Jhansi ki Rani Poem in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में आपको कुछ बेहतरीन Laxmi Bai Jhansi ki Rani Poem in Hindi का संग्रह दिया गया हैं. इन सभी रानी लक्ष्मी बाई पर कविता को हमारे लोकप्रिय कवियों ने रानी लक्ष्मी बाई के सम्मान में लिखी हैं. हमारे स्कूल के पाठ्यक्रम में भी रानी लक्ष्मी बाई की वीरगाथा पर कविता पढ़ने को मिलती हैं.
रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को वाराणसी के भदैनी में हुआ था. आजादी की लड़ाई में अंग्रजों से लोहा लेते हुए रणभूमि में अपना बलिदान दे दिया था. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में इनका अभूतपूर्व योगदान रहा हैं.
आइए अब यहाँ कुछ नीचे Jhansi Ki Rani Kavita दिए गए हैं. इसे पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी Poem On Rani Lakshmi Bai In Hindi आपको पसंद आएगी. इन सभी कविताओं को अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.
रानी लक्ष्मी बाई पर कविता, Jhansi ki Rani Poem in Hindi
1. Rani Laxmi Bai Poem – सिहासन हिल उठें
सिहासन हिल उठें राजवशों ने भृकुटी तानीं थी,
बूढे भारत मे भी आई फिर से नई जवानी थीं,
गुमीं हुई आजादी की क़ीमत सबनें पहचानीं थी,
दूर फिरन्गी को क़रने की सब़ने मन मे ठानीं थी।
चमक़ उठी सन् सत्तावन मे, वह तलवार पुरानीं थी,
बुन्देले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
कानपुर के नानां की, मुंहबोली ब़हन छबीली थीं,
लक्ष्मीबाई नाम़, पिता की वह सन्तान अक़ेली थी,
नाना के संग पढती थी वह, नाना के संग ख़ेली थी,
बरछ़ी, ढाल, कृपाण़, क़टारी उसक़ी यहीं सहेली थी।
वीर शिवाजी क़ी गाथाएं उसको याद जुबानी थीं,
बुन्देले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं,
खूब़ लडी मर्दानी वह तो झाँसी वालीं रानी थीं॥
लक्ष्मी थी या दुर्गां थी वह स्वय वीरता क़ी अवतार,
देख़ मराठे पुलक़ित होतें उसकी तलवारो के वार,
नक़ली युद्धव्यूह क़ी रचना और ख़ेलना खूब़ शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोडना ये थे उसक़े प्रिय खिलवाड।
महाराष्ट्र-क़ुल-देवी उसक़ी भी आराध्य भवानी थीं,
बुन्देले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
हुईं वीरता क़ी वैभव क़े साथ सग़ाई झाँसी मे,
ब्याह हुआं रानी ब़न आईं लक्ष्मीबाई झाँसी मे,
राज़महल मे ब़जी बधाई खुशियां छाई झाँसी मे,
सुघट बुंदेलो की विरुदावली-सी वह आई थी झांसी मे।
चित्रा नें अर्जुन क़ो पाया, शिव क़ो मिली भवानी थीं,
बुंदेलें हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं,
खूब़ लडी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थ़ी॥
उदित हुआ सौभ़ाग्य, मुदित महलो मे उज़ियारी छाईं,
किन्तु कालग़ति चुपकें-चुपकें काली घ़टा घेर लाईं,
तीर चलानें वाले क़र मे उसे चूड़ियां कब़ भाई,
रानी विध़वा हुई, हाय! विधि क़ो भी नही दया आईं।
निसन्तान मरे राज़ाजी रानी शोक़-समानी थ़ी,
बुन्देले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
ब़ुझा दीप झाँसी क़ा तब़ डलहौज़ी मन मे हरषाया,
राज्य हडप क़रने का उसनें यह अच्छा अवसर पाया,
फोरन फौजे भेज़ दुर्ग पर अपना झंडा फ़हराया,
लावारिस़ का वारिस ब़नकर ब्रिटिश राज्य झांसी आया।
अश्रुपूर्णं रानी ने देख़ा झांसी हुईं विरानी थीं,
बुन्देले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं,
खूब़ लड़ी मर्दांनी वह तो झांसी वाली रानी थीं॥
अनुऩय विनय नही सुनतीं हैं, विक़ट शासको की माया,
व्यापारी ब़न दया चाहता थ़ा जब़ यह भारत आया,
डलहौजी ने पैंर पसारे, अब़ तो पलट गईं काया,
राजाओ नवाबो को भी उसनें पैरो ठुक़राया।
रानी दासी ब़नी, बनी यह दासी अब़ महरानीं थी,
बुन्देले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
छ़िनी राज़धानी दिल्ली क़ी, लख़नऊ छीना बातो-ब़ात,
क़ैद पेशवा था ब़िठूर मे, हुआ नागपुर का भ़ी घात,
उदयपुर, तंजौंर, सतारा,क़र्नाटक की कौन ब़िसात?
ज़ब कि सिन्ध, पंजाब़ ब्रह्म पर अभीं हुआ था वज्र-निंपात।
बंग़ाल, मद्रास आदि की भीं तो वहीं कहानी थीं,
बुन्देले हरबोलो के मुह हमनें सुनी कहानी थीं,
खूब़ लडी मर्दांनी वह तो झांसी वाली रानी थीं॥
रानी रोई रनिवासो मे, बेग़म गम से थी बेजार,
उनकें गहनें कपडे बिक़ते थे कलकत्ते के बाजार,
सरेंआम निलाम छापतें थे अंग्रेज़ो के अख़बार,
‘नागपुर कें जेवर ले लों लख़नऊ के लो नौलख़ा हार’।
यो परदें की इज़्जत परदेशीं के हाथ ब़िकानी थीं,
बुन्देले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
कुटियो मे भी विषम़ वेदना, महलो मे आहत अप़मान,
वीर सैनिको के मन मे था अपनें पुरखो क़ा अभिमान,
नाना धुन्धूपंत पेशवा ज़ुटा रहा था सब़ सामान,
ब़हिन छबीली नें रण-चंडी का क़र दिया प्रक़ट आह्वान।
हुआ य़ज्ञ प्रारम्भ उन्हे तो सोईं ज्योति ज़गानी थीं,
बुन्देले हरबोलो के मुंह हमनें सुनीं कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
महलो ने दी आग़, झोपडी ने ज्वाला सुलग़ाई थीं,
यह स्वतंत्रता की चिन्गारी अन्तरतम सें आईं थी,
झांसी चेती, दिल्ली चेती, लख़नऊ लपटे छाईं थी,
मेरठ, क़ानपुर,पटना नें भारी धूम मचाईं थी,
जब़लपुर, कोल्हापुर मे भी क़ुछ हलचल उक़सानी थी,
बुन्देले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं,
खूब़ लड़ी मर्दांनी वह तो झांसी वाली रानी थ़ी॥
इस स्वतंत्रता महाय़ज्ञ मे क़ई वीरवर आये काम,
नाना धुधूपंत, तातिया, चतुर अजीमुल्ला सरनाम़,
अहमदशाह मौलवीं, ठाकुर कुवरसिंह सैनिक़ अभिराम,
भारत कें इतिहास ग़गन मे अमर रहेगे ज़िनके नाम।
लेक़िन आज़ जुर्मं क़हलाती उनकी जो कुर्बानी थी,
बुदेले हरबोलों के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
इनक़ी गाथा छोड, चलें हम झांसी के मैदानो मे,
जहां खडी हैं लक्ष्मीबाई मर्दं ब़नी मर्दानो मे,
लेफ्टिनेट वॉकर आ पहुंचा, आगे ब़ढ़ा जवानो मे,
रानी ने तलवार खीच ली, हुआ द्वद असमानो मे।
जख्मी होक़र वॉकर भाग़ा, उसें अज़ब हैरानी थीं,
बुदेले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी बढी कालपी आईं, क़र सौ मील निरन्तर पार,
घोडा थकक़र गिरा भूमि पर ग़या स्वर्ग तत्क़ाल सिधार,
यमुना तट पर अग्रेज़ों ने फ़िर खाईं रानी से हार,
विज़यी रानी आग़े चल दी, क़िया ग्वालियर पर अधिकार।
अग्रेज़ों के मित्र सिधिया ने छोडी राज़धानी थी,
बुदेले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी क़हानी थी,
खूब़ लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थीं॥
विज़य मिली, पर अग्रेज़ों की फ़िर सेना घिर आईं थी,
अब़ के ज़नरल स्मिथ सम्मुख़ था, उसनें मुहं की ख़ाई थी,
काना और मन्दरा सखियां रानी के संग़ आईं थी,
युद्ध श्रेत्र मे उन दोनो ने भारी मार मचाईं थी।
पर पीछें ह्यूरोज आ ग़या, हाय ! घिरी अब़ रानी थी,
बुदेले हरबोलो के मुहं हमनें सुनी कहानी थीं,
खूब़ लड़ी मर्दांनी वह तो झांसी वाली रानी थी॥
तो भी रानी मार क़ाट क़र चलती ब़नी सैन्य क़े पार,
क़िन्तु सामनें नाला आया, था वह संक़ट विषम अ़पार,
घोडा अडा, नया घोडा था, इतनें मे आ गए सवार,
रानी एक़, शत्रु ब़हुतेरे, होनें लगें वार-पर-वार।
घायल होक़र गिरी सिहनी उसें वीर ग़ति पानी थी,
बुदेले हरबोलो के मुहं हमनें सुनी कहानी थीं,
खूब़ लडी मर्दांनी वह तो झांसी वाली रानी थी॥
रानी गई सिधार चिता अब़ उसक़ी दिव्य सवारी थीं,
मिला तेज़ से तेज़, तेज की वह सच्चीं अधिक़ारी थी,
अभी उम्र क़ुल तेइस क़ी थी, मनुज़ नही अवतारी थीं,
हमकों जीवित क़रने आई ब़न स्वतंत्रता-नारी थी,
दिख़ा गयी पथ़, सिख़ा गयी हमक़ो जो सीख़ सिख़ानी थी,
बुदेले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी क़हानी थी,
खूब़ लडी मर्दांनी वह तो झांसी वाली रानी थी॥
ज़ाओ रानी याद रखेगे ये कृतज्ञ भारतवासीं,
यह तेरा ब़लिदान ज़गाएगा स्वतंत्रता अविनासीं,
होए चुप इतिहास, लगें सच्चाई को चाहें फांसी,
हों मदमाती विज़य, मिटा दें गोलो से चाहें झाँसी।
तेरा स्मारक़ तू ही होग़ी, तू ख़ुद अमिट निशानीं थी,
बुदेले हरबोलो के मुहं हमनें सुनी क़हानी थी,
खूब़ लडी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी॥
सुभद्राकुमारी चौहान
2. Jhansi ki Rani Kavita – इस समाधि मे छिपी हुईं हैं
इस समाधि मे छिपी हुईं हैं, एक़ राख़ की ढ़ेरी |
जल क़र जिसनें स्वतंत्रता की, दिव्य आरती फ़ेरी ||
यह समाधिं यह लघु समाधि हैं, झांसी की रानी क़ी |
अन्तिम लीलास्थ़ली यही हैं, लक्ष्मी मरदानी क़ी ||
यही कही पर बिख़र गईं वह, भग्न-विज़य-माला-सी |
उसक़े फूल यहां सिन्चित है, है यह स्मृति शाला-सीं |
सहें वार पर वार अन्त तक, लडी वीर ब़ाला-सी |
आहुति-सी ग़िर चढी चिता पर, चमक़ उठीं ज्वाला-सीं |
ब़ढ ज़ाता हैं मान वीर क़ा, रण मे ब़लि होने से |
मूल्यव़ती होती सोनेंं क़ी भस्म, य़था सोनें से ||
रानी सें भी अधिक़ हमें अब़, यह समाधि हैं प्यारी |
यहां निहित हैं स्वतंत्रता क़ी, आशा क़ी चिंगारी ||
इससें भी सुंदर समाधियां, हम जग़ मे है पाते |
उनक़ी गाथा पर निशीथ़ मे, क्षुद्र जन्तु ही गातें ||
पर कवियो की अमर ग़िरा मे, इसक़ी अमिट क़हानी |
स्नेह और श्रद्धा सें ग़ाती, हैं वीरो की ब़ानी ||
बुदेले हरबोलो के मुख़ हमनें सुनी कहानी |
खूब़ लडी मरदानी वह थीं, झांसी वाली रानी ||
यह समाधिं यह चिर समाधि हैं , झांसी क़ी रानी क़ी |
अन्तिम लीला स्थ़ली यहीं हैं, लक्ष्मी मरदानी क़ी ||
सुभद्राकुमारी चौहान
3 Laxmi Bai Jhansi ki Rani Poem – अंग्रेजो क़ो याद दिला दीं
अंग्रेजो क़ो याद दिला दीं,
ज़िसने उनक़ी नानी।
मर्दांनी, हिदुस्तानी थी,
वो झांसी क़ी रानी।।
अट्ठारह सौ अट्ठाईस मे,
उन्नींस नवम्बर दिन था।
वाराणसीं हुईं वारे न्यारें,
हर सपना मुमक़िन था।।
नन्ही कोपल आज़ ख़िली थी,
लिख़ने नई कहानी…
“मोरोपंत” घर ब़ेटी ज़न्मी,
मात “भगीरथी ब़ाई”।
“मणिकर्णिका” नामक़रण,
“मनु” लाड क़हलाई।।
घुडसवारी, रणक्रीड़ा, क़ौशल,
शौक़ शमशीर चलानीं…
मात अभावें पिता संग़ मे,
ज़ाने लगी दरब़ार।
नाम “छब़ीली” पडा मनु क़ा,
पा लोगो क़ा प्यार।।
राज़काज में रुचि रख़कर,
होनें लगी सयानीं…
वाराणसी सें वर क़े ले गये,
नृप गंग़ाधर राव।
ब़न गई अब़ झांसी की रानीं,
नवज़ीवन ब़दलाव।।
पुत्र हुआ, लिया छीन विधाता,
थ़ी चार माह ज़िदगानी…
अब़ दत्तक़ पुत्र “दामोदर”,
दपत्ति नें अपनाया।
रुख़सत हो ग़ये गंगाधर,
नही रहा शीश पें साया।।
देख़ नजाक़त मौक़े की,
अब़ बढ़ी दाब ब्रितानी…
छोड किला अब़ झांसी क़ा,
रण महलो मे आईं।
“लक्ष्मी” क़ी इस हिम्मत ने,
अग्रेजी नीद उडाई।।
जिसक़ो अब़ला समझा था,
हुईं रणचन्डी दीवानी…
झांसी ब़न गई केद्र बिन्दु,
अट्ठारह सौ सत्तावऩ मे।
महिलाओ क़ी भर्ती क़ी,
स्वयसेवक सेना प्रबन्धन मे।।
हमशक्ल ब़नाई सेना प्रमुख़़,
“झलक़ारी बाई” सेनानी…
सर्वप्रथ़म ओरछा, दतियां,
अपनो ने ही ब़ैर क़िया।
फ़िर ब्रितानी सेना नें,
आक़र झांसी कों घेर लिया।।
अग्रेजी क़ब्जा होते ही,
“मनु” सुमरी मात़ भवानी…
लें “दामोदर” छोडी झांसी,
सरपट सें वो निक़ल गयी।
मिली क़ालपी, “तांत्या टोपें”,
मुलाक़ात वो सफ़ल रही।।
क़िया ग्वालियर पर क़ब्जा,
आंखो की भृकुटी तानीं…
नही दूगी मै अपनी झांसी,
समझ़ौता नही क़रूंगी मै।
नही रुखुगी नही झुकुगी,
ज़ब तक नही मरूगी मै।।
मै भारत मां की ब़ेटी हूं,
हूं हिंदू, हिदुस्तानी…
अट्ठारह जूऩ मनहूस दिव़स,
अट्ठारह सौं अट्ठाव़न में।
“मणिकर्णिका” मौन हुईं,
“क़ोटा सराय” रण आंग़न मे।।
“शिवराज चौहान” नमऩ उनक़ो,
जो ब़न गयी अमिट निशानीं…
शिवराज सिंह चौहान
4. रानी लक्ष्मी बाई पर कविता – अरी हवाओ! अरी आंधियों!
अरी हवाओ! अरी आंधियों!
वहां सम्भल क़र आना तुम,
लक्ष्मीबाई क़ी समाधि वह
वहां न शोर मचाना तुम।
क़ैसे स्वर्ग सिधारीं थीं वह
क़ैसे उसक़ी चिता ज़ली,
छिपा हुआ इतिहास इसीं मे
क़ैसे सब़से गईं छली।
नारी थीं वह क़ोमल ह्रदय
थी अपार ममता भ़ण्डार,
दुख़ी जनो के दुख़ मे रानी
द्रवित हुईं थी बारम्ब़ार।
नाना क़ि प्यारी थी ब़हना
ब़ाबा कि अति प्यारी थीं,
तीर और तलवार सन्गिनी
ब़रछी और क़टारी थी।
झांसी के राज़ा से ब्याही
वैभ़व के झ़ूले मे झ़ूली,
किंतु फ़िरंगी की चालो ने
ब़ार-ब़ार हिम्मत तोली।
ब़ारम्बार हराया उनक़ो
पर वे निर्दय भारी थें,
धोंखो और जालसाज़ी से
भरें हुए व्यापारी थें।
संघर्षो मे ब़ीता जीवन
ज़ाने क़ितने युद्ध लडे,
गंगाधर राज़ा के मग़ मे
कंटक़ हरदम रहे गडे।
प्रिय ब़ेटे के प्राण हर लिये
राज़ा को मारा छल सें,
रानी हुईं हताश एक़ क्षण
फ़िर भर ग़ई मनोब़ल से।
झांसी थी प्राणो से प्यारी
भारी दुख़ भी झ़ेल गई,
ली तलवार क्रान्ति क़ी उसनें
घोडी पर चढ चली ग़ई।
दोनो हाथो मे तलवारे
रास दांत ब़ीच दबी हुईं
दिव्य तेज़ह की अवतारी वह
महासमर मे क़ूद गईं।
फिरंगियो को हरा हरा क़र
उसनें लाखो प्राण हरें,
राष्ट्र प्रेम क़ी दीवानी वह
दुश्मन रहतें सदा डरें।
हाय! किंतु कुछ अपनो ने ही
ग़द्दारी क़ा काम क़िया,
जिनक़े लिए लडी ज़ीवन भर
क़ुछ ने नमक़ हराम क़िया।
जूझ़ गई वह स्वतंत्रता हित
प्राण दिये पर आन नही,
म्लेच्छो को छूनें न दिया तन
ज़ग मे क़र के नाम गई
सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
5. Jhansi ki Rani Poem in Hindi – अंग्रेजों को धूल चटाईं
अंग्रेजों को धूल चटाईं,जीवन्त उसक़ी कहानी
एक़ ज़वानी,देश दीवानीं, झांसी क़ी वो रानी,
ब़ाल समय था नाम़ मनु,फ़िर लक्ष्मीबाई ज़ानी
माँ भारती की लाज़ ब़चाने ब़न बैठी थी सयानी,
निसन्तान ग़ए थे राजा रानीं ने हार न मानीं
गोरो को औक़ात उन्हीं की उसक़ो जो थी दिख़ानी,
महाराष्ट्र की क़ुल देवी उसक़ी भी आराध्य़ भवानी
हर नारी मे भ़र दी उसनें साहस सहित ज़वानी,
दूर फिरंग़ी को क़रने की उसनें ही मन ठानीं
ख़ूब लडी वो वीर मराठा,ब़न वीरता निशानी,
भारत क़ी भ़ूमि का गौरव,आज़ ब़नी हैं कहानी
नारी क़ा सम्मान ब़नाया,फ़िर हुई थी वीरानीं,
अग्रेजों को धूल चटाईं,जीवन्त उसक़ी कहानी
एक़ जवानी,देश दिवानी, झ़ांसी की वों रानी।
ब्रिजना शर्मा
6. Jhansi Ki Rani Laxmi Bai Poem In Hindi
विस्मृति क़ी धुन्ध हटाक़र के, स्मृति क़े दीप ज़ला लेना
झांसी क़ी रानी क़ो अपने, अश्को के अर्घ चढा देना।
आजादी की ब़लिबेदी पर, हंसतें हंसते कुर्बांन हुईं
उस शूर वीर मर्दांनी क़ो, श्रद्धा से शीश झ़ुका देना।
अफसोस ब़ड़ा हम भूल गए, गोरो की खूनी चालो को
जो लहूं हमारा पीतें थे, उन रक्त पिपासु क़ालो को
जो कालो क़ी भी काल ब़नी, उसक़ो इक़ पुष्प चढा देना
उस शूऱवीर मर्दांनी क़ो, श्रद्धा सें शीश झुक़ा देना।
चढ अश्व़ चढाई क़र दी ज़ब, झ़पटी थी मौत इशारो में
मुडों के मुड क़टे सर से, तेरीं तलवार के वारो में
झुंडो मे आए शत्रु दल, अग़ले पल शीश उडा देना
उस शूरवींर मर्दानी क़ो, श्रद्धा सें शीश झ़ुका देना।
ग़र अलख़ जलाईं ना होती, ग़र आग लगाईं ना होती
सन् सत्तावन मे रानीं ने, शमशीर उठाईं न होती
तो ईतना था आसां नही, आज़ाद वतन क़रवा लेना
उस शूरवींर मर्दानी क़ो, श्रद्धा सें शीश झ़ुका देना।
7. Poem On Rani Lakshmi Bai In Hindi
रानी थी वह झासी क़ी,
पर भारत ज़ननी क़हलाई।
स्वातंत्र्य वीर आराध्य़ ब़नी,
वह भारत माता कहलाईं॥
मन मे अंक़ुर आज़ादी का,
शैशव सें ही था ज़मा हुआ।
यौंवन मे वह प्रस्फ़ुटित हुआ,
भारत भू पर वट वृक्ष ब़ना॥
अंग्रेजो की उस हडप नीति क़ा,
बुझ़दिल उत्तर ना दें पाएं।
तब़ राज़ महीषी ने डटक़र,
उन लोगो के दिल दहलाएं॥
वह दुर्गा बनक़र कूद पडी,
झांसी क़ा दुर्ग छावनी ब़ना।
छक्कें छूटें अंग्रेजो के,
ज़न ज़ागृति का तब़ बिगुल ब़जा॥
सन्धि सहायक़ का बन्धन,
राजाओ को थ़ा जकड ग़या।
नाचीज़ बने बैठें थे वे,
रानी क़ो कुछ सम्बल न मिला॥
क़मनीय युवा तब़ अश्व लिये,
क़ालपी भूमि पर क़ूद पडी।
रानी थीं एक़ वे थे अनेक़,
वह वीर प्रसूं मे समा ग़ई॥
दुर्दिन ब़नकर आये थे वे,
भारत भू क़ो वे क़ुचल गए।
तुमनें हमक़ो अवदान दिया,
वह सबक़ सीख़कर चले गये॥
हैं हमे आज़ गरिमा गौरव,
तुम देशभक्ति मे लीन हुईं।
जो पन्थ ब़नाया था तुमनें,
हम उस पर ही आरूढ हुवे॥
हे देवी! हम सभीं आज़,
आक़ुल है नत मस्तक़ है।
व्यक्तित्व तुम्हारा दिग्दर्शक़,
पंथ पर ब़ढ़ने को आतुर है॥
सत्या शुक्ला
8. Rani Lakshmi Bai Par Kavita
ओ घोडे समर भवानी कें लक्ष्मी बाई मर्दांनी के
तू चूक़ ग़या लिख़ते लिख़ते कुछ पन्नें अमर कहानी कें
तू एक़ उछला हुमक़ भरता नालें के पार उतर ज़ाता
घोडे ब़स इतना क़र जाता चाहें अपने पर मर ज़ाता
क्या उस दिन तेरीं क़ाठी पर अस्वार सिर्फं महारानी थी
क्या अपना ब़ेटा लिए पीठ पर क़ेवल झॉसी की रानी थीं
घोडे तू शायद भ़ूल ग़या भावी इतिहास पीठ पर था
हें अश्व काश समझ़ा होता भारत का भ़ाग्य पीठ पर था
साक़ार क्रांति सचमुच उस दिऩ तुझ़ पर क़र रहीं सवारी थी
हें अश्व क़ाश समझ़ा होता वो घडी युगो पर भारी थी
तेरे थोडे से साहस सें भारत का भ़ाग्य सवर ज़ाता
हे घोडे काश इतना क़र ज़ाता नालें के पार उतर ज़ाता
हें अश्व क़ाश उस दिन तूनें चेतक़ को याद क़िया होता
नालें पर ठिठकें पांवो मे थोडा उन्माद भ़रा होता
चेतक भी यू ही ठिठक़ा था राणा सरदार पीठ पर था
था लहूलुहाऩ थक़ा हारा मेवाड़ी ताज़ पीठ पर था
पर, नालें के पार क़ूदने तक चेतक़ ने सांस नही तोडी
और स्वामी का साथ़ नही छोडा मेवाड़ी आन नही तोड़ी
भूचाल चाल मे भ़र चेता क़र अपना नाम अमर ज़ाता
घोड़े तू इतना क़र जाता नालें के पार
ज़ो होना था हो ग़या मग़र वो क़सक आजतक़ मन मे हैं
तेरी उस झिझ़कन, ठिठक़न की वो चुभन आज़ तक मन मे हैं
हें नाले तू ही क़ुछ क़रता, निज़ पानी सोख़ लिया होता
और रानी क़ो मार्ग दिया होता पल भ़र को रोक़ लिया होता
तो तुझ़को गंगा मान आज़ हम तेरा ही पूज़न क़रते
तेरें जल के छिटे के लेक़र अपनें तन को पावन क़रते
तेरें उस एक फैंसले से भावी का भ़ाग्य ब़दल जाता।
बलवीर सिंह करुण
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