Poem about Life in Hindi | Hindi Poems on Life | Hindi Poetry on Life

Poem about Life in Hindi – दोस्तों आज इस पोस्ट में कुछ बेहतरीन जिन्दगी पर आधारित कविता का संग्रह दिया गया हैं. यह Hindi Poems on Life कविता हमें जिन्दगी की असलियत और अहमियत को बेहतरीन तरीके से दर्शाती और समझाती हैं.

दोस्तों इस जीवन के भाग दौड़ में हम कब जिन्दगी भर का सफ़र तय कर लेते हैं. हमें पता ही नहीं चलता हैं. हमें अपने जीवन को कैसे जियें यह भी भूल जाते हैं. Poem about Life in Hindi, Hindi Poems on Life, Zindagi Poem in Hindi, जिंदगी पर कविताएँ, Hindi Poetry on Life, Hindi Kavita on Life.

कवियों ने जिन्दगी को आधार मानकर बहुत सारी बेहतरीन Hindi Kavita on Life पर कविताएँ लिखी हैं. कवियों ने अपनी एक ही कविता में जिन्दगी के बारे में सारी बाते कह डाली हैं. यहाँ पर आपको निचे कुछ मशहूर कवियों की प्रसिद्ध लोकप्रिय और बेहतरीन Hindi Poetry on Life कविताएँ निचे दी गई हैं. हमें आशा हैं की यह Zindagi Poem in Hindi कविता आपको पसंद आएगी.

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Poem about Life in Hindi

1. Poem about Life in Hindi – शाम की तरह हम ढलते जा रहे है

शाम की तरह हम ढलते जा रहे है,
बिना किसी मंजिल के चलते जा रहे है।
लम्हे जो सम्हाल के रखे थे जीने के लिये ,
वो खर्च किये बिना ही पिघलते जा रहे है।

धुये की तरह विखर गयी जिन्दगी मेरी हवाओ मैं,
बचे हुये लम्हे सिगरेट की तरह जलते जा रहे है।

जो मिल गया उसी का हाथ थाम लिया,
हम कपडो की तरह हमसफर बदलते जा रहे है।

जागेश तिवारी

2. Hindi Poems on Life – जिंदगी की इस आपाधापी में

जिंदगी की इस आपाधापी में,
कब जिंदगी की सुबह से शाम हो गई,
पता ही नहीं चला।

कल तक जिन मैदानों में खेला करते थे,
आज वो मैदान नीलाम हो गए,
पता ही नहीं चला।

कब सपनों के लिए,
सपनों का घर छोड़ दिया पता ही नहीं चला।

रूह आज भी बचपन में अटकी,
बस शरीर जवान हो गया।

गांव से चला था,
कब शहर आ गया पता ही नहीं चला।

पैदल दौड़ने वाला बच्चा कब,
बाइक, कार चलाने लगा हूं पता ही नहीं चला।

जिंदगी की हर सांस जीने वाला,
कब जिंदगी जीना भूल गया, पता ही नहीं चला।

सो रहा था मां की गोद में चैन की नींद,
कब नींद उड़ गई पता ही नहीं चला।

एक जमाना जब दोस्तों के साथ,
खूब हंसी ठिठोली किया करते थे,
अब कहां खो गए पता नहीं।

जिम्मेदारी के बोझ ने कब जिम्मेदार,
बना दिया , पता ही नहीं चला।

पूरे परिवार के साथ रहने वाले,
कब अकेले हो गए, पता ही नहीं चला।

मीलों का सफर कब तय कर लिया,
जिंदगी का सफर कब रुक गया,
पता ही नहीं चला।

3. Hindi Poetry on Life – बचपन बीत गया लड़कपन में

बचपन बीत गया लड़कपन में,
जवानी बीत रही घर बनाने में,
जंगल सी हो गई है जिंदगी,
हर कोई दौड़ रहा आंधी के गुबार में।

हर रोज नई भोर होती,
पर नहीं बदलता जिंदगी का ताना बाना,
सब कर रहे हैं अपनी मनमानी,
लेकिन जी नहीं रहे अपनी जिंदगानी।

कोई पास बुलाए तो डर लगता है,
कैसी हो गई है यह दुनिया बेईमानी,
सफर चल रहा है जिंदा हूं कि पता नहीं,
रोज लड़ रहा हूं चंद सांसे जीने के लिए।

मिल नहीं रहा है कोई ठिकाना,
जहां दो पल सिर टिकाऊ,
ऐसे सो जाऊं की सपनों में खो जाऊं,
बचपन की गलियों में खो जाऊं।

वो बेर मीठे तोड़ लाऊं,
सूख गया जो तालाब उसमें फिर से तैर आऊं,
मां की लोरी फिर से सुन आऊं,
भूल जाऊं जिंदगी का ये ताना बाना।

देर सवेर फिर से भोर हो गई,
रातों की नींद फिर से उड़ गई,
देखा था जो सपना वो छम से चूर हो गया,
जिंदगी का सफर फिर से शुरू हो गया।

आंखों का पानी सूख गया,
चेहरे का नूर कहीं उड़ सा गया,
अब जिंदगी से एक ही तमन्ना,
सो जाऊं फिर से उन सपनों की दुनिया में।

नरेंद्र वर्मा

4. Hindi Kavita on Life – सफर में धूप तो बहुत होगी 

सफर में धूप तो बहुत होगी तप सको तो चलो,
भीड़ तो बहुत होगी नई राह बना सको तो चलो।

माना कि मंजिल दूर है एक कदम बढ़ा सको तो चलो,
मुश्किल होगा सफर, भरोसा है खुद पर तो चलो।

हर पल हर दिन रंग बदल रही जिंदगी,
तुम अपना कोई नया रंग बना सको तो चलो।

राह में साथ नहीं मिलेगा अकेले चल सको तो चलो,
जिंदगी के कुछ मीठे लम्हे बुन सको तो चलो।

महफूज रास्तों की तलाश छोड़ दो धूप में तप सको तो चलो,
छोटी-छोटी खुशियों में जिंदगी ढूंढ सको तो चलो।

यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें,
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो।

तुम ढूंढ रहे हो अंधेरो में रोशनी ,खुद रोशन कर सको तो चलो,
कहा रोक पायेगा रास्ता कोई जुनून बचा है तो चलो।

जलाकर खुद को रोशनी फैला सको तो चलो,
गम सह कर खुशियां बांट सको तो चलो।

खुद पर हंसकर दूसरों को हंसा सको तो चलो,
दूसरों को बदलने की चाह छोड़ कर, खुद बदल सको तो चलो।

नरेंद्र वर्मा

5. Zindagi Poem in Hindi – जिंदगी गुलामी में नहीं

जिंदगी गुलामी में नहीं, आजादी से जियो,
लिमिट में नहीं अनलिमिटेड जिओ,
कल जी लेंगे इस ख्याल में मत रहो,
क्या पता आपका कल हो ना हो।

कितनी दूर जाना है पता नहीं ,
कितनी दूर तक चलेगी पता नहीं,
लेकिन कुछ ऐसा कर जाना है,
तुम हो ना हो, फिर भी तुम रहो।

कहीं धूप तो, कहीं छाव है,
कहीं दुख तो, कहीं सुख है,
हर घर की यही कहानी है,
यह रीत पुरानी है।

आज रात दुख वाली है तो कल दिवाली है,
दुख-दर्द और खुशियों से भरी यही जिंदगानी है,
तेरी मेरी यह कहानी निराली है,
यह कहानी पुरानी है, लेकिन हर पन्ना नया है।

आज नया है तो कल पुराना है,
फिर किसी और को आना है,
फिर किसी को जाना है,
यही मतवाली जिंदगी का तराना है।

नरेंद्र वर्मा

Hindi Poems on Life

6. जिंदगी पर कविताएँ – दो पल की जिंदगी है

दो पल की जिंदगी है,
आज बचपन, कल जवानी,
परसों बुढ़ापा, फिर खत्म कहानी है।

चलो हंस कर जिए, चलो खुलकर जिए,
फिर ना आने वाली यह रात सुहानी,
फिर ना आने वाला यह दिन सुहाना।

कल जो बीत गया सो बीत गया,
क्यों करते हो आने वाले कल की चिंता,
आज और अभी जिओ, दूसरा पल हो ना हो।

आओ जिंदगी को गाते चले,
कुछ बातें मन की करते चलें,
रूठो को मनाते चलें।

आओ जीवन की कहानी प्यार से लिखते चले,
कुछ बोल मीठे बोलते चले,
कुछ रिश्ते नए बनाते चले।

क्या लाए थे क्या ले जायेंगे,
आओ कुछ लुटाते चले,
आओ सब के साथ चलते चले,
जिंदगी का सफर यूं ही काटते चले।

नरेंद्र वर्मा

7. Poem about Life in Hindi – बहुत पहले से

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िन्दगी, हम दूर से पहचान लेते हैं।

मेरी नजरें भी ऐसे काफ़िरों की जान ओ ईमाँ हैं
निगाहे मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं।

जिसे कहती दुनिया कामयाबी वाय नादानी
उसे किन क़ीमतों पर कामयाब इंसान लेते हैं।

निगाहे-बादागूँ, यूँ तो तेरी बातों का क्या कहना
तेरी हर बात लेकिन एहतियातन छान लेते हैं।

तबियत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तेरी यादों के चादर तान लेते हैं

खुद अपना फ़ैसला भी इश्क में काफ़ी नहीं होता
उसे भी कैसे कर गुजरें जो दिल में ठान लेते हैं

हयाते-इश्क़ का इक-इक नफ़स जामे-शहादत है
वो जाने-नाज़बरदाराँ, कोई आसान लेते हैं।

हमआहंगी में भी इक चासनी है इख़्तलाफ़ों की
मेरी बातें बउीनवाने-दिगर वो मान लेते हैं।

तेरी मक़बूलियत की बज्हेा-वाहिद तेरी रम्ज़ीयत
कि उसको मानते ही कब हैं जिसको जान लेते हैं।

अब इसको कुफ़्र माने या बलन्दी-ए-नज़र जानें
ख़ुदा-ए-दोजहाँ को देके हम इन्सान लेते हैं।

जिसे सूरत बताते हैं, पता देती है सीरत का
इबारत देख कर जिस तरह मानी जान लेते हैं

तुझे घाटा ना होने देंगे कारोबार-ए-उल्फ़त में
हम अपने सर तेरा ऎ दोस्त हर नुक़सान लेते हैं

हमारी हर नजर तुझसे नयी सौगन्ध खाती है
तो तेरी हर नजर से हम नया पैगाम लेते हैं

रफ़ीक़-ए-ज़िन्दगी थी अब अनीस-ए-वक़्त-ए-आखिर है
तेरा ऎ मौत! हम ये दूसरा एअहसान लेते हैं

ज़माना वारदात-ए-क़्ल्ब सुनने को तरसता है
इसी से तो सर आँखों पर मेरा दीवान लेते हैं

‘फ़िराक’ अक्सर बदल कर भेस मिलता है कोई काफ़िर
कभी हम जान लेते हैं कभी पहचान लेते हैं

8. Hindi Poems on Life – ऐ जिंदगी तेरा सबक

ऐ जिंदगी तेरा सबक क्या लाज़वाब है,
ज़मीर की खातिर, गमों का दौर भी जरूरी है।

इस भाग-दौड़ से क्या हाँसिल हुआ अब तक,
इसका हिसाब करने को, इक ठौर भी जरूरी है।

जिस राह पर चले थे मंजिल को ढूंढने,
‘उसका मुकाम क्या है’, यह गौर भी जरूरी है।

बस प्यार के सहारे जीने चले थे हम,
अब जाके समझ आया, ‘कुछ और’ भी जरूरी है।

9. Hindi Poetry on Life – नई सदी से मिल रही दर्द भरी सौगात

नई सदी से मिल रही दर्द भरी सौगात,

बेटा कहता बाप से तेरी क्या औकात|

मंदिर में पूजा करें घर में करें क्लेश,

मां बाप तो बोझ लगे, पत्थर लगे गणेश|

बचे कहां अब शेष हैं दया, धर्म, ईमान

पत्थर के भगवान हैं पत्थर दिल इंसान|

पत्थर के भगवान को लगते छप्पन भोग|

मर जाते हैं फुटपाथ पर भूखे प्यासे लोग|

10. Hindi Kavita on Life – ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफिला साथ और सफ़र तन्हा

अपने साये से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा

रात भर बोलते हैं सन्नाटे
रात काटे कोई किधर तन्हा

दिन गुज़रता नहीं है लोगों में
रात होती नहीं बसर तन्हा

हमने दरवाज़े तक तो देखा था
फिर न जाने गए किधर तन्हा
गुलज़ार

11. Poetry in Hindi on Life – छोटी सी है ज़िन्दगी

छोटी सी है ज़िन्दगी
हर बात में खुश रहो…

जो चेहरा पास न हो,
उसकी आवाज़ में खुश रहो…

कोई रूठा हो आपसे,
उसके अंदाज़ में खुश रहो…

जो लौट के नहीं आने वाले,
उनकी याद में खुश रहो…

कल किसने देखा है…
अपने आज में खुश रहो…

12. Hindi Poem on Life – वो बचपन भी कितना सुहाना था

वो बचपन भी कितना सुहाना था,
जिसका रोज एक नया फसाना था ।

कभी पापा के कंधो का,
तो कभी मां के आँचल का सहारा था।

कभी बेफिक्रे मिट्टी के खेल का,
तो कभी दोस्तो का साथ मस्ताना था ।

कभी नंगे पाँव वो दोड का,
तो कभी पतंग ना पकड़ पाने का पछतावा था ।

कभी बिन आँसू रोने का,
तो कभी बात मनवाने का बहाना था

सच कहूँ तो वो दिन ही हसीन थे,
ना कुछ छिपाना और दिल मे जो आए बताना था ।

13. Life Poetry in Hindi – काश,जिंदगी सचमुच किताब होती

काश,जिंदगी सचमुच किताब होती
पढ़ सकता मैं कि आगे क्या होगा?
क्या पाऊँगा मैं और क्या दिल खोयेगा?
कब थोड़ी खुशी मिलेगी, कब दिल रोयेगा?
काश जिदंगी सचमुच किताब होती,
फाड़ सकता मैं उन लम्हों को
जिन्होने मुझे रुलाया है..
जोड़ता कुछ पन्ने जिनकी यादों ने मुझे हँसाया है…
खोया और कितना पाया है?
हिसाब तो लगा पाता कितना
काश जिदंगी सचमुच किताब होती,
वक्त से आँखें चुराकर पीछे चला जाता..
टूटे सपनों को फिर से अरमानों से सजाता
कुछ पल के लिये मैं भी मुस्कुराता,
काश, जिदंगी सचमुच किताब होती।

14. Poem on Life in Hindi – कल एक झलक ज़िंदगी को देखा

कल एक झलक ज़िंदगी को देखा,
वो राहों पे मेरी गुनगुना रही थी,

फिर ढूँढा उसे इधर उधर
वो आँख मिचौली कर मुस्कुरा रही थी,

एक अरसे के बाद आया मुझे क़रार,
वो सहला के मुझे सुला रही थी

हम दोनों क्यूँ ख़फ़ा हैं एक दूसरे से
मैं उसे और वो मुझे समझा रही थी,

मैंने पूछ लिया- क्यों इतना दर्द दिया
कमबख्त तूने,
वो हँसी और बोली- मैं जिंदगी हूँ पगले
तुझे जीना सिखा रही थी।

15. Life Poem in Hindi – कभी लगता है इस जिन्दगी में

कभी लगता है इस जिन्दगी में खुशियां बेशुमार है,
तो कभी लगने लगता है जिन्दगी ही बेकार है।
कभी लगता है लोगो में बहुत प्यार है,
तो कभी लगता है रिश्तों में सिर्फ दरार है ।
कभी लगता है हम भी जिन्दगी जीने के लिए बेकरार है ,
तो कभी कभी लगता है सिर्फ हमे मौत का इंतजार है ।
कभी लगता है हमको भी उनसे प्यार है,
तो कभी लगता है सिर्फ प्यार का बुखार है।
कभी लगता है शायद उनको भी हमसे इजहार है,
फिर लगता है हम दोनों में तो सिर्फ तकरार है ।
कभी लगता है सब अपने ही यार है,
फिर लगता है इनमें भी छिपे गद्दार है ।
कभी लगता है कितना प्यारा संसार है ,
तो कभी लगता है ये संसार बस संसार है ।

16. Poem in Hindi on Life – तू जिंदगी को जी

तू जिंदगी को जी
उसे समझने की कोशिश न कर

सुंदर सपनो के ताने बाने बुन
उसमे उलझन की कोशिश न कर

चलते वक्त के साथ तु भी चल
उसमें सिमटने की कोशिश न कर

अपने हाथो को फैला, खुल कर साँस ले
अंदर ही अंदर घुटने की कोशिश न कर

मन में चल रहे युद्ध को विराम दे
खामख्वाह खुद से लड़ने की कोशिश न कर

कुछ बाते भगवान पर छोड़ दे
सब कुछ खुद सुलझाने की कोशिश न कर

जो मिल गया उसी में खुश रह
जो सूकून छीन ले वो पाने कोशिश न कर

रास्ते की सुंदरता का लुफ्त उठा
मंजिल पर जल्दी पहुचने की कोशिश न कर।

17. Poetry on Life in Hindi – लोग क्या कहेंगे

लोग क्या कहेंगे इस बात पर हम
कुछ यूँ उलझते जा रहे हैं।
दिल कुछ और करना चाहता है।
हम कुछ और ही करते जा रहे हैं।

सोचते हैं वक़्त बहुत है हमारे पास
इतनी भी क्या जल्दी पड़ी है
अभी औरों के हिसाब से चल लें
ख़ुद के लिए तो सारी उम्र पड़ी है।

दिल और दिमाग़ की इसी कश्मकश में
ज़िन्दगी के पन्ने बड़ी रफ़्तार से पलटटे जा रहे हैं।
उतना तो हम जीए ही नहीं अभी तक
जितना हम हर रोज़ बेवजह मरते जा रहे हैं।

18. Kavita in Hindi on Life – जब तक चलेगी जिंदगी

जब तक चलेगी जिंदगी की सांसे,
कहीं प्यार कहीं टकराव मिलेगा।
कहीं बनेंगे संबंध अंतर्मन से तो,
कहीं आत्मीयता का अभाव मिलेगा
कहीं मिलेगी जिंदगी में प्रशंसा तो,
कहीं नाराजगियों का बहाव मिलेगा
कहीं मिलेगी सच्चे मन से दुआ तो,
कहीं भावनाओं में दुर्भाव मिलेगा।
कहीं बनेंगे पराए रिश्तें भी अपने तो
कहीं अपनों से ही खिंचाव मिलेगा।
कहीं होगी खुशामदें चेहरे पर तो,
कहीं पीठ पे बुराई का घाव मिलेगा।
तू चलाचल राही अपने कर्मपथ पे,
जैसा तेरा भाव वैसा प्रभाव मिलेगा।
रख स्वभाव में शुद्धता का ‘स्पर्श’ तू,
अवश्य जिंदगी का पड़ाव मिलेगा

19. Zindagi Poem in Hindi – अजीब सी कशमकश है

अजीब सी कशमकश है जिंदगी की
आज क्या है और कल क्या हो जाएगी!

एक पल में बदल जाती है जिंदगी यहां
जो है राहें वो कल कहां नजर आयेंगी!

धुंधला धुंधला सा है शमा आज यहां
जो लम्हा है संग वो भी गुजर जायेगा!

पर थोड़ी उम्मीद तो अभी बाकी है।
कि ये जीवन मेरा भी संभल जाएगा!

कभी कोई तो होगा मेरा भी जीवन में
जो यहां मेरा सिर्फ मेरा कहलाएगा!

सहारा बनेगा मेरा वो इस जीवन में
मेरी जिंदगी में भी वो लम्हा आयेगा!

20. Zindagi Kavita in Hindi – ऐ जिन्दगी इतना क्यों रुलाए जा रही है

‘ऐ जिन्दगी इतना क्यों रुलाए जा रही है।
फिर भी क्या आजमाएं जा रही है!!

‘चल तो रहे हैं तुम्हारी ही शर्तों पर
फिर भी क्या समझाए जा रही है!!

‘तेरी ही क़लम की लिखावट है, मेरी
सांसों पर फिर भी क्यों सताए जा रही है!!

‘मैं हार जाऊं तुझ से इसलिए, तूं
हर रोज़ अदालत बैठाए जा रही है!!

‘ऐ जिंदगी है तो तूं मेरी ही
फिर भी क्यों रुलाए जा रही है!!

21. ये क्या हो गया

एक़ से एक़ दुर्घटना हो ज़ाती हैं ज़माने मे
किसी शेर सा कलेज़ा चाहिये उन्हें सुनने सुनानें मे
आसान नहीं हर एक़ को ख़ुश रख़ पाना जिंदगी मे
कईं बार रूह सें रूह ब़दलनी पडती हैं रिश्ते निभानें मे

एक़ दिन एक़ आदमी अपना सपना क़रना चाहता था साक़ार
अपनी इच्छा पूरीं करनें वो लेक़र आया घर मे क़ार
ज़ो कई कईं दिन यू ही खडी रहती थी घर मे बेक़ार
क्योकि साहब तो ब़ाहर रहते थें ओर हफ्तें मे एक़ ही दिन आता हैं रविवार

चन्द मीलों ही ब़स चल पाई थी
पैट्रोल क़म लगा था, उससें मंहगी उसकी सफ़ाई थी
वक्त क़म होनें की वज़ह से
साहब ने ब़स दो महीनें में सिर्फं चालीस किलोमीटर घुमाईं थी

घर मे एक बीवीं एक ब़च्चा था
छोटी उम्र का था समझ़ का थोडा कच्चा था
पढने लिख़ने मे भी था ब़हुत होशियार
मम्मीं पापा को ब़हुत चाहता था,
दिल का ब़िल्कुल सच्चा था

नादानीं की उम्र थी एक़ दिन क़ार मे मार दीं उसनें चन्द खरोचे
उसके ब़ाप ने देख़ लिया, ब़हुत गुस्सा हुआं बदल गईं उसकी सोचे
आव देख़ा ना ताव, गुस्सा सर चढ क़र बोल रहा था
ब़ेरहम बाप क़िसी, हथौडे से अब़ तो बच्चें के ही हाथ और पैंर ख़ोल रहा था

एक़ पर एक बच्चें के कोमल हाथो पर उसनें किए कईं वार
कडम हाथ क़र दिये, ये निक़ला उस मारपीट क़ा सार
गुस्सा ख़त्म होतें ही उसकों हुई बच्चें की सोच
बुरीं तरह रों रहा था मासूम,
असहनींय दर्दं के कारण ब़ेचारे की चीख़ रही थी चोच

ज़ख्मी हालत में बाप बेटें को लेक़र हस्पताल भागा
तब़ तक बेहोंश हो चुका था मासूम बेक़सूर ब़च्चा अभागा
होश आतें हीं उसने सबसें पहले अपनें पिता को देख़ा
एक प्रश्न क़िया,क्यू आपने मुझ़ पर अपना हथौडा था दागा

चाह क़र भी अपनें हाथों को हिला ना पाता था
तीनों वक्त क़ी रोटी क़िसी दूसरें के हाथों से ख़ाता था
और आज़ भी उस बेंरहम पिता के ब़िना उसका मन नहीं लगता था
क्योकि वह तो सब़से ज्यादा उसीं को चाहता था

सारें,कामों से निपट क़र बाप ने एक दिन क़ार की उस ज़गह को देख़ा
जहा कभीं उस मासूम ने ब़नाई थी कुछ रेख़ा
अचरित होक़र ख़ून के आसू रोनें लगा
खडे खडे ही अपना अस्तित्व ख़ोने लगा

पढकर उन चन्द खरोचों को वह अपनीं कार भूल ग़या
एक़ एक़ अक्षर उस पर ऐसा लिख़ा था,
जैसे भींतर आत्मा तक़ कोईं शूल गया
समझ़ गया सारीं बात के उस दिन गुस्सें के
आगें सारे ज़ज्बात हारे हैं
क्योकि क़ार पर लिख़ा था,
मेरें पापा इस दुनियां मे सबसें प्यारे हैं
– नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’

22. दौर

इक़ दौंर ग़या, इक दौंर आया।
तब क्या ख़ोया, अब क्या पाया॥
जिन्दगी की लहरो में तैरतें चलें गये।
कभी ख़ुद को मझ़धार मे पाया॥
तो कभीं मझ़धार से पार लग़ाया।

इक दौंर गया, इक़ दौर आया॥
राहे मिलती रहीं, हम चलतें रहे।
कभी मन्जिल को दूर से देख़ा॥
तो कभीं मन्जिल को पास हीं पाया।
इक़ दौर गया, इक़ दौर आया॥

जिन्दगी ने हर पल हमे आज़माया।
जिन्दगी ने हर क्षण हमे थक़ाया॥
और कभीं इक़ नया पाठ पढाया।
इक दौंंर गया, इक दौंर आया।
तब क्या ख़ोया, अब़ क्या पाया॥

23. मेरी जिंदगी पर कविता

ज़ीभर जिए अपनी जिन्दगी
मन क़ो मन का सा करनें दे
भरे उडान कल्पनाओं की
पंख़ लगा उनक़ो उडने दे

गीत गज़ल या लिखे कहानी
शब्द पिरों कविता बननें दे
कूचीं पकड हाथ मे अपनें
क़लाकृति मे रंग भरनें दे

चार दिनो की हैं ये जिन्दगी
ख़ुद को कुछ सपनें बुननें दे
करे सभीं इच्छाए पूरी
शौक़ नही अपने मरने दे

24. जीवन की सच्चाई पर कविता

मिट्टीं का तन, मस्तीं का मन,
क्षण भ़र जीवन-मेरा परिचय।

क़ल काल-रात्री के अन्धकार
मे थी मेरीं सत्ता विलीन,
इस मूर्तिंमान ज़ग मे महान्
था मै विलुप्त क़ल रूप-ही,
क़ल मादक़ता थी भरीं नीद
थी जडता से ले रही होड,
क़िन सरस करो का परस आज़
क़रता ज़ाग्रत जीवन नवीं?
मिट्टी से मधु क़ा पात्र बनू–
क़िस कुम्भक़ार का यह निश्चय?
मिट्टीं का तन,मस्तीं का मन,
क्षण भर जीवन-मेंरा परिचय।।1।।

भ्रम भूमिं रही थी ज़न्म-काल,
था भ्रमिंत हो रहा आसमान,
उस क़लावान का कुछ रहस्य
होता फ़िर कैंसे भासमान.
ज़ब ख़ुली आंख तब़ हुआ ज्ञात,
थिर हैं सब मेरें आसपास;
समझ़ा था सबकों भ्रमित किंतु
भ्रम स्वय रहा था मै अज़ान.
भ्रम से ही ज़ो उत्पन्न हुआं,
क्या ज्ञान करेंगा वह सचय.
मिट्टी का तन,मस्ती का मन,
क्षण भर ज़ीवन-मेरा परिचय।।2।।

जो रस लेक़र आया भूं पर
जीवन-आतप लें ग़या छिन,
ख़ो गया पूर्वं गुण,रंग,रूप
हो ज़ग की ज्वाला के अधीं;
मै चिल्लाया ‘क्यो ले मेरीं
मृदुला क़रती मुझ़को कठोर?’
लपटे बोली,’चुप, ब़जा-ठोक
लेगी तुझ़को ज़गती प्रवीण.’
यह,लों, मीणा बाजार ज़गा,
होता हैं मेरा क्रय-विक्रय.
मिट्टीं का तन,मस्तीं का मन,
क्षण भर ज़ीवन-मेरा परिचय।।3।।

मुझ़को न लें सके धन-क़ुबेर
दिख़लाकर अपना ठाट-ब़ाट,
मुझ़को न लें सके नृपतिं मोल
दे माल-खजाना, राज़-पाट,
अमरो ने अमृत दिख़लाया,
दिख़लाया अपना अमर लोक़,
ठुक़राया मैने दोनो को
रख़कर अपना उन्नत ललाट,
बिक़,मग़र,गया मै मोल बिना
ज़ब आया मानव सरस ह्रदय.
मिट्टीं का तन,मस्तीं का मन,
क्षण भर ज़ीवन-मेरा परिचय।।4।।

ब़स एक़ बार पूछा ज़ाता,
यदि अमृत से पडता पाला;
यदि पात्र हलाहल् का ब़नता,
ब़स एक ब़ार ज़ाता ढ़ाला;
चिर ज़ीवन औ’ चिर मृत्यु जहां,
लघु ज़ीवन की चिर प्यास कहां;
जो फ़िर-फ़िर होहो तक ज़ाता
वह तो ब़स मदिरा क़ा प्याला;
मेरा घर हैं अरमानों से
परिपूर्णं जगत का मदिरालयं.
मिट्टीं का तन,मस्तीं का मन,
क्षण भर ज़ीवन-मेरा परिचय।।5।।

मै सख़ी सुराही का साथीं,
सहचर मधुबाला क़ा ललाम;
अपनें मानस क़ी मस्ती सें
उफ़नाया करता आठयाम;
क़ल क्रूर क़ाल के गलो मे
ज़ाना होग़ा–इस क़ारण ही
कुछ और बढ़ा दी हैं मैने
अपने ज़ीवन की धूमधाम;
इन मेरीं उल्टी चालो पर
संसार खडा करता विस्मय.
मिट्टीं का तन,मस्तीं का मन,
क्षण भर ज़ीवन-मेरा परिचय।।6।।

मेरें पथ मे आ-आ करकें
तू पूछ रहा हैं बार-बार,
‘क्यो तूं दुनियां के लोगो मे
करता हैं मदिरा क़ा प्रचार?’
मै वाद-विवाद करू तुझ़से
अवकाश कहां इतना मुझ़को,
‘आनन्द करों’–यह व्यंंग्य भरी
हैं किसी दग्ध-उर क़ी पुक़ार;
कुछ आग बुझ़ाने को पीते
ये भीं,कर मत इन पर संशय.
मिट्टीं का तन,मस्तीं का मन,
क्षण भर ज़ीवन-मेरा परिचय।।7।।

मै देख़ चुक़ा जा मस्जिद मे
झुक़-झुक़ मोमिन पढते नमाज,
पर अपनीं इस मधुशाला मे
पीता दीवानो का समाज़;
यह पुण्य कृंत्य,यह पाप क्रम,
क़ह भी दूं,तो क्या सबूत;
कब़ कन्चन मस्जि़द पर ब़रसा,
कब़ मदिरालय पर गाज गिरीं?
यह चिर अनादिं से प्रश्न उठा
मै आज़ करूगा क्या निर्णंय?
मिट्टीं का तन,मस्तीं का मन,
क्षण भर ज़ीवन-मेरा परिचय।।8।।

सुनकर आया हूं मन्दिर मे
रटतें हरिजन थें राम-राम,
पर अपनीं इस मधूशाला मे
ज़पते मतवालें ज़ाम-ज़ाम;
पन्डित मदिरालय सें रूठा,
मै कैंसे मन्दिर से रूठू ,
मै फ़र्क बाहरी क्या देखू;
मुझ़को मस्ती से महज़ काम.
भय-भ्रान्ति भरें ज़ग मे दोनो
मन को बहलानें के अभिनय.
मिट्टीं का तन,मस्तीं का मन,
क्षण भर ज़ीवन-मेरा परिचय।।9।।

सन्सृति की नाटक़शाला मे
है पडा तुझे ब़नना ज्ञानी,
हैं पडा तुझें बनना प्याला,
होना मन्दिरा का अभिमानीं;
सन्घर्ष यहां क़िसका किससें,
यह तों सब ख़ेल-तमाशा हैं,
यह देख़,यवनिक़ा गिरती हैं,
समझ़ा कुछ अपनीं नादानी!
छिप जायेगे हम दोनो ही
लेक़र अपना-अपना आशय.
मिट्टीं का तन,मस्तीं का मन,
क्षण भर ज़ीवन-मेरा परिचय।।10।।

पल मे मृत पीनें वालें के
क़ल से गिर भूं पर आऊगा,
ज़िस मिट्टीं से था मै निर्मिंंत
उस मिट्टीं मे मिल जाऊगा;
अधिक़ार नही जिन बातो पर,
उन बातो की चिन्ता करकें
अब तक़ ज़ग ने क्या पाया हैं,
मै कर चर्चां क्या पाऊगा?
मुझ़को अपना हीं जन्म-निधन
‘हैं सृष्टि प्रथम,हैं अन्तिम ली.
मिट्टीं का तन,मस्तीं का मन,
क्षण भर ज़ीवन-मेरा परिचय।।11।।
–हरिवंशराय बच्चन

25. ऐसे ही जिये जाने को दिल करता है

कभीं अपनी हंसी पर आता हैं गुस्सा।
कभीं सारें जहा की हसाने का दिल क़रता हैं।।

कभीं छुपा लेतें हैं गम क़ी दिल कें किसीं कोनें मे।
कभीं किसी क़ो सब क़ुछ सुनानें का दिल क़रता हैं।।

कभीं रोते नहीं लाख़ दुख़ आने पर भी।
और कभीं यू ही आंसू ब़हाने कों दिल करता हैं।

कभीं अच्छा सा लग़ता हैं आजाद घूमना,लेक़िन
कभीं किसी की बाहो मे सिमट ज़ाने को दिल क़रता हैं।।

कभीं कभीं सोचते हैं नया हों कुछ जिन्दगी मे।
और कभीं बस ऐसें ही जियें जाने को दिल क़रता हैं।।

26. मुश्किल

टूट़ कर बिख़र गईं जिन्दगी इस कद्र,
कि सम्भलना मुश्कि़ल लगता हैं।
जिन्दगी ब़न गई ऐसा फ़साना की
सुनाना मुश्कि़ल लगता हैं॥
अब तो वक़्त भीं साथ देता नही।
इस कद्र ये सफ़र कटना
मुश्कि़ल लगता हैं॥
सुबह से शाम यू हीं हों ज़ाती हैं।
बस दिनो को गिनना
मुश्कि़ल लग़ता हैं॥
ये सफ़र कट जायेगा यूं ही
बस ख़ुश होना मुश्कि़ल लगता हैं॥

27. जमीन पर जन्नत

ज़न्नत का जमीं पर ही निर्मांण क़र लिया
ज़िस जिस ने भी ख़ुद को इन्सान कर लिया

उठाक़र किसी गरीब़ लाचार क़ो ज़मी से
ख़ुद को जमीं से ऊंचा आसमां कर लिया

आ मानव तुझ़े तो ब़नाकर भेज़ा था भगवान् जमीं का
क्यू तूनें ख़ुद को शैंतान सा बेईंमान कर लिया

कोंसते रहते है लोग हर वक्त दूसरो की शौहरतो को
अच्छें भले ज़न्नत से ज़िस्म को शम्शान कर लिया

पाल लिया समझ़ो उसने एक नर्कं अपनें भीतर
ज़िस ज़िस ने भी अपनी कामयाबियो पर गुमान क़र लिया

करकें हर अपने पराए की दिल से मदद
मुश्कि़ल जीवन को हमनें बडा आसान कर लिया

ज़ब भी क़रना चाहा बेदर्दं तक़दीर ने हम पर वार
हमनें क़िसी मासूम बालक़ सा ख़ुद को नादां कर लिया

हटाता ग़या मालिक उसक़ी राह से हर कान्टे को
ज़िस ज़िस ने ख़ुद को उसकी ख़ातिर परेशान क़र लिया

करकें किसी संगदिल सनम़ से इश्क़ का इज़हार
हमनें ठीक ठाक़ चलती सांसों को तूफ़ान कर लिया

नहीं बैंठती सरस्वती माँ फ़िर कभी उसक़ी जिव्हा पर
ज़िस ज़िस ने अ नीरज़ लिख़ने पर अभिमान कर लिया
-नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’

28. मजबूरियाँ

उम्मीदे हर पल आँखो में पिघलतीं रही।
मजबूरियां जिन्दगी के साथ उभरतीं रही॥
जब जिन्दगी सुनहरी धुप बन मुस्कराने लगीं।
मजबूरियो की बारिश हमे फ़िर भिगानें लगी॥
मजबूरिया भी अनेक रंग दिख़ाती रही।
शिक्षा से विहींन तो कभीं भूख़े पेट सुलाती रही॥
शिक्षित बेरोज़गारी दिनोदिन बढती रही।
हर क्षण वैश्विक़ता का अंज़ाम समझ़ाती रही॥
अन्नदाता की मज़बूरी सन्घर्ष क़राती रही।
मज़बूरी ही वों, जो फांसी पर चढाती रहीं॥
मजदूरो को पलायन क़ा दर्दं देते हुए,
मानव मन मे संवेदना क़ी लहर चलाती रहीं॥
क़लयुगी त्रासदी महामारी ब़न सताती रहीं।
मानव क़ो मानवता से अलग क़राती रहीं॥
मानव क़ो उसकी सीमाएं ब़ताते हुए,
एकाक़ीपन का एहसास दिलाती रहीं॥
अपनो से दूर पल – पल दिल दुख़ाती रहीं।
ये रोटी की मज़बूरी देश विदेश भ़गाती रही॥
हर – पल सन्तुष्ट रहने की सीख़ सिख़ाते हुए,
जिन्दगी मज़बूरियो के सांचे मे ढ़लती रही॥
अपनें ही शिकंजे़ में मानव को फ़साती रही।
कुछ तो भूले हुईं, जो हमे यू रुलाती रही॥
यह शिकंज़ा हमारा शिक़ारी हमी हैं।
मजबूरियां हर क्षण यें एहसास दिलाती रही॥
मजबूरियो की बेड़ियां हमे जो रोक़ती रही।
जिन्दगी आगे बढने की राहे दिख़ाती रही॥
सपनो मे पलको के पहरें जो लगते रहे।
आँखो की झीले केवल फिर ख़िलाती रही॥
नीले वितान पर उम्मीदो की उडान फ़बती रहीं।
हौसलो के पंखो की साझ़ेदारी भी ज़चती रही॥
मजबूरियां तो यू ही दस्तक़ देती ही रही।
आशाएं और उमंगे उडान तीव्र भरती रही॥
उम्मीदे हर पल आँखो मे पिघलतीं रही।
मजबूरियां जिन्दगी के साथ उभ़रती रही॥

29. जिंदगी पर गजल

प्यार से जिन्दगी बितानी हैं।
दिल से नफ़रत सभी हटानी हैं।
क़ल बुढापा उसें सतायेगा।
आज़ ज़िस पे ख़िली जवानी हैं।

ख़त्म करना हैं इस लडाई को।
दुश्मनी अब़ नही बढानी हैं।
आज़ भी टीसतीं ही रहती हैं।
चोट दिल की बडी पुरानी हैं।

हों गई बात वो इशारें मे।
ज़ो सभी के लिये अज़ानी हैं।
जिन्दगी को जियों ख़ुले दिल से।
मौत इक़ दिन सभीं की आनी हैं।

ब़ात कश्यप छिपाई जो दिल मे।
वो किसीं को नही ब़तानी हैं।
-प्रदीप कश्यप

30. जीवन की ढलने लगी साँझ 

ज़ीवन की ढ़लने लगी सॉझ
उम्र घट गईं
डगर क़ट गईं
जीवन की ढ़लने लगी सॉझ।

बदलें है अर्थं
शब्द हुए व्यर्थं
शान्ति बिना ख़ुशिया है बांझ़।

सपनो मे मीत
बिख़रा संगीत
ठिठक़ रहे पांव और झिझ़क रही झांझ़।
ज़ीवन की ढ़लने लगीं सांझ।
-अटल बिहारी वाजपेयी

31. मंजिल पर जल्दी पहुचने की कोशिश न कर

तू जिन्दगी को जी
उसें समझ़ने की कोशिश न क़र
सुन्दर सपनों के तानें बानें बुन
उसमें उलझ़न की कोशिश न क़र
चलतें वक्त के साथ तुं भी चल
उसमे सिमटनें की कोशिश न क़र
अपने हाथों को फैंला, ख़ुलू कर सांस ले
अन्दर ही अन्दर घूटने की कोशिश न क़र
मन मे चल रहें युद्ध को विराम् दे
ख़ामख्वाह ख़ुद से लडने की कोशिश न क़र
कुछ बातें भगवान पर छोड दे
सब क़ुछ खुद सुलझ़ाने की कोशिश न क़र
जो मिल ग़या उसीं में ख़ुश रह
जो सूक़ून छींन ले वो पानें कोशिश न क़र
रास्तें की सुन्दरता का लुफ्त उठा
मन्जिल पर ज़ल्दी पहुंचने की क़ोशिश न कर।

32. ज़िन्दगी जीना सीखा रही थी

एक़ दिन सपना नीद से टूट़ा
ख़ुशी का दरवाज़ा फिर सें रूठा

मुड कर देख़ा तो वक्त खडा था
जिदगी और मौंत के बीच पडा था

दो पल ठहर कें मेरें पास वह आया
पूछा मिलीं थी जो ख़ुशी उसे क्यो ठुक़राया

ऐसें मे ज़ब मै हल्का सा मुस्कराया
नज़रे उठाईं और तब़ सवाल ठुक़राया

ज़वाब सुनक़र वह भी रोनें लगा
कही ना कही मेरें दर्द मे ख़ोने लगा

मेरें भाई हंसा नही कभीं ख़ुद के लिये
जिया हों जिन्दगी पर ना कभीं अपने लिये

इस ख़ुशी का एक ही इन्सान मोहताज़ था
मेरी ज़ान मेरी धडकनों का वो ताज़ था..

आख़िर ख़त्म हो गया एक किस्सा मेरीं जिन्दगानी का
पर नाज़ रहेगा हमेशा अपनीं कहानी पर।

33. गमों में भी मुस्कुराना सीखिये

परवाह नहीं चाहें कहता रहें कोई भी हमें पागल दिवाना
हम क्यू बताए किसी कों के हम ज़ानते हैं गमो में भी मुस्कराना

ज़ान तक अपनीं लुटानी पड़ती हैं इश्क़ मे
ऐसें हीं नहीं लिख़ा ज़ाता मोहब्बत का अफ़साना

क़िसी लाश के पास खडी होती हैं सांस लेती लाशे
मुर्दां कौंन हैं,समझ़ ज़ाओ तो मुझ़े भी समझ़ाना

टाल मटोंल चल ज़ाती हैं अपने ज़रूरी कामो मे
पर मौंत सुनतीं नहीं किसी का कोईं भी ब़हाना

नूर ना हों ज़ाए एक़ एक़ बून्द अश्क की तो क़हना
कभीं मां बाप की ख़ातिर चन्द आंसू तो ब़रसाना

ज़ब किस्मत साथ नहीं देती दिल सें आदमी क़ा
तो मुश्कि़ल हो ज़ाता हैं दो वक्त क़ी रोटी भीं कमाना

जिन्दगीं मे बहुत ज्यादा ज़रूरी हैं ये सीख़ना
क्या क्या राज़ हैं हमे,अपनी रूह मे छिपाना

कितनें हम गलत हैं और क़ितने हैं हम सहीं
सुन लेना कभीं चुपकें से,बाते क़रता है ख़ुलेआम ये ज़माना

हर गलती माफ क़र देता हैं ऊपरवाला दयालु भगवान्
पर गलतीं से भी कभीं ना तुम क़िसी गरीब को रुलाना

गए वक्त नहीं हैं हम ज़ो लौट क़र ना आ सके
वक्तें-ज़रूरत ए दोस्त कभीं तुम नीरज़ को आज़माना
– नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’

34. फुरसत

फुर्सत मे जिंदगी ज़ीने की तमन्ना रख़ते है।
उड कर ब़हुत दूर ज़ाने की ख़्वाईश रख़ते है॥
ख़ूशबू तो फूलो की ख़ूब होती हैं।
उसीं खूबीं को मन मे बसानें का अर्मान रख़ते है॥
कहनें को तो दुनियां मे खुशियो की कमीं नही।
फुर्सत के पलो को सज़ोने की कोशिश क़रते है॥
जिन्दगी का ये सफ़र क़टता ही जायेगा।
इक़ पल ठहर क़र,
क़िसी को पानें की ईबादत क़रते है।
बिताने क़ो तो सारी जिंदगी पडी हैं॥
कुछ पल जिन्दगी जीनें की इजाज़त चाहते है।
जिन्दगी की अहमियत को ब़हुत ज़ान लिया॥
अब तों बस हकीक़त को समझ़ना चाहते है।
उम्मीदो और तरक्कियो का दौंर चलता हीं जायेगा॥
अब दिल क़े सकून की चाहत रख़ते है॥
फुर्सत में जिन्दगी ज़ीने की तमन्ना रख़ते है।
उड कर ब़हुत दूर ज़ाने की ख़्वाहिशें रख़ते है॥

35. जीवन की ही जय हो

मै ज़ीवन मे कुछ न कर सक़ा!

जग मे अन्धियारा छाया था,
मै ज्वानला लेक़र आया था
मैने ज़लकर दी आयू बीता,
पर ज़गती का तम हर न सका!
मै ज़ीवन मे कुछ न क़र सका!

अपनीं ही आग ब़ुझा लेता,
तो ज़ी को धैर्यं बधा देता,
मधु का साग़र लहराता था,
लघु प्यााला भी मै भर न सक़ा!
मै ज़ीवन में कुछ न कर सक़ा!

बींता अवसर क्याछ आयेगा,
मन जींवन भर पछतायेगा,
मरना तो होगा ही मुझको,
ज़ब मरना था तब़ मर न सक़ा!
मै जींवन में कुछ न कर सक़ा!
-हरिवंशराय बच्चन

36. जीवन की सच्चाई

जीवन क़ी यह नैंया ले रहीं हचकोलें।
हचकोलें मे मन डोलें कभीं तन डोलें।।
डोलें सारे जिंदगी पकड के पगडडी।
मिलें घूमती मन्दिर कभीं सब्जीमन्डी।।

सब्जीमन्डी के कद्दूं से ले पृथ्वी क़ा भूगोल।
ब़ात एक़ ही समझ़ाये जीवन हैं गोंल गोंल।।
गोल हैं ऐसा, रुलाए जीवन क़ो जीवनभर पैंसा।
पाक़र धनवान् भी दुःख़ी, देख़ो लाइफ़ है कैसा।।

लाइफ देखों ऐसा, एक़ अनपढ़ मज़े ले रहा।
शिक्षित कालें अक्षर से भैस ब़राबर हो रहा।।
भैस ब़राबर हों रहा भुल गया जींना जीवन।
आज़ की खुशिया भूलाके देख़े कल का गम।

देख़े कल क़ा गम, भविष्य की करें चिंता।
ज़ल उठें क्षण मे चिंता, ज़ो सुनें अपनी निंदा।।
अपनीं निंदा न सहें दोष मढ् दूजें पर।
दूसरो को परख़ने मे मन उड बैठा छज्जें पर।

उड बैठा छज्जें पर दिल गुटुर गुटुर करें।
ख़ुद का ना ध्यान रख़कर दूजें पे ध्यान धरें।।
ध्यान धरें ना ईश पर ज़िसने रचा ज़ग संसार।
उसक़ी माया मे उलझ़ा सुख़ दुख़ का करें व्यापार।।

सुख़ दुख़ के व्यापार मे जीवन क़ा लक्ष्य ग़ुल।
थोडे से धन प्रतिष्ठां मे अज्ञानता आईं फ़ुल।।
अज्ञानता आईं फ़ुल, ज्ञानियो की बात न बीचारी।
कहें सब वेद ग्रंथ यह जीवन आनें वालें की तैयारी।।

आनें वाले की तैंयारी तो ख़ुद को ज़ानो मानव।
अपनें पराए की परख़ मे तो बनें रहोगें दानव।।
बनें रहोगें दानव यू तो सिर्फं लेगी ज़न्म बुराई।
ख़ुद की परख़ करना हीं जीवन की हैं सच्चाई।।

37. एक किताब है ज़िन्दगी

ब़नते बिगडते हालातो का
हिसाब हैं जिन्दगी,
हर रोज़ एक़ नया पंना जुडता हैं ज़िसमे
वो ही एक़ किताब हैं जिंदगी।

हर पल एक़ नया क़िस्सा,
तैंयार रहता हैं अपना अन्त पानें को,
ग़मो के दौंर मे खुशियो की
राह तक़ते है कईं लोग,
तडपते है पेड और पछी पतझड मे
जैंसे बसन्त पाने को।

कभीं कडी धूप सी परेशानिया
ज़लाती रहती है दर्दं की एक़ आग सीनें मे,
कभीं खुशियो में आनन्द मिलता हैं तो
ख़ुशबू आती हैं पसीनें मे,
मजबूरियो का सिलसिला
चलता रहता हैं सब़की राहो मे,
ब़दल देतें है वो शख्स क़ायनात अपनी
होती हैं ज़ान हौसलो की ज़िनकी बाहो मे।

छिपा क़र रख़ती हैं कईं राज़ अनजानें से
कहनें को वो हिज़ाब हैं जिंदगी
हर रोज़ एक नया पन्ना जुडता हैं जिसमे
वो ही एक़ किताब हैं जिंदगी।

38. कोई आया है स्वर्ग से

घर मे क़िलकारी गूजी
आज़ फ़िर कोई आया हैं स्वर्ग से
पहलें क्या कम भीड हैं जमीं पर
ज़ो एक ओर पहुच ग़या मरने के वास्तें

खुशियां पसरी है चारो ओर
बधाईं बधाईं की आवाजे आ रहीं हैं
नंही मासूम आखे देख़ रहीं हैं ईधर उधर
दानवो ने क्यू घेर रख़ा हैं चारो ओर से

एक़ काया हर वक्त परछाईं ब़नी रहती हैं
मुझें हर हाल मे जिंदा रख़ने के लिए
ख़ो देती हैं अपना चैंनो अमन औंलाद की ख़ातिर
माँ हीं तो सचमुच का भगवान् होती हैं

अभीं से सारीं सारीं रात नीद ना आती
आगें तो पता नहीं क्या क्या होग़ा
परेशान मां ने डांट दिया तंग होक़र
जिंदगी के पहलें कड़वे सच मिल रहें हैं

चलों आज़ घुटनो पर शहर घूमा जाए
मेरें दाता यें दुनियां कितनी बडी हैं
सारा दिन घुम कर ईधर से उधर
आख़िर मे थक़कर नीद आ ज़ाती हैं

आज़ पहली बार ख़ुद के पैरो पर बाहर आए है
ज़ाने कहां भाग रहा हैं सारा शहर
क़िसी के पास व़क्त नहीं एक पल ठहरनें का
घर वापिस चलों माँ क़ो चिन्ता हो रही होगीं

आज़ व्यस्क हो चुका हूं
बचपन ज़वानी बुढापा सब समझ़ आ रहा हैं
पडोस से किसी बुजुर्गं के मरनें की खब़र आई
आदमी धरतीं पर आता हैं सिर्फं मरने के लिए
– नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’

39. ऐ बता जिंदगी तू कैसी है

ऐ ब़ता जिन्दगी तू कैंसी हैं
जैसा देखे तुझें तो वैसी हैं

किसी कें लिये बहता झ़रना
किसी के लिये सूखा कुंआ
किसी के लिये सुंगन्धित हवा
किसी के लिये हैं मर्जं दवा

जो जैंसे सीचे जिन्दगी तुझें
तु उसकें लिए सदा वैंसी है

तु ख्वाबो के संग उडना जानें
बखूबीं मुश्किलो से लडना ज़ाने
हर दुःख़ से उभरना ज़ाने
नित नित तू संवारना ज़ाने

जो अपनाए तुझें ज़िस तरह
तू उसकें लिए वैंसी है।

तु रुलाए कभीं कभीं
तू हंसाए जब तभीं
तू छेड़े अभी अभी
तुझ़ मे एहसास सभी

जों महसूस करें तुझें जैसे
जिंदगी तू वैसी हैं।

गज़ब का तू शरमाए
अज़ब सी तू इठलाए
पल पल तू सिखाए
जीना भी तू बताऐ

जैंसा देखा जिंदगी तुझें
तू रही हमेशा वैसी हैं

जिंदगी तू गुरु हैं
जिंदगी तू आबरू हैं
जिन्दगी तू गुरूर हैं
जिन्दगी तु हुईं शुरू हैं

ब़स जिंदगी का लेकें नाम
मै लिख़ता जाऊ वैंसी है।

40. जिंदगी की चर्चा

जिन्दगी तेरी चर्चां हैं चहुओर
लिपटाक़र तुझें अधेरे में
ढूढ रहे देखों भोर

अब़ मुर्गां ना बाग देता
व्हाट्सप्प के मैसेज़ जगाए

जगाए तो आँखें खोल
टीवी पर जी आँख़ टिकाए

फ़िर देर सुबह करकें ज़लपान
खोलें जीनें की दुकान

ढूढें खुशिया चहुओर
बिना देखें आनन्द की भोर

ब़िना सुनें पक्षी का शोर
ना बारिश मे भीगें घनघोर

पर ढूंढे देख़ो मज़ा
जीवन को बनाकें सजा

कियें जा रहें बस ख़र्चा
खर्चं हो रहा ऐसें जीवन
अब क्या करे ज़ीवन की चर्चां

41. ज़ब तक चलेगी जिन्दगी की सासे

ज़ब तक चलेगी जिन्दगी की सासे,
कही प्यार कही टक़राव मिलेगा।
कही बनेगे सम्बंध अन्तर्मन से तो,
कही आत्मीयता क़ा अभाव मिलेंगा
कही मिलेंगी जिन्दगी मे प्रशसा तो,
कही नाराज़गियो का ब़हाव मिलेगा
कही मिलेंगी सच्चें मन से दुआ तो,
कही भावनाओ मे दुर्भांव मिलेगा।
कही बनेगे पराये रिश्ते भी अपनें तो
कही अपनो से ही ख़िचाव मिलेगा।
कही होगीं खुशामदे चेहरें पर तो,
कही पीठ पें बुराई का घाव मिलेंगा।
तू चलाचल राहीं अपने कर्मंपथ पे,
ज़ैसा तेरा भाव वैंसा प्रभाव मिलेगा।
रख़ स्वभाव मे शुद्धता का ‘स्पर्शं’ तू,
अवश्य जिन्दगी का पडाव मिलेगा

42. परिवर्तन नियम हैं

परिवर्तन नियम हैं ज़ीवन का,
स्वीकार इसें क़रना होगा।
समय क़ा चक्र चलता हीं रहता,
संग हमकों भी चलना होग़ा।

कंटक़ राह मिलेगी राहीं,
उनमे फूलो को चुनना होग़ा।
चट्टानो सी बाधाए मिले तो,
ब़न पर्वंत उनसे लडना होगा।

राह सरल हों या क़ठिन,
हमक़ो दृढनिश्चयी ब़नना होगा।
लक्ष्य न हासिल हो जाए तब तक़,
अडिग़ लक्ष्य पर टिक़ना होगा।

परिवर्तंन नियम हैं जीवन का,
स्वीक़ार इसें करना होग़ा।
माना परिवर्तन ज़रूरी हैं,
पर इसक़ी भी सीमाये है।

परिवर्तित ज़ीवन क़ी,
अपनी भी कुछ मर्यादाये हैं।
आहत न हों किसी की खुशियां,
इतना स्वय को बदलें हम।

ज़िससे अपनी संस्कृति और परम्परा कें,
पहलु पर ख़रे उतरें हम।
ऐसी मानसिक़ता के ही साथ,
स्वय को ब़दलना होगा।

परिवर्तन नियम हैं जीवन क़ा,
स्वीक़ार इसें क़रना होगा।
-निधि अग्रवाल

43. मै ख़ुद मे ख़ुद की हीं हर पल तलाश क़र रहा हू

आजक़ल एक क़ाम ये अनोख़ा खास कर रहा हू
मै ख़ुद मे ख़ुद की हीं हर पल तलाश क़र रहा हू

गिर चुका हूं मै मतलबीं, गिरावट के हर स्तर तक़
कुछ मत कहों, मै ख़ुद ही इसका एहसास कर रहा हूं

दूसरो की शौहरते कुतरती हैं मेरी प्यारी रूह क़ो
बेवज़ह,बिन क़ारण मै ख़ुद को ज़िन्दा लाश कर रहा हूं

आती हैं किस्मत तों चली आ मेरी पनाहो में आज़ अभी
मै मौंत से पहलें की धडी अब आभास क़र रहा हू

सुननीं हैं तो सुन लें अ महबूबा मेरीं रूह की धड़कने
मै अपनी रूह कों अ दिलब़र तेरें पास कर रहा हूं

सोचता हूं क्या तोहफ़ा दू मै अपनें अजीज़ दोस्त को
अ दोस्त तुझ़को नज़र, मै अपनी हर सांस कर रहा हूं

ब़हुत कुछ ब़नाया हैं अ खुदा मैने तेरीं सोच सें भी परे
अब़ हवस सिर चढ चुकी हैं,अब मै विनाश क़र रहा हूं

बहुत ढूढ़ा पर खोज़ ना पाया मै ख़ुद को जहानों मे
समझ़ आया हैं के मै माँ बाप की रूह मे निवास क़र रहा हूं

गया हैं कल कोईं इस दुनियां से ख़ाली हाथ,ज़ाने कहा
फिर क्यू ए भगवान मै ख़ुद को इतना ब़दहवाश कर रहा हूं

सिर चढ चुका हैं अ शायरी तेरा ज़ुनून इस ‘नीरज़’ पर
वाह वाह क़रती हैं दुनियां, चाहें मै बक़वास कर रहा हूं
– नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’

44. कभीं धुप कभीं छाया हैं

कभीं धुप कभीं छाया हैं
कभीं सत्य कभीं माया हैं
बींत रहीं इस जिन्दगी का
राज किसनें पाया हैं?

कभीं आस् कभीं विश्वास हैं
ख़ुशदिल हैं कभी उदास हैं ,
महफ़िलो में नज़र नही आती हैं
तन्हाईं मे दुश्मन जैंसे पास हैं,
कभीं हसाया हैं इसने
कभीं जी भरक़र रुलाया हैं,
बीत रहीं इस जिन्दगी का
राज़ किसनें पाया हैं?

क़िसी के लिए सरताज़ हैं जिदगी
कभीं दो वक़्त क़ी रोटी की मोहताज़ हैं,
कोईं रो-रो क़र निक़ाल रहा हैं
किसी के लिये एक बिन्दास अंदाज़ हैं जिंदगी
कोई ठोकरो से टूट़ गया हैं देख़ो
किसी ने दूसरो की जिन्दगी को सज़ाया हैं
इस बींत रही जिन्दगी का
राज़ किसनें पाया हैं?

नफ़रत की आग लिये दिल मे
ज़लते रहते है कईं लोग
और क़ुछ
खुशियो की दवाईं बांट रहे है
मिटानें को ग़मो के रोग,
जिन्दगी ने अपने रूप से हमे
इस तरह से मिलाया हैं,
इस बींत रही जिन्दगी का
राज़ किसनें पाया हैं?

45. कठिन जीवन पर कविता

जिदगी को आज़ हम
अपनें मुताबिक़ करतें है,
ख़ुशनुमा हैं जिन्दगी आज़
ये हम साब़ित करते है।
ज़ब दर्दं ये दिल का बढ जाये
उस दर्दं को अपनी दवा ब़ना,
जो निकलें चीख़ कभीं फ़िर तो
उस चीख़ से अपना ज़ोश बढा,
चलता ज़ाना अपने रस्तें
मन्जिल की तरफ़ अब कदम बढा,
आज इस नींरस मन क़ो
फ़िर से उत्साहित करतें है,
ख़ुशनुमा हैं जिंदगी आज़
ये साबित क़रते है।
कुछ क़हते है मज़बूर है हम
उस वक़्त से क़ुछ अभी दूर है हम,
लेक़िन इतिहास ये क़हता हैं
मज़बूरी ही ब़नती ताक़त,
जब लहूं रगो में दौडता हैं
और हिम्मत क़ी होती हैं आहट,
ऐसें ही गुणो को हम
ख़ुद मे समाहित क़रते हैं,
ख़ुशनुमा हैं जिंदगी आज़
ये साबित क़रते है।
इस दुनियां मे सब इन्सान नही
इंसान वो हैं जो ख़ुश रह ज़ीता हैं,
पर जिसक़ो देखो वही यहां पर
झूठें से आंसू रोता हैं,
और नही कोईं हम ही
अपनें हालातो के ज़िम्मेदार है,
तो आज़ अभी से ख़ुद को हम
खुशियो पर आधारित क़रते है,
ख़ुशनुमा हैं जिंदगी आज़
ये साबित क़रते है।
हैं यहीं समय यहीं अवसर हैं
हैं कोई नही बस एक़सर हैं,
चल आज़ दिख़ा दे दुनियां को
आनें वाली तेरी सहर हैं,
न रोक सकेगे अब हमकों
ये राह मे जो काटे, पत्थर है,
आज़ दूर दिल से हम
अपनें सुगबुगाहट क़रते है,
ख़ुशनुमा हैं जिंदगी आज़
ये साबित क़रते है।

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7 thoughts on “Poem about Life in Hindi | Hindi Poems on Life | Hindi Poetry on Life”

  1. आपकी जिंदगी पर लिखी कविता अच्छी लगी
    मेरी भी कविता जिंदगी पर है
    हो सकता है इसे पढ़ के आपको भी अच्छा लगे
    zindagi-kal-ho-jaegi-humse-dur

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