दीपक सिंह की प्रसिद्ध कविताएँ, Deepak Singh Poem in Hindi

Deepak Singh Poem in Hindi : यहाँ पर आपको Deepak Singh Famous Poems in Hindi का संग्रह दिया गया हैं. दीपक सिंह का जन्म 1 जुलाई 1990 को उत्तरप्रदेश राज्य के फैजाबाद जिले के अरवत गांव में हुआ था. इनके पिता का नाम श्री मारर्कण्डेय सिंह और माता जी का नाम श्रीमती सुनीता सिंह हैं. इन्होने स्नातक राजनीति शास्त्र और हिंदी में किया हैं. वर्तमान में यह टेलीफिल्म पट कथा लेखन और कवि सम्मेलन में सक्रीय हैं.

हिंदी कविता दीपक सिंह (Hindi Poetry Deepak Singh)

Deepak Singh

1. जिसका जैसा धर्म, उसे मिले उसी का सहारा

जागो देश वासियो लेकर राष्ट्र का नारा।
जिसका जैसा धर्म, उसे मिले उसी का सहारा।।

आतंकवाद बढ़ने लगा है,
पाक के सहयोग की वजह से
आई. एस. आई. की सत्ता है,
तालिबान की आहट की वजह से
26/11 हमले का
असर अब नहीं दिखा
ऐसा न हो इसलिए
दुनिया को समझा डालो
ऐ दिल्ली के वीर जवानो,
अब आतंक मिटा डालो।

स्हनशीलता की एक हद है,
उन विधवाओं को बतला डालो
सीमा पर जो शीश सुरक्षित
उनको वापस ला डालो
हजारों भगत सिंह हैं,
यह दुनिया को दिखला डालो।
ऐ दिल्ली के वीर जवानों,
अब आतंक मिटा डालो।

अमेरिका को चोट लगी तो,
लादेन को उसने मिटा डाला
भारत के जख्मों पर उसने
नजर नहीं अब तक डाला
सीने में है लहू भारत का,
अन्तिम बिगुल बजा डालो।
ऐ दिल्ली के वीर जवानों,
अब आतंक मिटा डालो।

2. हे रघुनंदन हे जगवंदन

हे रघुनंदन हे जगवंदन,
हे रघुराई हे प्रभु हमरे।
प्रभु जगस्वामी, हे अन्तरजामी,
हे प्रभु हमरे, हे प्रभु हमरे ।

प्रभु परमेश्वर प्रभु रामेश्वर,
प्रभु हरिवेश्वर प्रभु रामेश्वर
हे कण वासी हे प्रभु हमरे
हे क्षीरवासी हे प्रभु हमरे
हे रघुनंदन हे प्रभु हमरे,
हे रघुराई हे प्रभु हमरे।

प्रभु अयोध्यापति प्रभु सीतापति
प्रभु द्वारिकापति प्रभु रूकमणीपति
हे नारायण हे प्रभु हमरे
हे वेदायंन हे प्रभु हमरे
हे रघुनंदन हे प्रभु हमरे,
हे रघुराई हे प्रभु हमरे ।

प्रभु तारनहार, प्रभु पालनहार
प्रभु रघुवर प्रभु हरिहर
हे सुखसागर हे प्रभु हमरे
हे दीनवंधु हे प्रभु हमरे
हे रघुनंदन हे प्रभु हमरे,
हे रघुराई हे प्रभु हमरे ।

3. सारंग से निकला वाण, दिगविजयी

सारंग से निकला वाण, दिगविजयी
घोर प्रत्यंचा धारी हे दिगविजयी, दिगविजयी।

तरकश से जब बाण चले, हिमखण्ड चीरता जाये
लाखों दुर्योधन हों चाहे, साहस रिसता जाये
हे भूखण्ड के स्वामी, आपदा प्रबंधन के नियंत्रक
भरूधर अब आस लगाये
हे दिगविजयी हे दिगविजयी
घोर प्रत्यंचा धारी हे दिगविजयी, दिगविजयी।

भ्रष्ट कुचित्र, दुराचारी को, चीरता जाये
निति नियम का पालन न करते, उन्हे ढूंढ़ता जाये
वो काल सर्प की भाँति चले, विनाश डगर पर बढ़े ही बढ़े
ज्ञानी भी अब आस लगाये
हे दिगविजयी, दिगविजयी
घोर प्रत्यंचा धारी, हे दिगविजयी, दिगविजयी।

क्षुब्धहृदय, रूष्ट दृगो में आस छोड़ता जाये,
ज्ञान की चमकीली रेखा में ग्रन्थ ढूंढ़ता जाये
वो नयी सृष्टि रचने को, सतजुग की तैयारी में,
सत्यता सजने को तैयार खड़ी, हे दिगविजयी दिगविजयी
घोर प्रत्यंचा धारी हे दिगविजयी, दिगविजयी।

अपने आश्रित जीवन में, प्रकाश विखेरता जाये
निःस्पंद लेकिन ईश्वरित हृदय में, रास छोड़ता जाये
वो घमंडित सागर मोड़े, अपने वेगों की धार से
सारी रचना अब आस लगाये
हे दिगविजयी, दिगविजयी।
सारंग से निकला वाण, दिगविजयी
घोर प्रत्यंचा धारी हे दिगविजयी हे दिगविजयी।

4. मैंने देखा है

मैंने देखा है,
वो लोग जो आपसे जलते हैं,
किनारा मोड़ लेते हैं ।
देखते हैं आपको एहसास तोड़ लेते हैं ।

पर नाव है कर्मठ
एवं जुझारुपन की,
कड़ी मेहनत सी पतवार लिये ।
हिमालय सा अडिग विश्वास,
तलवार की नोक सी धार लिये ।
बस अफसोस ये है
कि संघर्ष में साथ नहीं देते
पर
बुलंदी पर रिश्ता जोड़ लेते हैं
देखते है आपको एहसास तोड़ लेते हैं ।

ईष्या दोष मिथ्या,
अब रास नही तुमसे ।
निर्मल जल जैसे पत्थर
चीरोगे आस लिये ।
वक्त बिरक्त समय,
खुद समय की मोहताज ।
समय अपने अंदर बीरों के,
उत्थान पतन का राज लिये ।
बस अफसोस ये है
कि चाहें तो समय च्रक रोक नहीं पाते
लेकिन बुद्धि कुपोषित,
हाँ मे हाँ जोड़ लेते हैं ।
वे लोग जो आपसे जलते हैं
किनारा मोड़ लेते हैं
देखते हैं आपको
एहसास तोड़ लेते हैं ।

5. कहाँ से लाते हो अल्फाज

कहाँ से लाते हो अल्फाज,
हे राजनीति के सरताज ।

भारत माँ के विरोधियों के,
क्यों शीश नहीं काटते,
जो देश को चला रहे
अंदर के गुनहगार
कहाँ से लाते हो अल्फाज,
हे राजनीति के सरताज ।

नीति चले दिमाग से,
पर शासन चले तलवार से
जो हर वक्त दंश लगा रहे
तैयार बैठे गुनहगार
कहाँ से लाते हो अल्फाज,
हे राजनीति के सरताज ।

आकर्षण बोली धार से
वक्त पड़े तौबा कर ली
भ्रष्ट कुचरित्र कुपात्र,
लोगों की निन्दा कर ली ।
फंदे ना पड़े इनके गले में,
ये कैसी सरकार।
कहाँ से लाते हो अल्फाज,
हे राजनीति के सरताज ।

कार्य एवं स्वच्छ चरित्र,
अनुच्छेद उत्तरदायी हो ।
सत्य एवं संविधान के
प्रति उत्तरदायी हो ।
विवेकानन्द की वाणी को,
क्यों न बनाते नीतिआधार ।
कहाँ से लाते हो अल्फाज,
हे राजनीति के सरताज ।

6. जब सुर्दसन चले तो, कौरव का संघार करे

जब सुर्दसन चले तो, कौरव का संघार करे
वीर बढ़ें भारत के तो दुष्टों का नास करें।

जिस देश में हम रहें, उस राष्ट्र का गुणगान करें
लक्ष्मीबाई की तलवार, दुश्मन का सीना फाड़ करे
अनेक भाषाओं को हम, पूजें, हिन्दी का सम्मान करें
मंदिर बसा हृदय में हमारे, गीता का ग्यान भरे
जब सुर्दसन चले तो, कौरव का संघार करे ।

गीता बाईबिल रामायन, अच्छे आचरण की सार भरे
बिबेकानंद की धरती ये, शून्य पर ब्याख्यान करे
बिक्रमादित्य बत्तीसी सिन्घासन, चेतक की रफ्तार घरे
हमको जो कमतर आंके, हम बिश्वगुरु का मान भरे
जब सुर्दसन चले तो कौरव का संघार करे ।

मंगल पर गया यान है शक्ति का आभास लिये
अब्दुल कलाम है याद हमे, कल्पना की हिम्मत बात भरे
सियाचीन ऊंची चोटी पर, जवानों की हुंकार भरे
छाती दहले दुश्मनों की, जब लड़ने की बात करे
जब सुर्दसन चले तो, कौरव का संघार करे ।

भारत की दिलदारी दिखा, इसरो ने कीर्तिमान गढ़े
हिंदुस्तान की बढ़ती साख का चहुं, ओर देश बखान करे
सर्जिकल स्ट्राइक का दम, दुनिया में आयाम गढ़े
सुधरो तो ठीक आतंकी, या हम तुम्हारा नास करें
जब सुर्दसन चले तो, कौरव का संघार करे ।

नेता जी कह गये हैं, अधरों मे इतिहास धरे
क्या हुआ क्यों हुआ, अब हम जानने की बात करें
यह देश है हमारा, अपनी संस्कृति का ध्यान धरें
संस्कृति के मंत्रो को समझे, तो दुनिया पर राज करे
जब सुर्दसन चले तो, कौरव का संघार करे ।

एक राष्ट्र है भारत, राष्ट्र अखण्डता की साख भरे
अलगाववादियों की नीति खत्म, वे सीमा को पार करें
पूर्ब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, अमर तिरंगे को सलाम करें ।

7. सिर पर बोझ लिए चलती वो

सिर पर बोझ लिए चलती वो,
आंखों से ममता छलकाती वो ।
करुण वेदना हदय में दबाकर,
किस्मत से लड़ती जाती वो ।।

एक पेड़ की डाली पर,
गांठ लगा धोती लटकाए।
पुत्र प्रेम से सिंचित होकर,
लाल को झूला झुलाती वो,
करूण वेदना हदय में दबाकर,
किस्मत से लड़ती जाती वो ।।

केश हैं अरूझे मैले कपड़े,
पर चेहरे पर मुस्कान लिए ।
तपती धरती छाँव में चलती,
कोमल पैरों को बचाती वो,
करुण वेदना हदय में दबाकर,
किस्मत से लड़ती जाती वो।।

8. नगर के सिग्नल पर घूमे हाथ फैलाए

नगर के सिग्नल पर घूमे हाथ फैलाए।
मजलूम है मासूम है भूख कैसे मिटाए।।

गाड़ी रुकते दौड़े वो,
भूख की लाचारी में ।
जब धुतकारे उसको,
तो आंखों में पानी आए।।
दिल साफ है पर मैले कपड़े,
जो नेक बनते उसे भगाएं ।

नगर के सिग्नल पर घूमे हाथ फैलाए,
मजलूम है मासूम है भूख कैसे मिटाए।।

शाम दो चाट लगा कर,
छीने उसकी मेहनत को।
यह मंजर जो देखू मैं,
मेरा दिल तड़प जाए।।
देख इसां की शैतानी को,
खुद शैतान उसको गुरु बनाए ।

नगर के सिग्नल पर घुमे हाथ फैलाए।
मजलूम है मासूम है भूख कैसे मिटाए ।।

फुटपाथों पर टाट बिछाए,
सोने की तैयारी में।
रात भर सिसकी लेता,
मां की ममता कहां से पाए।
नींद लगे वो भूखा सो जाए,
सुबह होते ही सांसे थम जाए ।।

नगर के सिग्नल पर घूमे हाथ फैलाए ।
मजलूम है मासूम है भूख कैसे मिटाए ।।

9. पुस्तक के पृष्ठों पर जब तेरी

पुस्तक के पृष्ठों पर जब तेरी,
मुस्कान झलकती जाती है।।
मेरे दिल से उठते स्वर को,
कलम तब लिखती जाती है।।

हृदय विहवल विचलित वेदना,
आंखों में अश्रुधार भरे
मन मे तेरी याद बसाये,
लिखने को तैयार करे
तेरी मुसकाती मधुरित बोली,
कोयल सी गान करे
ये गान सुने प्रसंनचित मन को,
मुझसे मिलवाती जाती है

पुस्तक के पृष्ठों पर जब तेरी,
मुस्कान झलकती जाती है।
मेरे दिल से उठते स्वर को,
कलम तब लिखती जाती है।।

तू मानो पृष्ठों मे बैठी,
शब्दों से बात करे
तुझसे मेरा प्रेम अटल,
क्या तेरा मन बिश्वास करे
तू बागीचों के उपवन में सुंदर,
फूलों का श्रृंगार करें जब
मैं तेरा आकर्षक देखूं,
तो मुझमें रवानी आती है

पुस्तक के पृष्ठों पर जब तेरी,
मुस्कान झलकती जाती है।
मेरे दिल से उठते स्वर को,
कलम तब लिखती जाती है।।

10. इस देश की रंगत कहाँ गयी

इस देश की रंगत कहाँ गयी,
कहाँ गया वो बत्तीसी सिंघासन।
वो मीठी हिंदी कहाँ गयी,
कहाँ गया वो वेदायन।।

सदियों से आराधक की पूजा,
होती है संसार में
निजी स्वार्थ से सब जाते हैं,
देवों के दरबार में
सबको चाहत होती है,
धन दौलत की ताख में
कहाँ गयी वो शबरी भक्ति,
कहाँ गया वो सच्चा मन

इस देश की रंगत कहाँ गयी,
कहाँ गया वो बत्तीसी सिंघासन।
वो मीठी हिंदी कहाँ गयी
कहाँ गया वो वेदायन।।

अब नीति की बातें होती हैं,
गुनहगार की जुबान से
गुनाह करे कोई सजा होती है,
निर्दोषों को दरबार में
बेटी कहाँ रक्षित होती है,
रावन है गलियार में
कहाँ गया वो साधु का साधन,
कहाँ गया वो बड़ों का आराधन

इस देश की रंगत कहाँ गयी,
कहाँ गया बत्तीसी सिंघासन।
वो मीठी हिंदी कहाँ गयी,
कहाँ गया वो वेदायन।।

11. हर दिन उठ कर लगता है

हर दिन उठ कर लगता है,
कि ईश्वर ने आयु कम की।
फिर भी भ्रष्ट रहे हैं लोग,
अपनी कमजोरी अपने में हवन की।।

देखा भ्रष्टाचार के पग को चलते हुए,
बिना कुछ बोले पर चँहु ओर बढ़ते हुए।
इसे मिटाने के नारों में महज दिखावा था,
हे ईश्वर यह देख व्यथित मैं,
लोगों ने महज दिखावे में दहन की।

हर दिन उठ कर लगता है,
कि ईश्वर ने आयु कम की।
फिर भी भ्रष्ट रहे हैं लोग,
अपनी कमजोरी अपने में हवन की।।

देखा पैसों के रोब पर न्याय बिकते हुए,
दुखियारी आँखों में अश्रु का सैलाब बहते हुए।
नेताओं के ही कथनी करनी में अंतर था।
हे ईश्वर सोचा सैलाब रुके,
सूखी आंखों ने कहानी कथन की।।

हर दिन उठ कर लगता है,
कि ईश्वर ने आयु कम की।
फिर भी भ्रष्ट रहे है लोग,
अपनी कमजोरी अपने में हवन की । ।

देखा सड़क पार जाने को,
अंधे को विलाप करते हुए।
गुजरते युवाओं के दलो को,
जवानी का गुमान भरते हुये।।

मैंने इस दिशा में कई बार,
सड़क पार करवाया था।
हे ईश्वर उसके मुंह से निकलती आशीषों ने,
मेरे अंतर्मन में ठंडन की।।

हर दिन उठ कर लगता है,
कि ईश्वर ने आयु कम की।
फिर भी भ्रष्ट रहे हैं लोग,
अपनी कमजोरी अपने मे हवन की।।

12. समय से बड़ा कोई भगवान नहीं

समय से बड़ा कोई भगवान नहीं ।
सब कोशिश करते फेर नहीं पाते हैं।

उत्तर को समझाते अर्जुन, दासों का सम्मान करो ।
स्वयं दास बने दांसत का दर्द, समझ पाते हैं ।।

चाहते बल से भूधरा विजित कर ले,
पर दुखदाई कष्ट सहते काटते ही जाते हैं ।

एक वर्ष दास बने रहते हैं पांडव,
बलवान होते विधि लिखा काट नहीं पाते हैं ।।

समय से बड़ा कोई भगवान नहीं ।
सब कोशिश करते फेर नहीं पाते हैं ।।

कर्ण केशव से जाने वो कुंती पुत्र है,
उठे मन में वेदना को थाम कैसे पाते हैं ।

कर्ण जाने ग्यारह रोहणी सेना तो क्या,
यदि केशव उस ओर हम हार ही जाते हैं ।।

मां प्रेम से विचलित पांडव के जेष्ठ भ्राता,
फिर मित्रता का धर्म निभाते वीरगति पाते हैं।

समय से बड़ा कोई बलवान नहीं,
सब कोशिश करते फेर नहीं पाते है।।

वो रज ढूंढते आज भी जिनसे तरी अहिल्या,
राम नाम रज ह्रदय मे डाल नहीं पाते हैं ।।

जिस रज के बहाने केवट ने धोए हरिपग,
वो भवसागर के स्वामी को भव पार लगाते हैं ।।

केवट बोले मैं मल्लाहों से मल्लाई न लू,
तीनो लोको के स्वामी आप भव से निकालते हैं।

समय से बड़ा कोई बलवान नहीं,
सब कोशिश करते पर फिर नहीं पाते।।

13. तेरी आंखों में जब जब देखा

तेरी आंखों में जब जब देखा,
जो कशिश दिखी दिल पार गयी ।

आंखों से पढ़ा वो नजराने को,
प्यार का दम भरते हुए ।

वे एक नाव पर नहीं टिकते,
उनकी आंखों को कहते हुए।।

बस ये जानकर जब देखा,
तरंग तरंग को काट गयी।

तेरी आंखों में जब जब देखा,
जो कशिश दिखी दिल पार गई।

तुम्हें छोड़ने की आदत सी,
हर जाम मे रंग भरते हुए ।

तुम्हें परवाह नहीं किसी की,
तेरे चेहरे की हंसी को कहते हुए।।

कुछ ही पल का जब साथ देखा,
जो आह निकली मार गयी ।

तेरी आंखों में जब जब देखा,
जो कशिश दिखी दिल पर गयी।।

14. जमाने में सब कैसे आए हैं

जमाने में सब कैसे आए हैं,
कौन अपनी गलती छिपाये है ।

किसी मां ने पैदा किया है इन्हें,
तो अनाथलय क्यो बढ़ते जाये है।।

कहां से आए किसे ये मिले,
कौन इन्हे पाले न शिकवे गिले ।

जमाने के सारे दर्द ये सहे,
अनाथ से एक दिन लायक बने ।।

सोचो किसका भरोसा इऩ्हे जिलाए हैं,
कि कौन कौन गलती छिपाये है।।

बच्चे अनाथ बढ़ते जाते यहां,
क्या अपनी गलती छिपाते यहां।।

इन्हें छोड़ते लाज न आयी,
इंसानियत ने कैसे मात है खायी।।

सोचो हम कैसे भुलाये हैं कि,
हम अपनी गलती छिपाए हैं ।।

जमाने में सब कैसे हैं
कौन अपनी गलती छिपाए हैं।।

किसी मां ने पैदा किया है इन्हे,
तो अनाथलय क्यो बढ़ते जाए है ।।

15. कड़ी धूप माथे पर पसीना

कड़ी धूप माथे पर पसीना,
किसानों की कैसी तकदीर।
अन्नदाता कहते हैं इसको,
देखो लाचारी इसकी तस्वीर।।

हे शहजादों क्या नजर पड़ी,
कभी गांवो के गलियारों में।
कठिन परिश्रम कौन दिखाए,
हाथ लगे रंगदारों में।

क्या देखा है आंखों के आंसू,
और पसीने से भीगा हलबीर।
कड़ी धूप माथे पर पसीना,
किसानों की कैसी तकदीर।
अन्नदाता कहते हैं इसको,
देखो लाचारी इसकी तस्वीर।।

दोपहर तक भूखा रहे,
फिर सादा भोजन खाते हुए।
इसकी सीधी सरल जिंदगी,
फिर भी बेवकूफ बनाते हुए।

किस्मत पर लड़ता है ये,
क्या इसके लिए कोई अधीर।
कड़ी धूप माथे पर पसीना,
किसानों की कैसी तकदीर।
अन्नदाता कहते हैं इसको,
देखो लाचारी इसकी तस्वीर।।

अपने बच्चों को पढ़ाने को,
बैंक से कर्ज उठाते हुए।
लड़ते लड़ते खेतों से,
फिर मौत को गले लगाते हुए,

किसका आसरा कौन सुने,
क्या मरने से बदले जंजीर।
कड़ी धूप माथे पर पसीना,
किसानों की कैसी तस्वीर।
अन्नदाता कहते हैं इसको,
देखो लाचारी इसकी तस्वीर।।

16. मेरे अंतर्मन से उतर गयी तुम

मेरे अंतर्मन से उतर गयी तुम।
दिल में आके निकल गयी तुम ।।

जब तुमसे पहली बार मिले तो,
कुछ एहसास हुआ था ।
दिल में तेरा सिक्का चलता,
ऐसा भान हुआ था।

मेरे मन में शोले भड़काकर,
ठंडे पानी सी निकल गयी तुम।
मेरे अंतर्मन से उतर गयी तुम ।
दिल में आके निकल गयी तुम ।।

जब जब नजरें तुमसे मिलती,
राहे जैसे थम जाती।
दिल दिमाग की ना सुनता,
बस आहे सी भर जाती।

देखा गैरों के साथ में तो,
झूठ बोलते निकल गयी तुम।
मेरे अंतर्मन से उतर गयी तुम।
दिल में आके निकल गयी तुम ।

एहसास हुआ फिर भान हुआ,
फिर दिल टूटा इल्जाम हुआ।
ये प्यार मोहब्बत में जो पड़ते,
उनका शीशे जैसा हाल हुआ।

शीशे के सामने जब देखा,
तब तेरी नियत निखर गयी।
मेरे अंतर्मन से उतर गयी तुम।
दिल में आके निकल गयी तुम।

17. कलम जो लिखती शब्दों को

कलम जो लिखती शब्दों को,
मोल नहीं बस तौले शासन।
कलम क्या सस्ती या भ्रष्ट हवा,
बस मोले सिंहासन मोले सिंहासन।।

इन नैनों से सबको दिखती,
भ्रष्टाचार की महानदी
उत्थान है किसका कैसी धारा,
कलयुग की यह महासदी
जड़ें कुपोषित सबकी हैं,
कौन सुने बस मोले आसन ।।

कलम जो लिखती शब्दों को,
मोल नहीं बल तौले शासन।
कलम क्या सस्ती या भ्रष्ट हवा,
बस मोले सिंहासन मोले सिंहासन।।

व्यथित मन उदासित चेहरे,
अपने लक्ष्यों का अरमान लिए
बढ़ते पग को रोके जंजीरें,
आरक्षण का दाग लिए
कैसे हो भारत निर्माण,
सबकी गरीबी ना देखे शासन।।

कलम जो लिखती शब्दों को,
मोल नहीं बस तौले शासन
कलम क्या सस्ती यह भ्रष्ट हवा,
बस मोले सिंहासन मोले सिंहासन।।

18. एक दिन देखा जब उनको

एक दिन देखा जब उनको,
नदियों का बेग मोड़ने आये ।
पहले नदियां सूखी कर दी,
फिर नदियों को सींचने आए ।।

फिर वो पानी न चढ़ा मन पर,
जिसने कभी डुबाया था
वक्त ने ऐसी पलटी मारी,
सीखे कौन पराया था
उनकी वो आह्लादित बोली,
वो नजरों से राज खोलने आए ।।

एक दिन देखा जब उनको,
नदियों का बेग मोड़ने आये।
पहले नदियां सूखी कर दी,
फिर नदियों को सींचने आए ।।

जो हमको ईमानदारी सिखलाते,
खुद उनका ईमान ईमान न था
पर फिर भी ईमानदारी सीखी हमने,
हर झूठ को सच से मिटाने आए ।।

एक दिन देखा जब उनको,
नदियों का बेग मोड़ने आए।
पहले नदियां सूखी कर दी,
फिर नदियों को सींचने आए।।

वक्त ने उनको वो वक्त दिखाया,
जिस वक्त की फरियाद न थी
वक्त ने हर समझौता करवाया,
जिस वक्त से हमको आस न थी
वक़्त से सीखो हे मुसाफिर,
खुद वक्त ही वक्त को लेने आए ।।

एक दिन देखा जब उनको,
नदियों का बेग मोड़ने आए ।
पहले नदियां सूखी कर दी,
फिर नदियों को सीखने आए।।

19. मै एक पथिक चलते-चलते

मै एक पथिक चलते-चलते,
मेरा सब्र टूट गया ।
तब मैं एक वृक्ष के साए में ।
जाके बैठ गया ।।

जब उसने देखी मेरी दशा,
पत्ते सब उसके हिलने लगे ।

तन में ठंडक होने लगी,
मन के तार सब बजने लगे ।।

जब सिर उसके तन पे टिकाया,
पत्ते गालों पर गिरने लगे ।

फिर याद आई तो मां की,
उसी पल ये मॉ से लगने लगे ।।

फिर मुझे नींद ऐसी आयी,
उस धरती मां पर लोट गया ।

मैं एक पथिक चलते चलते,
मेरा सब्र टूट गया ।
तब मैं एक वृक्ष के साए में,
जाके बैठ गया ।।

नींद खुली आगे चला,
देखा वृक्ष को काट रहे।

मैं समझाता मुझपर हंसते,
पागल हिस्से बाट रहे ।।

उस वृक्ष के गिरते ही,
पंछी उड़कर ताक रहे ।

जिसने छांव बसेरे फल दिये,
उसके सीने को नाप रहे।।

इंसा ने जब हद कर दी,
प्रकृतिचक्र तब डोल गया ।।

मैं एक पथिक चलते चलते,
मेरा सब्र टूट गया ।
तब मैं एक वृक्ष के साए में,
जाके बैठ गया।।

20. कल्पना की कलम चला कर

कल्पना की कलम चला कर,
सोचना पड़ता है पहले ।
हर दर्द महसूस करना पड़ता है,
लिखने से पहले ।।

इतना आसान नहीं जो,
कविता बन कर आती है ।
मस्तिष्क के तरंगो में,
लहराती बलखाती हैं ।।

वह अपने भाव दिखाती है,
कर्तव्य पथ पर जाने से पहले ।

कल्पना की कलम चला कर,
सोचना पड़ता है पहले।
हर दर्द महसूस करना पड़ता है,
लिखने से पहले ।।

प्यार वियोग दुख जो टीस बनाती,
दिल में आती है ।

यह अपने महसूसो से क्या-क्या,
एहसास दिलाती है ।।

हुबहू शब्दों को पिरोना पड़ता है,
खोने से पहले ।

कल्पना की कलम चला कर,
सोचना पड़ता है पहले ।
हर दर्द महसूस करना पड़ता है
लिखने से पहले।।

21. एक छोटी सी किरण

एक छोटी सी किरण उल्टी पल्टी।
दिल में अटकी दिल से भटकी।।

नैन कटीले उनके दिखते,
जैसे मधुशाला वो ।
हिरनी जैसी चलती वो,
जैसे हिरनीबाला वो ।

उनकी अदायगी तन से है,
मन से वो है भटकी भटकी ।।
छोटी सी किरण उल्टी पल्टी।
दिल मे अटकी दिल से भटकी ।।

दिल पर बोझ बरसता उनके,
ओठो से मुस्काती वो।
सच को दफनाना चाहे,
झूठो मे इतराती वो ।।

उनकी बोली मे नखरे बहुत है,
सारी बातें भटकी भटकी।
एक छोटी सी किरण उल्टी पल्टी।
दिल मे अटकी दिल से भटकी।।

22. ऐ आजादी के जश्न में

ऐ आजादी के जश्न में,
डूबे बच्चों को देखा है ।
होठों से मुस्कान बिखेरे,
हाथों में तिरंगा देखा है ।।

पर मैंले कपड़े उसके हैं,
फटे हैं मन में मैल नहीं ।
दिल मे ईर्ष्या दोष रखने वालों को,
उस बालक को तिरंगा बेचते देखा है।।

ऐ आजादी के जश्न में,
डूबे बच्चों को देखा है।
होठों से मुस्कान बिखेरे,
हाथों में तिरंगा देखा है।।

जो बिक जाता खुश हो जाता,
आजादी का भान नहीं ।
एक मां का जश्न कैसे मनाएं
एक मॉ उसकी बीमार रही ।

खिलौनौ से खेलने की उम्र में,
उसे खिलौने बेचते देखा है।।

ऐ आजादी के जश्न में
डूबे बच्चों को देखा है ।
होठों से मुस्कान बिखेरे,
हाथों में तिरंगा देखा है

एक माँ का तुमने जश्न मनाया ।
उसी तिरंगे को सड़कों पे बहाया
तुम अच्छे कि वो अच्छा था,
जिसको धरती मां की आचँल में ।

अपनी गोद से मॉ का सिर टिकाये,
दवा पिलाकर रोते हुये देखा है।।

ऐ आजादी के जश्न में,
डूबे बच्चों को देखा है ।
होठों से मुस्कान बिखेरे,
हाथों में तिरंगा देखा है।।

23. कुछ बात नहीं होगी

कुछ बात नहीं होगी
जब वो याद नहीं होगी
ये अदाओ की दुनिया,
इसमें इरशाद नहीं होगी।।

मैंखाने में झूम रहे वो,
जाम को मुख से चूम रहे वो।
उठते ही गिर जाते हैं,
उनकी यादों में झूम रहे वो।।

ये मैंखाना कम पड़ जाए,
होश खोकर वो गिर जाए।
कोई उठाये उससे बोले,
कल ये बात नहीं होगी।।

कुछ बात नहीं होगी,
जब वो याद नहीं होगी ।
ये अदाओं की दुनिया
इसमें इरशाद नहीं होगी।।

नैन नक्श में खो जाए वो,
दिल जो जले जलाए वो ।
कहते अपनी कहानी है,
तस्वीर को उसकी चूम रहे वो।

आते हैं इन गलियों में,
वो रहते हैं रंगरलियों में ।।
कोई बताए तो वो बोले
ऐसी बात नहीं होगी।

कुछ बात नहीं होगी,
जब वो याद नहीं होगी।
ये अदाओं की दुनिया,
इसमें इरशाद नहीं होगी।।

24. यहां लोग है कितने दूषित

यहां लोग है कितने दूषित
अभिमान मिटाया जाता है ।
वो रावण भी धबराता होगा
क्यों मुझको जलाया जाता है।।

ऐ राम बनके जलाने वालों क्या,
तुम जलाने लायक हो सोचो ।
वो ज्ञानी है वो ज्ञाता है
तुम ईमान बताने लायक हो
सोचो रावण भी बनना आसान नहीं
ईमान बताया जाता है।

यहां लोग हैं कितने दूषित
अभिमान मिटाया जाता है।
वो रावण भी घबराता होगा
क्यों मुझको जलाया जाता है।

चार वेद 18 पुराणों का ज्ञाता वो,
देवलोक को बस में करने वाला।
अपनी प्रजा का रक्षक वो,
शिव भक्ति में रंगने वाला ।
हाथ जोड़े वो आके धरा पे
खड़ा हो जाता है।

यहां लोग हैं कितने दूषित
अभिमान मिटाया जाता है।
वो रावण भी घबराता होगा
क्यो मुझको जलाया जाता है।

रोता फिरता धरा पे
शिव स्तुति को रचने वाला ।
मेरे एक गुण न तुममें
राम न कोई बनने वाला।
चौदह भुवन सात खंड ब्रह्मांड के मालिक वो
उनका चोला पहनाया जाता है।

यहां लोग हैं कितने दूषित,
अभिमान मिटाया जाता है ।
वो रावण भी घबराता होगा
क्यो मुझको जलाया जाता है।

25. ऐ सियासत

१.
शर्म बेची गरीबी बेची,
सारी इंसानियत बेच खाई।
भाषा में लहजा नहीं,
सारी नजाकत बेच खाई।।

सुना है सियासत खरीदी बेची,
जमीर खरीदे कुर्सी बेची।
अपना धर्म बेचा तो ठीक था,
लेकिन देश की ईमानदारी बेच खाई।।

इंसान पशुओं से गया गुजरा क्या,
जाति पाति में एकता बेच खाई।
लड़ाने वालों ने जब पैसा फेंका,
अपनी इज्जत बेच खाई।।

सुना है इंसानों को खरीदा बेचा,
गुर्बत ही उनके अंगों को बेच खाई।
अपने को बेचा तो ठीक था,
आश्रम में छोड़ मां की उम्मीद बेच खाई।।

कलम बेची खुद्दारी बेची,
कितनी सिसकती आहे बेच खाई।
जब मौका मिला बिकने का
भारत की तरक्की बेच खाई।।

सुना है अनाथ बच्चियों को बेचा खरीदा,
उनकी मासूमियत बेच खाई ।।
लोगो की उम्मीद बेची तो ठीक था
लेकिन अपंगो की बैसाखियां बेच खाई।।

ऐ इंसान क्या क्या बेचेगा,
प्रेम इश्क मोहब्बत की सच्चाई बेच खाई।
दिल भी बेचे खरीदे तूने,
सच्चाई की ताकत बेच खाई।।

ग्रंथों को धारावाहिक ने किया दूषित,
बेदो की महिमा बेच खाई।
इतिहास में छेड़छाड़ तक ठीक था,
महाराणा प्रताप की खुद्दारी बेच खाई।।

२.
सियासत एक रार है
ना अदब है ना लिहाज है ।।
संसद में लड़ते हैं सांप नेवले जैसे,
वाह वाह राजनीति तुझमे क्या बात है ।।

सियासत अपने स्वार्थ, मे दंगे भड़काये।
मन मे कत्ल की इच्छा, फिर भी दिल मिलवाये।।
दुनिया की राजनीति मे,बहुतो मिशाल है।
वाह वाह राजनीति,तुझमे क्या बात है।।

नेताओ से झूठे, आरोप प्रत्यारोप कराये।
भेष बदला सज्जन का,वो दुर्जन निकल जाये।
तू गिरगिट से कम नही,फिर भी तेरे खूनो मे उबाल है।।
वाह वाह राजनीति, तुझमे क्या बात है।।

गेहू से महंगा पानी, किसान मरता है मर जाये।
तुमने है अरबो लूटा,तेरा पेट भर न पाये।।
लगता है भष्ट्र लोग क्या,भष्ट्राचार के लिए सरकार है।।
वाह वाह राजनीति तुझमे, क्या बात है।।

26. अल्फाजों के समुंदर से

अल्फाजों के समुंदर से,
दिलों पर राज करना है।

तुम्हें जो समझना है समझो,
मुझे ना हिसाब करना है।।

शिकवे गिले नहीं,
दोष ईष्या मिथ्या न पाले है।

सभी की सोच मे प्रेम घोलकर,
सभी को प्रेम से गुलाम करना है।।

ठोकर है मिलती संभलना फिर है,
न किसी पर इल्जाम करना है।

पग है निष्ठा का,
अटल अड़िग बिश्वास पाले है।

नीति संयम के डोरे मे बाधकर,
सभी के दिल मे मुकाम करना है।

27. भक्त सिंह

ऐ सिंह हम गुणगान करेंगे।
हरदम तेरी याद करेंगे।।
तेरी कुर्बानी है याद हमें
कसम राम की इंकलाब करेंगे।।

सुखदेव राजगुरू से बन
तेरा हरदम मान भरेंगे।
देशभक्ति हो तेरी जैसी
तुझे प्रणाम बारम्बार करेंगे।।

तेरा नाम जुबा पर रख
युवाओ में जयगान करेंगे।।
भारत माँ आँचल हो तुम
तेरी जय जयकार करेंगे।।

28. तेरे सजदे में सिर झुका नमन है

तेरे सजदे में सिर झुका नमन है
तुझे दिल से हजारों सलाम कर दूँ।
लिपटा तू तिंरगे से भारत का शौर्य
तेरे अद्भुत साहस का जयगान कर दूँ।।

लाल कहता है माँ अपनी,
जिंदगी तेरे नाम कर दूँ।
पिता कहता है एक बेटा,
क्या दूसरा कुर्बान कर दूँ।।
भारत की नारी ये कहती
बेवा हुई तो गम नहीं।
सौ पुत्र मेरे हों तो,
सवा अरब के नाम कर दूँ।।

बिचलित वेदना सी मैं
ये दर्द कहा बयान कर दूँ।
पूछती है ऐ सियासत
क्या तुझपर इल्जाम कर दूँ।।
बहनों ने जिस कलाई पर
बाँधी राखी,
वो शरीर टुकड़ों में है,
मैं कैसे पहचान कर दूँ।।

तेरे सजदे में सिर झुका नमन है
तुझे दिल से हजारों सलाम कर दूँ।
लिपटा तू तिंरगे से भारत का शौर्य
तेरे अद्भुत साहस का जयगान कर दूँ।।

29. होली-ऐ फागुन आ रही हो आना

ऐ फागुन आ रही हो आना,
आके धरा पे रंग बरसाना।
गलियों में जब रंग उड़ेंगे,
रंगों में उमंग दिखाना।।

पीला रंग प्रीति ले आना,
लाल वीरों की निशानी बताना।
हरा रंग सिंचित जमीं है,
गुलाबी को प्रेम कहानी बताना।।

ऐ फागुन आ रही हो आना,
आके धरा पे रंग बरसाना।।

जो दो लिपटे तुम मिल जाना,
नांरगी को नवधा भक्ति बताना।
नीला रंग आसमां सृजन है ,
श्वेत सत्य की निशानी बताना।।

ऐ फागुन आ रही हो आना,
आके धरा पे रंग बरसाना।

आसमां में सातों का आना,
इनको इंद्रधनुष बताना।
काला रंग श्याम का है,
भूरे को संयम सबल बताना।।

ऐ फागुन आ रही हो आना
आके धरा पे रंग बरसाना।।

सुनहरा तुम मुकाम ले आना,
तुम बैंगनी सपने दिखाना।
धूमेला रंग धरा का है,
रंगों को केवल रंग न बताना।।

ऐ फागुन आ रही हो आना,
आके धरा पे रंग बरसाना।
गलियों में जब रंग उड़ेंगे,
रंगो में उमंग दिखाना।।

30. किसान-धरा से चला गया वो राख बनकर

धरा से चला गया वो राख बनकर,
बेटियों का अरमान धरा ही रह गया।
वो किसान मरना फितरत थी उसकी,
जमीर जिंदा रखने को फरमान सा रह गया।।

जिस उबहन से कुएं से निकालता था पानी,
उसी से फांसी लगा प्रतिमान सा रह गया।
फावड़े से कटे पैर में हरा धाव था उसके,
दिल पर जख्म का बोझ लिए हरा सा रह गया।।

मंगलसूत्र भी गिरवी है पत्नी के सम्मान का,
वो राज सीने मे लिए खुद राज सा रह गया।
गुजरती हवा ने जब मुख से उठाई थी कफ़न,
मानो कहती हो देखो लोगों मै बलिदान सा रह गया।।

लड़ाई इनकी कौन लड़ेगा कैसे रहेंगी इनकी बेटियां,
इन्हें आस है रहबर से क्या मैं इंसान सा रह गया।
रोते बिलखते बच्चे हैं पर मां करती है मजदूरी,
सिंदूर मिटे हफ्तों न हुए विधाता हैरान सा रह गया।।

उम्मीद लगाये वो कैसे जो वहशी नजरों का शिकार है,
तार भी न बजते मन में अब श्रृंगार तार सा रह गया।
दीन दुखी असहायों का दर्द कौन देखता है यहां,
खद्दरपोशो दाग लिए कहते हो वो बेईमान सा रह गया।।

31. प्रेम-मुझ पर वो हंसती रही

मुझ पर वो हंसती रही यादों में याद किया है।
बात मेरे दिल की रही चुपके मे बात किया है ।।
काजल आंखों से धोया लब्ज लब्ज वार दिया।
आवाज में मिठास रही धोखे से बात किया है ।।

गांवो के ट्यूबवेल पे जब मुख धो आती थी।
मै चुपके से देखूं तो चलते में लहराती थी ।।
विष ही तो वो रखती थी प्यार के कटोरे में।
ओंठो पे तिल दिख जाता जब वो मुसकाती थी।।

बदलते हैं अब खिस्से जमाना रो पड़े रोये।
अगर प्रेम हो जाए तो निभाना हो पड़े होये।
अब आस्तीन में भी तो सांप न पलते हैं।
रहबर मेरा माझी है नाव खेना पड़े खेये।।

अब प्रेम प्यार में मन्तर भी बहुत ज्यादा है।
अब कथनी करनी में अंतर भी बहुत ज्यादा है।।
देखो मुझसे कह के वो कर भी तो कुछ गई।
मुझ पर तो खुदा की रहमत भी बहुत ज्यादा है।।

32. जिसदिन मुझसे मिलोगे राम सारा दर्द सुना दूंगा

जिसदिन मुझसे मिलोगे राम सारा दर्द सुना दूंगा।
ज़ुबां न कुछ बोलेंगी आंखों से हाल बता दूंगा।।

आंखों से जब आंसू गिरते, तेरी बिरह सताती है।
सांसे माला जप दे तेरी, तो मीरा सी बन जाती हैं।।
हे सुन लो शबरी जैसे मिलना, तो सुदामा जैसे रुला दूंगा।।

जिस दिन मुझसे मिलोगे राम, सारा दर्द सुना दूंगा।
जु़बां न कुछ बोलेंगी आंखों से हाल बता दूंगा ।।

मंदिर में तेरे आता हूं, तुझसे आस लगाता हूं ।
सामने मूरत तेरी देखूं , तुझमें रम मैं जाता हूं। ।
हे सुनो जो डूबी मेरी नैया, तो इल्जाम तुझपे लगा दूंगा ।।

जिस दिन मुझसे मिलोगे राम सारा दर्द सुना दूंगा।
जु़बां न कुछ बोलेंगी आंखों से हाल बता दूंगा।।

विरह वेदना है तेरी, बोलो अब क्या कर जाऊं।
आके मुझसे मिले न राम, चौखट पे तेरे मै मर जाऊं।
हे दीन दयाल दया के सागर, तुझपे ही जीवन लुटा दूंगा।

जिसदिन मुझसे मिलोगे राम सारा दर्द सुना दूंगा
जु़बा न कुछ बोलेंगी आंखों से हाल बता दूंगा।।

33. प्रभु सबको फंसना यहां तुम्हरे बुने जाल में

प्रभु सबको फंसना यहां तुम्हरे बुने जाल में।
कोई दौलत में कोई शोहरत में कोई फंसा जंजाल में ।।

इस जाल के अंदर कम है खुशियां, मुक्ति जाल के पार है।
इस मायाजाल को रचने वाला, बैठा गगन के पार है।।
राम नाम की शक्ति इतनी, कितने तरे इस नाम में ।।

प्रभु सबको फंसना यहां तुम्हरे बुने जाल में।
कोई दौलत में कोई शोहरत में कोई फंसा जंजाल में।

जिन पैरों से तरी अहिल्या मुनि शाप उन्हें वरदान लगा।
माया में जब उल्झे नारद प्रभु को नारद शाप लगा।
राम रूप में आए प्रभु तब पाप मिटाने संसार में।

प्रभु सबको फंसना यहां तुम्हरे बुने जाल में ।
कोई दौलत में कोई शौहरत में कोई फंसा जंजाल में ।।

जिस धाम में बैठे हनुमंत, अजर अमर वरदान मिला ।
सरयू जी मे लुप्त हुये प्रभु तब सरयू को मान मिला।
यह नगरी प्रभु प्रिय धाम आके पाप मिटे इस धाम में

प्रभु सबको फंसना यहां तुम्हरे बुने जाल में
कोई दौलत में कोई शौहरत में कोई फंसा जंजाल में।।

34. मर्यादा पुरुषोत्तम का, यह धाम हो गया

मर्यादा पुरुषोत्तम का, यह धाम हो गया।
राम चले पथ पे, पथ राम हो गया।
आज सजी संवरी अयोध्या को देख लो।
इतिहास के पन्नों में, अमर नाम हो गया।।

चौदह कोशी पंच कोशी, हम चलते हैं।
मोतियों की माला में, राम ढूंढ़ते हैं।।
राम राज आ गया, राम आ रहे हैं।
अहिल्या तरी पग से, वही रज ढूंढते हैं।।

दीप जले जलते रहे,मन मिलाकर रखना।
सांस चले चलती रहे, लौ जला के रखना।।
राम जन्मभूमि सदा राम की रहेगी।
ईंट पे ईंट चढ़ती रहे, जय बना के रखना।।

है आर्दश जो राम के, कोई चल न सकेगा।
चलना भी चाहे राम जैसा, बन न सकेगा।।
कैकयी मातु से राम, आके गले बन गये।
अब भरत जैसा भाई, कोई बन न सकेगा।।

प्रियतम विरह में, राम ऐसे क्षुब्ध गये।
सांसे रूकने लगी, कंठ अवरूद्ध हो गये।
भगवान आके पीड़ा झेल गये धरती पे।
जब स्वमं राम राम के, बिरुद्ध हो गये।

35. मर्यादा पुरुषोत्तम हैं राम

मर्यादा पुरुषोत्तम हैं राम, नबी की दृष्टि देखो।
प्रेमचंद की ईदगाह, रसखान की भक्ति देखो।
शांति का संदेश है, शांति से है कहना,
नबी में राम दिखते, जो राम में नबी देखो।।

सच्चा मुसलमान अयोध्या से ही जीता है।
एक हाथ में कुरान, दूसरे में गीता है।।
कुछ लोगों को छोड़ो, दूध भात समझ लेना,
राम जी के वस्त्रों को, रफी ही तो सीता है।।

देशभक्ति धर्म हित रीति मीत सभी है।
ये मेरा भारत है, यार दोस्त सभी है।
कल भी देखा है गले मिलते हुये,
अंजान की आ़वाजों में राम राम सभी है।।

36. झांसी चण्डी हो तुम बाला

सिसक सिसक कर रोने से
घुट घुट तड़पोगी तुम बाला।।
उठो चलो तलवार उठाओ,
झांसी चण्डी हो तुम बाला।

रौद्र रूप काली हो,
जो देखें राक्षस डर जाए।
एक बार जो ताड़व कर दो,
नीच निराधम मर जाएं।

इतनी शक्ति सबल होकर,
ऐसे न बैठो तुम बाला।

जौहर करने की रात गई,
अमरता की वो बात गई।
तुम कित्तूर की रानी चेन्नम्मा,
अब संविधान से आस गई।

भीकाजी कामा सी जैसी,
उठकर गरजो तुम बाला।।

रोज कहीं प्रताड़ित होती,
कहीं जली सी नारी होती।
राक्षसो में पड़ जाती,
कहीं मरी सी नारी होती।।

अरूणा आसफ सी उठ करके
क्रांति जगा दो तुम बाला।।

राक्षस अत्याचारी भी,
ये नीच कर्म न करते थे।
बेद ज्ञान और तप करके,
हरि के हाथों मरते थे।

इसां जानवर जो बनते
इनका बध करो अब तुम बाला।
उठो चलो तलवार उठाओ,
झांसी चण्डी हो तुम बाला।

37. अवध की होली

देवता भी तरसते हैं, हनुमत हुंकार करते हैं।
झुका के शीश चरणों में, जयकार करते हैं।।
सतरंगी चुनर ओढ़े, अवध की शान तो देखो।
अवध जैसी होली कहां, यही सरकार रहते हैं।।

प्रेम का रंग मीरा है, प्रेम का रंग राधा है।
गुलालो की महफिल में, लगा रंग आधा आधा है।।
चहुंओर दिशाओं में अवध की होली है आज।
रंग लगाये राम जी, मुस्काते आधा आधा है।।

38. ओंठो पे बात जो दबी रह गई है

ओंठो पे बात जो दबी रह गई है
उभारों न उसको कसम दे रहे हैं।

तेरी यादों को दिल में बसा कर,
अबतक रहमो करम दे रहे हैं।।

जिन गलियों से जुगरे थे तुम,
आबो-हवा वो अहम दे रहे हैं।।

दफ़न हो तो कैसे दिल की वो बातें
रिस रिस कर जो जख्म़ दे रहे हैं।

ओंठो पे बात जो दबी रह गई है
उभारों न उसको कसम दे रहे हैं।

तेरी यादों को दिल में बसा कर,
अबतक रहमो करम दे रहे हैं।।

मिलते तो तुमसे कहना था हमको
तुम्हीं को ही सातो जन्म दे रहे हैं।।

मिलना न होगा तेरा अब हमसे
प्रेम बिरह जब सनम दे रहे है।।

ओंठो पे बात जो दबी रह गई है
उभारों न उसको कसम दे रहे हैं।

तेरी यादों को दिल में बसा कर,
अबतक रहमो करम दे रहे हैं।।

बेहरम ये दुनिया समझे न बाते
बातों को मन में मनन कर रहे हैं।

मोहन से राधा बिछड़ी हो जैसे
प्रेम के मंदिर में हवन कर रहे हैं।।

ओंठो पे बात जो दबी रह गई है
उभारों न उसको कसम दे रहे हैं।

तेरी यादों को दिल में बसा कर,
अबतक रहमो करम दे रहे हैं।।

39. नंगे अपने नंगेपन को

नंगे अपने नंगेपन को,
ऐसे नंगा करते हैं।

जैसे विवशता न पहचाने,
अपनों की छाती दलते है।।

सर्वे भवन्तु सुखिन: क्या जाने,
भक्ति गिद्ध से ही करते हैं।।

जिस धरती का अन्न है खाते,
गद्दारी सिद्ध उसी से करते हैं ।।

विवेकानंद की वाणी को,
छोड़ के दंगा करते हैं।।

नंगे अपने नंगेपन को,
ऐसे नंगा करते हैं।

यदा यदा ही धर्मस्य के देश मे,
वे ही संन्यासी मार गये।।

जाहिल अपने जाहिलपन में,
इसको उसको तार गये।

अब्दुल कलाम के आदर्शों को,
दिनभर गंदा करते हैं।।

नंगे अपने नंगेपन को,
ऐसे नंगा करते हैं।

जब मुंह खोले जब जब बोले
हर वक्त कुन्ठा सी लगती है।

ये धरती पर जीवित है कैसे,
हमीद की उत्कंठा सुलगती है।।

आजाद की आजादी को,
नंगा बस नंगा करते हैं।

नंगे अपने नंगेपन को,
ऐसे नंगा करते हैं।

40. जिंदगी की पटरी पर

जिंदगी की पटरी पर मौत की रेल दौड़ गई।
चलते हुए राहों में सांसें दम तोड़ गई।।

मांओ की गोदी में बच्चे हैं,
सिर पर है गठरी थमी।
अपने ही पांवों में छाले पड़े हैं,
दिल में आह है जमी।।

चांद छिपा काली रातों में,ममता भी दम तोड़ गई।
जिंदगी की पटरी पर मौत की रेल दौड़ गई।।

किसी की आंखों में है आंसू,
कोई दर्द से रोता है।
सुई से भारत को बुनने वाला
ये कैसी पीड़ा सहता है।।

सूरज ढलता है फिर उगता, किरण को सांसें छोड़ गई।
जिंदगी की पटरी पर मौत की रेल दौड़ गई।।

दुनिया में है मौत का तांडव,
दर्द ही दर्द को निगलता है।
चारों ओर है इबादत रूठी,
छोटा बच्चा बिलखता है।।

थमी सी है जिंदगी जो चलती, सबकी राहें मोड़ गई।
जिंदगी की पटरी पर मौत की रेल दौड़ गई।।

41. राम का घर है बनता

(अयोध्या पर आधारित एक कविता)
राम का घर है बनता, जो सबके दिल में बसता।
हमे तो एक दिन अब कल्प सा है लगता।।

स्वर्ग में हलचल ब्रह्मा भी आयेंगे।
अयोध्या में जो हनुमत साक्षी बन जायेंगे।
शिव भी कैलास से देख रहे सब कुछ,
प्रयागराज आके यहां शीश झुकायेंगे।।

गंधर्व भी है नाचते, शिव का डमरू बजता।
राम का घर है बनता जो सबके दिल में बसता।।

आसमां में देखना तो इन्द्र खड़े होंगे।
आस्था से दिलों में तो बिंदु बने होंगे।
मां सरस्वती के वीणा से तान निकलेगी।
तीर्थो का जल लिए तो सिंधु खड़े होंगे।।

हमे तो अपने राम का नाम ही है जचता।
राम का घर है बनता जो सबके दिल में बसता।।

सिर पर सियाराम का नाम लिखा होगा।
केसरिया सीने पर राम लिखा होगा।
अयोध्या केसरिया रंग में रंग जायेगी।
राम राम राम राम, राम लिखा होगा।।

चौदह भुवनो में राम का नाम बसता‌।
राम का घर है बनता जो सबके दिल में बसता।।

42. ग़म के सागर में बैठकर हंसी न दो

ग़म के सागर में बैठकर हंसी न दो।
दिल को तोड़ा है तो दिल्लगी न दो।।
अपनी आंखों से रुसवा करने वाले,
मेरी आंखों को झूठी तसल्ली न दो।।

ये तो कहता नहीं मर जाऊंगा मैं।
तेरी यादों को सह न पाऊंगा मैं।।
तेरी मासूमियत भरे चेहरे पर,
एक अपना निशा छोड़ जाऊंगा मैं।।

मोहब्बत भरे इस दिल में मेरे,
इस तरह ख़ामोशी से मुश्किल न दो।
अपनी आंखों से रुसवा करने वाले,
मेरी आंखों को झूठी तसल्ली न दो।।

ये तो बातें हैं जी लेते हैं सब।
कतरा कतरा जख्म पी लेते हैं सब।
मैं गुजरता हूं जब भी गलियों से,
तेरा आशिक मुझे कह देते हैं सब।

तेरी यादों में जी लूंगा मैं।
मेरे ख्वाबों में अपनी उपस्थिति न दो।
अपनी आंखों से रुसवा करने वाले,
मेरी आंखों को झूठी तसल्ली न दो।।

43. जब दुश्मन सरहद पर आये खून खौलने‌ लगता है

जब दुश्मन सरहद पर आये खून खौलने‌ लगता है।
प्रत्यंचा राम चढ़ाते है, भूतल हिलने लगता है।
मैं मृत्यु से नहीं डरता मृत्यु हमारी दासी है
भारत मां की जय कहकर दुश्मन की गर्दन काटी है।

राजनीति की कालिख में सब काला काला दिखता है।
वर्दी से लेकर हथियारों तक बस घोटाला दिखता है।

जब शहीदों की तस्वीरो पर कोई लौ जलती है।
है धरती मां रोती एक मां की सांसें बुझती है।।
तख्तो ताज पर जो बैठे हैं, वो फूल चढ़ाते आये हैं।
या हमें बताओ किसी नेता ने अपने लाल गंवाए हैं।

जिस दिन खादी के घर का लाल तिरंगे से लिपटा होगा।
उस दिन जो खींचे तिरंगे की डोर, गर्व में दर्द सिमटा होगा।।

शौर्य शिवाजी की धरती से राणा का भाला चलता है।
हल्दीधाटी की मिट्टी मे भारत का लाल मचलता है।
इस देश का चेतक भी अपना धर्म निभाता है।
बल पौरुष के इस रण में अभिमन्यु मारा जाता है

उस दिन दाग़ न होंगे दामन पर, गद्दारों की हस्ती मिट्टी होगी
जिस दिन नेताओं के दरबारो में, हल्दीघाटी सी मिट्टी होगी।।

नेताओं के मन मंदिर मे, जब भारत का आसन होगा।
तब न्याय, धर्म, ज्ञान, दया के पांवों का सिंहासन होगा
उस दिन फौजी के हाथों की लकीर मात खा जायेंगी।
जब संविधान के रथ पर जनता माधव को बैठायेगी।

तब गान्डीव अपने टंकार से दुश्मन मे आहि भरेगा।।
जब हर फौजी अर्जुन बनकर दुश्मन मे त्राहि करेगा।

तब भारत के बच्चे बच्चे को, इतिहास बताया जायेगा।
अश्लीलता को ताक चढ़ाकर अटृहास कराया जायेगा।
तब मां के गर्भ में ही बच्चा, भक्त प्रहलाद बन जायेगा।
मर्यादित पला बढ़ा तो वह, स्वमं आजाद बन जायेगा।।

तब कोई मां अपने बच्चो में महाराणा सा संस्कार भरेगी।
उस दिन ही कवियो की कविता उसका जयकार करेंगी।।

भजन

मेरे राम मुझको तुमसे काम बहुत है।
सुना है दुखों में तेरा नाम बहुत है।

मेरे सखा भी हो दयालु भी हो तुम।
कण में भी रहते हो हृदयालु भी हो तुम।
न आते तो तुम संदेशा ही भिजवाते।
दीनानाथ भी हो कृपालु भी हो तुम।।
तेरे चरणों की धूल में,
तरी अहिल्या का नाम बहुत है।।

मेरे राम मुझको तुमसे काम बहुत है।।
सुना है दुखों में तेरा नाम बहुत है।।

सबकी भावना पहचानते हो तुम,
जो मन में है वो जानते हो तुम,
सुना है दीनो के दयाल भी तुम हो
फिर पीड़ा मेरी भी जानते हों तुम।।
आके बैठा हूं,
तेरे दर पर आराम बहुत है।।

मेरे राम मुझको तुमसे काम बहुत है।।
सुना है दुखों में तेरा नाम बहुत है।।
आज इस दर से खाली हाथ जाऊंगा।
तेरी ही जग हंसाई मैं नाथ पाऊंगा।
यह तो मुझको बुलाओ अपने धाम में।
जहां आकर मै तेरा हाथ नाथ पाऊंगा।।
अब क्या कहूं,
बैठा मन मे अविराम बहुत है।
मेरे राम मुझको तुमसे काम बहुत है।।
सुना है दुखों में तेरा नाम बहुत है।।

गीत

तेरे जाने का ग़म सहूं तो कैसे सहूं।
ऐ हीर तेरे बिन जियूं तो कैसे जियूं।।

दिल की जुदाई सह पाता नहीं हूं।
घुट से हूं जिंदा कह पाता नहीं हूं।
मर जाऊंगा ये तो कहता नहीं
मिट जाऊंगा कह पाता नहीं हूं।।

दिल पर लगा
जो जख्म सहूं तो कैसे सहूं।

तेरे जाने का ग़म सहूं तो कैसे सहूं।
ऐ हीर तेरे बिन जियूं तो कैसे जियूं।।

इस दिल का जख्म भरता नहीं है।
तेरे बिना कोई सिल सकता नहीं है।।
जो मुझे देखने के बहाने ढूंढते थे।।
अब निकलते हैं तो पता चलता नहीं है।।

वादे निभाने की,
कमसे सहूं तो कैसे सहूं।।

तेरे जाने का ग़म सहूं तो कैसे सहूं।
ऐ हीर तेरे बिन जियूं तो कैसे जियूं।।

गीत

मुझमें तुम समा गये दिल मे अक्श मिला गये।
किमाम सा अपना मुझमें इश्क मिला गये।।

हबीब सी छांव मांग ली मुझसे।
बेजान में जान डाल दी जैसें।।
तेरे इश्क में दिल पे वार हो गये।
साजिशों में तेरे शिकार हो गये।

तेरे ओंठो के छुवन ही
मुझमे इश्क मिला गये।

मुझमें तुम समा गये दिल मे अक्श मिला गये।
किमाम सा अपना मुझमें इश्क मिला गये।।

हीर मैं जियू कैसे छोड़ गये तुम।।
सभी वादे कसमें भी तोड़ गये तुम।
मुझमें अपना आशियाना बनाकर
इसदिल को रोता क्यूं छोड़ गये तुम।।

मेरी सांसों में अपना
तुम अक्श मिला गये।।

मुझमें तुम समा गये दिल मे अक्श मिला गये।
किमाम सा मुझमें अपना इश्क मिला गये।।

तुझ बिन कैसे जी पाऊंगा।
मेरी हीर गई मर जाऊंगा।
तू हंसती रही मैं रोता रहा।
इस इश्क मे राझे बन जाऊंगा।

मेरे इश्क में तुम
क्यो रश्क मिला गये।
मुझमें तुम समा गये दिल मे अक्श मिला गये।
किमाम सा मुझमें अपना इश्क मिला गये।।

गीत

तेरे इश्क में डूब कर वो मंजर दिख रहा।
दिल में घुसा प्रेम का खंजर दिख रहा।

मोहल्ले में गदर है तुमसे प्यार कर गये।
कई ब्यायफ्रेन्ड तेरे तुझपर हम मर गये।
अब छोड़ो इतराना जान बात मान लो।
बातों में तेरी डूबा न ऐसे मेरी जान लो।।

अरे प्यासा तेरे प्यार मे समुंदर दिख रहा।
तेरे इश्क में डूब कर वो मंजर दिख रहा।
दिल में घुसा प्रेम का खंजर दिख रहा।

हमरे प्यार में तुम न भूल करो बबुआ।
जाके सेटिंग कहीं और करो बबुआ।।
हमरी लिस्ट में वेटिंग पड़े हैं कितने
आशिकी में अपने न फेल करो बबुआ।।

तेरे इश्क में सवार दिल का पैसेंजर दिख रहा।।
तेरे इश्क में डूब कर वो मंजर दिख रहा।
दिल में घुसा प्रेम का खंजर दिख रहा।

तेरे हुस्न पर बैनर छपवा देंगे।
मानी जो तू न नाम लिखवा देंगे।।
लो हम मान गये तेरे इजहार पर
दिल हार गये सोना के प्यार पर

अरे तेरे रंग में डूबा ये अंजरपंजर दिख रहा।।
तेरे इश्क में डूब कर वो मंजर दिख रहा।
दिल में घुसा प्रेम का खंजर दिख रहा।

हम प्रधान से बोले

हम प्रधान से बोले हमको भी जादू सिखाइये।
पांच साल में हमारी साइकिल को फॉर्च्यूनर बनाइये।।

वो धबरा गये, अकेले में आ गये।
जो हमारी कालोनी से बीस हजार खा गये।
वे बोले साइकिल को मोटरसाइकिल बना कर दिखायेगे।
यह सुनते ही हम फिर से प्रधान के झांसे में आ गये।।

तभी कुछ लोग बोले अपना मुंह खोले
उनको मुर्गा खिलाया कम से कम हमको कद्दू खिलाइये।।
पांच साल तक हमरे जाब कार्ड में पैसा डलवाइये।

एक वोटर के घर पर दोनों उम्मीदवार टकरा गये
तभी देशीदारू की शीशी लिए रोजगार सेवक आ गये।
जो सुबह पिये पड़े थे वे फिर लाइन में आ गये।
रोजगार सेवक भी सबको दो दो शीशी पकड़ा गये।।

कुछ बेवड़े के लीडर डोले
और दूसरे उम्मीदवार से बोले।

वोट चाहिए तो देशी नहीं इंग्लिश का जादू दिखाइये।
कम से कम जीतने पर मुफ्त में पीने का ठेका खुलवाइये।

हमने प्रधान से पूछा दिखते नहीं सब शैचालय कहां गये।
वे बोले! तुमसे क्या छिपाये, तुम मेरे मन को भा गये।
हम रोज़गार सेवक और विडियो मिलकर सब लैट्रिंग खा गये।।
हम बोले! दस मीटर के खड़ंजे पर अस्सी ट्राली माटी गिरवाते हो
इतना लूटा है फिर भी धरती मां से गद्दारी निभाते हो।

हम दोबारा बोले राजनीति के सारे तंत्र बताइए।
कैसे कैसे क्या लूटा सब मंत्र सिखाइए।

तब हम प्रधान के घर के अंदर आ गये।
और घर में लगे विदेशी टाइल्स हमें भा गये।
हम बोले वाह क्या विकाश किये हो अपना।
वे बोलें! पूरी सरकार हजम कर लें ऐसा पेट है अपना।।

हमरा माथा ठनका ये हमें जादू सिखायेंगे।
फॉर्च्यूनर की बात छोड़ों साइकिल भी हजम कर जायेंगे।

तभी रोज़गार सेवक बोले इक बात बताइये।
मेट बनोगे नरेगा का मिल-बांट के पैसा लूट लूट खाइए।

यह सब सुनते ही हम तिलमिला गये।
कैमरा की रिकार्डिंग लिये न्यूज चैनल पर आ गये।
फिर भष्ट्राचार का मुदकमा दर्ज हो गया।
और फिर प्रधानी का चुनाव मर्ज हो गया।।

रूपरेखा में सब पश्त हो गये
पैसे के आगे सबको दस्त हो गये।।

हम बिल्लू भैया से बोले कुछ जादू दिखाइये।
तुम भी उम्मीदवार हो कुछ हाल चाल बताइए।।

पिछले प्रधान का कई लाख खर्चा हो गया।
बिल्लू भैया के नाम का एक रात में ही चर्चा हो गया।
पिछली रात पिछले प्रधान दौड़ दौड़ के हाफ गये।
इधर बिल्लू भैया पैर पकड़कर दो दो हजार बांट गये।

जब नतीजा आया तो प्रधान विहोश हो गये।
बिल्लू भैया मुस्कुराते हुए मदहोश हो गये।।

हम बिल्लू भैया से बोले हमको रोजगार सेवक बनावाइये।
हमीं कुछ काम कर लें आप पांच साल जादू दिखाइये।।

प्रेम-संग्रह

१.

मैं हूँ प्रेम में रहता वो नफरत में रहती है।
मैं दिल मे दरिया बहाऊँ, वो दरिया से बहती है।।
अजब सी फितरत और क्या अंदाज है उसका।
जब मैं अपनी सुध खो दूँ वो बेसुध रहती है।।

२.
अहसासों की सीमा कितनी जानी पहचानी है।
ये तेरी भी कहानी है मेरी भी कहानी है।।
उन्हें देखते ही जब नजरों ने बगावत कर दी।
कभी इस ओर जवानी थी अभी उस ओर जवानी है।।

३.
एक टीस है दिल में किसे ब्यान कर दूँ।
एक दिल है किसके किसके नाम कर दूँ।
चुभन चुभती है चुभ जाये क्यों इल्जाम कर दूँ।
दिल धड़कता है न धड़के बस जिंदगी तेरे नाम कर दूँ।।

राधेय ही रहने देते

(दानवीर कर्ण की मनोदशा)

राधेय ही रहने देते, क्यों मन में ऐसा तीर दिया।
कुंती पुत्र बताकर, मन में जाने कैसा पीर दिया।।

हे माधव मैं क्यू जन्मा जब गंगा में बहाना था।
सूर्यपुत्र को सूतपुत्र ही जब सबको बतलाना था।
भगवन तुम अर्जुन के सारथी मैं ही मारा जाऊंगा।
मां को दिया वचन और अनुजो से प्रीति निभाऊंगा।

मेरे तीरों की धार कुंद कर, मन में ऐसा तीर दिया।
कुंती पुत्र बताकर मन में जाने कैसा पीर दिया।।

कुंती मां भी तो मुझसे स्वार्थ निभाने आई थी।
अपने पुत्रों का जीवन लेकर पुत्र बताने आई थी।
कल जब युद्ध होगा कर्ण किसको मर्म बतायेगा।
वचनो से जो बंध गया है वो कैसे धर्म निभायेगा।

मेरे इन सब प्रश्नों ने मन को मेरे अधीर किया।
कुंती पुत्र बताकर मन में जाने कैसा पीर दिया।

एकलव्य का कटा अंगूठा, माधव भूल नहीं सकता।
धरती मां का दिया हुआ, वो श्राप तौल नहीं सकता।
ज्ञान सीखने पर भी जो परशुराम से श्राप मिला।
कवच कुंडल न रहे तन पर जाने कैसा पाप मिला।

मेरे स्वजनो की माता ने मन को मेरे अधीर किया।
कुंती पुत्र बताकर मन में जाने कैसा पीर दिया।

इन श्रापों के रथ पर चढ़कर लड़ने रण मे जाऊंगा।
स्वमं सारथी भगवन है मै उनके कण को पाऊंगा।।
वाह वाह जब माधव बोले कर्ण तीर चलाता जाता है।
स्वमं कृष्ण हनुमत है बैठे, रथ पीछे हटता जाता है।।

भाग्य‌ कैसा रचा विधाता क्यो है ऐसा पीर दिया।।
कुंती पुत्र बताकर मन‌ में जाने कैसा तीर दिया।।

यदि वचनो से बंधता न तो अपना धर्म निभा देता।
कुंती मेरी मां न होती तो भीम को भी सुला देता।।
इन श्रापों के रथ पर चलकर अर्जुन को दिखला देता।
सारथी भगवन तेरे होते धर्मराज को बंदी बना देता।।

जरगता है अब अर्जुन देखो,मुझे ही अधम शरीर दिया।
कुंती पुत्र बताकर मन में जाने कैसा पीर दिया।।

निहत्थे होकर कर्ण को जब अर्जुन के बाण लगे।
कुंती मां तो खुश होगी अब जाने को प्राण लगे।
एक साथ ही सब श्रापो ने अपनी शक्ति दिखाई है।
कर्ण को मारने के लिए यह कैसी नियति बनाई है।।

मैं ही मैं न हो पाया अब आंखों ने नीर दिया।
कुंती पुत्र बताकर मन में जाने कैसा पीर दिया।।

प्रश्न पूछता है कर्ण वह कैसे अधर्मी हो सकता है।
कवच कुंडल इन्द्र मांग ले वह धर्मी हो सकता है।।
मरता हो पर धर्म निभाये जो दांतों को दान करें।
माधव के झूठा कहने पर जो तीरों का संधान करें।।

माधव बोलो मेरी आंखों‌ में है क्यो नीर दिया।
कुंती पुत्र बताकर मन में जाने कैसा पीर दिया।।

अब प्रश्नो की बात कहां मैंने वचनो को निभाया है।
मां की गोद में सिर होगा क्या जब न तेरी छाया है।।
अब दो अंतिम बार विदा, सूर्यलोक को जाता हूं।
राधेय ही रहने देना ,मैं न कुंती पुत्र बताता हूं।

माधव सोचे इसके भाग्य ने, क्यो है इसको पीर दिया।
कुंती पुत्र बताकर मन में जाने कैसा तीर दिया।।

मानवता खड़ी है कफ़न ओढ़े

मानवता खड़ी है कफ़न ओढ़े, जाग जाये तो हम हैं।।
तुम्ही तुम हो हमी हम है न तुम हम हो न‌ हम तुम है।।

इंसान जब है हारता, परिणाम है निकालता।
विज्ञान जब है हारता, ईश्वर को है मानता।
अब जो समर‌ है हम, सबको लड़ना होगा।
मृत्यु जो है बढ़ रही, उसको कुचलना होगा।

हर ओर‌ है मौत खड़ी जीत जाये तो हम हैं।
तुम्ही तुम हो हमी हम है न तुम हम हो न‌ हम तुम है।।

विश्व के विज्ञान को भी मात दे गया।
करोड़ों जान लेकर भी आधात दे गया।।
शंकर सा सहज कौन विष को पान करें।
इसे मिटाने हेतु कौन बाणो का संधान करे।।

चलो हमीं अर्जुन बने कंधा मिलाये तो हम हैं।
तुम्ही तुम हो हमी हम है न तुम हम हो न‌ हम तुम है।।

घुट गयी है सांस जो कौन परिमुक्त कहेगा।
है भयानक हर दिन जो एक वक्त थमेगा।
माना जन्म पर मृत्यु तय है जो इस तरह न चाहिए
विधवा हुई है लड़की अभी उसको तो जीवन चाहिए।

आज रोता है सारा जहां हाथ बढाये तो हम हैं।
तुम्ही तुम हो हमीं हम है न तुम हम हो न हम तुम है।।

जाने वालों की गिनती गिनकर आंखें जैसे सूख गई।
अभी अभी‌ मेरी गली में एक मां की सांसें टूट गई।
अब हमें हनुमान बनकर संजीवनी लानी ही होगी।
जो सांसें थम रही उसमे हिम्मत जगानी ही होगी।।

आओ हम इंसान बनकर इंसानियत दिखाएं तो हम हैं।
तुम्ही तुम हो हमीं हम है न तुम हम हो न हम तुम है।।

छन छन चलती थी तलवारें

छन छन चलती थी तलवारें,
जिससे अकबर घबराता था।
चेतक को घोड़ा कहते हो
वो हवा में उड़ जाता था।।

सिंह की भांति गरजते राणा का
भाला बिजली सा चलता था।
कटकर धड़ ऐसे गिरता ,
जैसे हवा में पत्ता उड़ता था।
चेतक के टापो की आवाज़ों से
बीरो का बल बढ़ जाता था।
आये चाहे जितने बहलोल
घोड़े समेत कट जाता था।

जिस ओर नजर हो राणा की,
इतिहास गढ़ा ही जाता था।
छन छन चलती थी तलवारें,
जिससे अकबर घबराता था।

इतिहास पढ़ा होगा तो लिखता हूं
वह सबका अनुयाई था।
भीलों और प्रजा को लेकर
लड़ता स्वमं लड़ाई था।
जिसने आधे भारत के बदले
धास की रोटी खाई थी।
लिंकन के मां को भी
उस बीर की मिट्टी भायी थी।

बीरता के कंधे पर चढ़कर
जो भारत मां को बचाता है।
सैनिक हो या आम आदमी
राणा कहा ही जाता है।।

स्वाभिमान तुम कुछ कह लो
मैं तुमको राणा लिखता हूं।
भष्ट्र सिंघासन पर तू है।
मैं तेरा नाम बदलता हूं।।
जबतक किताबों में राणा का
स्वाभिमान न उतारा जायेगा।
कोरे कागज़ पर कुछ भी लिख लो
राणा लिखा न जायेगा।।

कभी पलटना पन्नो को,
पूछो क्यो रोता जाता था।
छन छन करती थी तलवारें
जिससे अकबर घबराता था।

जिसका नाम सुनते ही
मुगलिया फौज हिल जाती थी।
लेते ही नाम महाकाल का,
धरती में मिल जाती थी।
जिसके हाथी को झुका न सका
उस राणा को क्या झुकायेगा।
अकबर मरने से अच्छा है
युद्ध लड़ने न जायेगा।।

रामप्रसाद वो हाथी था
जो राणा पर इतराता था।
अकबर लाख जतन कर लें
वह अपना धर्म निभाया था।।

इसे गीत मत समझना कभी
राजपूती खून की कहानी है।
दो कुंतल से सजा हुआ था
अमर उसकी निशानी है।।
तुम इसको कविता कह लो।
मैं राणा का शौर्य लिखता हूं।
जलते हुए उस सूरज को
भारत का गौरव लिखता हूं।।
मेवाड की उस माटी को
माथे का चन्दन लिखता हूं।
जिस मां ने तुझको जन्म दिया था
उसको वंदन लिखता हूं।।

राणा का लड़ा हुआ युद्ध
महाभारत कहा जाता था।
चेतक को घोड़ा कहते हो।
वह हवा में उड़ जाता था।

वो जो बादल बरसे तो सह भी लूं

वो जो बादल बरसे तो सह भी लूं।
आंखें जो बरसे तो सह कैसे लूं।।
बिजली जो कड़की है मेरे जिया पर
वो हाल शब्दो से कह कैसे दूं।।

धरती की प्यास को तौलता है सावन।
फिर जाके धरती पर बरसता है सावन
रब हो मेरे जो रब से हूं कहता
रब है न मिलता ये कहता है सावन।

अभी आधी तेरी जो खुशबू है लाई।
मेरा घर है उजाड़ा ये कह कैसे दूं।

बिजली जो कड़की है मेरे जिया पर
वो हाल शब्दों से कह कैसे दूं।।

हम जब चले तो तुम भी चलो।
स्वर्ग की सेज पर आकर मिलों।
पैमाने से प्यार को नाप लो तुम
कह दो मिलेगे ये जान लो तुम

हमने जो पूजा है पत्थर में तुमको
फिर इवादत को झूठी कह कैसे दूं।

बिजली जो कड़की है मेरे जिया पर
वो हाल शब्दों से कह कैसे दूं।।

जो कहना न था वो सब कह दिया।
हम पत्थर बने जख्म सब सह लिया।
हम जो टूटे तो पत्थर है टूटा,
सबसे पहले उसी ने कह दिया।

मोहब्बत की आग में जल ही गया मैं
आग ने है जलाया ये कह कैसे दूं।।
बिजली जो कड़की है मेरे जिया पर
वो हाल शब्दो से कह कैसे दूं।

गीत

(जब भारत का सैनिक युद्ध में बीरगति को
प्राप्त होता है तो आखिरी समय में उसके मन
कुछ बातें भारत मां की गोद मे दफ़न हो जाती
है । लेकिन जब कोई देशभक्त उस मिट्टी को
अपने माथे पर लगाता है तो वह मिट्टी क्या
कहती है यह कविता इस पर आधारित है।)

मिट्टी भी रोती है जो तिलक लगाया तो बोल पड़ी।
दफन हैं जो सीने में आहे बीरो की परतें खोल पड़ी।

भारत मां की गोद में सोया
जननी को बतलाना था।
मां तेरा लाल नहीं आयेगा
उस माता को समझाना था।

और था बहना से कहना
न राखी पर आस करे।
और पिता से था कहना
कि बेटे पर विश्वास करें।।

आखिरी संदेश था प्रियतम को,
जो प्रियतम तक पहुचाना था।
तुझसे प्यार बहुत है मुझको
कह के उसको बहलाना था।।

जब आंखों से आसूं निकले
तो मिट्टी शर्ते बोल पड़ी।।
दफन हैं जो सीने में आहे
बीरो की परतें खोल पड़ी।

मन की बातें मन में रही
तन उसके घर गया।
उठी जब चीखें तो मेरा,
अंग अंग सिहर गया।

उसकी पत्नी रो रो कर
जब सीने पर चूड़ी तोड़ गई।
मुझे लगा मैं मर जाऊंगी
जाने कितने ऋण छोड़ गई।

और जो माता रोती थी
मैं कैसे उसके पास चलूं।
और जो बहना बेसुध थी।
मैं कैसे उससे आस धरूं।।

पिता जो जिम्मेदारी उठाये
चुपके चुपके रोता था।
वो बूंद जो गिरती तो लगता
कि गंगा जल से भिगोता था।

मौत भी आसान लगे
मानो जीवन को छोड़ पड़ी।
दफ़न है जो सीने में आहे,
बीरो की परतें खोल पड़ी।।

फिर बोली तुम रोते हो।
अब कैसे तुमसे बात करूं।
सोचो मैं कितना रोती हूं।
किससे अपनी फरियाद करूं।

एक भी सैनिक का ऋण है
वो बोझ उठा न पाओगे।
अंतिम सैल्यूट है बेटी का,
उस दर्द को मिटा न‌ पाओगे।

यदि इस मिट्टी को छूकर
महसूस करोगे बोलेगी।
इतने प्रश्न होंगे इसके
आंखों से आंसू तौलेगी।

वियतनाम ने मेवाड़ी मिट्टी
को है सादर प्रणाम दिया।
इसी मिट्टी के खातिर अर्जुन ने
बीरो सा संग्राम किया।

शूरवीर की माटी है ये,
तो शूरबीर ही जन्मेंगे ।।
सारागढ़ी से दश सिख ही,
दुश्मन का सीना तौलेंगे।

भारत की मिट्टी को लेकर,
राम जी बनवास चले।
इस मिट्टी के खातिर
राणा ने है बनवास सहे।।

मिट्टी भी रोती है।
जो तिलक लगाया बोल पड़ी।
दफ़न है जो सीने में आहे
बीरो की परतें खोल पड़ी।।

एक दिन धरती पर हो गया

एक दिन धरती पर हो गया बड़ा झोल।
जब एक बाबा को नेता ने दिया अहम रोल ।

उसने सबसे अलग निति बनाई।
फिर भोले भक्तो को पठ्ठी पढ़ाई।
बोला मरने से पहले रजिस्ट्रेशन कराए जाते हैं।
पहले मरो फिर स्वर्ग में सीट दिलाए जाते है।।

यह सुनते ही स्वर्ग की बुकिंग शुरू हो गई।
इधर इन्द्र के ऊपर परेशानी खड़ी हो गई।
जब एक नेता ने इन्द्रासन मांग लिया।
पैसा मिलते ही बाबा ने निद्रासन साध लिया।

ध्यान साधने में हो गया बड़ा झोलम झोल।
जब बाबा को नेता ने दे दिया अहम रोल।।

फिर बाबा ने राज महल बनवाया।
टीवी पर मोक्ष दिलाने का विज्ञापन चलवाया।
एक लाख में स्वर्ग का दाम तय हो गया।
पैसा मिलते ही भजन अंग्रेजी मय हो गया।

कुछ दिन बाद नेता धरती से टपके।
थोड़ी देर में यमराज के पास पहुंचे।
बोले हमने स्वर्ग की सीट बुक कराई है।
जल्दी कुर्सी दे दो इसी में तुम्हारी भलाई है।

हक्के बक्के यमराज का आसन गया डोल।
जब एक बाबा को नेता ने दे दिया अहम रोल।

चित्रगुप्त ने पूरा काला चिट्ठा दिखाया।
यमराज ने नेता पर हंटर बरसाया।
तब नेता को अक्ल आई।
फिर उसने चित्रगुप्त को पठ्ठी पढ़ाई।

बोला कम से कम सेवा का अवसर दीजिए।
बहीखाता हम देखें आप मौज कीजिए।
ऊबे बैठे चित्र गुप्त फौरन मान गये।
नेता के बहीखाता सम्भालते बाबा स्वर्ग सिधार गये।

बोला तुम्हें स्वर्ग में न पाकर कर दिया ये खेल।
जब एक बाबा को नेता ने दे दिया अहम रोल।

धरती पर हम चेले थे तुम हमारे चेले बनो।
डंडा खाने से पहले अच्छे से तेल मलो।
स्वर्ग की सीट तुम्हारा इंतज़ार कर रही है।
सर से पांव तक अच्छे से हवादार कर रही है।

बस अंतर ये है
कि पहले अपनी बात मनवाने के लिए
गोली चलानी पड़ती थी।
अब पावर मे है तो कलम चलानी पड़ती है।
जो तुम जैसे बाबा को पैदा करके मिटा सकता है।
वो स्वर्ग से दोबारा धरती पर भी जा सकता है।।

अब इससे बड़ा नहीं हो सकता बड़ा झोल।
एक नेता कैसे कैसे खेल जाता है खेल।।

ग़ज़ल-प्रेम की अगन में जलता है कोई

प्रेम की अगन में जलता है कोई।
आते समय घर से लिपटकर वो रोई।

ओंठो पर सिसकियां, आंखों में है पानी।
लिपटीं है वो मुझसे, मेरी है वो रानी।
प्रेम है करती मुझमे है रहती रहता न कोई
आते समय घर से लिपटकर वो रोई।

प्रेम की अगन में जलता है कोई।
आते समय घर से लिपटकर वो रोई।

कुछ कहना चाहे, कहती न जानी।
समझूं मैं उसको, दिखाऊ नादानी।
मुझ पर है मरती बातें जो कहती कहता न कोई।
आते समय घर से लिपटकर वो रोई।

प्रेम की अगन में जलता है कोई।
आते समय घर से लिपटकर वो रोई।
प्रेम की अगन में जलता है कोई।
आते समय घर से लिपटकर वो रोई।

अग्निवीर बनकर

अब लड़की वाले कंप्यूटर से खतौनी तलाशते है।
मोटा मुर्गा देख कर तब शादी का जाल डालते हैं।
खुद का लड़का शराबी हो साफ सुथरा दामाद चाहिए।
शादी हो जाने के बाद खुद को भी दाद चाहिए।
अब चारों ओर बेरोजगारों को काम चाहिए।
और रोजगार में न योजनाओं का आम चाहिए।
पहले नेता अपनी सुख और सुविधा को छोड़े।
बेरोजगारों को रोटी मिले न दुविधा में छोड़े।।
नेता भी युवाओं के अरमानो के सप्लायर हो गये।

अग्निवीर बनकर हम रिटायर हो गये।।

लड़के की शादी को लड़की वाले आये।
लड़का क्या करता है फौरन फरमाये।
देश सेवा से सबको मन को छुआ है।
लड़का अग्निवीर से अभी रिटायर हुआ है।
वो सब तो ठीक है इनकम का सोर्स तो बताइए।
आगे क्या योजना है उसको फोर्स में तो बताइए।।
चार साल बाद लड़का फिर कोचिंग कर रहा है।
ओवरयेज हो गया है नौकरी के लिए लड़ रहा है।
हम पढ़ते पढ़ते पुष्षराज की तरह फायर हो गये।

अग्निबीर बनकर हम रिटायर हो गये।।

फिर लड़की वाले एक-दूसरे से फुसफुसाये।
हम तुम्हे फोन से बतायेगे यह कहकर मुस्कुराये।
हम जहां से चले थे वही आ गये।
इधर सरकार पलटी अग्निवीरो को रूला गये।
फौरन नौकरियों में नया नियम चालू हो गया।
देश के युवाओं का फिर से लालू हो गया।
सभी सरकारें ढोल की तरह बजाती है।
नौकरी के नाम पर कैसे कैसे सर्कस करवाती है।
दूसरी सरकार की आंख में कायर हो गये।

अग्निवीर बनकर हम रिटायर हो गये।

राम जी की अयोध्या

राम जी की अयोध्या सरकार जहां के है।
झुक जाये जो चरणों में शीश तो हम यहां के है।
तेरे दर से ही हर खुशियों मे जान है।।
तेरा ही नाम है सब वर्ना मेरी क्या पहचान है।।

सहज सरल मन हो जिनका, जो दया के धाम है।
एक हाथ में धनुष है जिनके, रधुवंशी सियाराम है।।

जो आकर चरणों में पड़ ले राजा उसे बनाते हैं।
जयंत जैसा मन हो काला ठहर वो न पाते हैं।
अभिमानी का मद तोड़े सागर को सहज सुखाते हैं।
बेद व्यास गुणगान करें तो कर न वो भी पाते हैं।

हनुमान जी के मन में बैठे वहीं सियावर राम है।
सहज सरल मन‌ हो जिनका वही दया के धाम है।

जो भक्तो का मान बढ़ा कर मान उन्हें दे देते हैं।
एक बार मुख से राम कह पीड़ा को हर लेते हैं।
शबरी को माता कहे निषाद को जो मित्र कहे।
जब अधर्म से धर्म लड़े तो निरंतर युद्ध कहे।

धन्य अवध में जो जन्मे बसता राम का नाम है।
सहज सरल मन हो जिनका वही दया के धाम है।

गीत

मां जो तेरा नाम ले सब कुछ मिल जाता है।
रोते हुए दरबार आये, चेहरा खिल जाता है।।

हे भक्ति रक्षिणी मां।
हे शक्ति रूपेणी मां।
हे आदि शक्ति जगदम्बा।
हे मातृशक्ति मां अम्बा।।

देरे दर पर आए हैं, मां जो तू बुलाए है।

देरे धाम से हे माता सब कुछ मिल जाता है।
रोते हुए दरबार में आये चेहरा खिल जाता है।

मां जो तेरा नाम ले सब कुछ मिल जाता है।
रोते हुए दरबार आये, चेहरा खिल जाता है।।

हे विंध्यवासिनी मां।
हे सृष्टि सजृनी मां।।
हे कपाल शूल रक्षिणी।
तू ही दुष्टों को भक्षिणी ।।

तेरी जोती जलाए हैं, मन में बसाए है।

तेरे दर से जो मांगा वो सब मिल जाता है।।
रोते हुए दरबार आये चेहरा खिल जाता है।

गीत

दीनो को दे, दें सहारा शक्ति स्वरूपा नाम है।
हम तो भक्त है तेरे मां दुनिया से क्या काम है।

तेरे दर पर आये है।
जयकार लगाये है ।
मन में आस लगाये,
झोली फैलाए है।।

ऊंचे पहाड़ो पर माता, बसा तेरा धाम है।
हम तो भक्त है तेरे मां दुनिया से क्या काम है।

दीनो को दे, दें सहारा शक्ति स्वरूपा नाम है।
हम तो भक्त है तेरे मां दुनिया से क्या काम है।

जो आरती गाये।
तेरे मन को भाता है।
मांगे चाहे न मांगे,
सहज, सब कुछ मिल जाता है।

आर्शीवाद मिला है मां, मन को बहुत आराम है।
हम तो भक्त है तेरे मां दुनिया से क्या काम है।

दीनो को दे, दें सहारा शक्ति स्वरूपा नाम है।
हम तो भक्त है तेरे मां दुनिया से क्या काम है।

इश्क पूरा न होता है किसी का

इश्क पूरा न होता है किसी का,
कोई लाख जतन करें कर लें।
ग़म में जिए या खुद को मिटा ले,
रोई आंख लगन करें कर लें।।

बंद दिल के इस दरवाजे पर,
आके देखो तो परतें चढ़ी हुई है।
यहीं किसी परतों में इश्क दफ़न होगा।
जिस पर नफरतें मढ़ी हुई है।।

पूरा न हो सका सफर रूक गया,
कोई लाख मनन करें कर लें।।

आहो ने धीरे से मिटना चाहा।
यादो ने कसकर साथ थाम लिया।
खोया बहुत कुछ पाया न कुछ
तभी किस्मत ने हाथ थाम लिया ‌।

आंखें जब थकी टीस बन गई।
परवाना पतन करें कर लें।।

कैद है दिल के जो तहखाने में।
समय गया बहुत समझाने में।
दौर था दौर है दौर भी रहेगा।
ऐसे ही आशिक जी रहे जमाने में।

रातें अमावस की चांद हो गई।
खुद को खुद मे हवन करें कर ले।।

ग़ज़ल-इश्क़ मोहब्बत के अंजाम पर है

इश्क़ मोहब्बत के अंजाम पर है।
जिस पर शर्ते अड़ी हुई है।
पहले नजरों से नजरें लड़ी।
अब नज़रे कहीं पे लड़ी हुई है।।..

एक बार धोखे में गुज़रा जो आशिक
कहता ज़माने से प्यार मत करना।
है धोखेबाज खूबसूरत बहुत है।
पर दिल की हसरतें अड़ी हुई है।।

इश्क मोहब्बत के अंजाम पर है।
जिस पर शर्ते अड़ी हुई है।।..

अफ़वाहें सच्ची या कसमें माने।
दिल भी बताता है उसको जाने।।
हर एक परतों में नया है आशिक।
परतों पर परतें चढ़ी हुई है।।

इश्क मोहब्बत के अंजाम पर है।
जिस पर शर्ते अड़ी हुई है।।..

दिल के इस दरवाजे पर।
देखो तो परतें मढ़ी हुई है।।
इश्क़ परतों में दफ़न है मानो
जिसपर नफरतें चढ़ी हुई है।।

इश्क मोहब्बत के अंजाम पर है।
जिस पर शर्ते अड़ी हुई है।।..

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