Poem on Makar Sankranti in Hindi : दोस्तों इस पोस्ट में कुछ बेहतरीन मकर संक्रांति पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. इस Makar Sankranti Poem in Hindi को हमारे लोकप्रिय कवियों दुवारा लिखा गया हैं. यह कविता छात्रों के लिए भी सहायक होगी. क्योकि स्कूलों में भी Hindi Poem On Makar Sankranti लिखने को कहा जाता हैं.
मकर संक्रान्ति का त्योहार हिन्दुओं का प्रमुख त्योहारों में से एक हैं. इसे पुरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जाता हैं. यह अंग्रेजी कलेन्डर के अनुसार प्रत्येक वर्ष 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता हैं. जब भगवान सूर्य पौष मास में मकर राशी में प्रवेश करते हैं. तब इस त्योहार को मनाया जाता हैं. इसे इस दिन से सूर्य को उत्त.रायण होना भी कहा जाता हैं.
यह त्योहार स्नान दान का होता हैं. इस दिन गंगा नदी में स्नान करने का विशेष महत्व माना जाता हैं. इस दिन स्नान के बाद किए गए दान से देवता प्रसन्न होते हैं.
अब आइए कुछ नीचे Poem on Makar Sankranti in Hindi में दिया गया हैं. इसे पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह मकर संक्रांति पर कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.
मकर संक्रांति पर कविता, Poem on Makar Sankranti in Hindi
1. Poem on Makar Sankranti in Hindi – जन पर्व मकर संक्रांति आज
जन पर्व मकर संक्रांति आज
उमड़ा नहान को जन समाज
गंगा तट पर सब छोड़ काज।
नारी नर कई कोस पैदल
आरहे चले लो, दल के दल,
गंगा दर्शन को पुण्योज्वल!
लड़के, बच्चे, बूढ़े, जवान,
रोगी, भोगी, छोटे, महान,
क्षेत्रपति, महाजन औ’ किसान।
दादा, नानी, चाचा, ताई,
मौसा, फूफी, मामा, माई,
मिल ससुर, बहू, भावज, भाई।
गा रहीं स्त्रियाँ मंगल कीर्तन,
भर रहे तान नव युवक मगन,
हँसते, बतलाते बालक गण।
अतलस, सिंगी, केला औ’ सन
गोटे गोखुरू टँगे, स्त्री जन
पहनीं, छींटें, फुलवर, साटन।
बहु काले, लाल, हरे, नीले,
बैगनीं, गुलाबी, पट पीले,
रँग रँग के हलके, चटकीले।
सिर पर है चँदवा शीशफूल…
सिर पर है चँदवा शीशफूल,
कानों में झुमके रहे झूल,
बिरिया, गलचुमनी, कर्णफूल।
माँथे के टीके पर जन मन,
नासा में नथिया, फुलिया, कन,
बेसर, बुलाक, झुलनी, लटकन।
गल में कटवा, कंठा, हँसली,
उर में हुमेल, कल चंपकली।
जुगनी, चौकी, मूँगे नक़ली।
बाँहों में बहु बहुँटे, जोशन,
बाजूबँद, पट्टी, बाँक सुषम,
गहने ही गँवारिनों के धन!
कँगने, पहुँची, मृदु पहुँचों पर
पिछला, मँझुवा, अगला क्रमतर,
चूड़ियाँ, फूल की मठियाँ वर।
हथफूल पीठ पर कर के धर,
उँगलियाँ मुँदरियों से सब भर,
आरसी अँगूठे में देकर
वे कटि में चल करधनी पहन…
वे कटि में चल करधनी पहन,
पाँवों में पायज़ेब, झाँझन,
बहु छड़े, कड़े, बिछिया शोभन,
यों सोने चाँदी से झंकृत,
जातीं वे पीतल गिलट खचित,
बहु भाँति गोदना से चित्रित।
ये शत, सहस्र नर नारी जन
लगते प्रहृष्ट सब, मुक्त, प्रमन,
हैं आज न नित्य कर्म बंधन!
विश्वास मूढ़, निःसंशय मन,
करने आये ये पुण्यार्जन,
युग युग से मार्ग भ्रष्ट जनगण।
इनमें विश्वास अगाध, अटल,
इनको चाहिए प्रकाश नवल,
भर सके नया जो इनमें बल!
ये छोटी बस्ती में कुछ क्षण
भर गये आज जीवन स्पंदन,
प्रिय लगता जनगण सम्मेलन।
2. मकर संक्रांति पर कविता – मकर राशि पर सूर्य जब
मकर राशि पर सूर्य जब, आ जाते है आज!
उत्तरायणी पर्व का, हो जाता आगाज!!
कनकअौ की आपने, ऐसी भरी उड़ान!
आसमान मे हो गये, पंछी लहू लुहान!!
फिरकी फिरने लग गई, उड़ने लगी पतंग!
कनकअौं की छिड़ गई, आसमान मे जंग!!
अनुशासित हो कर लडें, लडनी हो जो जंग!
कहे डोर से आज फिर, उडती हुई पतंग!!
कहने को तो देश में, अलग अलग है प्रान्त!
कहीं कहें पोंगल इसे, कहे कहीं सक्रांत!!
उनका मेरा साथ है, जैसे डोर पतंग!
जीवन के आकाश मे, उडें हमेशा संग!!
मना लिया कल ही कहीं, कही मनायें आज!
त्योंहारो के हो गये, अब तो अलग मिजाज!!
त्योहारों में धुस गई, यहां कदाचित भ्राँति!
दो दिन तक चलती रहे, देखो अब संक्राँति!
3. Makar Sankranti Poem in Hindi – आसमान का मौसम बदला
आसमान का मौसम बदला
बिखर गई चहुँओर पतंग।
इंद्रधनुष जैसी सतरंगी
नील गगन की मोर पतंग।।
मुक्त भाव से उड़ती ऊपर
लगती है चितचोर पतंग।
बाग तोड़कर, नील गगन में
करती है घुड़दौड़ पतंग।।
पटियल, मंगियल और तिरंगा
चप, लट्ठाल, त्रिकोण पतंग।
दुबली-पतली सी काया पर
लेती सबसे होड़ पतंग।।
कटी डोर, उड़ चली गगन में
बंधन सारे तोड़ पतंग।
लहराती-बलखाती जाती
कहाँ न जाने छोर पतंग।।
4. Hindi Poem On Makar Sankranti – उत्सव, पतंग
उत्सव, पतंग
मेरे लिए उर्ध्वगति का उत्सव
मेरा सूर्य की ओर प्रयाण।
पतंग
मेरे जन्म-जन्मांतर का वैभव,
मेरी डोर मेरे हाथ में
पदचिह्न पृथ्वी पर,
आकाश में विहंगम दृश्य।
मेरी पतंग
अनेक पतंगों के बीच…
मेरी पतंग उलझती नहीं,
वृक्षों की डालियों में फंसती नहीं।
पतंग
मानो मेरा गायत्री मंत्र।
धनवान हो या रंक,
सभी को कटी पतंग एकत्र करने में आनंद आता है,
बहुत ही अनोखा आनंद।
कटी पतंग के पास
आकाश का अनुभव है,
हवा की गति और दिशा का ज्ञान है।
स्वयं एक बार ऊंचाई तक गई है,
वहां कुछ क्षण रुकी है।
पतंग
मेरा सूर्य की ओर प्रयाण,
पतंग का जीवन उसकी डोर में है।
पतंग का आराध्य (शिव) व्योम (आकाश) में,
पतंग की डोर मेरे हाथ में,
मेरी डोर शिव जी के हाथ में।
जीवन रूपी पतंग के लिए (हवा के लिए)
शिव जी हिमालय में बैठे हैं।
पतंग के सपने (जीवन के सपने)
मानव से ऊंचे।
पतंग उड़ती है,
शिव जी के आसपास,
मनुष्य जीवन में बैठा-बैठा,
उसकी डोर को सुलझाने में लगा रहता है।
5. Short Poem On Makar Sankranti In Hindi Language
आओ हम सब मकर संक्रांति मनाये
तिल की लड्डू सब मिलकर खाये।
घर में हम सब खुशियाँ फैलाये
पतंगे हम खूब उड़ाये।
सब मिलकर हम नाचे गाये
मौज मस्ती खूब उड़ाये।
आओ हम सब मकर संक्रांति मनाये
तिल की लड्डू सब मिलकर खाये।
गली मोहल्ले मे बांटे सारे।
सब मिलकर कर खाये प्यारे
गंगा में डूबकी लगाये।
शरीर अपना स्वस्थ बनाये।
आओ हम सब मकर संक्रांति मनाये
तिल की लड्डू सब मिलकर खाये।।
6. ऐसी एक पतंग बनाएं
ऐसी एक पतंग बनाएं
जो हमको भी सैर कराए
कितना अच्छा लगे अगर
उड़े पतंग हमें लेकर
पेड़ों से ऊपर पहुंचे
धरती से अंबर पहुंचे
इस छत से उस छत जाएं
आसमान में लहराएं
खाती जाए हिचकोले
उड़न खटोले-सी डोले
डोर थामकर डटे रहें
साथ मित्र के सटे रहें
विजय पताका फहराएं
हम भी सैर कर आएं।
7. कुहरे की चादर सिमटने लगी
कुहरे की चादर सिमटने लगी।
प्रभा से तमस भाव छॅंटने लगी।
मौसम सुहाना अब हो गया,
सूरज की किरणें चमकने लगी॥
वातावरण का देखो यह हाल है।
आकाश होने लगा लाल है।
पूरब में सूरज का अंदाज कुछ,
दिन की अवधि अब बढ़ने लगी॥
कम्बल रजाई धरो दूर अब।
काँटों सी सर्दी हुई दूर अब।
गर्मी गुलाबी के दिन आ गए,
बागों में चिड़ियाँ चहकने लगी।
धनु राशि से अब मकर राशि में।
सूरज चला आता इस आस में।
नव चेतना प्राणियों में जगे,
अंधेरे की ताकत घटने लगी।
ब्रह्मा कमण्डल से गंगा निकल।
भगीरथ महाराज के पीछे चल।
कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए,
सागर मिलन को मचलने लगी।
भास्कर स्वयं शनि से मिलने गए।
पिता पुत्र के घर टहलने गए।
मकर राशि के स्वामी शनिदेव जी,
दिल में जमी पीर गलने लगी।
इस संक्रांति के दिन महायोग है।
धनु और मकर राशि संयोग है।
संक्रांति, खिचड़ी या पोंगल कहें,
लोहड़ी में प्रकृति थिरकने लगी।
– फूलचंद्र विश्वकर्मा
8. सूरज करे प्रवेश है, मकर राशि में आज
सूरज करे प्रवेश है, मकर राशि में आज।
गंगा में डुबकी लगे, जा कर प्रयागराज।।
सूर्य देवता दे रहें, सबको ही आशीष।
अर्घ्य दे रहें हैं सभी, नहिं मन में है टीस।।
नील गगन में उड़ रहे, डोरी संग पतंग।
रंग-बिरंगी हैं सभी, मन में भरे उमंग।।
रवि किरण ये दूर करे, तन के सारे रोग।
भोर काल की धूप में, करते हैं जो योग।।
तिल-गुड़ खाकर दे रहे, सभी बधाई आज।
भारत के त्यौहार पर, हमें खूब है नाज।।
पावन दिन है आज का, कहें सभी संक्रांति।
दान-पुण्य करने लगे, भूले मन के भ्रांति।।
देती हूं सबको यहां, खूब बधाई आज।
ज्यों पतंग ऊपर उड़े, स्वपन बने परवाज।।
– वन्दना नामदेव
9. आज मकर संक्रांति पर्व पर
आज मकर संक्रांति पर्व पर
तिल के लड्डू गये बनाए
दादी ने सारे बच्चों को
माँ के हाथों से बटवाए
दादी कहतीं आज दान से
पुण्य बहुत सारा होता
सुख की कलियाँ खिल जाती हैं
संकट पास नहीं होता
यह सुन करके नन्ही गुडिया
अपनी गुल्लक ले आई
नन्हें हाथों से दादी को
दे करके वह मुस्काई
बोली, इस गुल्लक के पैसे
महरी दादी को दे दो
उसकी मुनिया को बुखार है
उससे कहो दवा ले लो
यह सुन करके दादी जी ने
उसे गले से लगा लिया
जुग जुग जिए हमारी गुड़िया
ढेरों यह आशीष दिया
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