Ghalib Sad Shayari – दोस्तों आपको यहाँ पर कुछ लोकप्रिय मिर्जा ग़ालिब की दर्द भरी शायरी दी गई हैं. जो आपको बहुत पसंद आयगी. कहा जाता हैं, की ग़ालिब इश्क को जीते थे. इश्क ग़ालिब से शुरू होता हैं. उनके सभी शेर – नज्में जिंदादिल आशिक की तरह इश्क के रश्मों को निभाते हैं.
27 दिसम्बर 1797 को आगरा में मिर्जा ग़ालिब का जन्म हुआ था. ग़ालिब का पूरा नाम “मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां” था. वह एक तुर्क परिवार से थे. ग़ालिब 11 वर्ष की आयु से ही कविता और शायर लिखना शुरू कर दिया था. उनका विवाह 13 वर्ष की आयु में ही उमराव वेगम से हो गई थी. वह अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर साह जफ़र के दरवारी शायर थे. ग़ालिब का निधन 15 फरवरी 1869 को हुआ था.
मिर्ज़ा ग़ालिब की दर्द भरी शायरी, Ghalib Sad Shayari, Sad Shayari Ghalib
(1) इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।
Ishrat-e-Qatra Hai Dariya Mein Fanaah Ho Jana,
Dard Ka Hadd Se Gujarna Hai Dawa Ho Jana.
(2) सिसकियाँ लेता है वजूद मेरा गालिब,
नोंच नोंच कर खा गई तेरी याद मुझे।
Siskiyan Leta Hai Wajood Mera Galib,
Nonch Nonch Kar Kha Gayi Teri Yaad Mujhe.
(3) इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।
Ishq Par Jorr Nahi Hai Yeh Woh Aatish Galib,
Ki Lagaye Na Lage Aur Bujhaye Na Bujhe.
(4) ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री,
हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे।
Zindgi Apni Jab Iss Shakl Se Gujri,
Hum Bhi Kya Yaad Karenge Ki Khuda Rakhte The.
(5) मुँद गईं खोलते ही खोलते आँखें ग़ालिब,
यार लाए मेरी बालीं पे उसे पर किस वक़्त?
Mundd Gayi Kholte Hi Kholte Aankhein Galib,
Yaar Laye Meri Baalin Pe Use Par Kis Waqt?
Sad Shayari Ghalib
(6) उग रहा है दर-ओ-दीवार से सबज़ा ग़ालिब,
हम बयाबां में हैं और घर में बहार आई है।
Ug Raha Hai Dar-o-Diwar Se Sabaza Ghalib,
Hum Biyaban Mein Hain Aur Ghar Mein Bahar Aayi Hai.
(7) बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह,
जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है।
Bosa Dete Nahi Aur Dil Pe Hai Har Lehja Nigaah,
Jee Mein Kehte Hain Ki Muft Aaye Toh Maal Achchha Hai.
(8) ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना,
बन गया रक़ीब आख़िर था जो राज़-दाँ अपना।
Zikr Uss Pari-Was Ka Aur Fir Bayan Apna,
Ban Gaya Raqeeb Aakhir Tha Jo Raaz-Daan Apna.
(9) कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीम-कश को,
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।
Koyi Mere Dil Puchhe Tere Teer-e-Neem-Kash Ko,
Yeh Khalish Kahan Se Hoti Jo Zigar Ke Paar Hota.
Ghalib Sad Shayari
(10) घर में था क्या कि तेरा ग़म उसे ग़ारत करता,
वो जो रखते थे हम इक हसरत-ए-तामीर सो है।
Ghar Mein Tha Kya Ki Tera Gham Usse Garat Karta,
Woh Jo Rakhte The Hum Ik Hasrat-e-Tamir So Hai.
(11) लो हम मरीज़-ए-इश्क़ के बीमार-दार हैं,
अच्छा अगर न हो तो मसीहा का क्या इलाज?
Lo Hum Mareej-e-Ishq Ke Bimar-Daar Hain,
Achha Agar Na Ho Maseeha Ka Kya ilaaj.
(13) ता हम को शिकायत की भी बाक़ी न रहे जा,
सुन लेते हैं गो ज़िक्र हमारा नहीं करते।
ग़ालिब तेरा अहवाल सुना देंगे हम उनको,
वो सुन के बुला लें ये इजारा नहीं करते।
Ta Hum Ko Shiqayat Ki Bhi Baqi Na Rahe Ja,
Sun Lete Hain Go Zikr Humara Nahi Karte,
Ghalib Tera Ahawal Suna Denge Hum Unko,
Woh Sun Ke Bula Lein Ye Ijara Nahi Karte.
(14) तुम न आए तो क्या सहर न हुई,
हाँ मगर चैन से बसर न हुई,
मेरा नाला सुना ज़माने ने मगर,
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई।
Tum Na Aaye Toh Kya Sahar Na Huyi,
Haan Magar Chain Se Basar Na Huyi,
Mera Nala Suna Zamaane Ne Magar,
Ek Tum Ho Jise Khabar Na Huyi.
(15) बूए-गुल, नाला-ए-दिल, दूदे चिराग़े महफ़िल,
जो तेरी बज़्म से निकला सो परीशाँ निकला।
चन्द तसवीरें-बुताँ चन्द हसीनों के ख़ुतूत,
बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला।
Bu-e-Gul, Nala-e-Dil, Dud-e-Chirag-e-Mehfil,
Jo Teri Bazm Se Nikla So Pareshan Nikla,
Chand Tasbirein-Butan Chand Hasino Ke Khutoot,
Baad Marne Ke Mere Ghar Se Yeh Saamaan Nikla.
Sad Shayari Ghalib
(16) हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी,
दिल जोश-ए-गिर्या में है डूबी हुई असामी,
उस शमा की तरह से जिसको कोई बुझा दे,
मैं भी जले हुओं में हूँ दाग़-ए-ना-तमामी।
Hasil Se Haath Dho Baithe Aye Arzoo-Khirami,
Dil Josh-e-Girya Mein Hai Doobi Huyi Asaami,
Uss Shama Ki Tareh Se Jisko Koyi Bujha De,
Main Bhi Jale Huyo Mein Hoon Daag-e-Na-Tamami.
(17) इश्क से तबियत ने जीस्त का मजा पाया,
दर्द की दवा पाई दर्द बे-दवा पाया।
Ishq Se Tabiyat Ne Zeest Ka Mazaa Paya,
Dard Ki Dawa Payi Dard Be Dawa Paya.
(18) आता है दाग-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद,
मुझसे मेरे गुनाह का हिसाब ऐ खुदा न माँग।
Aata Hai Daag-e-Hasrat-e-Dil Ka Shumaar Yaad,
Mujhse Mere Gunah Ka Hisaab Ai Khudaa Na Maang.
(19) आया है बे-कसी-ए-इश्क पे रोना ग़ालिब,
किसके घर जायेगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद।
Aaya Hai Be-Kasi-e-Ishq Pe Rona Ghalib,
Kiske Ghar Jayega Sailab-e-Bala Mere Baad.
Ghalib Sad Shayari
(20) तेरी वफ़ा से क्या हो तलाफी की दहर में,
तेरे सिवा भी हम पे बहुत से सितम हुए।
Teri Wafaa Se Kya Ho Talafi Ki Dahar Mein,
Tere Siwa Bhi Hum Pe Bahut Se Sitam Hue.
(21) की हमसे वफ़ा तो गैर उसको जफा कहते हैं,
होती आई है की अच्छी को बुरी कहते हैं।
Ki Humse Wafaa To Gair Usko Jafa Kehte Hain,
Hoti Aayi Hai, Ki Achchhi Ko Buri Kehte Hain.
(22) जी ढूंढ़ता है फिर वही फुर्सत के रात दिन,
बैठे रहे तसव्वुर-ए-जहान किये हुए।
Jee Dhoondta Hai Phir Wahi Fursat Ke Raat Din,
Baithe Rahe Tasawwur-e-Janaan Kiye Huye.
(23) कहते तो हो यूँ कहते, यूँ कहते जो यार आता,
सब कहने की बात है कुछ भी नहीं कहा जाता।
Kehte Toh Ho Yun Kehte, Yun Kehte Jo Yaar Aata,
Sab Kehne Ki Baat Hai, Kuch Bhi Nahi Kaha Jata.
(24) चांदनी रात के खामोश सितारों की क़सम,
दिल में अब तेरे सिवा कोई भी आबाद नहीं।
Chaandni Raat Ke Khamosh Sitaron Ki Qasam,
Dil Mein Ab Tere Siwa Koyi Bhi Aabad Nahi.
(25) आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूँ खून-ए-जिगर होने तक।
Aashiqi Sabr Talab Aur Tamanna Betab,
Dil Ka Kya Rang Karun Khoon-E-Jigar Hone Tak.
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