Heart Touching Bachpan Shayari in Hindi – यहाँ पर आपको कुछ बेहतरीन बचपन पर शायरी का संग्रह दिया गया हैं. यह सभी Bachpan ki Shayari को हमारे लोकप्रिय शायरों द्वारा लिखा गया हैं. जो आपको बेहद पसंद आएगी. आप इसे Whatsapp और Facebook पर अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं.
बचपन हमारे जीवन का सबसे खूबसूरत समय होता हैं. वह बचपन में शरारत करना, धुल मिट्टी से खेलना फिर माँ से डांट पड़ना. आज भी यह सभी बचपन की यादे हमारे साथ हैं. इसे याद करके हमें कुछ पल की खुशी भी मिलती हैं.
अब आइए यहाँ पर कुछ Heart Touching Bachpan Shayari in Hindi में दिए गए हैं. उसे पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी 2 Lines Shayari on Bachpan आपको पसंद आएगी. इसे अपने फ्रेंड्स के साथ भी शेयर करें.
बचपन शायरी, Heart Touching Bachpan Shayari in Hindi
(1) दूर मुझसे हो गया बचपन मगर
मुझमें बच्चे सा मचलता कौन है
राजेन्द्र कलकल
(2) झूठ बोलते थे फिर भी कितने सच्चे थे हम
ये उन दिनों की बात है जब बच्चे थे हम
(3) बचपन में आकाश को छूता सा लगता था
इस पीपल की शाख़ें अब कितनी नीची हैं
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
(4) मेरे दिल के किसी कोने में, एक मासूम सा बच्चा
बड़ों की देख कर दुनिया, बड़ा होने से डरता है
राजेश रेड्डी
(5) मेरा बचपन भी साथ ले आया
गाँव से जब भी आ गया कोई
कैफ़ी आज़मी
(6) असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
कहाँ गया मेरा बचपन ख़राब कर के मुझे
(7) कितने खुबसूरत हुआ करते थे
बचपन के वो दिन,
सिर्फ दो उंगलिया जुड़ने से,
दोस्ती फिर से शुरु हो जाया करती थी।
(8) आओ भीगे बारिश में
उस बचपन में खो जाएं
क्यों आ गए इस डिग्री की दुनिया में
चलो फिर से कागज़ की कश्ती बनाएं।
(9) बचपन के दिन भी कितने अच्छे होते थे
तब दिल नहीं सिर्फ खिलौने टूटा करते थे
अब तो एक आंसू भी बर्दाश्त नहीं होता
और बचपन में जी भरकर रोया करते थे
(10) वक्त से पहले ही वो हमसे रूठ गयी है,
बचपन की मासूमियत न जाने कहाँ छूट गयी है।
(11) तभी तो याद है हमे
हर वक़्त बस बचपन का अंदाज
आज भी याद आता है
बचपन का वो खिलखिलाना
दोस्तों से लड़ना, रूठना, मनाना
(12) देर तक हँसता रहा उन पर हमारा बचपना
जब तजुर्बे आए थे संजीदा बनाने के लिए
(13) छुट गया वो खेलने जाना,
पेडोँ की छाँव मे वक्त बिताना.
वो नदियोँ मे नहाने जाना,
शाम ढले घर वापस आना.
(14) ले चल मुझे बचपन की,
उन्हीं वादियों में ए जिन्दगी…
जहाँ न कोई जरुरत थी,
और न कोई जरुरी था.!!
(15) करता रहूं बचपन वाली नादानियां उम्र भर,
ना जाने क्यों दुनिया वाले उम्र बता देते है।
(16) वो पूरी ज़िन्दगी रोटी,कपड़ा,मकान जुटाने में फस जाता है,
अक्सर गरीबी के दलदल में बचपन का ख़्वाब धस जाता है।
(17) ज़िन्दगी के कमरे में एक बचपन का कोना है,
समेटनी हैं उसकी यादें,
और उन यादों में खोना है।
(18) कैसे भूलू बचपन की यादों को मैं,
कहाँ उठा कर रखूं किसको दिखलाऊँ?
संजो रखी है कब से कहीं बिखर ना जाए,
अतीत की गठरी कहीं ठिठर ना जाये.!
(19) वो बड़े होने से डरता है,
इसीलिए बचपना करता है।
(20) जी लेने दो ये लम्हे
इन नन्हे कदमों को,
उम्रभर दौड़ना है इन्हें
बचपन बीत जाने के बाद।
(21) वो रेत पर भी लिख देता था अपनी कहानी,
वो बचपन था उसे माफ़ थी अपनी नादानी।
(22) बचपन में भरी दुपहरी में नाप आते थे पूरा मोहल्ला,
जब डिग्रियां समझ में आई तो पांव जलने लगे।
(23) उम्र के साथ ज्यादा कुछ नहीं बदलता,
बस बचपन की ज़िद्द
समझौतों में बदल जाती है।
(24) ज़िन्दगी वक्त से पहले उम्र के तजुर्बे दे जाती है,
बालों की रंगत ना देखिए जिम्मेदारी बचपन ले जाती है।
(25) तू बचपन में ही साथ छोड़ गयी थी,
अब कहाँ मिलेगी ऐ जिन्दगी,
तू वादा कर किसी रोज ख़्वाब में मिलेगी।
(26) बचपन भी क्या खूब था ,
जब शामें भी हुआ करती थी,
अब तो सुबह के बाद,
सीधा रात हो जाती है।
(27) बचपन की दोस्ती थी बचपन का प्यार था
तू भूल गया तो क्या तू मेरे बचपन का यार था
(28) बहुत शौक था बचपन में
दूसरों को खुश रखने का,
बढ़ती उम्र के साथ
वो महँगा शौक भी छूट गया।
(29) दौड़ने दो खुले मैदानों में,
इन नन्हें कदमों को जनाब
जिंदगी बहुत तेज भगाती है,
बचपन गुजर जाने के बाद
बचपन की वो यादें अब भी आती हैं
रोते में अब भी वो हँसा जाती हैं..!!
(30) बचपन में खेल आते थे हर इमारत की छाँव के नीचे…
अब पहचान गए है मंदिर कौन सा और मस्जिद कौन सा..!!
(31) बस इतनी सी अपनी कहानी है,
एक बदहाल-सा बचपन,
एक गुमनाम-सी जवानी है।
(32) उम्र ने तलाशी ली, तो जेब से लम्हे बरामद हुए…
कुछ ग़म के थे, कुछ नम थे, कुछ टूटे…
बस कुछ ही सही सलामत मिले,
जो बचपन के थे…
(33) चुपके-चुपके, छुप-छुपा कर लड्डू उड़ाना याद है.
हमको अब तक बचपने का वो जमाना याद है..!!
(34) वो पुरानी साईकिल वो पुराने दोस्त जब भी मिलते है,
वो मेरे गांव वाला पुराना बचपन फिर नया हो जाता है।
(35) जो सोचता था बोल देता था,
बचपन की आदतें कुछ ठीक ही थी
(36) होठों पे मुस्कान थी कंधो पे बस्ता था..
सुकून के मामले में वो जमाना सस्ता था..!!
(37) शरारत करने का मन तो अब भी करता हैं,
पता नही बचपन ज़िंदा हैं या ख़्वाहिशें अधूरी हैं।
(38) फ़िक्र से आजाद थे और, खुशियाँ इकट्ठी होती थीं..
वो भी क्या दिन थे, जब अपनी भी,
गर्मियों की छुट्टियां होती थीं.
(39) सपनों की दुनियाँ से तबादला हकीकत में हो गया,
यक़ीनन बचपन से पहले उसका बचपना खो गया।
(40) कभी कभी लगता है
लौट आए वो बचपन फिर से,
औऱ भूल जाए खुदको पापा की गोद मे।
(41) सुकून की बात मत कर ए ग़ालिब
बचपन वाला इतवार अब नही आता
(42) मुझको यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं
(43) बचपन से पचपन तक का सफ़र यूं बीत गया साहब,
वक़्त के जोड़ घटाने में सांसे गिनने की फुरसत न मिली।
(44) काग़ज़ की कश्ती थी पानी का किनारा था
खेलने की मस्ती थी ये दिल अवारा था
कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में
वो नादान बचपन भी कितना प्यारा था
(45) बचपन में जहां चाहा हंस लेते थे जहां चाहा रो लेते थे,
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए और आंसूओं को तनहाई.
(46) बचपन तो वहीं खड़ा इंतजार कर रहा है,
तुम बुढ़ापे की ओर दौड़ रहे हो।
(47) फ़क़त माल-ओ-ज़र-ए-दीवार-ओ-दर अच्छा नहीं लगता
जहाँ बच्चे नहीं होते वो घर अच्छा नहीं लगता
(48) हंसने की भी, वजह ढूँढनी पड़ती है अब;
शायद मेरा बचपन, खत्म होने को है.
(49) जिम्मेदारियों ने वक्त से पहले
बड़ा कर दिया साहब,
वरना बचपन हमको भी बहुत पसंद था।
(50) खेलना है मुझे मेरी माँ की गोद में,
के फिर लौट के आजा मेरे बचपन।
(51) नींद तो बचपन में आती थी,
अब तो बस थक कर सो जाते है।
(52) आसमान में उड़ती
एक पतंग दिखाई दी,
आज फिर से मुझ को
मेरी बचपन दिखाई दी।
(53) जो सपने हमने बोए थे
नीम की ठंडी छाँवों में,
कुछ पनघट पर छूट गए,
कुछ काग़ज़ की नावों में।
(54) कोई तो रुबरु करवाओ
बेखोफ़ हुए बचपन से,
मेरा फिर से बेवजह
मुस्कुराने का मन हैं।
(55) बहुत खूबसूरत था,
महसूस ही नहीं हुआ,
कब कहां और कैसे
चला गया बचपन मेरा।
(56) मुखौटे बचपन में देखे थे, मेले में टंगे हुए,
समझ बढ़ी तो देखा लोगों पे चढ़े हुए।
(57) वास्तविकता को जानकर,
मेरा भी सपनों से समझौता हुआ,
लोग यही समझते रहे,
लो एक और बच्चा बड़ा हुआ।
(58) बचपन में मेरे दोस्तों के पास घड़ी नहीं थी…
पर समय सबके पास था!
आज सबके पास घड़ी है
पर समय किसी के पास नहीं!
(59) पुरानी अलमारी से देख मुझे खूब मुस्कुराता है,
ये बचपन वाला खिलौना मुझें बहुत सताता है।
(60) रोने की वजह भी न थी,
न हंसने का बहाना था;
क्यो हो गए हम इतने बडे,
इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था।
(61) बचपन से जवानी के सफर में,
कुछ ऐसी सीढ़ियाँ चढ़ते हैं..
तब रोते-रोते हँस पड़ते थे,
अब हँसते-हँसते रो पड़ते हैं।
(62) बिना समझ के भी, हम कितने सच्चे थे,
वो भी क्या दिन थे, जब हम बच्चे थे।
(63) लगता है माँ बाप ने बचपन में खिलौने नहीं दिए,
तभी तो पगली हमारे दिल से खेल गयी.
(64) किसने कहा, नहीं आती वो बचपन वाली बारिश,
तुम भूल गए हो शायद अब नाव बनानी कागज़ की।
(65) देखा करो कभी अपनी माँ की आँखों में भी,
ये वो आईना हैं जिसमें बच्चे कभी बूढ़े नही होते।
(66) भटक जाता हूँ
अक्सर खुद हीं खुद में,
खोजने वो बचपन जो कहीं खो गया है।
(67) मुमकिन है हमें गाँव भी
पहचान न पाए,
बचपन में ही हम घर
से कमाने निकल आए।
(68) अपना बचपन भी बड़ा कमाल का हुआ करता था,
ना कल की फ़िक्र ना आज का ठिकाना हुआ करता था।
(69) अजीब सौदागर है ये वक़्त भी
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया.
(70) शौक जिन्दगी के अब जरुरतो में ढल गये,
शायद बचपन से निकल हम बड़े हो गये।
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