Poem on Rabbit in Hindi : दोस्तों इस पोस्ट में कुछ खरगोश पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं. की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.
खरगोश पर कविता, Poem on Rabbit in Hindi
1. खरगोश पर कविता
नरम-गुदगुदा, प्यारा-प्यारा,
जंगल की आँखों का तारा।
नन्हा-नन्हा, नटखट-चंचल,
ज्यों कपास का उड़ता बादल।
दिन भर उछल-कूद है करता,
मस्ती में चौकड़ियाँ भरता।
लंबे कान, लाल हैं आँखें,
हर आहट पर दुबके-झाँके।
झालर वाली पूँछ उठाकर,
घूमे आवारा खरगोश।
हरी दूब को कुतर-कुतरकर
खाए बेचारा खरगोश।
लक्ष्मीनारायण ‘पयोधि’
2. Poem on Rabbit in Hindi
दौड़ लगाता है खरगोश
प्यारा होता है खरगोश
अपने हाथों में लेते ही
तुरत फिसलता है खरगोश …1
भोला होता है खरगोश
चुप्पी साध रहे खरगोश
हल्ला ना कर दौड़ लगावे
फुदक फुदक भागे खरगोश …2
स्वच्छु धवल होता खरगोश
बहुत मुलायम है खरगोश
हमला करना उसे ना आता
दूब चबाता है खरगोश …3
दौड़ लगी कछुआ खरगोश
आगे निकल गया खरगोश
ऐसे में झपकी लेने से
पिछड़ गया हारा खरगोश …4
3. Short Poem On Rabbit In Hindi Language
प्यारा-प्यारा दिखता न्यारा
छोटा-सा खरगोश है,
उछल-उछलकर चलता है यह
अद्भुत इसमें जोश है।
रंग सफेद रुई या हिम-सा
कोमल इसके बाल हैं,
उषा-किरण सी कुछ चमकीली
आंखें इसकी लाल हैं।
कान कुछ बड़े, पूंछ है छोटी
बिजली जैसी चाल है,
दौड़ लगाने में यह अक्सर
करता बहुत कमाल है।
इसको छू लें तो लगता है
छू ली क्या नवनीत है,
कुत्ते-बिल्ली से हर पल ही
रहता यह भयभीत है।
जीव जंगली और पालतू
भी होता खरगोश है,
छोटे कोमल तिनके खाता
रहता यह खामोश है।
4. Hindi Poem on Rabbit – चालाक खरगोश
घिरा सघन वृक्षों से वन था
वन प्राणी मिल जुलकर रहते।
वृक्षों की कोमल डाल बैठकर
पंछी दिन भर कलरव करते।
कहीं से आकर दुष्ट सिंह ने
उस वन में प्रभुत्व जमाया।
जंगल राज वहां फैला कर
पशुओं में आतंक मचाया।
हो परेशान जुल्मों से उसके
सबने मिलकर सभा बुलाई।
प्राणों की रक्षा करने की
सबने मिलकर राय बनाई।
वहां पहुंच हाथी फिर बोला
आयेंगे सब बारी बारी।
एक एक कर तुम खा लेना
मेहनत करनी ना भारी।
फिर खरहे की बारी आई
चला वहां से धीमी चाल।
बैठ गया सुस्ताने को वह
सिंह भूख से था बेहाल।
देरी का कारण फिर पूछा
नया सिंह वन में है आया।
कैसे प्राण बचाए उसने
सुनकर सिंह फिर गुर्राया।
सुनकर तेज दहाड़ सिंह की
कूंए पर फिर उसको लाया।
यही मांद है श्रीमन उसकी
कहकर कूंए को दिखलाया।
भ्रमित हुई थी उसकी बुद्धि
देख कुएं में निज परछाई।
चाल समझ नहीं पाया उसकी
गिर कूंए में जान गंवाई।
5. एक था कछुआ एक खरगोश
एक था कछुआ एक खरगोश,
एक दिन दोनों में लगी होड़ ।
मैं जीतूँगा मैं जीतूँगा,
इसी बीच में शुरू हुआ दौड़ ।।
दोनों ने मन में यह ठाना,
बरगद को निर्णायक माना ।
खरहा तेज दूजा धीरे धीरे,
बढ़ने लगे पेड़ की ओर ।।
झटपट खरहा दौड़ लगा के,
निकल गया कछुए से दूर ।
करने लगा आराम मस्ती में,
इसी जगह पर कर गया भूल ।।
कछुआ नहीं जीत पाएगा,
ऐसा सोच लिया खरगोश ।
किसी को ना कभी छोटा समझें,
किसी को ना समझें कमजोर ।।
शनैः-शनैः चाल में कछुआ,
बढ़ता गया लक्ष्य की ओर ।।
निकल गया खरहा से आगे,
पूरी कर ली अपनी दौड़ ।।
वक़्त का पहिया जब घूमता है,
झुक जाता है जिसकी ओर ।।
बाजी वही जीत जाता है,
कछुआ हो चाहे खरगोश ।।
राघव ठाकुर (बांका)बिहार
6. पशु पक्षी की दुनिया सचमुच
पशु पक्षी की दुनिया सचमुच
होती बड़ी निराली
उन्हें गौर से देख हमेशा
छा जाती खुशियाली
मैंने पाले थे पिंजड़े में
दो खरगोश निराले
उछल कूद वे खूब मचाते
खाते खूब निवाले
एक दूध सा था सफेद औ
दूजा था चितकबरा
पिंजड़े से जब बाहर रहते
देना होता पहरा
बिल्ली कहीं पहुँच जाए तो
उनकी कठिन सुरक्षा
वे भी भयवश चौकन्ना रह
करते अपनी रक्षा
उन्हें गोद में लेकर हरदम
रोएँ सहलाता था
उनको यह सुखकर लगता था
मैं भी सुख पाता था
हरी घास पर फुदक फुदक कर
बड़े चाव से खाते
थक जाते तो पिंजड़े में ही
घुसकर वे सुस्ताते
एक दिवस की बात भूल से
पिंजड़ा लगा न पाया
बिल्ली थी बस इसी ताक में
उनका किया सफाया
सुबह देख खाली पिंजड़े को
आँखे थी भर आई
थोड़ी सी गलती के कारण
उसने जान गँवाई
7 शेर और खरगोश
किसी समय रहता था वन में
शेर बहुत ही इक खूंखार,
जो भी पड़ता उसे दिखाई
उसी जीव को देता मार। 1।
इसी वजह से वन के प्राणी
रहते थे हरदम भयभीत,
भूल गए थे वे बेचारे
खुशियों के गाना ही गीत। 2।
जब भी शेर निकलता बाहर
सब जाते थे डर से काँप,
छुप जाते थे इधर-उधर वे
अपने निकट मौत को भाँप। 3।
वह जंगल का राजा करता
एक साथ में कई शिकार,
बिना बात ही जानवरों को
देता था वह पल में मार। 4।
इस कारण से जानवरों की
रहती थी आफत में जान,
डर था ऐसे तो उन सबका
नहीं रहेगा नाम – निशान।5।
रोज रोज की हत्याओं से
मचा हुआ था हाहाकार,
सभा बुलाकर वन के प्राणी
करते हैं तब सोच-विचार। 6।
किया फैसला उन सबने मिल
कहें शेर से अपनी बात,
जाकर बोलें करे नही वह
बिना भूख जीवों की घात। 7।
और दूसरे दिन जंगल के
प्राणी गए शेर के पास,
समाधान कुछ तो निकलेगा
मन में पाले यह विश्वास। 8।
शेर गुफा के अन्दर ही तब
मिला उन्हें करता आराम,
हिम्मत करके उसे जगाया
और बताया अपना काम। 9।
हाथ जोड़कर उन जीवों के
दल का तब बोला सरदार,
महाराज ! इक विनती करने
आए हैं हम पहली बार। 10।
जितनी भूख आपको लगती
बस उतना ही करें शिकार,
बिन मतलब जीवों की हिंसा
सच में करना है बेकार । 11।
जरा सोचिए सभी जानवर
मार दिए जाते हैं आज,
तो फिर कल को बिना प्रजा के
आप करेंगे किस पर राज। 12।
अच्छा है हम रोज आपके
पास भेज दें एक शिकार,
जिससे भोजन घर बैठे ही
मिले आपको भली प्रकार। 13।
यहीं चैन से रहें आप अब
करने निकलें नहीं शिकार,
आ जाएगा एक जानवर
हर दिन इसी गुफा के द्वार। 14।
कहा शेर ने मुझे तुम्हारा
यह प्रस्ताव रहा स्वीकार,
कोताही बरती इसमें तो
आप रहेंगे जिम्मेदार। 15।
अगर किसी दिन मेरा भोजन
कम आया या होती देर,
उसी रोज मैं कई जानवर
मार – मार कर दूँगा ढेर। 16।
लौट जानवर आए घर को
समझौते को करके पुष्ट,
और शेर उनकी बातों से
पूरी तरह हुआ संतुष्ट। 17।
रोज जीव इक पास शेर के
जाता था इसके उपरान्त,
शेर उसे खाकर कर लेता
भूख पेट की अपनी शान्त।18।
इस क्रम के ही चलते इक दिन
सबने मिल भेजा खरगोश,
चला गया वह शीश झुकाकर
किन्तु न खोया उसने होश । 19।
छोटा था खरगोश बहुत वह
रहा बुद्धि का लेकिन तेज,
दुःखी हुए थे वन के प्राणी
निकट शेर के उसको भेज। 20।
सोच रहा खरगोश – एक तो
जीव रोज खोता है जान,
उस पर भी उपकार शेर का
रहे सभी वन – प्राणी मान। 21।
इस मुश्किल से बचने को कुछ
चलनी होगी मुझको चाल,
नहीं मरे जिससे इस वन का
कोई प्राणी मौत अकाल। 22।
और अन्त में उसे सोचते
एक युक्ति आती है याद,
जाता है वह पास शेर के
बहुत देर करने के बाद। 23।
तड़प रहा था शेर भूख से
बहुत बुरा था उसका हाल,
तब आता खरगोश दिखा था
उसको चलते धीमी चाल।। 24।
गया बौखला वह गुस्से से
बोला – क्यों की इतनी देर,
भूख मिटेगी क्या फिर तुझसे
कहा शेर ने आँख तरेर। 25।
जिन मूर्खों ने भेजा तुझको
भुगतेंगे वे अब परिणाम,
मार उन्हें ना दिया अगर तो
शेर नहीं मेरा भी नाम। 26।
बोला वह खरगोश डरा – सा
मेरी भी तो सुन लें बात,
ठीक नहीं लगते हैं मुझको
इस जंगल के अब हालात। 27।
दोष नहीं यह किसी और का
भेजा था हमको तो चार,
किन्तु तीन खरगोश बीच में
एक शेर देता है मार। 28।
एक गुफा में रहता है वह
जो लगती है बिल्कुल कूप,
बता रहा है वह अपने को
इस जंगल का असली भूप। 29।
कहा आपके बारे में तो
शेर हो गया था वह क्रुद्ध,
बोला – उस डरपोक शेर को
यहाँ भेजना करने युद्ध।30।
केवल मुझको जिन्दा छोड़ा
देने को ही यह संदेश,
कहता है वह – आप छोड़ दें
जल्दी उसका वन्य प्रदेश। 31।
उसी शेर के कारण मुझको
इतनी देर हुई है आज,
कहता है वह – इस जंगल पर
अबसे होगा उसका राज। 32।
इतना सुन वह शेर जोर से
गुस्से में भर उठा दहाड़,
बोला – उसका पता बताओ
दूँगा उसको वहीं पछाड़। 33।
मैं भी देखूँ कौन शेर यह
आया है इतना दिलदार,
जो मेरे जंगल में घुसकर
रहा मुझी को है ललकार। 34।
जल्दी उसके पास चलो अब
कहा शेर ने भरकर जोश,
निकट कुएँ के पहुँच गया था
तब उसको लेकर खरगोश। 35।
महाराज ! वह इसी गुफा में
रहता है होकर खामोश,
गहन कुआँ वह दिखा शेर को
बोला धीरे – से खरगोश। 36।
जरा निकट आ इसके अन्दर
आप लीजिए पहले झाँक,
दुश्मन की असली ताकत को
लें फिर अपने मन में आँक। 37।
शेर क्रोध में भरकर ज्यों ही
लगा देखने गहरा कूप,
पानी में दिखलाई पड़ता
उसको तब अपना ही रूप। 38।
शेर दहाड़ें लगा मारने
अपनी ही परछाई देख,
बोला – ठहर मिटा देता हूँ
मैं तेरे जीवन की रेख। 39।
लौट कुएँ से वापस आती
गूँज शेर की ही आवाज,
किन्तु क्रोध में भरकर वह तो
होता ही जाता नाराज। 40।
उसने समझा शेर दूसरा
रहा उसे ही है ललकार,
अब दुश्मन को मजा चखाने
हो जाता है वह तैयार। 41।
कूद शेर फिर गया कुएँ में
करने उसका काम तमाम.
खड़ा रहा खरगोश देखता
वह पानी में गिरा धड़ाम। 42।
निकल शेर फिर सका न बाहर,
मरा वहीं पानी में डूब,
समाचार यह पाकर अब तो
खुश थे वन के प्राणी खूब। 43।
नाच गानकर झूम रहे थे
भरा नया था उनमें जोश,
उठा घुमाते थे वे अपने
कंधों पर रखकर खरगोश। 44।
बच्चो ! था खरगोश जरा- सा
और बड़ा था काफी शेर,
लेकिन वह खरगोश शेर को
लगा बुद्धि कर देता ढेर। 45।
सचमुच संकट के आने पर
लिया बुद्धि से जिसने काम,
पार सभी बाधा कर उसने
जीवन में पाया आराम। 46।
सुरेश चन्द्र “सर्वहारा”
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