हिन्दी कविता घासीराम, Hindi Poetry Ghasiram
1. रंग में रंग दई बांह पकर के
रंग में रंग दई बांह पकर के लाजन मर गई होरी में
इकली भाज दई होरी में हुरमत लाज गई होरी में
चटक दार चोली में सरवट पर गई होरी में
चूनर रंग बोरी होरी में पिचकारी मारी होरी में
ह्वै के श्याम निशंक अंक भुज भर लई होरी में
गाल गुलाल मल्यो होरी में मोतिन लर तोरी होरी में
लोक लाज खूंटी पै कान्हा धर दइ होरी में
बरजोरी कीन्ही होरी में ऎसी बुरी भई होरी में
घासीराम पीर सब तन की हर लइ होरी में
2. कान्हा पिचकारी मत मार
कान्हा पिचकारी मत मार मेरे घर सास लडेगी रे।
सास लडेगी रे मेरे घर ननद लडेगी रे।
सास डुकरिया मेरी बडी खोटी, गारी दे न देगी मोहे रोटी,
दोरानी जेठानी मेरी जनम की बेरन, सुबहा करेगी रे। कान्हा पिचकारी मत मार… ॥1॥
जा जा झूठ पिया सों बोले, एक की चार चार की सोलह,
ननद बडी बदमास, पिया के कान भरेगी रे। कान्हा पिचकारी मत मार… ॥2॥
कछु न बिगरे श्याम तिहारो, मोको होयगो देस निकारो,
ब्रज की नारी दे दे कर मेरी हँसी करेगी रे। कान्हा पिचकारी मत मार… ॥3॥
हा हा खाऊं पडू तेरे पैयां, डारो श्याम मती गलबैया,
घासीराम मोतिन की माला टूट पडेगी रे। कान्हा पिचकारी मत मार… ॥4॥
3. फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद किशोर
घेर लई सब गली रंगीली, छाय रही छबि छटा छबीली,
जिन ढोल मृदंग बजाये हैं बंसी की घनघोर। फाग खेलन…॥१॥
जुर मिल के सब सखियाँ आई, उमड घटा अंबर में छाई,
जिन अबीर गुलाल उडाये हैं, मारत भर भर झोर। फाग खेलन… ॥२॥
ले रहे चोट ग्वाल ढालन पे, केसर कीच मले गालन पे,
जिन हरियल बांस मंगाये हैं चलन लगे चहुँ ओर। फाग खेलन… ॥३॥
भई अबीर घोर अंधियारी, दीखत नही कोऊ नर और नारी,
जिन राधे सेन चलाये हैं, पकडे माखन चोर। फाग खेलन… ॥४॥
जो लाला घर जानो चाहो, तो होरी को फगुवा लाओ,
जिन श्याम सखा बुलाए हैं, बांटत भर भर झोर । फाग खेलन… ॥५॥
राधे जू के हा हा खाओ, सब सखियन के घर पहुँचाओ,
जिन घासीराम पद गाए हैं, लगी श्याम संग डोर। फाग खेलन… ॥६॥
4. श्यामा श्याम सलोनी सूरत को सिंगार बसंती है
श्यामा श्याम सलोनी सूरत को सिंगार बसंती है।
सिंगार बसंती है …हो सिंगार बसंती है।
मोर मुकुट की लटक बसंती, चन्द्र कला की चटक बसंती,
मुख मुरली की मटक बंसती, सिर पे पेंच श्रवण कुंडल छबि लाल बसंती है।
श्यामा श्याम सलोनी सूरत…॥१॥
माथे चन्दन लग्यो बसंती, कटि पीतांबर कस्यो बसंती,
मेरे मन मोहन बस्यो बसंती, गुंजा माल गले सोहे फूलन हार बसंती है।
श्यामा श्याम सलोनी सूरत..॥२॥
कनक कडुला हस्त बसंती, चले चाल अलमस्त बसंती,
पहर रहे सब वस्त्र बसंती, रुनक झुनक पग नूपुर की झनकार बसंती है।
श्यामा श्याम सलोनी सूरत…॥३॥
संग ग्वालन को टोल बसंती, बजे चंग ढफ ढोल बसंती,
बोल रहे है बोल बसंती, सब सखियन में राधे की सरकार बसंती है ।
श्यामा श्याम सलोनी सूरत…॥४॥
परम प्रेम परसाद बसंती, लगे चसीलो स्वाद बसंती,
ह्वे रही सब मरजाद बसंती, घासीराम नाम की झलमल झार बसंती है।
श्यामा श्याम सलोनी सूरत..॥५॥
5. कारे कजरारे सटकारे घुँघवारे प्यारे
कारे कजरारे सटकारे घुँघवारे प्यारे,
मणि फणि वारे भोर फबन लौँ ऊटे हैँ ।
बासे हैँ फुलेल ते नरम मखतूल ऎसे,
दीरघ दराज ब्याल ब्यालिन लौं झूठे हैँ ।
घासीराम चारु चौंर जमुना सिवार बोरोँ,
ऎसी स्याम्ताई पै गगन घन लूटे हैँ ।
छाई जैहै तिमिर बिहाय रैनि आय जैहै,
झारि बाँध अजहूँ सभाँर वार छूटे हैँ ।
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