Anubhav Sharma Poem in Hindi – यहाँ पर आपको Anubhav Sharma ki Kavita in Hindi में दिए गए हैं. अनुभव शर्मा जी उत्तरप्रदेश राज्य के मेरठ जिले के रहने वाले हैं. हिंदी में कविताएँ लिखना इनका शौक हैं.
आइए अब यहाँ पर Anubhav Sharma Famous Poems in Hindi में दिए गए हैं. इसको पढ़ते हैं.
अनुभव शर्मा की कविताएँ, Anubhav Sharma Poem in Hindi
1. ना करो
जुल्फें नहीं वो घटाएं हैं,
इन्हें फिजूल उड़ाया ना करो।
जानते हैं हम, तुम अप्सरा हो,
हर किसी को यूंही बताया ना करो।
बदनाम हो जाओगी तुम एक दिन,
दिल सबका यूं चुराया ना करो।
निगाहें, शराब हैं तुम्हारी,
मुफ्त में इसे पिलाया ना करो।
मुखड़ा तुम्हारा एक चांद है,
परदों में इसे छिपाया ना करो।
घटा के बीच की लाली है वो,
गुलाब होंठो से हटाया ना करो।
अब इजहार कर ही दो हमसे,
यूं बेवजह दिल बहलाया ना करो।
कब तक तारीखें बढ़ाते जाओगे,
इस तरह बहाना बनाया ना करो।
कहीं छोड़ ना दे, जान जिस्म को,
मीत तुम हमें यूं सताया ना करो।
2. वो खुश है
हमें ठुकरा कर गर वो खुश है,
तो हम शिकायत किस से करें।
अपनी ही ज़िन्दगी हो गयी हो रुस्वा
तो इनायत किस से करें।
बेवफ़ा गर वो है,
तो हम वफ़ा किससे करें।
हमारी तो ज़िन्दगी ही वो थे।
गर ज़िन्दगी ने ही,
ज़िन्दगी छीन ली,
तो शिकायत किस से करें ।
3. अटल गीत
आज दर्द बड़ा है और मेरा ये दिल छोटा पड़ गया है।
भारत के बाग़ का सबसे बेहतरीन फूल झड़ गया है।
हर सांस आज जख्मी है लफ्ज भी घायल पड़े हैं।
आज बहने से रोको ना नैना भी जिद पर अड़े हैं।
कैसा दुर्भाग्य मेरे देश का कोई तुमसा ना बन पाया।
तुमसी साफ़ सुथरी राजनीति को किसी ने ना अपनाया।
अटल जी हमेशा अटल रहे अपनी अटल बातों पर।
पाकिस्तान को हमेशा रखा इन्होंने अपनी लातों पर।
इतना अंबर भी ना बरसेगा जितनी आँख बरस रही हैं।
मेरे भारत की रूह आज अटल जी के लिए तरस रही है।
मुझे नही लगता कोई इतने बड़े कीर्तिमान को छूलेगा।
हिदुस्तान आपके योगदान को कभी भी नही भूलेगा।
मैं चाहूँगा मेरा जितनी बार जन्म हो आप प्रधानमंत्री हों।
आपकी सुरक्षा में तत्पर हमेशा ” अनुभव ” जैसा संत्री हो।
4. एक नारा
अनुभव शर्मा ने दिया है,
हमें एक नारा।
तुम मुझे खून दो,
हो… हो… हो…
तुम मुझे खून दो,
मैं दूँगा पानी का प्याला ।
तब लोगों ने कहा कि,
हो… हो… हो….
तब लोगों ने कहा कि,
तुम दे दो पानी का प्याला ।
चाहे बदले में ले लो तुम,
हो… हो… हो…
चाहे बदले में ले लो तुम,
खून की रक्तधारा ।
5. ग़ज़ल – अपने नाम में मेरा नाम जोड़ दिया
अपने नाम में मेरा नाम जोड़ दिया,
फिर जाने क्यों ये रिश्ता तोड़ दिया।
जा चुके हैं अब सभी मेरी जिंदगी से,
हैरत तो तब हुई जब तूने छोड़ दिया।
हाल ऐ दिल की किताब लगा लिखने,
तेरा जिक्र आया तो पन्ना मोड़ दिया।
सूने हाथ लेकर बैठी थी वो मंडप में,
मेहंदी की जगह मैंने लहू निचोड़ दिया।
6. गीत – मैं मदमस्त भँवरा
मैं मदमस्त भँवरा,
तू गुलाब की कली।
स्वप्न परी कोई स्वर्ग से,
आ गयी मेरी गली।
मैं मदमस्त………
देखा जब मैंने उसे,
कमाल वो कर गयी।
एक निगाहें अंदाज से,
वार हजारों कर गयी।
मैं मदमस्त………
घूम रहा आकाश मे,
बनकर भँवरा दीवाना।
मिलने को उस कली से,
मचल रहा था परवाना।
मैं मदमस्त……….
फिजाओ मे हवाओं मे,
बात ये उड़ने लगी।
चर्चा गली-गली मे,
सरे आम होने लगी।
मैं मदमस्त………..
उस कली को उसने,
मन मीत अपना मान लिया।
गीत लिखे गजलें लिखी,
प्रीत का स्वर सुना दिया।
मैं मदमस्त…………
महक उठा उपवन सारा,
इन दोनों के संगम से।
प्रेम को परिभाषित किया,
इस अद्भुत जोड़े ने।
मैं मदमस्त………..
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