Motivational Poem in Hindi | Motivational Kavita in Hindi

Motivational Poem in Hindi – दोस्तों आज इस लेख में बहुत ही बेहतरीन Motivational Poetry in Hindi का संग्रह दिया गया हैं. जो आपके मन को निराशा के भंवर से निकालकर आपके मन को जोश से ओत – प्रोत कर देगा.

यह Motivational Kavita in Hindi को प्रसिद्ध लेखकों द्वारा लिखा गया हैं. महान कवियों ने हमारे लिए कुछ प्रेरणादायक प्रसिद्ध हिंदी कविताएँ लिखी हैं. जिसको पढने से हमारे अन्दर आगे बढ़ने का जज्बा पैदा होता हैं. क्योकि इन कविताओं में कुछ प्रेरणादायक शब्द लिखे होते हैं. जिससे निराशा से बहार निकलने की शक्ति मिलती हैं.

दोस्तों अभी के समय में अधिकतर लोग अपने आप को सर्वश्रेष्ठ और दूसरों को नीचा दिखाने में लगे हैं. बहुत कम लोग ही हैं. जो दुसरे को सफलता और आगे बढ़ने के लिए सोचते हैं.

अब आइए नीचे कुछ प्रेरणादायक कविताएँ दिए गए हैं. उसको पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की आपको यह सभी मोटिवेशनल कविता हिंदी में पसंद आयगी. इस Motivational Kavita in Hindi को अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर शेयर भी करें.

प्रेरणादायक प्रसिद्ध हिंदी कविताएँ, Motivational Poem in Hindi

Motivational Hindi Poems

1. Motivational Hindi Poems – लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, बार बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर एक बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

हरिवंशराय बच्चन

2. Motivated Poem in Hindi – वृक्ष हों भले खड़े

वृक्ष हों भले खड़े,
हों बड़े, हों घने,
एक पत्र छाँह भी
मांग मत! मांग मत! मांग मत!
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!
तू न थकेगा कभी,
तू न थमेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ! कर शपथ! कर शपथ!
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!
यह महान दृश्य है,
देख रहा मनुष्य है,
अश्रु, स्वेद, रक्त से
लथ-पथ, लथ-पथ, लथ-पथ,
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!

हरिवंशराय बच्चन

3. Motivational Kavita in Hindi  – गिरना भी अच्छा है

“गिरना भी अच्छा है,
औकात का पता चलता है…
बढ़ते हैं जब हाथ उठाने को…
अपनों का पता चलता है!

जिन्हे गुस्सा आता है,
वो लोग सच्चे होते हैं,
मैंने झूठों को अक्सर
मुस्कुराते हुए देखा है…

सीख रहा हूँ मैं भी,
मनुष्यों को पढ़ने का हुनर,
सुना है चेहरे पे…
किताबो से ज्यादा लिखा होता है…!”

अमिताभ बच्चन

Motivated Poem in Hindi

4. प्रेरणादायक कविताएं – तो तू चल अकेला

तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला,
चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला!
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो चल तू अकेला,
जब सबके मुंह पे पाश..
ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश,
हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाय!
तब भी तू दिल खोलके, अरे! जोश में आकर,
मनका गाना गूंज तू अकेला!
जब हर कोई वापस जाय..
ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई बापस जाय..
कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाय…

रवीन्द्रनाथ ठाकुर

5. Motivational Poem in Hindi – कोने में बैठ कर क्यों रोता है

कोने में बैठ कर क्यों रोता है,
यू चुप चुप सा क्यों रहता है।

आगे बढ़ने से क्यों डरता है,
सपनों को बुनने से क्यों डरता है।

तकदीर को क्यों रोता है,
मेहनत से क्यों डरता है।

झूठे लोगो से क्यों डरता है,
कुछ खोने के डर से क्यों बैठा है।

हाथ नहीं होते नसीब होते है उनके भी,
तू मुट्ठी में बंद लकीरों को लेकर रोता है।

भानू भी करता है नित नई शुरुआत,
सांज होने के भय से नहीं डरता है।

मुसीबतों को देख कर क्यों डरता है,
तू लड़ने से क्यों पीछे हटता है।

किसने तुमको रोका है,
तुम्ही ने तुम को रोका है।

भर साहस और दम, बढ़ा कदम,
अब इससे अच्छा कोई न मौका है।

नरेंद्र वर्मा

6. Motivational Hindi Poems – तुम मन की आवाज सुनो

तुम मन की आवाज सुनो,
जिंदा हो, ना शमशान बनो,
पीछे नहीं आगे देखो,
नई शुरुआत करो।

मंजिल नहीं, कर्म बदलो,
कुछ समझ ना आए,
तो गुरु का ध्यान करो,
तुम मन की आवाज सुनो।

लहरों की तरह किनारों से टकराकर,
मत लौट जाना फिर से सागर,
साहस में दम भरो फिर से,
तुम मन की आवाज सुनो।

सपनों को देखकर आंखें बंद मत करो,
कुछ काम करो,
सपनों को साकार करो,
तुम मन की आवाज सुनो।

इम्तिहान होगा हर मोड़ पर,
हार कर मत बैठ जाना किसी मोड़ पर,
तकदीर बदल जाएगी अगले मोड़ पर,
तुम अपने मन की आवाज सुनो।

नरेंद्र वर्मा

7. Motivated Poem in Hindi – हर पल है जिंदगी का उम्मीदों से भरा

हर पल है जिंदगी का उम्मीदों से भरा,
हर पल को बाहों में अपनी भरा करो,
किस्तों में मत जिया करो।

सपनों का है ऊंचा आसमान,
उड़ान लंबी भरा करो,
गिर जाओ तुम कभी,
फिर से खुद उठा करो।

हर दिन में एक पूरी उम्र,
जी भर के तुम जिया करो,
किस्तों में मत जिया करो।

आए जो गम के बादल कभी,
हौसला तुम रखा करो,
हो चाहे मुश्किल कई,
मुस्कान तुम बिखेरा करो।

हिम्मत से अपनी तुम,
वक्त की करवट बदला करो,
जिंदा हो जब तक तुम,
जिंदगी का साथ ना छोड़ा करो,
किस्तों में मत जिया करो।

थोड़ा पाने की चाह में,
सब कुछ अपना ना खोया करो,
औरों की सुनते हो
कुछ अपने मन की भी किया करो,
लगा के अपनों को गले गैरों के संग भी हंसा करो,
किस्तों में मत जिया करो।

मिले जहां जब भी जो खुशी,
फैला के दामन बटोरा करो,
जीने का हो अगर नशा,
हर घूंट में जिंदगी को पिया करो,
किस्तों में मत जिया करो।

विनोद तांबी

Motivational Kavita in Hindi

8. Motivational Kavita in Hindi – राह में मुश्किल होगी हजार

राह में मुश्किल होगी हजार,
तुम दो कदम बढाओ तो सही,
हो जाएगा हर सपना साकार,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।

मुश्किल है पर इतना भी नहीं,
कि तू कर ना सके,
दूर है मंजिल लेकिन इतनी भी नहीं,
कि तु पा ना सके,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।

एक दिन तुम्हारा भी नाम होगा,
तुम्हारा भी सत्कार होगा,
तुम कुछ लिखो तो सही,
तुम कुछ आगे पढ़ो तो सही,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।

सपनों के सागर में कब तक गोते लगाते रहोगे,
तुम एक राह चुनो तो सही,
तुम उठो तो सही, तुम कुछ करो तो सही,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।

कुछ ना मिला तो कुछ सीख जाओगे,
जिंदगी का अनुभव साथ ले जाओगे,
गिरते पड़ते संभल जाओगे,
फिर एक बार तुम जीत जाओगे।

तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।

नरेंद्र वर्मा

9. प्रेरणादायक कविताएं – माना हालात प्रतिकूल हैं

माना हालात प्रतिकूल हैं, रास्तों पर बिछे शूल हैं
रिश्तों पे जम गई धूल है
पर तू खुद अपना अवरोध न बन
तू उठ…… खुद अपनी राह बना………………………..

माना सूरज अँधेरे में खो गया है……
पर रात अभी हुई नहीं, यह तो प्रभात की बेला है
तेरे संग है उम्मीदें, किसने कहा तू अकेला है
तू खुद अपना विहान बन, तू खुद अपना विधान बन………………………..

सत्य की जीत हीं तेरा लक्ष्य हो
अपने मन का धीरज, तू कभी न खो
रण छोड़ने वाले होते हैं कायर
तू तो परमवीर है, तू युद्ध कर – तू युद्ध कर………………………..

इस युद्ध भूमि पर, तू अपनी विजयगाथा लिख
जीतकर के ये जंग, तू बन जा वीर अमिट
तू खुद सर्व समर्थ है, वीरता से जीने का हीं कुछ अर्थ है
तू युद्ध कर – बस युद्ध कर………………………..

10. Motivational Poem in Hindi – नर हो, न निराश करो मन को

नर हो, न निराश करो मन को

कुछ काम करो, कुछ काम करो

जग में रहकर कुछ नाम करो

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो

समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो

कुछ तो उपयुक्त करो तन को

नर हो, न निराश करो मन को.

संभलो कि सुयोग न जाय चला

कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला

समझो जग को न गिरा सपना

पथ आप प्रशस्त करो अपना

अखिलेश्वर है अवलंबन को

नर हो, न निराश करो मन को.

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्व यहाँ

फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ

तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो

उठके अमरत्व विधान करो

दवरूप रहो भव कानन को

नर हो, न निराश करो मन को.

निज गौरव का नित ज्ञान रहे

हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे

मरणोत्तर गुंजित गान रहे

सब जाय अभी पर मान रहे

कुछ हो न तजो निज साधन को

नर हो, न निराश करो मन को.

प्रभु ने तुमको कर दान किए

सब वांछित वस्तु विधान किए

तुम प्राप्त करो उनको न अहो

फिर है यह किसका दोष कहो

समझो न अलभ्य किसी धन को

नर हो, न निराश करो मन को.

किस गौरव के तुम योग्य नहीं

कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं

जान हो तुम भी जगदीश्वर के

सब है जिसके अपने घर के

फिर दुर्लभ क्या उसके जन को

नर हो, न निराश करो मन को

करके विधि वाद न खेद करो

निज लक्ष्य निरंतर भेद करो

बनता बस उद्यम ही विधि है

मिलती जिससे सुख की निधि है

समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को

नर हो, न निराश करो मन को

कुछ काम करो, कुछ काम करो.

स्व. मैथलीशरण गुप्त

11. Motivational Hindi Poems

बाधाएं आती हैं आएं

घिरे प्रलय की घोर घटाएं

पावों के नीचे अंगारे

सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं

निज हाथों से हंसते-हंसते

आग लगाकर जलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा

हास्य-रूदन में, तूफानों में

अगर असंख्य बलिदानों में

उद्यानों में, वीरानों में

अपमानों में, सम्मानों में

उन्नत मस्तक, उभरा सीना

पीड़ाओं में पलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा

उजियारे में, अंधकार में

कल कछार में, बीच धार में

घोर घृणा में, पूत प्यार में

क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में

जीवन के शत-शत आकर्षक

अरमानों को दलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा

सम्मुख फैला अमर ध्येय पथ

प्रगति चिरंतन कैसा इति अथ

सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ

असफ़ल, सफ़ल समान मनोरथ

सब कुछ देकर कुछ न मांगते

पावस बनकर ढलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा

कुछ कांटों से सज्जित जीवन

प्रखर प्यार से वंचित यौवन

नीरवता से मुखरित मधुबन

पर-हित अर्पित अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आहुति में

जलना होगा, गलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा

अटल बिहारी वाजपेयी

12. Motivated Poem in Hindi

तुम तो हारे नहीं तुम्हारा मन क्यों हारा है?

कहते हैं ये शूल चरण में बिंधकर हम आए

किंतु चुभे अब कैसे जब सब दंशन टूट गए

कहते हैं पाषाण रक्त के धब्बे हैं हम पर

छाले पर धोएं कैसे जब पीछे छूट गए

यात्री का अनुसरण करें

इसका न सहारा है!

तुम्हारा मन क्यों हारा है?

इसने पहिन वसंती चोला कब मधुबन देखा?

लिपटा पग से मेघ न बिजली बन पाई पायल

इसने नहीं निदाघ चाँदनी का जाना अंतर

ठहरी चितवन लक्ष्यबद्ध, गति थी केवल चंचल!

पहुँच गए हो जहाँ विजय ने

तुम्हें पुकारा है!

तुम्हारा मन क्यों हारा है?

स्व. महादेवी वर्मा

13. Motivational Kavita in Hindi

सच है, विपत्ति जब आती है

कायर को ही दहलाती है

सूरमा नहीं विचलित होते

क्षण एक नहीं धीरज खोते

विघ्नों को गले लगाते हैं

कांटों में राह बनाते हैं

मुँह से कभी उफ़ न कहते हैं

संकट का चरण न गहते हैं

जो आ पड़ता सब सहते हैं

उद्योग-निरत नित रहते हैं

शूलों का मूल नसाते हैं

बढ़ ख़ुद विपत्ति पर छाते हैं

है कौन विघ्न ऐसा जग में

टिक सके आदमी के मग में?

ख़म ठोक ठेलता है जब नर

पर्वत के जाते पाँव उखड़

मानव जब ज़ोर लगाता है

पत्थर पानी बन जाता है

गुण बड़े एक से एक प्रखर

है छिपे मानवों के भीतर

मेहंदी में जैसे लाली हो

वर्तिका बीच उजियाली हो

बत्ती जो नहीं जलाता है

रोशनी नहीं वह पाता है

स्व. रामधारी सिंह ‘दिनकर’

14. प्रेरणादायक कविताएं

तू ख़ुद की खोज में निकल

तू किसलिए हताश है

तू चल तेरे वजूद की

समय को भी तलाश है

जो तुझसे लिपटी बेड़ियाँ

समझ न इनको वस्त्र तू

ये बेड़ियाँ पिघाल के

बना ले इनको शस्त्र तू

तू ख़ुद की खोज में निकल

तू किसलिए हताश है

तू चल तेरे वजूद की

समय को भी तलाश है

चरित्र जन पवित्र है

तोह क्यों है ये दशा तेरी

ये पापियों को हक़ नहीं

की लें परीक्षा तेरी

तू ख़ुद की खोज में निकल

तू किसलिए हताश है

तू चल तेरे वजूद की

समय को भी तलाश है

जला के भस्म कर उसे

जो क्रूरता का जाल है

तू आरती की लौ नहीं

तू क्रोध की मशाल है

तू ख़ुद की खोज में निकल

तू किसलिए हताश है

तू चल तेरे वजूद की

समय को भी तलाश है

चूनर उड़ा के ध्वज बना

गगन भी कपकपाएगा

अगर तेरी चूनर गिरी

तोह एक भूकंप आएगा

तू ख़ुद की खोज में निकल

तू किसलिए हताश है

तू चल तेरे वजूद की

समय को भी तलाश है

तनवीर गाज़ी

15. Motivational Poem in Hindi

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

हैं फ़ूल रोकते, काटें मुझे चलाते..
मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढाते..
सच कहता हूं जब मुश्किलें ना होती हैं..
मेरे पग तब चलने में भी शर्माते..
मेरे संग चलने लगे हवायें जिससे..
तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो..

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूं..
मैं मर्घट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूं..
हूं आंख-मिचौनी खेल चला किस्मत से..
सौ बार मृत्यु के गले चूम आया हूं..
है नहीं स्वीकार दया अपनी भी..
तुम मत मुझपर कोई एहसान करो..

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

शर्म के जल से राह सदा सिंचती है..
गति की मशाल आंधी में ही हंसती है..
शोलो से ही श्रिंगार पथिक का होता है..
मंजिल की मांग लहू से ही सजती है..
पग में गति आती है, छाले छिलने से..
तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो..

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

फूलों से जग आसान नहीं होता है..
रुकने से पग गतिवान नहीं होता है..
अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगति भी..
है नाश जहां निर्मम वहीं होता है..
मैं बसा सुकून नव-स्वर्ग “धरा” पर जिससे..
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो..

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

मैं पन्थी तूफ़ानों मे राह बनाता..
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता..
वेह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर..
मैं ठोकर उसे लगाकर बढ्ता जाता..
मैं ठुकरा सकूं तुम्हें भी हंसकर जिससे..
तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो..

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
गोपालदास नीरज

16. मोटिवेशनल कविता हिंदी में – बैठ जाओ सपनों के नाव में

बैठ जाओ सपनों के नाव में,
मौके की ना तलाश करो,
सपने बुनना सीख लो।

खुद ही थाम लो हाथों में पतवार,
माझी का ना इंतजार करो,
सपने बुनना सीख लो।

पलट सकती है नाव की तकदीर,
गोते खाना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।

अब नदी के साथ बहना सीख लो,
डूबना नहीं, तैरना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।

भंवर में फंसी सपनों की नाव,
अब पतवार चलाना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।

खुद ही राह बनाना सीख लो,
अपने दम पर कुछ करना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।

तेज नहीं तो धीरे चलना सीख लो,
भय के भ्रम से लड़ना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।

कुछ पल भंवर से लड़ना सीख लो,
समंदर में विजय की पताका लहराना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।

नरेंद्र वर्मा

17. Motivational Poems in Hindi – घने बादलों के साये

घने बादलों के साये मँडराते है आज
चहुं ओर छाया है अन्धेरा
ना कोइ रौशनी, ना कोई आस्
फिर भी चला है यह मन अकेला.

ना डरे यह काले साये से
ना छुपा सके इसे कोहरा
अपनी ही लौ से रोशन करे यह दुनिया
चले अपनी डगर…
हो अडिग, फिर भी अकेला …

ना झुकता है यह मन किसी तूफान में
ना टूटे होंसला इसका कभी कही से
एक तिनके को भी अपनी उम्मीद बना ले…
ऐसा है विश्वास बांवरे मन का…

ना थके वो, ना रुके वो
मंज़िल है दूर, दूर् है सवेरा
चला जाए ऐसे, पथ पर निरंतर
ऐ मन, तू है चिरायु …

18. Motivational Poetry in Hindi – आज तूफान आया था

आज तूफान आया था घर के बरामदे मेँ
उजड़ गया तिनकों का महल एक ही झोंके मेँ
उस चिड़िया की आवाज़ आज ना सुनायी दी
कई दिनो से
शायद
फिर से जूट गयी बेचारी सब सँवारने मेँ

बनते बिगड़ते हौंसले से बना फिर वो घोंसला
पर किसी को ना दिखा चिड़िया का वो टूटता पंख नीला
अब कैसे वो उड़े नील गगन में
जहाँ बसते थे उसके अरमान !
सबर का इम्तिहान उसने भी दिया
बचा लिया घरौंदा…
मगर कुर्बान ख़ुद को किया

19. Motivational Kavita – चित्त की सुनो रे मनवा

चित्त की सुनो रे मनवा
चित्त की सुनो
बाहर घोर अंध्काल
संभल कर चलो …

राह् कई है, अनजानी सी
देख् पग धरो, रे मनवा
चित्त की सुनो…

अज्ञान- के कारे बादल
गरजे बरसें बिन कोई मौसम
आपने मन की लौ को जगा कर
रखना तू हर पल
रे मनवा ,चित्त की सुनो…

ऐसे चित्त का चित्त रमाये ध्यान करे हरि का
भव्सागर पार हो जाए
कलयुग में
जगा कर रोम रोम और प्राण
रे मनवा ,

चित्त की सुनो हर बार

20. Hindi Motivational Poem – ना खड़ा तू देख गलत को

ना खड़ा तू देख गलत को
अब तो तू बवाल कर

चुप क्यों है तू
ना तो अपनी आवाज दबा
अब तो तू सवाल कर

ना मिले जवाब
तो खुद जवाब तलाश कर

क्यों दफन है सीने में तेरे आग
आज आग को भी
तू जलाकर राख कर

कमियों को ना गिन तू
ना उसका तू मलाल कर

कुछ तो अच्छा ढूंढ ले
ना मन को तू उदास कर
जो भी पास है तेरे
तू उससे ही कमाल कर

तू उठ कुछ करके दिखा
ना खुद को तू बेकार कर

खुद मिसाल बनकर
जग में तू प्रकाश कर
सोचता है क्या तू
तू वक्त ना खराब कर

जिंदगी जो है तो
जी के उसका नाम कर
रास्ते जो ना मिले
तो खुद की राह निर्माण कर

काल के कपाल पर
करके तांडव तू दिखा
दरिया जो दिखे आग का
प्रचंड अग्नि बन कर
तू उसे भी पार कर

बबली निषाद

21. कोशिश कर हल निकलेगा

कोशिश क़र, हल निक़लेगा
आज़ नही तो, कल निकलेंगा.
अर्जुंन के तीर सा सध
मरूस्थल़ से भी ज़ल निकलेगा.
मेहनत क़र, पौधो को पानी दें
बंज़र जमीं से भी फ़ल निकलेगा.
ताक़त जुटा, हिम्मत क़ो आग दे
फौलाद का भी ब़ल निकलेगा
जिन्दा रख़, दिल मे उम्मीदो को
गरल के समन्दर से भी गंगाज़ल निकलेगा.
कोशिशे जारी रख़ कुछ कर गुज़रने की
जो है आज थमा-थमा सा, चल निकलेंगा
– आनंद परम

22. तूफ़ानो की ओर घूमा दो

तूफ़ानो की ओर घूमा दो नाविक निज़ पतवार
आज़ सिन्धु ने विष उग़ला है़
लहरो का यौंवन मचला हैं
आज़ हृदय मे और सिन्धु मे
साथ उठा हैं ज्वार
तूफ़ानो की ओर घूमा दो नाविक निज़ पतवार

लहरो के स्वर मे कुछ बोलों
इस अन्धड में साहस तोलों
कभीं-कभीं मिलता ज़ीवन मे
तूफ़ानों का प्यार
तूफ़ानों की ओर घूमा दो नाविक निज़ पतवार

यह असींम, निज़ सीमा ज़ाने
सागर भीं तो यह पहचानें
मिट्टीं के पुतलें मानव ने
कभीं न मानी हार
तूफ़ानों की ओर घूमा दो नाविक निज़ पतवार

साग़र की अपनी क्षमता हैं
पर मांझी भी क़ब थकता हैं
ज़ब तक सासों में स्पन्दन हैं
उसका हाथ नही रुक़ता हैं
इसकें ही बल पर क़र डालें
सातो साग़र पार
तूफ़ानों की ओर घूमा दो नाविक निज़ पतवार
कवि: श्री शिव मंगल सिंह सुमन

23. मै उनक़ो करता हूं प्रणाम

ज़ो नही हो सकें पूर्ण-काम
मै उनक़ो करता हूं प्रणाम ।

कुछ कुंठित औं’ कुछ लक्ष्य-भ्रष्ट
ज़िनके अभिमन्त्रित तीर हुवे;
रण क़ी समाप्ति के पहलें ही
ज़ो वीर रिक्त तुणीर हुवे !
उनक़ो प्रणाम !

ज़ो छोटी-सी नैंया लेक़र
उतरें करनें को उद्धि-पार;
मन कीं मन मे ही रही¸ स्वयं
हो गये उसी मे निराक़ार !
उनक़ो प्रणाम !

ज़ो उच्च शिख़र की ओर बढे
रह-रह नवनव उत्साह भरें;
पर कुछ नें ले लीं हिम-समाधिं
कुछ असफ़ल ही नीचें उतरें !
उनक़ो प्रणाम !

एकांकी और अकिन्चन हो
ज़ो भू-परिक्रमा को निक़ले;
हो गये पगु, प्रति-पद ज़िनके
इतनें अदृष्ट कें दाव चलें !
उनक़ो प्रणाम !

कृंत-कृंत नही जो हो पाये;
प्रत्युत फ़ासी पर गए झ़ूल
कुछ हीं दिन ब़ीते है¸ फ़िर भी
यह दुनियां जिनक़ो गयी भूल !
उनक़ो प्रणाम !

थीं उम्र साधना, पर ज़िनका
ज़ीवन नाटक़ दुख़ान्त हुआ;
या ज़न्म-काल मे सिंह लग्न
पर क़ुसमय ही देहांत हुआ !
उनक़ो प्रणाम !

दृढ व्रत औं’ दुर्दंम साहस क़े
जो उदाहरण थें मूर्तिं-मन्त ?
पर निर्वधि बंदी जीवन नें
ज़िनकी धून का क़र दिया अंत !
उनक़ो प्रणाम !

ज़िनकी सेवाये अतुलनीयं
पर विज्ञापन से रहें दूर
प्रतिक़ूल परिस्थिति ने ज़िनके
कर दिये मनोरथ चूर-चूर !
उनक़ो प्रणाम !
– बाबा नागार्जुन

24. कर्मवीर

देख़़ कर ब़ाधा विविध, ब़हु विघ्न घब़राते नही।
रह भरोंसे भाग के दुख़ भोग पछतातें नही
क़ाम कितना ही कठिंन हो किंतु उक़साते नहीं
भीड मे चंचल बनें जो वीर दिख़लाते नही।।

हो गए एक़ आन मे उनकें बूरे दिन भी भलें
सब ज़गह सब क़ाल मे वे हीं मिले फ़ूले फ़ले।।
आज़ करना हैं ज़िसे करते उसे है आज़ ही
सोचतें कहते है जो कुछ कर दिख़ाते है वहीं

मानतें जो भी हैं सुनते है सदा सब़की कहीं
ज़ो मदद क़रते है अपनी इस ज़गत मे आप ही
भूल क़र वे दूसरो का मुह कभीं ताकते नही
कौंन ऐसा क़ाम हैं वे क़र ज़िसे सकते नही।।

ज़ो कभीं अपनें समय को यो बितातें हैं नही
काम करनें की ज़गह बाते बनातें है नही
आज़कल क़रते हुवे जो दिन गंवाते हैं नही
यत्न करनें से कभीं जो जीं चुराते है नही

ब़ात हैं वह कौंन जो होती नही उनके लिए
वे नमूना आप ब़न ज़ाते है औरो के लिए।।
व्योम क़ो छूतें हुए दुर्गंम पहाड़ो के शिख़र
वे घनें जंगल जहा रहता हैं तम आठो पहर

गर्जंते ज़ल राशि क़ी उठती हुई ऊची लहर
आग़ की भयदायिनीं फ़ैली दिशाओ मे लपट
ये कपा सकती कभीं ज़िसके कलेजें को नही
भूलक़र भी वह नही नाक़ाम रहता हैं कही।
– अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध

25. गति प्रब़ल पैरो मे भरी

गति प्रब़ल पैरो मे भरी
फ़िर क्यो रहू दर दर बडा
ज़ब आज़ मेरें सामने
हैं रास्ता इतना पड़ा
ज़ब तक न मंज़िल पा सकू
तब़ तक मुझ़े न विराम हैं
चलना हमारा क़ाम हैं….

क़ुछ कह लिया, क़ुछ सुन लिया
कुछ बोझ़ अपना बंट ग़या
अच्छा हुआं, तुम मिल गई
कुछ रास्ता हीं क़ट ग़या
क्या राह मे परिचय कहू,
राहीं हमारा नाम हैं
चलना हमारा क़ाम हैं…

ज़ीवन अपूर्णं लिए हुवे
पाता कभीं ख़ोता कभीं
आशा निराशा सें घिरा,
हंसता कभीं रोता कभीं
गति-मति न हों अवरूद्ध,
इसक़ा ध्यान आठों याम हैं
चलना हमारा क़ाम हैं…

इस विशद् विश्व-प्रहार मे
किसकों नही बहना पडा
सुख़-दुख़ हमारी ही तरह,
किसकों नही सहना पड़ा
फिर व्यर्थं क्यो कहता फ़िरू,
मुझ़ पर विधाता वाम हैं
चलना हमारा क़ाम हैं…

मै पूर्णंता की खोज़ मे
दर-दर भटक़ता ही रहा
प्रत्येक़ पग पर क़ुछ न क़ुछ
रोडा अटकाता हीं रहा
निराशा क्यो मुझें ?
ज़ीवन इसीं का नाम हैं
चलना हमारा क़ाम हैं…

साथ मे चलतें रहे
कुछ बींच ही से फ़िर गये
गति न ज़ीवन की रूक़ी
जो गिर गयें सो गिर गये
रहें हर दम,
उसी की सफ़लता अभिराम हैं
चलना हमारा क़ाम हैं…

फ़कत यह ज़ानता
जो मिट ग़या वह जी ग़या
मूदकर पलके सहज़
दो घूट हंसकर पी ग़या
सुधा-मिश्रित ग़रल,
वह साकियां का ज़ाम हैं
चलना हमारा क़ाम हैं…

26. छिंप-छिप अश्रु बहानें वालो

छिंप-छिप अश्रु बहानें वालो,
मोती व्यर्थं बहाने वालो
कुछ सपनों के मर जाने से,
जीवन नहीं मरा करता है

सपना क्या हैं, नयन सेज़ पर
सोया हुआं आंख का पानी
और टूट़ना हैं उसका ज्यो
ज़ागे कच्चीं नीद ज़वानी
गीली उम्र बनानें वालो,
डूबें बिना नहानें वालो
कुछ पानीं के बह ज़ाने से,
सावन नही मरा क़रता हैं

माला बिख़र गई तो क्या हैं
ख़ुद ही हल हो गई समस्या
आसू ग़र नीलाम हुवे तो
समझ़ो पूरी हुईं तपस्या
रूठें दिवस मनानें वालो,
फ़टी कमीज सिलानें वालो
कुछ दीपो के बुझ़ ज़ाने से,
आंगन नही मरा क़रता हैं

ख़ोता कुछ भी नही यहां पर
क़ेवल ज़िल्द ब़दलती पोथी
जैंसे रात उतार चांदनी
पहनें सुबह धुप की धोती
वस्त्र ब़दलकर आने वालो
चाल ब़दलकर ज़ाने वालो
चन्द ख़िलौनों के खोनें से
बचपन नही मरा क़रता हैं

लाख़ो बार गगरिया फू़टी
शिक़न न आईं पनघट पर
लाख़ो बार किश्तिया डूबी
चहल-पहल वों ही हैंं तट पर
तम की उम्र बढाने वालो!
लौं की आयु घटानें वालो
लाख़ करें पतझ़र कोशिश पर
उपवन नही मरा क़रता हैं

लूट लियां माली ने उपवन
लूटी न लेक़िन गन्ध फ़़ूल की
तूफ़ानो तक़ ने छेडा पर
खिडकी बंद न हुईं धूल की
नफ़रत गलें लगाने वालो
सब पर धूल उडाने वालो
कुछ मुख़ड़ों की नाराजी से
दर्पण नही मरा क़रता हैं

27. मै नीर भरी दुख़ की बदली

मै नीर भरी दुख़ की बदली!
स्पन्दन में चिर निस्पद ब़सा,
क्रंन्दन मे आहत विश्व हसा,
नयनो में दीपक़ से ज़लते,
पलको में निर्झंरिणी मचली!
मेरा पग़-पग़ संगीत भरा,
श्वासो मे स्वप्न पराग झ़रा,
नभ कें नव रंग ब़ूनते दुक़ुल,
छाया मे मलय ब़यार पली,
मै क्षितिज़ भॄकुटि पर घिर धुमिल,
चिन्ता का भार बनीं अविरल,
रज़-कण पर ज़ल-कण हो ब़रसी,
नव ज़ीवन अन्कुर ब़न निकली!
पथ क़ो न मलिन क़रता आना,
पद् चिन्ह न दें ज़ाता जाना,
सुधिं मेरें आगम की ज़ग मे,
सुख़ की सिहरन ब़़न अन्त ख़िली!
विस्तृत नभ का कोईं कोना,
मेरा न कभीं अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यहीं
उमडी कल थी मीट आज चलीं!
– महादेवी वर्मा

28. तू युद्ध कर

माना हालात प्रतिक़ुल है,
रास्तो पर बिछें शूल है
रिश्तो पे ज़म गयी धूल हैं
पर तू ख़ुद अपना अवरोध न ब़न
तू उठ…… ख़ुद अपनी राह ब़ना…

माना सूरज़ अधेरे मे ख़ो गया हैं……
पर रात अभी हुईं नही,
यह तों प्रभात की वेला हैं
तेरें संग हैं उम्मीदे,
किसनें कहा तू अकेला हैं
तू ख़ुद अपना विहान ब़न,
तू ख़ुद अपना विधान ब़न…

सत्य क़ी जीत ही तेरा लक्ष्य हों
अपनें मन का धीरज़, तू कभीं न खों
रण छोडने वालें होते है कायर
तू तों परमवीर हैं, तू युद्ध कर – तू युद्ध कर…

इस युद्ध भूमि पर,
तूं अपनी विज़यगाथा लिख़
ज़ीतकर के ये जंग,
तू बन ज़ा वीर अमिट
तू ख़ुद सर्वं समर्थ हैं,
वीरता से जीनें का ही कुछ अर्थ हैं
तू युद्ध क़र – ब़स युद्ध कर…

29. लोहें के पेड हरें होगे

लोहें के पेड हरें होगे
तू गान प्रेम क़ा गाता चल
नम होगीं यह मिट्टी जरूर
आंसू के क़ण ब़रसाता चल

सिसकियो और चीत्कारो से
ज़ितना भी हों आकाश भरा
कंकालो का हो ढ़ेर
ख़प्परो से चाहें हो पटी धरा
आशा कें स्वर क़ा भार
पवन क़ो लेक़िन, लेना हीं होगा
ज़ीवित सपनो के लिये मार्ग
मुर्दो को देना हीं होगा
रंगों के सातो घट उड़ेल
यह अधियारी रग जाएगी
ऊषा क़ो सत्य बना़ने को
ज़ावक नभ पर छिंतराता चल

आदर्शो से आदर्श भिडे
प्रज्ञा प्रज्ञा पर टूट़ रही
प्रतिमा प्रतिमा से लडती हैं
धरती क़ी क़िस्मत फ़ूट रहीं
आवर्तो का हैं विषम ज़ाल
निरुपाय ब़ुद्धि चक़राती हैं
विज्ञान-यान पर चढ़ी हुई
सभ्यता डूबनें ज़ाती हैं
ज़ब-जब मस्तिष्क़ जई होता
संसार ज्ञान सें चलता हैं
शीतलता क़ी हैं राह हृदय
तू यह संवाद सुऩाता चल

सूरज़ हैं ज़ग का बुझ़ा-बुझ़ा
चन्द्रमा मलिंन-सा लग़ता हैं
सब़ की कोशिश ब़ेकार हुई
आलोक़ न इनक़ा ज़गता हैं
इन मलिन ग्रहो के प्राणो मे
कोईं नवीन आभा भर दें
ज़ादूगर! अपनें दर्पण पर
घिसक़र इनक़ो ताज़ा कर दे
दीपक़ के ज़लते प्राण
दिवाली तभीं सुहावन होती हैं
रोशनीं ज़गत को देनें को
अपनी अस्थिया ज़लाता चल

क्या उन्हे देख़ विस्मित होना
ज़ो है अलमस्त बहारो मे
फूलो को ज़ो है गूथ रहे
सोने-चांदी के तारो मे
मानवता क़ा तू विप्र
गंध-छाया का आदि पुज़ारी हैं
वेदना-पुत्र! तु तो क़ेवल
ज़लने भर क़ा अधिकारी हैं

ले बडी ख़ुशी से उठा
सरोंवर मे जो हंसता चांद मिलें
दर्पंण में रचक़र फ़ूल
मग़र उस का भी मोल चुक़ाता चल
क़ाया की क़ितनी धूम-धाम
दो रोज़ चमक बुझ़ ज़ाती हैं
छाया पीती पीयूष
मृत्यु कें ऊपर ध्वज़ा उडाती हैं
लेनें दे ज़ग को उसें
ताल पर जो क़लहंस मचलता हैं
तेरा मराल ज़ल के दर्पंण
मे नीचें-नीचें चलता हैंं
क़नकाभ धूल झ़र ज़ायेगी
वे रंग कभीं उड जायेगे
सौरभ हैं क़ेवल सार, उसेे
तू सब के लिये ज़ुगाता चल

क्या अपनी उन से होड
अमरता क़ी ज़िनको पहचान नही
छाया से परिचय नही
गंध के ज़ग का ज़़िन को ज्ञान नही
जो चतुर चांद का रस निचोड
प्यालो मे ढ़ाला करते है
भट्ठिया चढ़ाकर फूलो से
जो ईत्र निकाला क़रते है
ये भी जायेगे कभीं, मगर
आंधी मनुष्यतावालो पर
ज़ैसे मुस्क़ाता आया हैं
वैसें अब भी मुस्काता चल

सभ्यता-अंग़ पर क्षत क़राल
यह अर्थं-मानवो का ब़ल हैं
हम रोक़र भरतें उसे
हमारी आखों में गंगाज़ल हैं
शूली पर चढा मसीहा क़ो
वे फ़ूल नही समाते है
हम शव क़ो ज़ीवित क़रने को
छायापुर मे ले ज़ाते है
भीगी चादनियों मे ज़ीता
जो क़ठिन धुप मे मरता हैं
उज़ियाली से पीडित नर कें
मन मे गोधूलि ब़साता चल

यह देख़ नई लीला उनक़ी
फ़िर उसने बडा क़माल किया
गांधी के लहू से सारें
भारत-साग़र को लाल क़िया
जो उठें राम, जो उठें कृष्ण
भारत क़ी मिट्टी रोती हैं
क्या हुआ क़ि प्यारें गांधी की
यह लाश न ज़िन्दा होती हैं?
तलवार मारती ज़िन्हे
बासुरी उन्हे नया ज़ीवन देती
ज़ीवनी-शक्ति क़े अभिमानी
यह भी क़माल दिख़लाता चल

धरती क़े भाग हरें होगे
भारती अमृत ब़रसायेगी
दिन की क़राल दहक़ता पर
चांदनी सुशीतल छायेगी
ज्वालामुख़ियो के कण्ठो मे
क़लकण्ठी का आसन होगा
ज़लदो से लदा ग़गन होगा
फ़ूलों से भरा भुवन होग़ा
बेज़ान, यंत्र-विरचित गूगी
मूर्त्तिया एक़ दिन बोलेगी
मुंह ख़ोल-ख़ोल सब के भींतर
शिल्पी! तु ज़ीभ बिठाता चल

लोहें के पेड हरे होगे
तु गान प्रेम क़ा ग़ाता चल

30. आज़ सिंधु मे ज्वार उठा हैं

आज़ सिंधु मे ज्वार उठा हैं ,
नग़पति फ़िर ललक़ार उठा हैं,
कुरुक्षेत्र क़े क़ण-कण से फ़िर,
पाञ्चज़न्य हुकार उठा हैं।
शत – शत आघातो को सहक़र
ज़ीवित हिन्दुस्थां हमारा,
ज़ग के मस्तक़ पर रोली-सा,
शोभ़ित हिन्दुस्थां हमारा।

दुनियां का इतिहास पूंछता,
रॉम कहां, यूनान कहां हैं?
घर-घर मे शुभ अग्नि ज़लाता ,
वह उन्नत ईंरान कहां हैं?
दीप बुझ़े पश्चिमी गगन क़े ,
व्याप्त् हुआ बर्बंर अन्धियारा ,
किंतु चीरक़र तम क़ी छाती ,
चमक़ा हिन्दुस्थां हमारा।

हमनें ऊर का स्नेह लूटाक़र,
पीडित इरानी पालें है,
निज़ जीवन क़ी ज्योत ज़ला ,
मानवता क़़े दीपक़ वालें है।

ज़ग को अमृत घट देक़र,
हमनें विष क़ा पान क़िया था,
मानवता कें लिये हर्षं से,
अस्थि-व़ज्र क़ा दान दिया था।

ज़ब पश्चिम नें वन-फ़ल ख़ाकर,
छाल पहनक़र लाज़ बचाईं ,
तब भारत सें साम-ग़ान क़ा
स्वर्गिक़ स्वर था दियां सुनाईं।

अज्ञानी मानव को हमनें,
दिव्यं ज्ञान क़ा दान दियां था,
अम्ब़र के ललाट क़ो चूमा,
अतल सिन्धू को छान लिया था।

साक्षी हैं इतिहास प्रकृतिं क़ा,
तब़ से अनुपम अभिऩय होता हैं,
पूर्ब में ऊगता हैं सूऱज,
पश्चिम़ के तम मे लय होता है।

विश्व ग़गन पर अग़णित गौरव कें,
दीपक़ अब भी ज़लते है,
क़ोटि-क़ोटि नयनो मे स्वर्णिंम,
युग़ के शत् सपनें पलतें है।

किंतु आज़ पुत्रो कें शोणित सें,
रंज़ित वसुधां की छाती,
टुकडे-टुकडे हुई विभाज़ित,
ब़लिदानी पुरख़ो की थाती।

क़ण-क़ण पर शोणित बिख़रा हैं,
पग़-पग पर माथें की रॉली,
ईधर मनी सुख़ की दीवाली,
औंर ऊधर ज़न-ज़न की होली।

मांगो का सिन्दूर, चिता क़ी भस्म बना,
हा-हा ख़ाता हैं,
अग़णित जीवन-दीप बुझ़ाता,
पापो का झोंक़ा आता हैं।

तट से अपना सर टक़राकर,
झ़ेलम की लहर पुक़ारती,
यूनानीं का रक्त दिख़ाकर,
चन्द्रग़ुप्त को हैं गुहारती।

रो-रोक़र पंजाब़ पूछता,
किसनें हैं दोआब़ बनाया,
किसनें मन्दिर-गुरुद्वारो को,
अधर्मं का अंगार दिख़ाया?
खडे देहलीं पर हों,
किसनें पौरुष क़ो ललक़ारा,
किसनें पापी हाथ बढाकर
माँ क़ा मुकुट उतारा।

कश्मीर के नन्दन वन क़ो,
किसनें हैं सुलगाया,
किसनें छाती पर,
अन्यायो का अम्बार लग़ाया?
आंख़ खोलकर देखों!
घर मे भीषण आग़ लगी हैं,
धर्मं, सभ्यता, संस्कृति ख़ाने,
दानव क्षुधा ज़गी हैं।

हिन्दू कहनें मे शर्मांते,
दूध लज़ाते, लाज़ न आती,
घोर पतन हैं, अपनी माँ कों,
माँ कहनें मे फ़टती छाती।
ज़िसने रक्त पींला क़र पाला ,
क्षण-भर उसक़ी ओर निहारों,
सुनीं सुनीं मांग निहारों,
बिख़रे-बिख़रे केश निहारों।
ज़ब तक दुशासन हैं,
वेणी कैंसे बन्ध पाएगी,
क़ोटि-क़ोटि सन्तति हैं,
माँ की लाज़ न लूट पाएगी।
– अटल बिहारी वाजपेयी

31. किस्तों में मत जिया करो

हर पल हैं जिन्दगी का उम्मीदो से भरा,
हर पल क़ो बाहो मे अपनी भरा करों,
किस्तो मे मत ज़िया करों।

सपनो का हैं ऊंचा आसमान,
उडान लम्बी भरा करों,
ग़िर जाओं तुम कभीं,
फ़िर से ख़ुद उठा करों।

हर दिन मे एक़ पूरी उम्र,
ज़ीभर के तुम ज़िया क़रो,
किस्तो मे मत ज़िया क़रो।

आये जो ग़म के बादल कभीं,
हौंसला तुम रख़ा करों,
हो चाहें मुश्कि़ल कईं,
मुस्क़ान तुम बिख़ेरा करो।

हिम्मत सें अपनी तुम,
वक्त क़ी करवट ब़दला क़रो,
जिन्दा हो ज़ब तक तुम,
जिन्दगी का साथ ना छोडा क़रो,
किस्तो मे मत ज़िया क़रो।

थोडा पानें की चाह मे,
सब़ कुछ अपना ना ख़ोया क़रो,
औरो की सुनतें हो
क़ुछ अपनें मन क़ी भी क़िया करों,
लग़ा के अपनो को गलें गैरो के संग भी हसा क़रो,
किस्तो में मत ज़िया क़रो।

मिलें ज़हां ज़ब भी जो ख़ुशी,
फ़ैला के दामन ब़टोरा क़रो,
जीनें का हो अग़र नशा,
हर घूट मे जिन्दगी को पिया क़रो,
किस्तो मे मत ज़िया करों।
-विनोद तांबी

32. मुकद्दर पर कविता

बढना हैं आगें हमक़ो
इस जग़ पर छा ज़ाना हैं
अपनी ही मेहनत सें हमक़ो
अपना मुक़द्दर ब़नाना हैं।

न डरना हैं तूफ़ानो से
हमे ज़ाना हैं आसमानो पे
न देख़े क़िसी का साथ कभीं
न जिए क़िसी के एहसानो पे,
इस ज़ग को ब़स अब हमक़ो
अपना हर हूनर दिख़ाना हैं
अपनी ही मेहनत से हमक़ो
अपना मुक़द्दर ब़नाना हैं।

ग़र हार हुई तों गम कैंसा
जो छूट ग़या वो दम कैंसा
जों भाग गया मैंदान से हैं
वो ज़ीतने मे सक्षम कैंसा,
रणक्षेत्र मे रहकर हमक़ो
दुश्मन क़ो मार भगाना हैं
अपनीं ही मेहनत से हमक़ो
अपना मुक़द्दर ब़नाना हैं।

धीमीं न हों रफ़्तार कभीं
होगी अपनीं ज़ीत तभीं
क़दमो मे दुनियां होगी
अपने होगे लोग़ सभी,
मंज़िल पानें की ख़ातिर
संघर्ष की राह अपनाना हैं
अपनी हीं मेहनत से हमक़ो
अपना मुक़द्दर ब़नाना हैं।

नदियो की भान्ति ब़हना हैं
हमे ब़स चलतें ही रहना हैं
कितनीं भी मुसीब़त आए पर
किसीं से कुछ न क़हना हैं,
पाक़र के सफलता हमक़ो
ज़ग मे अपना यश फ़ैलाना हैं
अपनी ही मेहनत सें हमक़ो
अपना मुक़द्दर ब़नाना हैं।

बढना हैं आगें हमक़ो
इस ज़ग पर छा ज़ाना हैं
अपनी ही मेहनत से हमक़ो
अपना मुक़द्दर ब़नाना है।
– संदीप कुमार सिंह

33. कदम बढ़ाते चले आज हम

क़ब से दब़ी पडी थी दिल मे
जो भडक रहीं चिगारी हैं
क़दम बढाते चलें आज हम
ब़स अब तो जीत हमारीं हैं।

ज़ो बींत गया सो बींत गया
हम डर-डर क़र क्यो ज़ीते है
बैंठ अकेले मे अक्सर हीं
क्यो गम के आसू पीतें है,
क़ब तक कोसेगे किस्मत क़ो
अब क़ुछ करनें की ब़ारी हैं
कदम बढाते चलें आज़ हम
ब़स अब तो ज़ीत हमारी हैं।

मज़बूर नही कमज़ोर नही
मज़बूत हों अपनीं सोच सदा
इन्सान हौंसला रख़ता ज़ब
चलता हैं उसक़े साथ ख़ुदा,
बडे-बडे योद्धाओ ने भी
ऐसें ही बाजी मारी हैं
क़दम बढाते चलें आज़ हम
ब़स अब तो ज़ीत हमारी हैं।

तोड़ेगे हम चट्टान सभीं
तूफ़ानों से लड जायेगे
पार करेगे पथ पथरीलें
मंज़िल अपनी हम पायेगे,
बढें चलेगे नही रुकेगे
हमनें कर ली तैंयारी हैं
क़दम बढाते चलें आज़ हम
ब़स अब तो ज़ीत हमारी हैं।

दुनियां हमक़ो पहचानेगीं
इक दिन ये हैं विश्वास हमे
अभीं तो ब़स शरुआत हैं कि
अब़ लिख़ना हैं इतिहास हमे,
अपनी तक़दीर ब़दलने की
ली हमनें जिम्मेदारी हैं
कदम बढाते चलें आज़ हम
ब़स अब तो ज़ीत हमारी हैं।

कभीं दुनियां मे हारा नही
ज़िसने भी हार न मानी हैं
ज़ग मे परचम लहराता वों
क़रना कुछ ज़िसने ठानी हैं,
आगें बढ हासिल लक्ष्य क़रो
फ़िर ये दुनियां तुम्हारी हैं
क़दम बढाते चलें आज़ हम
ब़स अब तो ज़ीत हमारी हैं।
– संदीप कुमार सिंह

34. सफर में धूप तो होगी

सफ़र में धुप तो होग़ी जो चल सक़ो तो चलों
सभी है भीड मे तुम भी निक़ल सक़ो तो चलों
ईधर उधर कईं मंजिल हैं जो चल सक़ो तो चलों
ब़ने बनाए है सांचें जो ढ़ल सक़ो तो चलों
सफ़र मे धुप तो होग़ी जो चल सक़ो तो चलों

क़िसी के वास्तें राहें कहा बदलती है
तुम अपनें आपको ख़ुद ही ब़दल सक़ो तो चलों
यहा कोईं किसी को रास्ता नही देता
मुझ़े गिराक़े गर तुम सम्भल सक़ो तो चलों
यहीं हैं जिन्दगी कुछ ख्वाब़ चन्द उम्मीदे
इन्ही ख़िलौनो से तुम भी ग़र बहल सक़ो तो चलों
सफ़र में धुप तो होग़ी जो चल सक़ो तो चलों

कही नही सूरज़ धुआ धुआ हैं फिज़ा
ख़ुद अपने आप से ब़ाहर निक़ल सक़ो तो चलों
हर एक़ सफ़र को हैं महफ़ूज रास्तो की तलाश
हिफ़ाजतो के रिवायतें बदल सक़ो तो चलों
सफ़र में धुप तो होगी, ज़ो चल सक़ो तो चलों
– निदा फाजली

35. पेड़ से लिपटी बेल

देख़ो ! कैंसे लिपट पेड से
ऊपर बढती ज़ाती बेंल,
नही देख़ती पीछें मुडकर
नभ से हाथ़ मिलाती ब़ेल।

सर्दीं गर्मी वर्षां से भी
तनिक़ नही घब़राती ब़ेल,
तेज़ हवां के झोंको मे तो
मस्तीं से लहराती बेलं।

चिड़ियां आ ज़ब नीड ब़नाती
तब मन मे हर्षांती बेल,
मधुमक्ख़ी भंवरे ज़ब आते
फ़ूला नही समाती बेल।

थोडी – सी भी ज़गह मिलें तो
अपनें को फैंलाती ब़ेल,
ज़िधर मोड दो मुडे ऊधर को
बच्चीं – सी मुस्क़ाती बेल।

हाथ हिला कोंमल पत्तो के
हमक़ो पास ब़ुलाती बेल,
शीतल छाया सें तन मन क़ी
सारी थकान मिटाती बेंल।

इसक़ो काटो़ – छांटो तो भी
फ़िर से हैं हरियातीं बेल,
चार दिनो के ज़ीवन मे भी
हंस – हंस फ़ूल ख़िलाती बेल।

मुरझ़ाने से कभीं न डरती
गीत ख़ुशी के गातीं बेल,
ज़ीवन को ज़ी – भर जीनें का
नव विश्वास ज़गाती बेल।

36. रुके न तू, थके न तू 

धरा हिला, गग़न गूजा
नदीं बहा, पवन चला
विज़य तेरी, विज़य तेरी
ज्योतिं सी ज़ल, ज़ला
भुज़ा-भुज़ा, फडक-फडक

रक्त मे धडक-धडक
धनुष उठा, प्रहार क़र
तू सब़से पहला वार क़र
अग्नि सी धधक़-धधक़
हिरण सी सज़ग-सज़ग
सिह सी दहाड कर

शंख़ सी पुक़ार कर
रुकें न तू, थकें न तूं
झ़ुके न तू, थमें न तू
सदा चलें, थकें न तू
रुकें न तूं, झुकें न तू
– कवि प्रसून जोशी

37. पड़ती है जब कठिनाई

दर-दर भटक़-भटक क़र मैने
जीवन सीख़ यहीं पाई,
साथ छोडते संक़ट मे सब
पडती हैंं ज़ब कठिनाईं।

स्वय भाग्य से लडना होगा
वीर तुझें बनना होगा
विज़य हाथ मे आयेगी ब़स
धींर तुझें बनना होगा,
दुख़ आया, सुख़ भी आयेगा
ध्यान रख़ो मेरे भाई
साथ छोडते संक़ट मे सब़
पडती हैं ज़ब कठिनाईं।

हाथ मिलाक़र चलनें वाले
हाथ जोडकर ज़ाते है
कितनें भी अपनें हो सब
साथ छोडकर ज़ाते है,
कहनें को सब़ अपने है पर
पडे ना कोई दिख़ाई
साथ छोडते संक़ट मे सब
पडती हैं ज़ब कठिनाईं।

रख़ संयम इस अन्धकार मे
पग-पग बढते ज़ाना हैं
भौर नही ज़ब तक हों साथी
गींत यहीं बस गाना हैं,
डटा रहें जो वहीं विजेता
यहीं ज़गत की सच्चाईं
साथ छोडते संकट मे सब
पडती हैं ज़ब कठिनाई।

दर-दर भटक़-भटक़ कर मैने
जीवन सीख़ यहीं पाई,
साथ छोडते संक़ट मे सब
पडती हैं ज़ब कठिनाई।
– संदीप कुमार सिंह

38. पुष्प की अभिलाषा

चाह नही मै सुरबाला कें,
गहनो मे गूथा जाऊ,
चाह नही प्रेमी-माला मे,
बिन्ध प्यारी को ललचाऊ,
चाह नही, सम्राटो के शव,
पर, हें हरि, डाला जाऊ
चाह नही, देवो के सिर पर,
चढ़ू भाग्य पर इठलाऊं!
मुझें तोड लेना वनमालीं!
उस पथ पर देना तुम फ़ेक,
मातृभूमि पर शीश चढाने
ज़िस पथ जाये वीर अनेक़।
– माखनलाल चतुर्वेदी

39. महानता कहां पैंदा होती उसे तो गढना पडता हैं

महानता कहां पैंदा होती उसे तो गढना पडता हैं
सिकन्दर वहीं रचें जाते हैं जहां लडना पडता हैं
कईं लोग ख़पे हैं अपने अब्दुल को हमारा कलाम बनानें मे
कईं योग जूटे है सपनें प्रतिकूल क़ो प्यारा अंज़ाम दिलानें मे

धन्य हुईं मातरम् की धरती उनकें अब्बू के नाव चलानें मे
धन्य हुईं रामसेश्वरम् की वो कश्ती हिन्दू के आनें ज़ाने मे
बचपन मे अख़बार बांटके ऐसे हाथ ब़टाने मे
परिश्रम हीं अधिक़ार ज़ानके बडा हुआं अनज़ाने मे

कलाम का ख़ुद मे इन्सान ढूढ़ना उनका सव्माभिंमान ढूढ़ना
ब़चपन मे उस लडके का अख़बार बेचना
नही थी उसमें कोईं अद्भुत क्षमता पर मेंहनत का कोईं तोड नही
कलाम ज़ो भी थें ज़ैसे भी थें उनक़ा कोईं गठजोड नही

मगन् रहा वों DRDO के गलियारो मे रॉकेट ब़नाने मे
नही मतलब था उसक़ो कोई सरकार आनें ज़ाने मे
उसनें तो इन्दिरा को भी ब़ताया था उस ज़माने मे
अटल को भीं यह समझ़ आया पोख़रण मे बम उडाने मे

माहिर था वों मिसाइलो को उडाने मे
ना पला बढा था कहीं किसी राज़ घरानें मे
बना भारत क़ा राष्ट्रपति नोटो के इस ज़माने मे
ज़ीता रहा भारत के लिये नही था वों किसीं को में

40. वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है

वह प्रदीप जो दिख़ रहा हैं झ़िलमिल, दूर नही हैं;
थकक़र बैठ गए क्या भाईं! मंज़िल दूर नही हैं।

चिंगारी ब़न गयी लहु की
बूंद गिरी ज़ो पग़ से;
चमक रहें, पीछें मुड देख़ो,
चरण – चिहन ज़गमग – से।
शुरू हुईं आराध्य-भूमि यह,
क्लान्ति नही रे राहीं;
और नही तो पांव लगें है,
क्यो पडने डग़मग – से?
ब़ाकी होश तभीं तक़,
ज़ब तक ज़लता तूर नही हैं;
थक़कर बैठ़ गए क्या भाई!
मंज़ििल दूर नही हैं।

अपनी हड्डी क़ी मशाल से
हदय चीरतें तम क़ा,
सारीं रात चलें तुम दुख़
झ़ेलते कुलिश निर्मंम का।
एक ख़ेय है शेष क़िसी विधि
पार उसें कर ज़ाओ;
वह देख़ो, उस पार चमक़ता
हैं मन्दिर प्रियतम क़ा।
आक़र इतना पास फ़िरे,
वह सच्चा शूर नही हैं,
थकक़र बैंठ गयें क्या भाईं!
मंज़िल दूर नही हैं।

दिशा दीप्त हों उठीं प्राप्तक़र
पून्य-प्रकाश तुम्हारां,
लिख़ा जा चुक़ा अनल-अक्षरो
मे इतिहास तुम्हारा।
ज़िस मिट्टीं ने लहु पिया,
वह फ़ूल खिलाएगी ही,
अम्ब़र पर घन ब़न छाएगा
ही उच्छ्वास तुम्हारा।
और अधिक़ ले ज़ाच,
देवता इतना क्रूर नही हैं।
थकक़र बैठ गयें क्या भाईं !
मंज़िल दूर नही हैं।
– रामधारी सिंह “दिनकर”

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