Poem on Balloon in Hindi : दोस्तों इस पोस्ट में कुछ गुब्बारे पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं. की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.
गुब्बारे पर कविता, Poem on Balloon in Hindi
1. गुब्बारे पर कविता
एक गुब्बारा गोल मटोल सा
ऊपर उड़ता जाता था
मांगे था एक छोटा बच्चा
रो रो कहता जाता था
मुझे चाहिए वही गुब्बारा
गोल मटोल सा वही गुब्बारा
ऊपर उड़ता वही गुब्बारा
रंग बिरंगा वही गुब्बारा
पापा मम्मी साथ खड़े थे
तभी दिखा एक साइकिल वाला
लिए खड़ा था हाथ में अपने
ढेर बड़ा गुब्बारे वाला
हाथ में उसके प्यारे प्यारे
खूब रंगों के थे गुब्बारे
नीले पीले लाल गुलाबी
और कई बिंदियों वाले
पर बालक को लगी जिद्द थी
उसे चाहिए वही गुब्बारा
गोल मटोल सा वही गुब्बारा
ऊपर उड़ता वही गुब्बारा
रंग बिरंगा वही गुब्बारा
प्यारा उसका वही गुब्बारा
2. Poem on Balloon in Hindi
गुब्बारों का लेकर ढेर,
देखो आया है शमशेर।
हरे, बैंगनी, लाल, सफ़ेद,
रंगो के हैं कितने भेद।
कोई लंबा, कोई गोल
लाओ पैसा, ले लो मोल।
मुटठी में है इनकी डोर,
इन्हें घुमाओ चारों ओर।
हाथों से दो इन्हें उछाल,
लेकिन छुना खूब सँभाल।
पड़ा किसी के ऊपर जोर,
एक जोर का होगा शोर।
गुब्बारा फट जाएगा,
खेल ख़त्म हो जाएगा।
3. Hindi Poem on Balloon
लाया हूँ जी मैं गुब्बारे
प्यारे – प्यारे ये चमकीले।
दस पैसे में एक मिलेगा
मन चाहे जैसा ले लो तुम
आसमान के तारे हैं ये
गुब्बारे इनसे खेलो तुम।
यह लो मीरा, यह लो हीरा
देखो तो यह सुन्दर कैसा
रूठो मत, लो रेखा रानी
घर से ले आओ दस पैसा
अच्छा जी अब जाता हूँ मैं
फिर आऊंगा गाँव तुम्हारे
पर न भूलना रंग बिरंगे
ये मेरे गुब्बारे प्यारे।।
4. मैं आज भी इस आवाज़ को सुनकर
मैं आज भी इस आवाज़ को सुनकर,
बाहर बालकनी की ओर दौड़ पड़ता हूँ,
फिर देखता हूँ उन गुब्बारों,
खिलौनों को।
माँ से ज़िद करना गुब्बारा
ले कर देने की,
याद आता है मुझे वो सब बचपन अपना,
खूब मार पड़ी थी माँ से
मुझे,
फिर ‘माँ’ भी खूब रोई थी,
शायद पैसे नहीं थे माँ के
पास,
उन दिनों पैसे कहाँ होते थे सब के पास…
लेकिन आज मेरे पास पैसे तो हैं,
माँ नहीं है,
चाहूँ तो सारे के सारे ही गुब्बारे, खिलौने,
खरीद सकता हूँ,
मगर खरीद कर देने वाली
‘माँ’ नहीं है आज,
फिर भी भाग कर क्यूँ जाता हूँ मैं,
देखता हूँ आज गली में फिर,
एक बेबस माँ के आगे ज़िद करते हुए,
उस छोटे से बच्चे को,
फिर भाग कर जाता हूँ नीचे मैं,
उस बच्चे के हाथ में थमा
देता हूँ,
इक गुब्बारा खरीद कर और
उसकी मुस्कान,
से संतोष पाता हूँ आनन्द
में आ जाता हूँ,
स्वार्थी हूँ मैं,
कहीं न कहीं उस बच्चे में
खुद को देखता हूँ,
उस माँ में अपनी ‘मां’को
ढूंढता हूँ,
बस बस,
कहानी वही रहती है,
किरदार बदल जाते हैं,
गुब्बारे वाला बदल गया,
मैं बदल गया,
माँ भी बदल गयी,
समय बदल गया,
वापिस आता हूँ,
गुब्बारे वाला फ़िर बढ़ जाता
है,
अगले घर के आगे,
देर तक पूँ पूँ करता है,
जबतक कोई मेरे जैसा बच्चा,
ज़िद न कर ले माँ से गुब्बारा दिलवाने की,
बजाता रहता है, आवाज़
लगाता रहता है,
गुब्बारे ले लो।
गुब्बारे ले लो।।
‘संजय भाटिया’
5. Short Poem On Balloon In Hindi Language
ले आए गुबारे।
तितली जैसे रंग-बिरंगे,
फूलों जैसे प्यारे।
एक गैस वाला था धागा
टूटा उड़ा कबूतर-सा
भरा एक में पानी, फूटा
बड़ी ज़ोर से वह बरसा।
भरी हवा बौनी ने, उस के
गाल बने गुब्बारे,
एक-एक कर फूट गए सब
वे गुब्बारे सारे।
बालस्वरूप राही
6. देखो ये गुब्बारे
मम्मी, देखो ये गुब्बारे,
रंग-बिरंगे प्यारे-प्यारे।
धरती के हों जैसे तारे,
ओहो, ओहो, ये गुब्बारे!
ये जादू वाले गुब्बारे,
अंबर तक पहुँचेंगे सारे।
तारों के संग झिलमिल करके,
चंदा के संग हिलमिल करके।
फिर धरती पर जब आएँगे,
मुझको खूब हँसाएँगे!
प्रकाश मनु
7. कहता गुब्बारा हम से यही
हवा जब भर जाती गुब्बारे के अंदर, उड़ जाता वह झट से ऊपर,
कहता गुब्बारा हम से यही, झाँक लें ज़रा हम ख़ुद के अंदर।
बाहर की नहीं, अंदर की हवा की ताक़त ले जाती गुब्बारे को ऊपर,
बाहर के नहीं, अंदर के भाव करते हमारा मार्ग प्रखर।
गुब्बारों से आज की मैंने, अपने मन की कुछ कुछ बातें,
ज़िंदगी में हम उठ सकते बहुत ऊपर, अगर खोलें हम भावों की परतें।
बाहर का मौसम गुब्बारे को खिंचता, अंदर की हवा दिखाती राह,
हमें भी बढ़ना हो आगे अगर, तो लेनी होंगी अंतर्मन की थाह।
हवा को था बड़ा घमंड ख़ुद पर, गुब्बारे ने झट कर लिया क़ैद,
मन की शक्ति जब होती तेज, लेतें हम झट मंज़िल को भेद।
गुब्बारा हमें यही सिखाता, पहचान लें अपने अंदर की शक्ति,
शुद्ध हो अगर मन के भाव, हो ही जाती प्रभु से भक्ति।
देखता हुँ जब गुब्बारों के, सैकड़ों हज़ारों रंग,
पनपने लगते मधुर भाव मन में, हिलोरे लेती उमंग।
भरते जब हम गुब्बारे में हवा, वह फुला नहीं समाता,
बतलाता गुब्बारा हमें यही, भावों का जीवन से गहरा है नाता।
उठना हो ज़िंदगी में ऊपर, देखो जीवन में गुब्बारों की बानगी,
बढ़ना हो सही राह पर अगर, बनाओ अच्छे भावों की मीठी चाशनी।
गुब्बारे के अंदर की ताक़त, जैसे गुब्बारे को ऊपर ले जाती,
हमारे अंतर्मन की ताक़त, हमें सही मार्ग जीवन का दिखलाती।
अंदर भरी हवा की ताक़त, ले जाती गुब्बारे को मीलों दूर,
अंदर के भाव हमें कर देतें, यूँ हीं भक्ति में चूर।
हवा न हो अंदर अगर, कैसे गुब्बारा ऊपर को जाए?
भाव न हो मन में सही अगर, कैसे इंसान सफलता पाए?
गुब्बारे जब उड़ते आसमान में ऊपर, मिलती एक अलग पहचान,
हम भी जब होते अग्रसर, सफलता का मिलता सोपान।
भरी हो पूरी अंदर हवा, बाहर की हवा कुछ बिगाड़ न पाती,
भाव मन में हो मज़बूत अगर, बाहरी बाधाएँ राह रोक नहीं पाती
मेरी इन बातों पर आज, करना आप सब गहरा मनन,
उड़ालो मन के सारे गुब्बारे, ख़ुशियों से भर लो जीवन का चमन।
चलना, उड़ना सही राह पर, सच्चाई का करना आचमन,
लड़ना बाहरी शक्तियों से, मज़बूत रखना अपना अंतर्मन।
रतन कुमार अगरवाला
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