Good Morning Poem in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ सुबह पर बेहतरीन कविता का संग्रह दिया गया हैं. इन सभी Poem on Good Morning in Hindi को अपने चाहनेवाले को भेजकर एक नई दिन की शुरुआत कर सकते हैं.
सुबह के समय हमारी स्मृति शांत और जिज्ञासु होती हैं. सुबह में अच्छी बातों को पढ़ना या सुनना हमें ऊर्जावान बनाता हैं. जिससे हमारा शरीर पूरा दिन नई ताजगी और उर्जा से भरा रहता हैं.
दोस्तों आइए अब नीचे कुछ Poem on Good Morning in Hindi में दिया गया हैं. इसे पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी सुबह पर कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.
सुबह पर बेहतरीन कविता, Good Morning Poem in Hindi
1. Poem on Good Morning in Hindi
यें सुबह की हवा! यें सुबह की हवा!
है सभी रोगो की एक़ अच्छी दवा।
भौर होतें ही घर से निक़ल जाइये,
दूरतक ज़ाके थोडा टहल आइये,
ताज़गी अपनी सांसों में भर लाइये,
ये सुबह की हवा! यें सुबह की हवा!
ऊगते सूरज़ की रंगोली को देख़िये,
इन परिंन्दों की उस टोली को देख़िये,
फुल-पत्तो की हमज़ोली को देख़िये,
ये सुबह की हवा! यें सुबह की हवा!
ये नज़ारा हैं बस थोडी ही देर का,
हैं किसे फ़िर पता वक्त के फ़ेर का,
मुफ्त ले लीजिये बस मजा ख़ेल का,
यें सूबह की हवा! यें सूबह की हवा!
जिन्दगी मे हैं सेहत नियामत बडी,
इसकें आगे न दुनियां की दोलत बडी,
कौंन जाने कहां हैं मुसीबत खडी,
ये सूबह की हवा! यें सूबह की हवा!
– रमेश तैलंग
2. Good Morning Poem in Hindi Language
सुबह का सुरज
क़ितना प्यारा, कितना सुन्दर
रंग-बिरगी किरणे उसक़ी
रोम-रोम मे बस ज़ाती है
ख़ूशबू सी महक़ जाती है
सुबह का सुरज
लेक़र आता आश नयी
बाहर-भींतर, रोशन-रोशन
कर ज़ाता हैं तन-मन सारा
ये ज़ीवन जो तुम्हे मिला हैं
इसक़ो यूं ही मत ज़ाने दो
सुरज सा इसक़ो चमका दो
फुलो सा इसक़ो महका दो
ये हीं तुमसें कहता हैं
ज़ब आता हैं सूबह का सुरज
सुबह का सुरज
कितना प्यारा, कितना सुन्दर
-मुकेश मानस
3. सुबह पर बेहतरीन कविता
मत डर जो अंधेरी रात हैं
होनें वाली अब प्रभात हैं,
ये अन्त नही हैं ज़ीवन का
हर सूबह नई शरुआत हैं।
हैं अंधकार अब लुप्त हुआ
हर ओर प्रकाश अब़ होना हैं
उठकर बढना हैं आगे हमे,
न देर तलक़ अब सोना हैं,
तेज़ चमकना हैं हमक़ो
सूरज़ की किरण हैं बता रहीं
पछीं की देख़ो मधूर ध्वनी
ज़ग मे हैं सबको ज़गा रही,
नई सुबह हैं नया हैं मौंका
आगे बढने के जज़्बात है
ये अन्त नही हैं ज़ीवन का
हर सूबह नई शरुआत हैं।
कभीं बादल होगे धुप कभीं
कभीं शीत लहर कभीं ताप
हीम्मत रख़ना तू संग सदा
क़रना न कभीं सताप,
आगे बढने को ज़ीवन मे
तू क़रता रह प्रयास
मेहनत तेरी रंग लायेगी
होगी पूरी हर आश,
कर ख़ुद को तु मज़बूत
कि सहनें पडते बहुत आघात है
ये अन्त नही हैं जीवन का
हर सुबह नई शरुआत हैं।
मंज़िल मिलनी तो निश्चित हैं,
बस शर्तं ये हैं तु बढता जा,
मत रुक़ना कभीं भी राहो में
सफ़लता की सीढी चढता जा,
व्यर्थं न होते प्रयत्न कभीं ,
इस बात से न अनज़ान तू बन,
रच दें तू एक इतिहास नया,
इस विश्व मे एक पहचान तु बन,
क़ष्ट के बाद ही सुख़ हैं मिलता,
जीवन का यहीं सिद्धान्त हैं,
ये अन्त नही हैं जीवन का
हर सूबह नई शरुआत हैं।
4. Good Morning Poem in Hindi
हुआं सवेरा, हुआं सवेरा,
सूरज़ की किरणो ने
डाल-डाल पर डाला घेंरा,
हुआं सवेरा, हुआं सवेरा।
मन मे उमग, तन मे तरंग़,
ज़ीवन ने फ़िर से लिया फ़ेरा
हुआं सवेरा, हुआं सवेरा।
चल निक़ला, बागो मे ज़ीवन,
चल निक़ला, राहो मे जीवन
हुआं सवेरा, हुआं सवेरा।
पक्षियो का ज़ागा फ़िर कलख़ू,
मीठा-मीठा, मन्द-मन मोहक
हुआं सवेरा, हुआं सवेरा।
कलियो का सुन्दर पल्लवित ज़ीवन,
सौरभ-सुगन्ध, मधूर मनमोहक़
ज़ागा फ़िर से सारा ज़नजीवन।
हुआं सवेरा, हुआं सवेरा।
5. सूरज़ की किरणे आती है
सूरज़ की किरणे आती है,
सारी कलियां ख़िल जाती है।
अन्धकार सब ख़ो जाता हैं,
सब ज़ग सुन्दर हो ज़ाता हैं।।
चिडियां गाती है मिलज़ुल कर,
बहतें है उनकें मीठें स्वर।
ठन्डी-ठन्डी हवा सुहानी,
चलती हैं जैंसी मस्तानी।।
ये प्रातः की सुख बेला है,
धरती का सुख अलबेला है।
नई ताज़गी नई कहानी,
नया जोश पाते हैं प्राणी।।
खो देते हैं आलस सारा,
और काम लगता है प्यारा।
सुबह भली लगती है उनको,
मेहनत प्यारी लगती जिनको।।
मेहनत सबसे अच्छा गुण है,
आलस बहुत बड़ा दुर्गुण है।
अगर सुबह भी अलसा जाए,
तो क्या जग सुन्दर हो पाए।।
-श्रीप्रसाद
6. Good Morning Love Poems in Hindi
हम बागों की हरियाली हैं
चिड़ियों के चहकारे हम!
हम नदियों की कल-कल, छल-छल
नई सुबह के तारे हम!
हममें है फूलों की खुशबू
झरनों का मधुमय संगीत,
हममें रंग भरे तितली के
हम प्रकृति के हैं नवगीत।
हम श्रोता हैं परी कथा के
दुनिया के उजियारे हम!
हम जीवन के मीठे सपने
हँसी-खुशी के बाइस्कोप,
हम जब खुलकर मुस्कातेहैं
दुख हो जाता पल में लोप।
चहकें-महकें मगर न बहकें
सबसे न्यारे, प्यारे हम!
हम बागों की हरियाली हैं,
चिड़ियों के चहकारे हम!
-भगवतीप्रसाद द्विवेदी
7. दूर से
दूर से
चली आ रही
सदियों से
इतराती
ढोती
हर सुबह
सूरज-सा चमकता
पानी भरा
सिर पर धरा
कलसा
नीले आकाश में बादल
लगता है
माँ की गोद में हो
बच्चा
गोरी हैं गंगा
काली जमुना
फिर कौन हो तुम
गेहूँ-सी
दोनों के बीच
सारा दृश्य
झाँकता
अलसाई सुबह में
विलासिनी के
अंगों-सा।
-विपिनकुमार अग्रवाल
8. पलकों पर
पलकों पर
सजे सुनहरे सपने
पत्तों पर
गिरे चमकीले मोती
चांदनी पर
खिले सफ़ेद फूल
हमें बताते हैं
हमारी भूल
ये सब
बिखर जाते हैं
कुछ पल में
विचार नहीं बदलते
जीवन-भर
जीवन नदी है
कहीं नहीं रूकती
चाँद-सूरज
कभी नहीं थकते
जैसे रूका पानी
असहनीय हो जाता है
वैसे रूके विचार
अमानवीय हो जाते हैं
विचारों को
सपनों की तरह
टूटने दो
मोतियों की तरह
बिखरने दो
फूलों की तरह
झरने दो
तभी हमें
अहसास हो पाएगा
एक नई सुबह का
-किरण मल्होत्रा
9. हम पड़े रहते हैं
हम पड़े रहते हैं
नींद की चादर के नीचे
सुविधाओं को तह किए
और बाहर
सुबह की धूप हमारा इंतज़ार करती है
खिड़की-रोशनदानों पर दस्तक देती हुई
सब कुछ जानते-समझते हुए भी
हम बेख़बर रहते हैं
सुबह की इस धूप से
जो हर सुराख से पहुँच रही
अपनी चमकीली किरणों के साथ
अंधकार को भेदती हुई
यह उतरती है
पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी पर
फिसलती हुई
घास पर पड़ी ओस की बूँदों में
मेतियों की तरह चमकती है
पेड़ की फुनगियों से झूला झूलती है
नहाती है समुद्र की लहरों में
चिड़ियों की तरह चहचहाती है
स्कूल के बच्चों की तरह
घर से बाहर निकलती है
कितनी नटखट है यह धूप
सुबह-ही-सुबह
हमारी नींद
हमारी दुनिया में हस्तक्षेप करती है
डायरी की तरह खोल देती है
एक पूरा सफ़ेद दिन
इसी तरह जगाती है
हम-जैसे सोये आदमी को
उसे ज़िन्दगी की मुहिम में
शामिल करती है हर रोज़।
-कौशल किशोर
10. सुबह आयी
सुबह आयी
तेरे इंतज़ार की खुशबू लेकर
फिर तमाम दिन मुझे तेरा इंतज़ार रहा
शाम आयी
तेरे ना आने की मायूसी लेकर
फिर तमाम रात अंधेरो मे ढूढ़ा है तुझे
और बांधी है उम्मीद अगली सुबह से
मेरी ज़िन्दगी के हसीन पल
तू कहाँ था?
आज आया है
तो मेरी आँखों में चमक ही नहीं
बुझ गया है तेरा इंतज़ार
जला कर खुद को
तुझको पाने को लगाया था खुद को दाँव पर
ऐसा लगता है
तुझ को पाया है खोकर खुद को
मेरी ज़िन्दगी के हसीन पल
तू कहाँ था?
साथ लेकर तुझे
होकर जुदा अपनों से
मैं भटकता हूँ जैसे आज रेगिस्तानों में
इश्क़ के कतरे मुकद्दर में कभी थे ही नहीं
चंद समझोते थे
जो तेरी आहटों से
मोजुदगी से
कैद हो गए ज़रूरतो के मकानों में
मेरी ज़िन्दगी के हसीन पल
तू कहाँ था?
जी मे आता है भगा दू तुझ को
या फिर तुझसे भाग जाऊ कहीं
नहीं है तू हसीन पल जीवन का
तू मेरा वो ही पुराना साथी है
खेलता आया है जो बचपने से साथ मेरे
तेरा नाम दर्द है तू वही तन्हाई है
बस आज इस दुनिया के रंगीन मौसम में
अपनी सूरत बदल कर साथ मेरे
चल रहा है बड़ी कशिश के साथ
शायद खुश है
सुन रहा है मेरी बेचैन आवाज़
के
मेरी ज़िन्दगी के हसीन पल
तू कहाँ था?
कहाँ?
-मनोज अहसास
11. रुपहले ओस की मोतियों में
रुपहले ओस की मोतियों में,
झलकती है आसमान की लाली,
मधुर चूड़ियों की खनखनाहट भरी
स्वप्नों के बोझ से लदी रात अब जा रही है
डाल पर बैठी बुलबुल जोर से हुंकारा भारती है
‘ऐसे देखो!’
देती दिलासा वह क्रोड़ में दुबके खग शिशुओं को
‘लो सुबह, अब आ रही है!’
या कि स्वीकारती शुभ प्रभात को
‘आओ! स्वागत लाल सूर्य तुम्हारा स्वागत!’
वह गा रही है हेरती न जाने किसे टेरती
पुकारती समस्त विजन को
दुलारती हवाओं के संग
शांत झरोके रूक-रूक कर सहलाते हैं
चांदी सी चमकीली झील के साए को
एक पथिक छोड़ते हुए पुरानी लीक को
मुड़कर देखता है क्या पीछे सवेरा आ रहा है?
कैसी भी गर्म उमस भरी थी शाम
फिर कितनी ठंढ़ी बोछारों में भीगी रात
विदा!
पर विदा लेगी वह अंतिम प्रहार में
प्रभात के आने पर क्यों कर थमेगी वह
हमारे रोके न रूकेगी
-इला कुमार
12. सुबह-सुबह
सुबह-सुबह
तालाब के दो फेरे लगाए
सुबह-सुबह
रात्रि शेष की भीगी दूबों पर
नंगे पाँव चहलकदमी की
सुबह-सुबह
हाथ-पैर ठिठुरे, सुन्न हुए
माघ की कड़ी सर्दी के मारे
सुबह-सुबह
अधसूखी पतइयों का कौड़ा तापा
आम के कच्चे पत्तों का
जलता, कड़ुवा कसैला सौरभ लिया
सुबह-सुबह
गँवई अलाव के निकट
घेरे में बैठने-बतियाने का सुख लूटा
सुबह-सुबह
आंचलिक बोलियों का मिक्स्चर
कानों की इन कटोरियों में भरकर लौटा
सुबह-सुबह
-नागार्जुन
13. आँख मलते हुए जागती है सुबह
आँख मलते हुए जागती है सुबह
और फिर रात दिन भागती है सुबह
सूर्य के ताप को जेब में डाल कर
सात घोंडों का रथ हांकती है सुबह
रात सोई नहीं नींद आई नहीं
सारे सपनों का सच जानती है सुबह
बाघ की बतकही जुगनुओं की चमक
मर्म इतना कहाँ आकती है सुबह
आहटें शाम के रात की दस्तकें
गुड़मुड़ी दोपहर लांघती है सुबह
-विजय वाते
14. वो सुबह कभी तो आएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
इन काली सदियों के सर से जब रात का आंचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर झलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नगमे गाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
जिस सुबह की ख़ातिर जुग जुग से हम सब मर मर के जीते हैं
जिस सुबह के अमृत की धुन में हम ज़हर के प्याले पीते हैं
इन भूखी प्यासी रूहों पर इक दिन तो करम फ़रमाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
माना कि अभी तेरे मेरे अरमानों की क़ीमत कुछ भी नहीं
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर इन्सानों की क़ीमत कुछ भी नहीं
इन्सानों की इज्जत जब झूठे सिक्कों में न तोली जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
दौलत के लिए जब औरत की इस्मत को ना बेचा जाएगा
चाहत को ना कुचला जाएगा, इज्जत को न बेचा जाएगा
अपनी काली करतूतों पर जब ये दुनिया शर्माएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर ये भूख के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारादारी के
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
मजबूर बुढ़ापा जब सूनी राहों की धूल न फांकेगा
मासूम लड़कपन जब गंदी गलियों में भीख न मांगेगा
हक़ मांगने वालों को जिस दिन सूली न दिखाई जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
फ़आक़ों की चिताओ पर जिस दिन इन्सां न जलाए जाएंगे
सीने के दहकते दोज़ख में अरमां न जलाए जाएंगे
ये नरक से भी गंदी दुनिया, जब स्वर्ग बनाई जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
जिस सुबह की ख़ातिर जुग जुग से हम सब मर मर के जीते हैं
जिस सुबह के अमृत की धुन में हम ज़हर के प्याले पीते हैं
वो सुबह न आए आज मगर, वो सुबह कभी तो आएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
-साहिर लुधियानवी
15. ताज़ा हवा से बातचीत हो सकी आज
ताज़ा हवा से बातचीत हो सकी आज
रात की रही रंगत देखी सुबह की सड़कों पर
नदी की उनींदी और
पेड़ों की उमंग देखी आज सुबह
कल की दुनिया चलकर आई आज
वहाँ उत्सव मनाए गए थे
योजनाएँ बनी थीं और थोड़ा-बहुत
अशुभ भी घटा कुछ शहरों में
यह सुबह रद्द करती पुरानी प्रविष्टियाँ
पेश करतीं नया पृष्ठ
और उसके बाद सम्भावनाओं की
अनेक सुबहों के कोरे पन्ने
नई शुरूआत के लिए फैलाए बाँहें
आई है मुस्कुराती हुई
फिर आज की सुबह
-ब्रज श्रीवास्तव
16. सुबह यूं तो रोज आती है नई उम्मीद ले कर
सुबह यूं तो रोज आती है नई उम्मीद ले कर।
कभी मेरी उम्मीदों को सच कर जाया कर।।
सुबह का सूरज कितना प्यारा, कितना सुंदर।
रंग-बिरंगी किरणें उसकी रोम-रोम में बस जाती हैं
खुशबू सी महका जाती हैं।।
सुबह का सूरज लेकर आता आस नई बाहर-भीतर।
रौशन-रौशन कर जाता है तन-मन सारा।।
ये जीवन जो तुम्हें मिला है, इसको यूँ ही मत जाने दो।
सूरज सा इसको चमका दो, फूलों सा इसको महका दो।।
ये ही तुमसे कहता है, जब आता है सुबह का सूरज।
सुबह का सूरज, कितना प्यारा, कितना सुंदर।।
– मुकेश मानस
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