Poem on Rickshaw Driver in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ रिक्शा चालक पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.
रिक्शा चालक पर कविता, Poem on Rickshaw Driver in Hindi
1. रिक्शा चालक पर कविता
रिक्शा वाले, रिक्शा वाले
कहाँ-कहाँ तुम जाते हो
पापा को दफ्तर पहुँचाते
मम्मी को घर लाते हो।
सर्दी, गर्मी या बरसात
सुबह, दोपहर या हो रात
हरदम दौड़ लगाते हो
चक्का खूब घुमाते हो।
दुबले-पतले, नाटे, छोटे
भारी-भरकम, मोटे-मोटे
सबका भार उठाते हो
रिक्शा तेज चलाते हो।
कोई प्रेम से बतियाता है
पर कोई गुस्साता है
सुन लेते हो सबकी बातें
आगे बढ़ते जाते हो।
2. Poem on Rickshaw Driver in Hindi
पता नहीं क्यों लोग मुझे,
घृणा की नजर से देखते हैं
गाली की बौछार के साथ
हम पर हाथ सेंकते हैं
ताने सबके मुझको सुनना
पुलिस का भी डंडा सहना
जिसको देखो देता धक्का
बोलने पर मिलता है मुक्का
बिना भेद-भाव के सैर कराता
सबको मंजिल तक पहुंचाता
सड़क पर चलना मुश्किल मेरा
कहा जाएं अब लेकर डेरा
दिन भर करता मेहनत पूरी
तब जाकर मिलती मजदूरी
आखिर मेरा क्या है कसूर
आदमी हूं इतना मजबूर
इतना सब सह करके
परिवार का पेट पालता हूं
इस बेरहम दुनिया में
रिक्शा चालक कहलाता हूं।
3. बहुत थक चुका हूँ
बहुत थक चुका हूँ
बहुत थक चुका हूँ
रिक्शा चला-चलाकर
मैं बहुत थक चुका हूँ
कभी इस सड़क
कभी उस सड़क
जा जाकर मैं टूट चुका हूँ
क्या करूं और क्या नहीं
यही सोच सोचकर मैं ऊब चुका हूँ
दो वक़्त की रोटी के खातिर
दो वक़्त की रोटी के खातिर
कभी इस सड़क
कभी उस सड़क
जा जाकर मैं टूट चुका हूँ
क्या करूं और क्या नहीं
यही सोच सोचकर मैं ऊब चुका हूँ
बहुत थक चुका हूँ
बहुत थक चुका हूँ
रिक्शा चला-चलाकर
मै बहुत थक चुका हूँ
ड्राइवर भी कोई कहता नहीं
ड्राइवर भी कोई कहता नहीं
हाथ-पाँव चला चलाकर
हाथ पाँव चला चलाकर देख चुका हूँ
रोजगार को तलाशा बहुत
रोजगार को तलाशा बहुत
रोजगार में ही रिक्शा
चला चलाकर मैं देख चुका हूँ
कभी माता का तो
कभी बहना का
कभी माता का तो
कभी बहना का
ताकता हुआ मुँह देख चुका हूँ
बच्चो को दो खिलौनो के खातिर
झगड़ते देख चुका हूँ
अपनी किस्मत की कमाई
और नहीं होती भरपाई
प्यार से जो कभी मिलते थे
वो पराये भाई देख चुका हूँ
कभी इस सड़क
कभी उस सड़क
जा जाकर मैं टूट चुका हूँ
क्या करूं और क्या नहीं
यही सोच सोचकर मैं ऊब चुका हूँ
बहुत थक चुका हूँ
बहुत थक चुका हूँ
रिक्शा चला-चलाकर
मैं बहुत थक चुका हूँ ।
– गुड्डू मुनीरी
4. रिक्शा वाले रिक्शा वाले
रिक्शा वाले रिक्शा वाले
कहाँ कहाँ तुम जाते हो
पापा को दफ्तर पहुंचाते
मम्मी को घर लाते हो
सर्दी गर्मी या बरसात
सुबह, दोपहर या हो रात
हरदम दौड़ लगाते हो
चक्का खूब घुमाते हो
दुबले पतले नाटे छोटे
भारी भरकम मोटे मोटे
सबका भार उठाते हो
रिक्शा तेज चलाते हो
कोई प्रेम से बतियाता है
पर कोई गुस्साता है
सुन लेते हो सबकी बातें
आगे बढ़ते जाते हो
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