Majboori Shayari – यहाँ पर Majboori Shayari in Hindi का संग्रह दिया गया हैं. हर कोई जीवन में कभी न कभी मजबूर होता हैं. मजबूरी के चलते उसे वह काम करना पड़ता हैं जो वह नहीं करना चाहता हैं. जब हम किसी वजह से मजबूर होते हैं. तब कुछ बुरे लोग इस मज़बूरी का फायदा उठाना चाहते हैं. तो अच्छे लोग इस समय हमारी मदद भी करते हैं. शायरों ने जिम्मेदारी मजबूरी को आधार मानकर बहुत सारे शायरी लिखी हैं.
अब आइए यहाँ पर कुछ मजबूरी पर शायरी दी गई हैं. इसको पढते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी जिम्मेदारी मजबूरी पर शायरी आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.
मजबूरी शायरी, Majboori Shayari in Hindi
(1) इतना तो समझते थे हम भी उस की मजबूरी
इंतिज़ार था लेकिन दर खुला नहीं रक्खा
– भारत भूषण पन्त
(2) तेरी मजबूरियां दुरुस्त मगर
तू ने वादा किया था याद तो कर
– नासिर काज़मी
(3) आप की याद में रोऊं भी न मैं रातों को
हूं तो मजबूर मगर इतना भी मजबूर नहीं
– मंज़र लखनवी
(4) ज़िंदगी है अपने क़ब्ज़े में न अपने बस में मौत
आदमी मजबूर है और किस क़दर मजबूर है
– अहमद आमेठवी
(5) रस्म-ओ-रिवाज छोड़ के सब आ गए यहाँ
रक्खी हुई हैं ताक़ में अब ग़ैरतें तमाम
अदील ज़ैदी
(6) दुश्मन मुझ पर ग़ालिब भी आ सकता है
हार मिरी मजबूरी भी हो सकती है
बेदिल हैदरी
(7) आज़ादियों के शौक़ ओ हवस ने हमें ‘अदील’
इक अजनबी ज़मीन का क़ैदी बना दिया
अदील ज़ैदी
(8) न-जाने कौन सी मजबूरियाँ हैं जिन के लिए
ख़ुद अपनी ज़ात से इंकार करना पड़ता है
अतहर नासिक
(9) मैं ने सामान-ए-सफ़र बाँध के फिर खोल दिया
एक तस्वीर ने देखा मुझे अलमारी से
अज्ञात
(10) मैं चाहता हूँ उसे और चाहने के सिवा
मिरे लिए तो कोई और रास्ता भी नहीं
सऊद उस्मानी
2 Line Majboori Shayari
(11) जो कुछ पड़ती है सर पर सब उठाता है मोहब्बत में
जहाँ दिल आ गया फिर आदमी मजबूर होता है
लाला माधव राम जौहर
(12) वहशतें इश्क़ और मजबूरी
क्या किसी ख़ास इम्तिहान में हूँ
ख़ुर्शीद रब्बानी
(13) एहसान ज़िंदगी पे किए जा रहे हैं हम
मन तो नहीं है फिर भी जिए जा रहे हैं हम
इम्तियाज़ ख़ान
(14) क्या मस्लहत-शनास था वो आदमी ‘क़तील’
मजबूरियों का जिस ने वफ़ा नाम रख दिया
क़तील शिफ़ाई
(15) ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं
हाए इस क़ैद को ज़ंजीर भी दरकार नहीं
फ़ानी बदायुनी
(16) इधर से भी है सिवा कुछ उधर की मजबूरी
कि हम ने आह तो की उन से आह भी न हुई
जिगर मुरादाबादी
(17) मिरी मजबूरियाँ क्या पूछते हो
कि जीने के लिए मजबूर हूँ मैं
हफ़ीज़ जालंधरी
(18) हाए रे मजबूरियाँ महरूमियाँ नाकामियाँ
इश्क़ आख़िर इश्क़ है तुम क्या करो हम क्या करें
जिगर मुरादाबादी
(19) कुर्सी है तुम्हारा ये जनाज़ा तो नहीं है
कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते
इरतिज़ा निशात
(20) ज़िंदगी है अपने क़ब्ज़े में न अपने बस में मौत
आदमी मजबूर है और किस क़दर मजबूर है
अहमद आमेठवी
मजबूरी शायरी
(21) ये मेरे इश्क़ की मजबूरियाँ मआज़-अल्लाह
तुम्हारा राज़ तुम्हीं से छुपा रहा हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
(22) तेरी मजबूरियाँ दुरुस्त मगर
तू ने वादा किया था याद तो कर
नासिर काज़मी
(23) कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
बशीर बद्र
(24) मिलना एक इत्तेफ़ाक है,
और बिछड़ना मजबूरी है,
चार दिन की इस जिन्दगी में
सबका साथ होना जरूरी है.
(25) जो लोग आपकी मजबूरी को समझते है,
वही आपके मजबूरी का फायदा उठाते है.
(26) आप दिल से यूँ पुकारा ना करो
हमको यूँ प्यार से इशारा ना करो
हम दूर हैं आपसे ये मजबूरी है हमारी
आप तन्हाइयों मे यूँ रुलाया ना करो.
(27) कुछ अलग ही करना है तो वफ़ा
करो, वरना मजबूरी का नाम
लेकर बेवफाई तो सभी करते है.
(28) किसी की मजबूरी का मजाक ना
बनाओ यारों,जिन्दगी कभी मौका
देती है तो कभी धोखा भी देती है.
(29) मैं मजबूरियां ओढ़ कर निकलता हूँ घर
से आज कल,वरना शौक तो आज भी है
बारिशों में भीगने का।
(30) मजबूरी में जब जुदा होता है,
ज़रूरी नहीं के वो बेवफा होता है,
दे कर वो आपकी आँखों में आँसू,
अकेले में आपसे भी ज्यादा रोता है.
Majboori Shayari in Hindi
(31) थक जाता हु अनकहे शब्दों के बोझ
से पता नहीं चुप रहना समझदारी हे
या मजबूरी।
(32) बहाना कोई तो ऐ ज़िंदगी दे,
कि जीने के लिए मजबूर हो जाऊँ.
(33) तुम बेवफा नहीं ये तो धड़कने भी कहती हैं,
अपनी मजबूरी का एक पैगाम तो भेज देते।
(34) वह मान न सके गुजारिश हमारी
मजबूरी हमारी वह जान न सके
कहते हे याद रखेंगे मरते दम तक
जीते जी पहचान न सके।
(35) सब गुलाम है अपने हालातों के यहाँ,
बेचैन आँखे सोती नहीं रातों में यहाँ।
(36) वो छोड़ के गए हमें,न जाने उनकी
क्या मजबूरी थी,खुदा ने कहा इसमें
उनका कोई कसूर नहीं,ये कहानी
तो मैंने लिखी ही अधूरी थी.
(37) कुछ अलग ही करना है तो वफ़ा
करो वरना मजबूरी का नाम लेकर
वफाई तो सभी करते है.
(38) कितने मजबूर हैं हम,प्यार के हाथों
ना तुझे पाने की औकात, ना तुझे
खोने का हौसला.
(39) मेरी मज़बूरी को समझोगे तो रो तो ना दोगी
पेड़ से टूटे पत्तों की तरह मुझे खो तो ना दोगे.
(40) तेरी ख़ामोशी अगर तेरी मज़बूरी हैं
तो रहने दे इश्क कौन सा जरुरी हैं.
Majboori Shayari
(41) यादों की कीमत वो क्या जाने
जो खुद यादों को मिटा दिया करते हैं.
यादों की कीमत तो उनसे पुछो जो यादों
के सहारे जिंदगी बिता दिया करते हैं.
(42) सूनसान सी लग रही है आज ये शायरों
की महफ़िल क्या किसी के दिल में अब
दर्द नहीं रहा.
(43) न खेल दिल से मेरे न जज़्बातों से
बहुत बुरी तरह टूटा है ये दिल
अब डर लगता है इश्क़ की बातों से.
(44) किसी की मजबूरी का मजाक ना बनाओ दोस्तों !
जिन्दगी कभी मौका देती है ।
तो कभी धोखा भी देती है !
(45) किसी की मजबूरी कोई समझता नहीं !
दिल टूटे तो दर्द होता है, मगर कोई कहता नहीं !
(46) ऐसा नही है की वक्त ने मौका नहीं दिया,
हम आगे बढ़ सकते थे,
पर तूने मजबूर किया !
(47) क्या गिला करें तेरी मजबूरियों का हम,
तू भी इंसान है कोई खुदा नहीं,
मेरा वक़्त जो होता मेरे मुनासिब,
मजबूरिओं को बेच कर तेरा,
दिल खरीद लेता ।
(48) होगी कोई मजबूरी उसकी भी,
जो बिन बताएं चला गया,
वापस भी आया तो किसी
और का होकर आया !
(49) थके लोगों को मजबूरी में चलते देख लेता हूँ!
मैं बस की खिड़कियों से ये तमाशे देख लेता हूँ😒
(50) बोझ उठाना शौक कहाँ है मजबूरी का सौदा है ,
रहते रहते स्टेशन पर लोग कुली हो जाते हैं ।
(51) पढ़ने की उम्र में उसने बच्चे से मजदूरी कराई थी,
वह मजदूरी नही साहब मजबूरी थी।
(52) “किसी की अच्छाई का इतना भी फायदा मत उठाओ !
कि वो बुरा बनने के लिए मजबूर हो जाये ।
(53) वो हमेशा बात बनाती क्यों थी,
मेरी झुठी कसम खाती क्यों थी,
मजबूरियों का बहाना बना कर
मुझ से दामन छुड़ाती क्यों थी !
(54) कई लोग तो बस दिखाते हैं अमीरी,
समझते नहीं हैं दूसरों की मजबूरी ।
(55) “मैं बोलता हूँ तो इल्जाम है बगावत का,
मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है ।
(56) कितने मजबूर हैं हम प्यार के हाथों,
ना तुझे पाने की औकात,
ना तुझे खोने का हौसला !
(57) अपने टूटे हुए सपनों को बहुत जोड़ा,
वक्त और हालत ने मुझे बहुत तोड़ा,
बेरोजगारी इतने दिन तक साथ रही की,
मजबूरी में हमने शहर छोड़ा !
(58) हमने खुदा से बोला वो छोड़ के चले गये !
न जाने उनकी क्या मजबूरी थी !
खुदा ने कहा इसमें उसका कोई कसूर नहीं !
ये कहानी तो मैंने लिखी ही अधूरी थी ।
(59) मजबूरी हैं सांसों की जो चल रही है,
वरना जिंदगी तो कब की थम गई हैं !
(60) क्या गिला करें तेरी मजबूरियों का हम,
तू भी इंसान है कोई खुदा तो नहीं,
मेरा वक्त जो होता मेरे मुनासिब,
मजबूरियों को बेच कर तेरा दिल खरीद लेता !
(61) किसी गिरे इन्सान को उठाने आये या ना आये,
ये जमाने वाले मजबुरी में पड़े इंसान का फायदा,
उठाने जरुर आयेंगे !
(62) मोहब्बत किस को कहते हैं,
मोहब्बत कैसी होती हैं,
तेरा मजबूर कर देना,
मेरा मजबूर हो जाना ।
(63) गरीब अक्सर तबियत का बहाना बनाकर,
मजबूरियाँ छुपा जाते हैं !
(64) कभी गम तो कभी खुशी देखी,
हमने अक्सर मजबूरी और बेकसी देखी,
उनकी नाराजगी को हम क्या समझें,
हमने तो खुद अपनी तकदीर की बेबसी देखी !
(65) चाँद की चांदनी आँखों में उतर आयी,
कुछ ख्वाब थे और कुछ मेरी तन्हाई,
ये जो पलकों से बह रहे हैं हल्के हल्के,
कुछ तो मजबूरी थी कुछ तेरी बेवफाई !
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