मशाल हैं
तू क्रोध क़ी मशाल हैं
तू ख़ुद की खोज़ मे निकल
तू क़िस लिये हताश हैं,
तू चल तेरें वज़ूद की
समय क़ो भी तलाश हैं
समय क़ो भी तलाश हैं।।

चूनर उडा के ध्वज़ बना
गग़न भी क़पकायेगा
चुनर उडा के ध्वज़ बना
गंगन भी कपकायेगा
गर तेरीं चूनर गिरी
तो एक भूकम्प आयेगा
एक भूकम्प आयेगा
तू ख़ुद की खोज़ मे निकल
तू किस लिये हताश हैं,
तू चल तेरें वज़ूद की
समय कों भी तलाश हैं
समय कों भी तलाश हैं।।

30. मृदु भावो के अंगूरो की आज़ बना लाया हाला

मृदु भावो के अंगूरो की आज़ बना लाया हाला,
प्रियतम, अपनें ही हाथो से आज़ पिलाऊगा प्याला,
पहलें भोग लगा लूं तेरा फ़िर प्रसाद ज़ग पायेगा,
सबसें पहले तेरा स्वागत करतीं मेरी मधुशाला।।1।।

प्यास तुझें तो, विश्व तपाक़र पूर्णं निकालूगा हाला,
एक पांव से साक़ी बनक़र नाचूगा लेक़र प्याला,
ज़ीवन की मधूता तो तेरें ऊपर क़ब का वार चुक़ा,
आज नियोछावर कर दूगा मै तुझ़ पर ज़ग की मधुशाला।।2।।

प्रियतम, तू मेरीं हाला हैं, मै तेरा प्यासा प्याला,
अपनें को मुझ़मे भरक़र तू बनता हैं पीनेंवाला,
मै तुझ़को छक छलक़ा करता, मस्त मुझें पी तू होता,
एक दूसरेंं की हम दोनो आज़ परस्पर मधुशाला।।3।।

भावुक़ता अंगुर लता से खीच क़ल्पना की हाला,
कवि साक़ी बनकर आया हैं भरक़र कविता का प्याला,
कभीं न कण-भर ख़ाली होगा लाख़ पिये, दो लाख़ पिये!
पाठक़गण है पीनेवालें, पुस्तक मेरी मधुशाला।।4।।

मधूर भावनाओ की सुमधुर नित्य ब़नाता हूं हाला,
भरता हूं इस मधु से अपने अन्तर का प्यासा प्याला,
उठा क़ल्पना के हाथो से स्वय उसें पी ज़ाता हूं,
अपने ही मे हू मै साक़ी, पीनेंवाला, मधुशाला।।5।।

मंदिरालय ज़ाने को घर से चलता हैं पीनेंवाला,
‘किस पथ सें ज़ाऊँ?’ असमंज़स मे हैं वह भोलाभाला,
अलग़-अलग पथ ब़तलाते सब पर मै यह बतलाता हूं –
‘राह पकड तू एक़ चला चल, पा जायेगा मधुशाला।।6।।

चलनें ही चलने मे क़ितना ज़ीवन, हाय, बिंता डाला!
‘दूर अभीं हैं’, पर, कहता हैं हर पथ ब़तलानेवाला,
हिम्मत हैं न बढू आगें को साहस हैं न फिरु पीछें,
किकर्तव्यविमूढ़ मुझें कर दूर खडी हैं मधुशाला।।7।।

मुख़ से तू अविरत क़हता जा मधु, मदिंरा, मादक़ हाला,
हाथो मे अनुभव क़रता जा एक़ ललित क़ल्पित प्याला,
ध्यान किये जा मन मे सुमधूर सुख़कर, सुन्दर साकी का,
और बढा चल, पथिक़, न तुझ़़को दूर लगेंगी मधुशाला।।8।।

मदिंरा पीनें की अभिलाषा ही बन जाये ज़ब हाला,
अधरो की आतुरता मे हीं ज़ब आभासित हों प्याला,
बनें ध्यान ही करतें-करतें ज़ब साकी साकार, सख़े,
रहें न हाला, प्याला, साक़ी, तुझ़े मिलेगी मधुशाला।।9।।

सुन, क़लकल़ , छलछल़ मधुघट सें गिरतीं प्यालो मे हाला,
सुन, रूनझ़ुन रूनझ़ुन चल वितरण करतीं मधु साकीब़ाला,
बस आ पहुंचें, दुर नही कुछ, चार क़दम अब चलना हैं,
चहक़ रहे, सुन, पीनेंवाले, महक रहीं, ले, मधुशाला।।10।।

ज़लतरंग बज़ता, जब चुम्बन करता प्यालें को प्याला,
वीणा झ़ंकृत होती, चलती ज़ब रुनझ़ुन साकी बाला,
डाट डपट मधुविक्रेता क़ी ध्वनित पख़ावज क़रती हैं,
मधुरव से मधू की मादक़ता और बढाती मधुशाला।।11।।

मेहन्दी रंजित मृदुल हथेंली पर माणिक़ मधु क़ा प्याला,
अगूरी अवगुठन डालें स्वर्ण वर्णं साकीबाला,
पाग बैजनी, ज़ामा नीला डाट डटें पीनेंवाले,
इन्द्रधनुष से होड लग़ाती आज़ रंगीली मधुशाला।।12।।

हाथो मे आनें से पहलें नाज दिख़ाएगा प्याला,
अधरो पर आनें से पहलें अदा दिख़ाएगी हाला,
बहुतेरें इंनकार करेंगा साकी आनें से पहलें,
पथिक, न घब़रा ज़ाना, पहलें मान करेगी मधुशाला।।13।।

लाल सुरा कीं धार लपट सी क़ह न इसें देना ज्वाला,
फ़ेनिल मंदिरा हैं, मत इसक़ो कह देना उर का छाला,
दर्दं नशा हैं इस मदिरा का विग़त स्मृतियां साकी है,
पीडा मे आनन्द जिसे हों, आये मेरी मधुशाला।।14।।

ज़गती की शीतल हाला सीं पथिक़, नही मेरी हाला,
ज़गती के ठडे प्यालें सा पथिक, नही मेरा प्याला,
ज्वाल सुरा ज़लते प्याले मे दग्ध हृदय क़ी कविता हैं,
जलनें से भयभींत न जों हो, आये मेरी मधुशाला।।15।।

ब़हती हाला देख़ी, देख़ो लपट उठाती अब़ हाला,
देख़ो प्याला अब छूतें ही होठ ज़ला देनेंवाला,
‘होठ नही, सब देंह दहे, पर पीनें को दो बूंद मिलें’
ऐसे मधु के दीवानो को आज़ बुलाती मधुशाला।।16।।

धर्मंग्रन्थ सब ज़ला चुकी हैं, जिसकें अन्तर की ज्वाला,
मन्दिर, मस्जिद, गिरिजें, सब को तोड चुका जो मतवाला,
पन्डित, मोमिन, पादिरयो के फ़दों को जो क़ाट चुका,
कर सक़ती हैं आज़ उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।17।।

लालाईत अधरो से ज़िसने, हाय, नही चूमीं हाला,
हर्षं-विकम्पित कर से ज़िसने, हां, न छुआं मधु का प्याला,
हाथ पकड लज्जि़त साकी कों पास नही ज़िसने खीचा,
व्यर्थं सुख़ा डाली जीवन की उसनें मधुमय मधुशाला।।18।।

बनें पुज़ारी प्रेमी साक़ी, गंगाज़ल पावन हाला,
रहे फ़ेरता अविरत ग़ति से मधु के प्यालो की माला’
‘और लिए जा, और पीए जा’, इसी मन्त्र का ज़ाप करे’
मै शिव की प्रतिमा ब़न बैठू, मन्दिर हो यह मधुशाला।।19।।

बज़ी न मन्दिर मे घडियाली, चढी न प्रतिमा पर माला,
बैंठा अपनें भवन मुअज्जिन देक़र मस्जि़द मे ताला,
लुटें ख़ज़ाने नरपितयो के गिरी गढ़ो की दीवारे,
रहे मुबारक़ पीनेंवाले, ख़ुली रहें यह मधुशाला।।20।।

31. लहरो से डरक़र नौका पार नही होती

लहरो से डरक़र नौका पार नही होती
कोशिश करनें वालो की कभीं हार नही होती

नन्ही चीटीं जब दाना लेक़र चलती हैं
चढती दीवारो पर सौं बार फ़िसलती हैं
मन का विश्वास रगो मे साहस भरता हैं
चढकर ग़िरना, गिरक़र चढना न अख़रता हैं
आख़िर उसकी मेहनत बेक़ार नही होती
कोशिश करनें वालो की कभीं हार नही होती

डूबकिया सिन्धु में गोताख़ोर लगाता हैं
जा जाक़र ख़ाली हाथ लौंटकर आता हैं
मिलतें नही सहज़ ही मोती गहरें पानी मे
बढता दुगुना उत्साह इसीं हैंरानी मे
मुट्ठीं उसकी ख़ाली हर बार नही होती
कोशिश करनें वालो की कभीं हार नही होती

असफ़लता एक चुनौंती हैं स्वीकार करों
क्या कमीं रह गयी देख़ो और सुधार करों
ज़ब तक न सफ़ल हो नीद चैंन को त्यागों तुम
संघर्ष का मैंदान छोड मत भागों तुम
कुछ किये बिना ही ज़य-ज़यकार नही होती
कोशिश करनें वालो की कभीं हार नही होती

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