Umesh Dadhich Poem in Hindi – यहाँ पर आपको Umesh Dadhichi Famous Poems in Hindi का संग्रह दिया गया हैं. उमेश दाधीच का जन्म 30 जून 1986 को राजस्थान के नागौर जिले के नावां तहसील के चौसला ग्राम में हुआ था. इन्होनें जैव प्रौद्योगिकी में स्तानक किया हैं. इनको कविता, गीत और गजल लिखना पसंद हैं.
आइए अब यहाँ पर Umesh Dadhich ki Kavita in Hindi में दिए गए हैं. इसको पढ़ते हैं.
हिन्दी कविता उमेश दाधीच, Hindi Poetry Umesh Dadhich
1. शिकायत
अब जो बिछडे हैं, तो बिछडने की शिकायत कैसी ।
मौत के दरिया में उतरे तो जीने की इजाजत कैसी ।।
जलाए हैं खुद ने दीप जो राह में तूफानों के
तो मांगे फिर हवाओं से बचने की रियायत कैसी ।।
फैसले रहे फासलों के हम दोनों के गर
तो इन्तकाम कैसा और दरमियां सियासत कैसी ।।
ना उतावले हो सुर्ख पत्ते टूटने को साख से
तो क्या तूफान, फिर आंधियो की हिमाकत कैसी ।।
वीरां हुई कहानी जो सपनों की तेरी मेरी
उजडी पड़ी है अब तलक जर्जर इमारत जैसी ।।
अब जो बिछडे हैं, तो बिछडने की शिकायत कैसी ।
मौत के दरिया में उतरे तो जीने की इजाजत कैसी ।।
2. शमसान
मंजर मंजर तुमको गाया
फिर खुद से अंजान हुये ।
तुमको खोकर जले हैं ऐसे
तन मन सब शमशान हुये ।।
तुम बिन ये एकाकी जीवन
मौत की एक इकाई है ।
जनम जनम का बंधन है ये
या जन्मों जन्मों की खाई है ।
धड़कन सान्सें तुझको पुकारें
और हम तेरे नाम हुये ।
तुमको खोकर जले हैं ऐसे
तन मन सब शमशान हुये ।।
तेरी दुनियां बसाकर मन ये
मीरा सा बैरागी है ।
तुझमें खोकर, तुझसा होकर
मन खुद से ही बागी है ।
मिलन को हम राधा सा रोए
विरह में हम भी श्याम हुये ।
तुमको खोकर जले हैं ऐसे
तन मन सब शमशान हुये ।।
मेरे गीतों में जीवित वो
अपनी प्रेम कहानी है ।
जिसमें मैं सागर सा बेबस
और तू दरिया सी दीवानी है ।
तुम लफ्ज़ो से अमर हुई हो
और हम गाकर बदनाम हुये ।
तुमको खोकर जले हैं ऐसे
तन मन सब शमशान हुये ।।
3. प्यार
प्यार…
कैसे बतलाऊं कैसा है ये प्यार
सर्द सुबह में धुंध से लिपटी
फिजाओं सा है प्यार
अर्ध रातों में शर्म से सिमटी
अदाओं सा है प्यार
कैसे बतलाऊं कैसा है ये प्यार ।
मीरा सा पागल, अधूरी राधा के
इन्तजार सा है प्यार
गंगा सा निर्मल, पूरी गीता के
हर सार सा है प्यार
कैसे बतलाऊ कैसा है ये प्यार ।
हीर की हर मंजिल में रान्झे की
राह सा है प्यार
मजनू के हर घाव में लैला की
आह सा है प्यार
कैसे बतलाऊं कैसा है ये प्यार ।
सबरी के चखे उन मीठे जूठे बेरों
सा है प्यार
अहिल्या ने चूमे राम के पावन पैरों
सा है प्यार
कैसे बतलाऊं कैसा है ये प्यार ।
इतना सच्चा, इतना पवित्र कैसे
है ये प्यार
तो बस तू मुझमें, मैं तुझमें ऐसे
है ये प्यार
कैसे बतलाऊं कैसा है ये प्यार ।।
4. गीत-प्यार में गीत मैं लिखता हूं
प्यार में गीत मैं लिखता हूं,
गीतों में प्यार मैं लिखता हूं ।
गाता हूं गीतों में तुमको,
तुमसा ही अब मैं दिखता हूं ।।
मुरझा है तुम बिन जो अब,
वो पुष्प नहीं फिर खिल सकता
लिख सकता, गा सकता तुमको,
पर तुमसे मैं नहीं मिल सकता ।
तू ही समागम, तू ही समर्पण,
तू ही पूजा धामों में
तू है मेरी सांसो में, मन,
मेरे हर अरमानो में ।
जुगनु सा जलकर रातो में
ख्वाबो में तुमसे मैं मिलता हूं ।
गाता हूं गीतो में तुमको,
तुमसा ही अब मैं दिखता हूं ।।
मीरा सा विषपान किया और
राधा सी पीड़ा झेली है
प्रियतम तुम बिन जीवन मेरा
उलझी सी एक पहेली है ।
गीतों की तुरपाई से अब
विरह के घाव मैं सिलता हूं
गाता हूं गीतों में तुमको,
तुमसा ही अब मैं दिखता हूं ।।
आसमान का धरा से रिश्ता
वैसी अपनी मजबूरी है ।
एक दूजे मन में बसे है
फिर भी सदियों की दूरी है ।।
अगले जनम में होगा मिलन ये
इस आस में रोज मैं मिटता हूं ।
गाता हूं गीतों में तुमको,
तुमसा ही अब मैं दिखता हूं ।।
5. खोज
खोज में हम तुम्हारी यूं भटकते रहे
खोज़ खुद के ही हम फिर मिटाते रहे ।।
मन मांझी सा अब ढून्ढता है तुम्हें
डूबकर भी तुम्हें हम खुद बचाते रहे ।
अंधेरो में भी थी सिर्फ तुम्हारी तलाश
दीप सा खुद जले और खुद बुझाते रहे ।
खोज में हम तुम्हारी यूं भटकते रहे
खोज़ खुद के ही हम फिर मिटाते रहे ।।
मन में थे तुम बसे तो मन क्यूं फिरे
लिखता है तुमको फिर तुमको गाता फिरे ।
धड़कनों को भी अब इक तेरी आश है
थम ना जाये कहीं बस ये चलती रहे ।
खोज में हम तुम्हारी यूं भटकते रहे
खोज़ खुद के ही हम फिर मिटाते रहे ।।
भाग्य में तुम कहीं इस जनम भी नहीं
और कसमें जन्मों की हम संग खाते रहे ।
तुम अमर हो चली हम जिन्दा लाश हैं
जीने को संग तेरे बस मरते रहे ।
खोज में हम तुम्हारी यूं भटकते रहे
खोज़ खुद के ही हम फिर मिटाते रहे ।।
6. राहगीर
जाने किस राह के हम राहगीर बने…
अभी रुके ही थे फुरसत से रुबरु
होने खुद से
फिर किसी और का हक़ हुआ
फिर किसी और की जागीर बने ।
जाने किस राह….
लगा अंजाम अब करीब था मेरी
जद्दो-जहद का
तभी किसी और का नशा हुआ
फिर किसी और की तासीर बने ।
जाने किस राह…
फरमान सब्र का कुछ इस अन्दाज
नसीब हुआ
कभी कदमों के संग हमसफर हुये
कभी जाने की तल्ख-ए-नजीर बने ।
जाने किस राह…
बेपनाह नवाजा हुक्म-ए-वक़्त ने
नजराना हमें
कभी जीत कर बाजी वो गरीब हुये
कभी हार कर वजूद हम अमीर बने ।
जाने किस राह…
बेहिसाब था वो दौर-ए-खिदमत
वफा में मेरी
कभी वो इस दिल की हर दौलत हुये
कभी हम उनका नाज-ए-जमीर बने ।
जाने किस राह के हम राहगीर बने ।।
7. धूल
तुम लिपती हो यूँ सायों से मेरे
जैसे बारिश में लिपटी हो पैरों से धूल कोई ।
तुम सिमती हो यूँ सांसो में मेरे
जैसे साजिश में सिमती हो गैरों से भूल कोई ।
तुम बिखरी हो यूँ राहो में मेरे
जैसे रंजिश में बिखरी हो सहरों से गुल कोई ।
तुम संवरी हो यूँ ख्वाबो में मेरे
जैसे ख्वाईश में संवरी हो नैनों से बूंद कोई ।
तुम बहती हो यूँ शब्दों में मेरे
जैसे गर्दिश में बहती हो लहरों से हूक कोई ।
बस तुम लिपती हो यूँ सायों से मेरे
जैसे बारिश में लिपटी हो पैरों से धूल कोई ।।
8. आखर
आखर आखर ढून्ढे तुमको
आखर खुद भी रोया है ।
आखर मिलने को तुमसे अब
हर पंक्ति में खोया है ।
तुम भी रोयी, मैं भी रोया
रोया हर आखर अपना है ।
खोज में ढाई आखर की अब
आखर सुध बुध खोया है ।
पंक्ति पंक्ति तुमसे मिलती
पंक्ति का कोई दोष नहीं ।
पंक्ति पंक्ति तुमसे बिछड़ी
पंक्ति को कोई होश नहीं ।
टूटा सपना, टूटी हसरत
टूटी हर पंक्ति अपनी है ।
तुमको पाकर गाकर पंक्ति
पंक्ति अब मदहोश बनी ।
9. गजल-गजल में तुम हो बसी
गजल में तुम हो बसी
मुझमें आकर बस जाओ ।
गजल गजल में तुम हो रमी
मुझमें आकर रम जाओ ।
तुमको गाया, तुमको पाया
गायी गजल वो अपनी है ।
गाकर मेरी गजलों को अब
मेरी गजल तुम बन जाओ ।
10. जीवन
जीवन से है वंचित
जीवन वो निष्प्राण हुए ।
जीवन तुम बिन हो कल्पित
मृत्यु का प्रमाण हुए ।
आधी तुम हो, आधा मैं हूँ
आधा सा जीवन अपना है ।
प्रेम समर्पित दोनों जीवन
इक जीवन इक प्राण हुए ।
प्रेम की नगरी में चलकर
तुमको ढून्ढे डगर डगर ।
प्रेम के बहते गन्गातट पर
पावन हो गये तुमको छूकर ।
प्रेम में खोकर, प्रेम के होकर
प्रेम को हम अर्पण हुये ।
प्रेमग्रंथ हम अपना लिखकर
तुम संग हो गये अजर अमर ।।
11. अधूरी दास्ताँ
मैं पागल आवारा पंछी
अल्हड़ रंग जवानी में ।
बहता था यारों के संग
मौजों की रवानी में ।
बेफिकरी में खुश था यारो
भय का कोई नाम नहीं ।
मुझमे केवल मैं जीता था
तन्हा मेरी कहानी में ।
मूरत कोई मन मन्दिर में
पूजा में शामिल हुई ।
इश्क़ की वो पहली बारिश
मुझको अब हासिल हुई ।
मेरे लफ्ज़ों की चुप्पी को
उसने कह कर तोड़ दिया ।
उसकी धड़कन इस दिल में
हर हद तक शामिल हुई ।
पूर्ण समर्पूण, सच्चा पावन
दोनों ने ऐसा प्रेम किया ।
राधा मोहन जैसा पवित्र
दोनों ने ऐसा प्रेम जिया ।
सारी खुशियाँ, पूरी दुनियाँ
एक दूजे से पूरी थीं ।
बिना मिले ही गये कहानी
दोनों ने कैसा प्रेम किया ।
अश्कों की बारिश में बहकर
एक दूजे को समझाते ।
कैसे दें जाने की इजाजत
उस पल दोनों मर जाते ।
मौत से बदतर जीने को अब
दोनों दिल मजबूर हुए ।
वक़्त की साजिश में दोनों
दिल से दिल अब दूर हुये ।
12. वो तक़्दीर अपनी थी
तुमने चाहा तुमने छोड़ा
वो तक़्दीर भी अपनी थी ।
तुमने सजायी, तुमने तोड़ी
वो तस्वीर भी अपनी थी ।
जो मिटी नहीं किस्मत से मेरे
वो लकीर भी अपनी थी ।
लिख कर गा देता हूं जो मैं
वो पीर भी अपनी थी ।
लो भुला दी हमने हर हसरत
लो मिटा दी यादें सब हद तक
जिसमे बंधा हूँ मैं कसमों से
वो जंजीर भी अपनी थी ।
जो मिटी नहीं किस्मत से मेरे
वो लकीर भी अपनी थी ।
लिख कर गा देता हूं जो मैं
वो पीर भी अपनी थी ।
मत पूछो अब कैसे जीते
देखो आकर रोज हैं मरते
कैसे तुझको मैं दोषी कह दूँ
तुमसे प्रीत भी अपनी थी ।
जो मिटी नहीं किस्मत से मेरे
वो लकीर भी अपनी थी ।
लिख कर गा देता हूं जो मैं
वो पीर भी अपनी थी ।
आ जाओ हम फिर मिलते हैं
उन राहों पर फिर चलते हैं
जिन सपनों को हमने छोड़ा
वो मंजिल भी अपनी थी ।
जो मिटी नहीं किस्मत से मेरे
वो लकीर भी अपनी थी ।
लिख कर गा देता हूं जो मैं
वो पीर भी अपनी थी ।
13. मैं तुझसे प्यार नहीं करता
मैं तुझसे प्यार नहीं करता ।
हां मैं तुझसे प्यार नहीं करता ।।
पर कोई शाम नहीं ऐसी जिसमें
तेरा इन्तजार नहीं करता ।
हां मैं तुझसे ………
शहर में नहीं कोई मंजर जिससे
तेरा जिक्र बेसुमार नहीं करता।
हां मैं तुमसे प्यार नहीं करता ।।
मुश्किल है जीना तेरी यादों के साथ,
अब मैं अपने इश्क़ का इजहार नहीं करता।।
हां मैं तुझसे प्यार नहीं करता।।
लबों से बयां नहीं हुआ मुझसे ये अफशाना,
पर इस मीठे दर्द से दिल इनकार नहीं करता ।।
हां मैं तुझसे…….
जब भी खनक होगी मेरे अंगने में तेरी,
मेरी सांसो के सिवा कोई झंकार नहीं करता।।
हां मैं तुझसे प्यार नहीं करता।।
तेरी गैरमौजूदगी के गवाह होंगे अश्क़ मेरे,
पर अपनों में भी खुद को बेकरार नहीं करता।
हां सच में मैं तुझसे प्यार नहीं करता ।।
तेरे सिवा नहीं कोई जिन्दगी से अब हसरत,
दिल मेरा खुद से भी आंखें चार नहीं करता।
हां मैं तुझसे…..
हाँ हो गया एक दफा बस तुझसे
गुनाह ये मैं बार बार नहीं करता ।
हां मैं तुझसे प्यार नहीं करता ।।
14. फिर तुम आये
कल रात फिर जब तुम आये ।
लगा कि दिल आंगन में अब
प्रेम दीप फिर से जलेंगे,
जो थे अपने लौ को बुझाये।
दिल असमंजस में है अब भी
क्यूँ कल रात फिर तुम आये ।
भूल बैठे थे जिन बातों को
क्यूं संग अपने फिर ले आये ।।
तोड़ चुके थे जिन ख्वाबों को
क्यूं संग सपने फिर ले आये ।
बिन रंगो के थी हर धड़कन
क्यूं रंग भरने फिर तुम आये ।।
नि:शब्द थी मेरी कलम ये
क्यू संग वो फिर नज्में लाये ।
शाम, सुबह खड़ी थी बेबस
क्यूं वो फिर बिखरे नगमें गाये ।।
नहीं उमंग कोई जीवन-मन में
क्यूं जीने की फिर कसमें खाए ।
प्यासी मेरी आंखें अब तो
निश्चल प्रेम से फिर भर जायें ।।
कल रात फिर जब तुम आये
गहरी नींदों में भी ये दिल
मधुर मन्द मन्द यूं मुस्काये ।
गाए कहानी फिर से वही वो
बिछडे दीवाने फिर मिल जाये।।
कल रात फिर जब तुम आये
मैंने अपने गीत सुनाये
मैंने अपने नगमें गाये ।।
15. ख्वाबों की माला
रातों की काली चादर पर
टूटा ख्वाब मेरा इस कदर
जैसे बिखरे हों कोई मोती
टूटी माला से हर दर पर ।
कैसे जोड़ूँ इन मणकों को
जो रुठे हैं खुद से बेखबर ।
कैसे पोऊं फिर माला इनकी
जो भूले हैं खुद अपनी ठहर ।
कैसे रोकूँ व्याकुल मन को
जो मांगे वो माला हर पहर ।
कैसे बतला दूँ मन को अब
मोती बस गये हैं दूजे शहर ।
कैसे भर दूँ नैनों में भरोसा
अश्क आये हैं मोती बनकर ।
कैसे मन को समझाऊँ सच
ना फिर अब वो मोती मिलेंगे
ना वो चमकेंगे माला बनकर ।।
16. उनसे फिर मुलाकात हुई
आज फिर उनसे यूँ ही मुलाकात हुई ।
खामोशी के कोनों में नैनों से बात हुई ।
झनकती पायल ने बतलाई उसकी मजबूरी
खनकती चूडियों ने समझाई उसकी ये दूरी
आभा ये गालों की मिलन से फिर लाल हुई ।
खामोशी के कोनों में नैनों से बात हुई ।।
मायूस नैनों ने सुनायी वो उसकी कहानी
जिसमे मैं था, वो थी और थी बात पुरानी
बिन बादल के भी जोरों से आज बरसात हुई ।
खामोशी के कोनों में नैनों से बात हुई ।।
नाजुक हाथों ने उसके मुझको फिर बहकाया
बेबस होठों ने उसके मुझको फिर समझाया
मिलते रहे दिल और आंखें फिर चार हुई ।
खामोशी के कोनों में नैनों से बात हुई ।।
जब सांसों ने उसकी किया जाने का इशारा
छूट रही थी मेरी सांसें और मुझसे जग सारा
क्यूं मेरी ही किस्मत खफा मुझसे हर बार हुई ।
आज फिर भीगी पलकों से अधूरी बात हुई ।।
आज फिर उनसे यूँ ही मुलाकात हुई ।।
17. तू मुझमें मुझसे भी खास हुआ
इजहार हुआ और अहसास हुआ
कि तू मुझमें मुझसे भी खास हुआ ।
तेरी खुशी, तेरी हंसी, वजूद तेरा
मेरी पूजा, मेरी हर अरदास हुआ ।
कि तू मुझमें…
तेरी बातें, तेरे वादे, प्यार ये तेरा
मेरी आस्था, मेरा हर विश्वाश हुआ ।
कि तू मुझमें…
तेरी दूरी, तेरी मजबूरी, बन्धन तेरा
मेरी रश्में, मेरे हर रिश्ते में साथ हुआ।
कि तू मुझमें…
तेरी रूह, तेरे नैन, दिल ये तेरा
मेरी धड़कन, मेरी सांसो के पास हुआ ।
कि तू मुझमें…
तेरा दीदार, रुबरु तू, तुझसे मिलन
मेरे सपनों, मेरी आखों में दिन रात हुआ ।
कि तू मुझमें…
तेरी मोहब्बत, तेरी चाहत, ये इश्क़
मेरी जिन्दगी, मेरे दिल का नाज हुआ ।
कि तू मुझमें मुझसे भी खास हुआ ।।
18. कैसे बतलाऊं क्या क्या करता था
कैसे बतलाऊं क्या क्या करता था
छिप छिप कर चोरी से तुमको
देखा करता था ।
खाली आंखों में मेरी तुमको ही
रोज भरता था ।
बस इतना समझ लो
देख कर तुमको ही जीता था
और बिन देखे रोज मरता था ।
कैसे बतलाऊं…
नजरों के पैमानों से छलकी तो
तुम दिल में उतर गयी ।
दिल को समझाया तो नैनों में
तुम फिर से भर गयी ।
बस इतना समझ लो
तेरा बुखार रोज चढ़ता था और
तेरा खुमार रोज उतरता था ।
कैसे बतलाऊं…
दिल ने हिम्मत की तो लबों ने
बातों को झुठलाया ।
लबों ने शिरकत की तो दिल ने
खुद को समझाया ।
बस इतना समझ लो
दिल खुद से इजहार करता था
रूबरू होकर तुझसे डरता था ।
कैसे बतलाऊं…
ख्वाबों को बहलाता तो बातों में
तुमसे बतलाता था ।
बातों को करता चुप तो ख्वाबों में
खुद को बहकाता था ।
बस इतना समझ लो
उठ उठ कर नींदों में हँसता था
फिर से तेरी यादो में संवरता था।
कैसे समझाऊं क्या क्या करता था
बस इतना समझ लो
तुम से ही था इश्क़ पहला
तुम से ही मोहब्बत करता था ।।
19. वो दौर
थाजिन्दगी का बडा वो खूबसूरत
दौर था ।
मेरे दिल में भी तेरे दिल सा ही
शोर था ।
दिल दिन को रात और रातों को
दिन मानने लगा था ।
तुझको मेरी हर खुशी और मन्नत
में माँगने लगा था ।
मेरे बातों में तेरे सिवा ना कोई
और था ।
जिन्दगी का वो बडा खूबसूरत
दौर था ।।
बातों को सुनने का तेरी बस
इन्तजार रहता था ।
रातों को तेरी ही यादों से बस
प्यार रहता था ।
दिल पर अबसे मेरे तेरा ही तो
जोर था ।
जिन्दगी का वो बड़ा खूबसूरत
दौर था ।।
देख रहे थे नैन दोनों के हसीं
सपने ।
मान बैठे थे एक दुसरे को हम
अपने ।
अपनी चाहत का हल्ला सब
ओर था ।
जिन्दगी का वो बड़ा खूबसूरत
दौर था ।।
20. काश
काश…
जिन्दगी में कोई काश ना होता
तो मैं भी यूं जिन्दा लाश ना होता ।
काश…
मैं भी बन जाता मूरत पत्थर की
मुझमे भी इस दर्द का अहसास ना
होता ।
काश…
मैं भी जी लेता खुद की खुशियाँ
मुझपर जो उम्मीदों का लिबास ना
होता ।
काश…
मैं भी लड़ लेता मेरे अपनों से
जो तेरे नैनों का कोई और खास
ना होता ।
काश..
मैं भी भुल जाता यादों को तेरी
मुझसे भी तेरा निशां बर्दास्त ना
होता ।
काश..
मैं भी मान लेता गैरों को दुनिया
तुझे पाने का ख्वाब मेरे पास ना
होता ।
काश, मुझमें कोई काश ना होता ।।
21. तुमको देखा तो
तुमको देखा तो ऐसा लगा…
जैसे खुशियों से रूबरू मुलाकात हुई ।
जैसे मेरे दर्द के निशां की हर
मुमकिन राहत से बात हुई ।
जैसे अमावस जिन्दगी के दर
पूनम की चांदनी रात हुई ।
जैसे बेरंग जिन्दा आशियानों में
सब रंगो की बरसात हुई ।
तुमको देखा तो ऐसा लगा…..
जैसे तन्हाई की काली छाया में
खिली सी धूप साथ हुई ।
जैसे तपती दिल की जमीं पर
सुकून की हिमपात हुई ।
जैसे कैद कोई पंछी की बंदिशे
उम्मीदों संग आजाद हुई ।
जैसे उजडी बंजर बेघर उमंगें
हंसकर फिर आबाद हुई ।
तुमको देखा तो ऐसा लगा…
जैसे खुद खुद से मिला हूँ
खुद से खुलकर बात हुई ।
बस तुमको देखा तो ऐसा लगा ।।
22. मिजाज
लगता है मिजाज मौसम
का बदल रहा है ।
देखो मिटे निशां मेरे कदमों के
कोई कदम उन पर चल रहा है ।
जो रह गया था दबी ख्वाहिशों में
ख्वाब वो फिर से पल रहा है ।
लगता है मिजाज मौसम
का बदल रहा है ।।
रुकी थी फिजा, रुका जो समां
आज हवाओं संग फिर चल रहा है।
थमती सांसों, बढ़ती आहों में
स्वप्न वो आंखो में फिर जल रहा है ।
लगता है मिजाज मौसम
का बदल रहा है ।।
इशारों में कुछ, बातों में सब
अक्स आने का तेरे झलक रहा है ।
तेरी खनक, मौजूदगी तेरी का
इन्तजार हर पल मेरे फलक रहा है ।।
लगता है मिजाज मौसम का
बदल रहा है ।।
23. कभी प्रेयशी, कभी प्रीत
कभी प्रेयशी, कभी दोस्त,
सदा मेरी प्रीत बनी हो तुम ।
हर खुशी, हर मंजिल मेरी,
मेरी हर जीत बनी हो तुम ।।
धुंधली अन्जानी सी राहों में,
कम दिवस अंधियारों में,
मेरे जीवन की प्रज्वलित जोत
बनी हो तुम ।
विचलित डगमाते मन की,
संघर्षों के तूफानों में
नव जीवन जीने का स्रोत
बनी हो तुम ।।
सांसे देकर सब रिश्तों को,
रश्मों को कर जीवित
मेरे हर जनम की रीत
बनी हो तुम।
पढकर मेरी हर नज़मों को,
कर मेरे शब्दों को पूरित
मेरा सबसे सुन्दर गीत
बनी हो तुम ।।
मुझे भी नहीं खबर कब कब
क्या क्या रोज बनी हो तुम ।
बस इतना पता है मेरे खातिर
दुल्हन सी हर रोज सजी हो तुम ।।
बस कभी प्रेयशी, कभी प्रीतम
सदा मेरी दोस्त बनी हो तुम ।।
24. इजहार की वो कहानी
इजहार…
तरस रहे थे दोनों दिल
बस इजहार बाकी था ।
बयां हो जाये लबों से
ये इन्तजार बाकी था ।
तुमने कैसे उस पल
सब कुछ जता दिया ।
हां इश्क़ है तुमको भी
दिल को बता दिया ।
कुछ लफ़्जों से तुमने
सब अपना बना लिया ।
कुछ सांसों ने तेरी
मुझको भी फना किया ।
मेरी खामोशी ने शायद
तुमको रुला दिया ।
पर तुम्हारे उन अश्कों ने
मुझको हिला दिया ।
चीख कर मैं भी
चाहत सुना देता ।
हां मोहब्बत है तुमसे
सबको बता देता ।
मैं भी तो गहरी सी ‘हाँ’
बता चुका था ।
मेरे दिल की रजा तुझसे
मैं जता चुका था ।
लग रहा था रब कोई
यहाँ मिल गया है ।
दो दिलों को अपना
एक जहां मिल गया है ।
अब बस बेसब्र मिलन का
इन्तजार बाकी था ।
इन नजरों को बस तुम्हारा
दीदार बाकी था ।
खुशनुमा थी वो
इजहार की कहानी।
अब भी जी रही है
वहीं मेरी जिन्दगानी ।।
25. इजाजत
इजाजत…
कैसे दे दूं इजाजत तुझको दूर
जाने की ।
कैसे दे दूं इजाजत किसी और
को सताने की ।
मत जा नहीं है मुझमें हिम्मत
संभल जाने की ।
कैसे कर दूं हिमाकत फिर से
बहल जाने की ।
कैसे दे दूं….
जिन्दगी कैसे रहेगी किसी और
की बाहों में ।
चाह कर भी ना रोक पाउंगा
तुझको राहों में ।
कसमे दे दूं तुमको फिर से लौट
आने की ।
कैसे दे दूं…
जा निभा तू गहराई से जो तेरा
रिश्ता है ।
मान लूंगा तेरा अब से कोई और
फरिश्ता है ।
कैसे कह दूं तोड़ दे रश्में सारी
निभाने की ।
कैसे दे दूं…
मिल जाये मेरे नसीब की भी
सारी खुशियाँ ।
खिल जाये नयी मोहब्बत से
तेरी दुनिया ।
कैसे दे दूं वजहे दिल को तुम्हें
बुलाने की ।
कैसे दे दूं…
छोड़ जाना वो राहें मुझ तक लौट
आने की ।
दे दे तू भी इजाजत तुझको भूल
जाने की ।
पर दिल अब भी कह रहा है
दिल से
कैसे दे दूं इजाजत तुझको दूर
जाने की ।।
26. अपना सा एहसास
कोई अपना सा एहसास है तेरा
मेरे साथ में ।
जैसे उजली चांदनी सा साथ है
हर रात में ।
जैसे कोई गुलाब गुलजार हुआ है
वीरानो में ।
आने लगा है मेरा भी नाम पागल
दीवानो में ।
अकेला चलने लगा देकर हाथ तेरे
हाथ में ।
कोई अपना सा एहसास है तेरा
मेरे साथ में ।
अक्स खुद का तुझमें ही दूंढने
लगा हूं ।
मना लोगी तुम आकर तो रूठने
लगा हूं ।
तेरा हर लफ़्ज मेरा, तू ही मेरी हर
बात में।
कोई अपना सा एहसास है तेरा
मेरे साथ में ।
मेरे ख्यालों में तुम भी तो इठला
रही हो ।
आइनों को ढककर नैनों को
झुठला रही हो ।
जी रही है तू भी मुझको तेरी हर
सांस में ।
कोई अपना सा एहसास है मेरा
तेरे भी साथ में ।
डूब रहा है दिल दूर तुमसे तेरी हर
याद में ।
भीग रही हो तुम भी मेरे प्यार की
बरसात में ।
कट रहे सदियों से पल पल मिलन
की आस में ।
कोई अपना सा एहसास है हम
दोनो के पास में।।
27. अकेले में वो
अकेले में वो घबराते तो होंगे
मिटा कर मुझको वो पछताते तो होंगे।
हाय वो दिन, हाय वो दिन
उनको भी याद आते तो होंगे ।
मिटा कर… ।
महफिलों में जब वो खुद को समझाते होंगे ।
तन्हा होकर फिर अश्क़ों में भीग जाते तो होंगे ।।
ख्वाबों में कभी मुझको वो बुलाते होंगे ।
पाकर मुझे फिर पलकों पर शर्माते तो होंगे ।।
नगमों को जब मेरे वो गुनगुनाते होंगे ।
गा कर लफ़्ज चाहत के मुस्कुराते तो होंगे ।।
दिल ए हाल को जब वो सुलझाते होंगे ।
कशमकश में वो मेरी उलझ जाते तो होंगे ।।
वफा की ख्वाईश जब वो जगाते तो होंगे।
यादों में मेरी फिर खुद को जलाते तो होंगे ।।
अकेले में वो घबराते तो होंगे ।।
28. फिर प्यार हो गया है
क्यूं मंजर उजड़ने को फिर तैयार हो गया है ।
लगता है बेपरवाह से फिर प्यार हो गया है ।।
क्यूं खामोश लबों से फिर इजहार हो गया है ।
लगता है इश्क़ से इश्क़ फिर यार हो गया है ।।
क्यूं नासमझ दिल फिर बेकरार हो गया है ।
लगता है ये उस दर्द का फिर यार हो गया है ।।
क्यूं अधूरा किस्सा फिर सरोकार हो गया है ।
लगता है बेदर्द रोग फिर इस बार हो गया है ।।
क्यूं जिक्र तेरा मेरी बातों में फिर सुमार हो गया है ।
लगता है पुराना नशा रूह पर फिर सवार हो गया है ।।
क्यूं ये दिल उड़ने को फिर तैयार हो गया है।
लगता है ये नासमझ फिर शिकार हो गया है ।।
क्यूं तेरी हर खता से इश्क़ बारबार हो गया है ।
हां ये गुनाह मुझसे फिर एक बार हो गया है ।।
29. फासले हमारे दरमियां
फासले ये दरमियां हमारे रहेंगे कब तक ।
बता कैसे जीयें तन्हा, कैसे रहें तब तक ।
पल निकलते ही कहीं खो ना जायें सारी ख़ुशियाँ ।
तुमसे मिलते ही कहीं रो ना जायें मेरी अखियां ।
घडियां इन्तजार की खतम होगीं जब तक ।
बता कैसे जीयें तन्हा, कैसे रहें तब तक ।
मिल जाओ इस जनम अगले की आस नहीं ।
आ जाओ इक बार फिर कहीं ये सांस नहीं ।
दीदार मीलों दूरी से होता रहेगा जब तक ।
बता कैसे जीयें तन्हा, कैसे रहें तब तक ।
देख ना ले कोई मेरी तेरी बेइंतिहा तड़प को ।
लग ना जाये नज़र हमारी बेपनाह मोहब्बत को।
जिन्दा है आरजू तुझको पाने की जब तक ।
बता तन्हा जीयें कैसे, कैसे रहें तब तक ।।
30. लौटा दे मुझको वो मुलाकात
लौटा दे मुझको मेरा तू और
तेरा वो साथ ।
तेरे इश्क़ से खिलती सुबह
वो मोहब्बत में सजती रात ।
लौटा दे मुझको फिर से वो
पहली मुलाकात ।
बन मेरी सांसो में तू चाहत की
महक ।
सुन मेरी रूह में तेरी बातों की
चहक ।
सुना दे रुठी खामोश फिज़ायें
फिर तेरी हर बात ।
लौटा दे मुझको फिर से वो
पहली मुलाकात।
बन जा फिर से मेरी काया, मेरा
साया ।
बन जा मेरी सांसें, बन फिर मेरी
छाया ।
लौटा दे वो दिल मेरा, रूक जा
धड़कन में बनकर राज ।
लौटा दे मुझको फिर से वो
पहली मुलाकात ।
मांग ले फिर तू मुझको भूलकर
तेरी कसमें ।
मान ले अधूरे रहेंगे हम दो और
वो सपने ।
बन जा फिर वो सावन, भिगो दे
बनकर वो बरसात ।
लौटा दे मुझको तेरी वो हर जीत
मेरी वो हर मात ।
बस लौटा दे मुझको फिर से वो
पहली मुलाकात ।
31. डर लगता है
डर लगता है…
तू हक़ीक़त है मेरी कहीं ख्वाब ना
हो जाये ।
तुमसे रोशन जहां है मेरा कहीं
राख ना हो जाये ।
सोच कर भी तुझसे दूरी थम सा
जाता है कारवां ।
गर ना मिली जमीं मेरी ना रहा मेरे
हिस्से का आसमां ।
निकली है कोंपल दिल जमीं पर
फसल इश्क़ की कहीं खराब ना
हो जाये ।
तू हक़ीक़त है मेरी कहीं ख्वाब ना
हो जाये ।
किस्मत हमराह को कहीं नदी के
किनारों सा ना कर दे ।
दिल के किस्सों को बेबस बेजुबां
दीवारों सा ना कर दे ।
इश्क़ को लिख रहे हैं जो डूबकर
कहानी कल कहीं वो गुजरी बात
ना हो जाये ।
चाहत के सवेरों की अब कोई रात
ना हो जाये ।
तू हकीक़त है मेरी कहीं ख्वाब ना
हो जाये ।
तुमसे रोशन जहां है मेरा कहीं
राख ना हो जाये ।।
32. मन्नत की देवी
मन्नत की देवी…
मन्नत के उस मन्दिर में काश
मेरा भी सिक्का लग जाता
मेरी भी होती जो मुराद पूरी
तो मैं भी तन्हा ना रह पाता।
तुमने भी तो सिक्का लगाया था
तुम्हारा तो सिक्का भी ठहरा था
फिर क्यूं मैं-तुम, हम नहीं बने
कहीं तुमने मन्नत की मूरत को
कुछ और तो नहीं जताया था ।।
क्यूं मन्नत की देवी मुझसे ही रूठ गयी ।
क्यूं हाथ से मेरे प्रेम की डोर छूट गयी ।
क्यूं मन्नत में फिर मंगल आ बैठा
क्यूं हर उम्मीद बेबस होकर टूट गयी ।।
क्यूं सब टूटा, सब छूटा, मैं कतरों
में रह गया ।
क्यूं किस्सा वो प्यारा बस अश्कों
में बह गया ।
क्यूं अरदास मेरी उस दर पर भी
अधूरी रही ।
क्यूं मैं मन्नत के दर पर अनसुना
रह गया ।।
मन्नत के उस मन्दिर में काश
मेरा भी सिक्का लग जाता
तो मैं भी ना लिखता दर्द को
मेरा भी हर काश टल जाता ।।
33. इश्क़ का चान्द
क्यूं इश्क़ का चान्द आज मजबूर है
क्यूं चाहत की चांदनी आज बहुत दूर है ।
अमावस की रात के भी कई दिन हैं बाकी
अभी तो पूनम रात हुई कैसे भूला है साकी
काली बदली का रुख भी नहीं दूर दूर है
क्यूं इश्क़ का चान्द आज मजबूर है ।।
कैसी बन्दिश के अंधियारों ने घेरा है
कैसे ग्रहण का उसकी आभा पर डेरा है
क्यूं तारे भी आज खुद की चमक में मगरूर हैं ।
क्यूं इश्क़ का चान्द आज मजबूर है ।।
कैसे चकोर अपने साथी को प्रेम समझाएगा ।
कैसे कोई प्रेमी तुमको अपनी प्रेयशी बतलायेगा ।
तेरी चांदनी से ही तो तू इतना मशहूर है ।
फिर क्यूं इश्क़ का चान्द आज मजबूर है ।
क्यूं चाहत की चांदनी आज बहुत दूर है ।।
34. छूटा जो तेरा साथ
अभी अभी जो मेरे हाथ से छूटा है
वो तेरा हाथ ।
जैसे विस्मृत हुई सांसें, टूटा है रूह
का साथ ।
अधूरे जीवन की आहट रोम रोम
तक सहमी है ।
तेरी कमी, तू मुझमें अन्तिम सांस
तक रहनी है ।
जैसे धड़कन भी भूली है सांसों से
करना बात ।
अभी अभी जो मेरे हाथ से छूटा है
वो तेरा हाथ ।
उस डाली के संग घरोंदा मेरा भी
टूटा है ।
तेरा रब तुझ संग मेरी किस्मत से
भी रुठा है ।
कराहते हैं दिन मेरे और डर कर
आती है रात ।
अभी अभी जो मेरे हाथ से छूटा है
वो तेरा हाथ ।
तुम भी तो अश्रुधारा में रोज बह
जाती हो ।
तुम भी बिलख कर तन्हा मौन रह
जाती हो ।
तुम्हारे भी तो स्वपन हैं अधूरे छोड़
मेरा साथ ।
अभी अभी जो मेरे हाथ से छूटा है
वो तेरा हाथ ।
जग सूना, जीवन खाली, कायनात
अधूरी है ।
किस्सा अधूरा, हम भी अधूरे,
बात अधूरी है ।
जैसे सावन भी भूल गया है करना
बरसात ।
अभी अभी जो मेरे हाथ से छूटा है
वो तेरा हाथ ।।
35. वो अल्हड़ जवानी
बहते दरिया सी अपनी अल्हड़
जिन्दगानी थी ।
मैं बस मुझमें था और मौजों की
रवानी थी ।
उन यारों संग नापी थी शहर की
कुछ गलियां ।
काटों को तोड़ा था और छेड़ी थी
कुछ कलियां ।
बेफिक्री थी बातों में और धुंए में
उड़ती जवानी थी ।
मैं बस मुझमें था और मौजों की
रवानी थी ।
सपनों की दुनिया सजाकर पंछी
सा उड़ता था ।
कुछ करने का सपना आंखो में
लेकर चलता था ।
मस्ती के जंगल में बन्दिश-सीमा
बस बेमानी थी ।
मैं बस मुझमें था और मौजों की
रवानी थी ।
पागल, आवारा और जिद्दी की
संधियाँ अब हमपे थीं ।
बेपरवाही हावी थी, बेशर्मी की
पंक्तियां सब हमसे थीं ।
कुछ खोते, कुछ पाते रोज की
यही कहानी थी ।
मैं बस मुझमे था और मौजों की
रवानी थी ।
पार्थ से यारो संग सारथी सा खुद
हो जाता था ।
बिन गान्डिव के भी हर संघर्ष में
खो जाता था ।
मुझमें घुलकर मेरी रूह मुझसे ही
अन्जानी थी ।
बहते दरिया सी अपनी अल्हड़
जिन्दगानी थी ।
मैं बस मुझमें था और मौजों की
रवानी थी ।।
36. प्रेम-गीत (पल ये कट जायेंगे)
पल ये कट जायेंगे तुम आओ कभी
दर्द मिट जायेंगे तुम आओ कभी
बादलों ने जो घेरा है ये आस्माँ
सब छँट जायेंगे तुम आओ कभी ।।
तुम नहीं तो ये सांसें अधूरी हैं
सब सुबहें वो शामें अधूरी हैं
तुम जो मिलने का सपनो में
वादा करो
सब बातें वो रातें भी पूरी हैं ।।
लफ़्जों से तुम तक मैं आ रहा
नज़मों में तुमको ही मैं पा रहा
तुम कविताओं में फिर कभी
आओगी
सोचकर कबसे ये मैं गा रहा ।।
इस दिल को तुम्हारी आदत है ।
दिल की पूजा हर तू इबादत है ।
धडकने तुमसे ये रोज कहती रहीं
लौट आओ तुम्हारी जरुरत है ।।
37. प्रेम-गीत (तुम बिन प्यासा)
कैसे दे दूं तुमको इजाजत
इस दिल से दूर जाने की
कैसे कर दू मैं ये हिमाकत
तुमको भूल पाने की
कैसे गैरों की बस्ती में
अपने दिल को रख देंगे
कैसे रख लूं मैं भी चाहत
औरों को अपनाने की ।
तुम बिन सावन भी प्यासा
सुखी नैनों की आस रही ।
तुम बिन धड़कन भी चुप है
थमती रुकती सी सांस रही ।
तुम से बढ़ कर तुमसे आगे
दिल को कुछ भी याद नहीं ।
तुम बिन दिल भी है तन्हा
खुद की छाया भी साथ नहीं ।
हम हो जाये मैं और तुम
दिल को ये मन्जूर नहीं ।
तुझसे ओझल नैना मेरे
दरसे कुछ भी और नहीं ।
कैसे सोचूं तुम बिन जीवन
विरह में मृत्यु दूर नहीं ।
कह दो सबसे तुम हो मेरी
चाहत अब मजबूर नहीं ।
तुम संग काशी सा पावन
गाता मन कबीरा है
मुझ बिन तुम हो मीरा सी
मुझमें भी श्याम अधूरा है ।
राधा के बिन कैसे मोहन
इस जीवन में पूरा है ।
तुम बिन अब मन वृंदावन
और जीवन रास अधूरा है ।
38. चलो फिर आगाज करते है
चलो आज फिर एक नयी
कहानी का आगाज करते हैं ।
तुम फिर नये घाव दो हमें
हम फिर लफ़्जों से आवाज
करते हैं।
जो छोड़ दी थी तुमने अधूरी कभी
चलो फिर मेरे सपनों की वो
दुनिया आबाद करते हैं ।
तुम झूठे वादों की उलझन दो
हम फिर तन्हा दिल को खुद से
आजाद करते हैं ।
तुम फिर अश्कों का दरिया बनो
हम फिर बहकर तुझसे मिलने की
फरियाद करते हैं ।
तुम फिर जाने की बात करना
हम फिर से अपनी बसायी दुनिया
बर्बाद करते हैं ।।
चलो आज फिर एक नयी
कहानी का आगाज करते हैं ।।
39. आ गले लग जा
आ गले लग जा…
आ गले लग जा
छोड़ दे तू आज सब गलियारों को
मिटा दे दिल के मेरे अंधियारों को
तोड़ दे बंधन, तेरी सब जंजीरों को
जन्नत नसीब कर नज़र फकीरों को
बस आ गले लग जा ।
ताउम्र निभा लेना तू अपने फर्ज
पहले अदा कर ले इश्क़ का कर्ज
कर अनसुना बेवजह तकरीरों को
रुकसत कर तन्हाई के जखीरों को
बस आ गले लग जा ।
आ बन मेरे सफर का तू हमसफर
परवाह कर, ले कुछ मेरी भी खबर
पलट दे रुठी हुई फलक तक्दीरों को
बदल दे एक बार मेरी लकीरों को
बस आ गले लग जा ।
मिलने दे दिलों को बेवजूद होकर
सुन धड़कनों को सांसो में खोकर
रूह बन जाने दे थमती समीरों को
उकेर दे रोम रोम में तेरी तस्वीरों को
आ गले लग जा ।
बस आ गले लग जा ।।
40. शहर उनके पेश हुये हम आज
ए दिल दफन रख जलते जज्बात
मत सुना हुबक कर कोई भी बात
रोक ले सिसक, अश्क वो दर्द का
सब्र कर, दबा ये शोर धड़कनों का
रहम दे, बाकी रख थमती ये सांस
नजरों को रोक, ना बोले कोई राज
शहर उनके जो पेश हुये हम आज ।।
वफा की नुमाईश मत कर तू अभी
रजा की गुंजाइश मत रख तू कभी
भूल जा किस्से, तेरे रूहानी ख्वाब
समेट ले हिस्से, टुकड़े तेरे तू आज
मत कर बदनाम देकर उन्हें आवाज
शहर उनके जो पेश हुये हम आज ।।
रोशन कर अन्धेरे उनके चरागों से
भर जख्म खुद के उनके घावों से
हो बेवजूद तू चाहे, रख उन्हे बेदाग
सलामत रख उन्हें, उनका वो नाज
जिन्दा रख तू इश्क़, तेरा वो अंदाज
शहर उनके जो पेश हुये हम आज ।।
41. तेरा इन्तजार रहे
मेरी हर सुबह की पहली नज़र को
तेरा इन्तजार रहे ।
ख्वाबों के साये मेरे तेरी ही महक
में बस बेकरार रहे ।
मुझे मदहोशी के आलम से बाहर
ना आने दे तेरी वफा
मेरी नाकाफी सी कोशिशों पर भी
तू यूं निसार रहे ।
मेरे वजूद की हस्ती जिन्दा है तेरी
मौजूदगी में यार
सुन ये धड़कने ले नाम तेरा, तेरा
ही नशा सवार रहे ।
मेरी रूह घुलकर तुझमें बन गयी
एक लिबास तेरा
इन सांसो को बस तुमसे हां तुमसे
ही प्यार रहे ।
हर जनम नसीब ना हो शायद मुझे
मोहब्बत तेरी
पर इस जनम मेरे इश्क़ पर तेरा
हर ऐतबार रहे ।
तू भी हो दीवानी, तुझको भी मुझसे
प्यार रहे ।।
42. धुँध की औट में खोने चला
मैं धुंध की ओट में खोने हूँ चला
पार इक नये जहां की तलाश है ।
सब कुछ मिला है इस सागर में
दो बूंद और बारिश की आस है ।
गैरों सा आया, सर आंखों बैठाया
बता दिया मुझे कि तू भी खास है ।
रख दी प्रेम की हाला अधरों पर
फिर जाने क्यूँ अब भी प्यास है ।
जीवन चलने की मजबूरी है तो
यारों के संग ये जीवन भी रास है।
माफ करना मेरे कदमों को यारो
आज इन्हे विरह का अहसास है ।
फिर होगा संगम करमों का अपने
फिर गाएंगे हम, जो अपना राग है ।
मैं धुंध की ओट में खोने हूँ चला
पार इक नये जहां की तलाश है ।।
43. मैं उलझ जाता हूं
मैं उलझ जाता हूं ।
सोचकर तुम्हे क्यूं अब भी मैं उलझ जाता हूं ।
फिर सुलझाता हूं इन उलझनो को जब
मैं फिर उलझ जाता हूं ।।
ए दिल तू ही बता तुझको रहना कहां है
ले जाता है बहा कर मुझे वही वो जहां है ।
कब तलक जद्दो-जहद रहनी है खुद से
खुद का होकर मैं खुद से उलट जाता हूं ।
सोचकर तुम्हे क्यूं अब भी मै उलझ जाता हूं ।।
रोज चराग यादो के रूह को राख करते है ।
लफ्ज़ बहकर नैनो से तुमसे बात करते है ।
कब तलक ये मोहब्बत रहनी है तुमसे
छुपाकर लौ इश्क़ की खुद सुलग जाता हूं ।
सोचकर तुम्हे क्यूं अब भी मैं उलझ जाता हूं ।।
44. क्या क्या बनी तुम
मेरे जीवन उपवन में तुम
निर्मल जल का स्त्रोत बनी ।
मेरे अँधियारे मन में तुम
जगमग जगमग ज्योत बनी ।।
जीवन सागर की लहरो पर
तुम नौका पतवार बनी ।
तन्हाई की हर चौखट पर
मेरी छाया हरबार बनी ।
व्याकुल तपते मन आंगन पर
बारिश की रिमझिम औट बनी।
मेरे अँधियारे मन में तुम
जगमग जगमग ज्योत बनी ।।
पागल प्रेमी मन को जब तुम
हक़ से अपना कहती हो ।
तुम साया लगती हो मेरा या
मन भीतर ही रहती हो ।
ख्वाबो को तुम मेरे सजाकर
मेरी दुल्हन रोज़ बनी ।
मेरे अँधियारे मन में तुम
जगमग जगमग ज्योत बनी ।।
हर आखर पंक्ति ने तुमको
मेरा बनकर गाया है ।
इस बंजर जीवन को तुमने
एक सुन्दर गीत बनाया है ।
तुमको पाकर लगा की जैसे
जनम जनम की खोज थमी ।
मेरे अँधियारे मन में तुम
जगमग जगमग ज्योत बनी ।।
45. इश्क़ वाली शायरी
इश्क़ का दौर था तब भी,
इश्क़ का दौर है अब भी ।
कसक कुछ और थी तब भी,
दिल का शौर है अब भी ।
मैं चाहत को नगमो में सुना देता
मगर सुन ले…
किस्सा जो तुम्हारा था
वो पुरा हो नही पाया ।।
जग जाहिर हुआ जो दर्द
दीवाने है कहलाये ।
जला कर खुद की हस्ती को
परवाने है कहलाये ।
लिखा करते थे तुमको यूं
अधुरे से लफ्जो मे…
जुडे जो लफ्ज हक़िक़त मे
तो अफसाने है कहलाये ।।
बुझी थी जो शमां एक शाम
उसे फिर से जलाना है ।
पडी थी बन्द जो धड़कन
उसे फिर से चलाना है ।
अधुरे है बरसो से किस्से
जो ये चाहत के…
लिखना है वो नज़मो मे
गजलो में सुनाना है।।
कभी यादो में आऊँ तो
लफ्जो से भुला देना ।
दर्द बनकर सताऊ तो
अश्को से छुपा लेना ।
उठे जो फिर कभी सैलाब
मेरी मोहब्बत के…
पराये हो गये हो तुम
दिल को ये बता देना ।।
माना था मुझे अपना
पराये हम अब कैसे।
जुदा था जो तेरा सपना
सजाये संग तब कैसे ।।
मेरी पूजा,मेरा विश्वास,
मेरी आरजू थी तुम..
तो जुदा क्यू इश्क़ है तेरा
अलग तेरा रब कैसे ।।
जीवन कुछ नही है बस
सांसो की उधारी है ।
बिना प्रीतम के जीना तो
मरने से भी भारी है ।
अदाये ये दे दे अब तुम्हारी
भी स्वीकृति…
तो जीवन हो मेरा अपना
नही संघर्ष तो जारी है ।।
तेरी चूडि, तेरी पायल, तेरे
काजल से बात करता हूं ।
तेरी बातो, तेरी यादो, तेरे
आंचल में रात करता हूं ।
तुझे भी हो गया हो इश्क़
मेरी मोहब्बत से…
तो जमाने को बता दूंगा
मैं तुझसे प्यार करता हूं ।।
जुदाई जो एक रिश्ता है
जुदाई की भी रश्मे है ।
इसमे टूटे है सब वादे
अधुरी सी कसमे है ।
मोहब्बत के परिंदे ही निभाते है
इन रिश्तो को..
ना उनका दिल उनका है
ना उनका दर्द बस में है ।।
ये घायल है, बेचारा है
पर दिल मेरा तुम्हारा है ।
तेरी चाहत में पागल है
तेरी नजरो का मारा है ।
बिजलियां इन अदाओ की
तुम रोक लेना बस…
दीवानो की कतारो मे
जमाना भी तो सारा है ।।
मैं कश्ती हूँ जो कोई
तू मेरा किनारा है ।
मैं हस्ती हूँ गिरती तो
तू मेरा सहारा है ।
सम्भाला है, संवारा है
तुमने ही बनाया है
जो कुछ भी तो मेरा है
वो सब कुछ तुम्हारा है ।।
महक ए इश्क़ अब भी
हवा के झोके लाते है ।
तुम्हे छूकर जो आते है
मुझ तक वो समाते है ।
तुमने छोड़ा था जिसको
छेड़कर प्रेम में अधुरीत ।
दीवाने संग मेरे अब
वही धुन गुनगुनाते है ।।
मोहब्बत, इश्क़ और चाहत
लबों पर जब जब आयेगा ।
तेरी हसरत, कमी तेरी
तेरा ही नाम सुनाएगा।
लिखी थी जो भी तेरे साथ
तेरे बाद की सांसे…
वो “अधुरी दास्ताँ” मेरे साथ
जमाना आज गायेगा ।।
चमकता चान्द हो जो तुम
मैं नन्हा सा तारा हूँ ।
फलक का सुर्य हो जो तुम
मैं दीपक सा सारा हूँ ।
अन्धेरी रात को रोशन बना
देने की है कोशिश
किसी की राह का साथी हूँ
किसी का मैं सहारा हूँ ।।
मोहब्बत कुछ नही है बस
अधुरी एक कहानी है ।
जहां अश्को से भीगे लब्ज
दिल का दर्द रूहानी है ।
यहाँ हर दर्द हुआ बदनाम
खुदगर्ज जमाने मे…
यहाँ हर घर में मजनू है
हर लैला दीवानी है ।।
राधा सा अधूरा है
मीरा सा वो पागल है ।
गीतासार सा पुरा है
गंगा सा वो निर्मल है ।
बस तुम जान लो मेरे प्रेम
की वो परिभाषा
तुलसी सा वो पावन है
कान्हा सा वो चंचल है ।।
मैं अपने गीत गजलो से तुम्हे
पैगाम करता हूँ ।
तुम्हारी याद में लिखकर मै
सुबह ओ शाम करता हूँ ।
मैं गाता हूँ, मैं लिखता हूँ, भटकता
हूँ मोहब्बत मे
और दुनिया ये समझती है कि
मैं भी काम करता हूँ ।।
46. तुम्हे कौन समझाए
वो चाहत, वो हसरत तेरी
वो किस्से, वो कहानी मेरी
पन्नो में सिमट के रह गयी वो
बिलख कर मोहब्बत अधुरी
ये तुम्हे कौन समझाए ?
तुमने देखे है चहकते चेहरे
तुमने देखी बस आंखे खिली
कब तुमने अश्को से पूछा
सुखे गये जो तुम ना थी मिली ।
ये कौन तुम्हे समझाए ?
मेरी ख्वाइश,मेरी जिद्द बस
इस तक तुम सिमित रही
कैसे जिया हूं मैं तुम बिन
मरने तक तुम निमित रही ।
ये तुम्हे कौन समझाए ?
हुये सौदे,रूह की बोली लगी
बिके सरेराह खामोश होकर
रोशन थे घर नये हुक्मरानो के
भस्म हुये संग तेरे अरमानो के ।
ये तुम्हे कौन समझाये ??
47. डिस्को की वो रात
जहां सागर की थमती लहरो को देखा
मैंने वहां हुश्न के काले चेहरो को देखा ।
चमकती गुलाम रातो मे
दमकती अंजान राहो मे
बेबस बिकती आबरू के ढेरो को देखा ।
बहते जामो के गागर मे
ढलती शामो के सागर मे
हवश की चाह के भूखे शेरो को देखा ।
नग्न नाजुक काया को
सहमी पड़ी परछाया को
चंद पैसो से नोचते नये गैरो को देखा ।
नैनो ने विचलित होकर
हृदय ने चित को खोकर
ख्वाबो को यूं निगलते अंधेरो को देखा ।
कालिख बेशर्म शामो के
दर्द निशां बेदर्द कामो के
मिटाते हर रोज यूं नये सवेरो को देखा ।।
48. बात होती है
कभी होती है जो बारिश
तुम्हारी बात होती है ।
मचल उठती है जो ख्वाईश
तुम्हारी बात होती है ।
जो नीँदो में भी रूक रूक कर
ये सान्से आहे भरती है
समझ लेता है दिल तब भी
तुम्हारी बात होती है ।।
चमकती है निशा नभ पर
तो तुमसे बात होती है ।
चहकती है खुशी लब पर
जो तुमसे बात होती है ।
धरा महकेगी जब भी इश्क़ की
बरसी घटाओ से
समझ लेगी ये दुनियां भी
की तुमसे बात होती है ।।
लिखा है इश्क़ जब जब भी
हमारी बात होती है ।
गिरा है अश्क जब जब भी
हमारी बात होती है ।
सुनाई दे कभी तुमको भी मेरे
गीत मोहब्बत के
समझ लेना तभी तुम भी
हमारी बात होती है ।।
49. तुम्हारी याद आती है
गिरे मोती जो आंखो से
तुम्हारी याद आती है
गज़ल निकले जो बातो से
तुम्हारी याद आती है
कभी लेखक, कभी मुन्शी
पुकारे जग ये हंस हंस कर
उन्हे बतलाऊं अब कैसे
कि तुम्हारी याद आती है ।।
इबादत हो या मन्नत हो
तुम्हारी याद आती है
जमीं बक्से या जन्नत हो
तुम्हारी याद आती है
बडी जोरो से धड़के दिल
बडी मुश्किल से चलती सांस
अभी भी लौट आओ तुम
कि तुम्हारी याद आती है ।।
गुजरती इस जवानी में
तुम्हारी याद आती है
सिसकती हर कहानी मे
तुम्हारी याद आती है
जगाये हिचकियां तुमको भी
तो तुम माफ कर देना
करुँ मैं क्या मुझे हर पल
तुम्हारी याद आती है ।।
भ्रमर गुन्जे जो फूलो पर
तुम्हारी याद आती है
झूले सावन जो झुलो पर
तुम्हारी याद आती है
बहकती है फिज़ाए सब
बदलते है सभी मौसम
संवरती है बुझी ऋतुए
जो तुम्हारी याद आती है ।।
लगे जो रंग होली पर
तुम्हारी याद आती है
जले जो दीप दिवाली पर
तुम्हारी याद आती है
मेरा हर दिन, मेरी हर रात
बना है प्रेम का उत्सव
मना लो तुम भी मेरे संग
तुम्हारी याद आती है ।।
छनकती है कही पायल
तो तुम्हारी याद आती है
सजे जो आंख में काजल
तुम्हारी याद आती है
रची महँदी भी ढून्ढे अब
हमारा नाम हाथो मे
बनो तुम प्रेम का श्रिंगार
तुम्हारी याद आती है ।।
रहो दिल के मकां में तुम
तुम्हारी याद आती है
बसो मेरे जहां में तुम
तुम्हारी याद आती है
हुआ वीरां मेरा मन्जर तुम्हारे
दूर जाने से
बना दो फिर इसे गुलजार
तुम्हारी याद आती है ।।
सुनाये प्रेम का जो गीत
तुम्हारी याद आती है
निभाये प्रेम की हर रीत
तुम्हारी याद आती है
यहाँ जब हारते है प्रेम मे
दो नवल यौवन
बताये हार को जो जीत
तुम्हारी याद आती है ।।
नाजुक प्रेम बहे अविरल
तुम्हारी याद आती है
भावुक हो कहो तुम कल
तुम्हारी याद आती है
तुम्हारी याद, हमारी याद मे
बस फर्क है इतना
तुम्हे कुछ पल, हमे पल पल
तुम्हारी याद आती है ।।
तुम्हे चाहूँ इजाजत हो
तुम्हारी याद आती है
दिल में फिर जो शरारत हो
तुम्हारी याद आती है
सितारो पार हो एक घर
तुम्हारा और मेरा अब
इश्क़ में वो शराफत हो
तुम्हारी याद आती है ।।
50. किरदार तेरे है
मेरी हर कहानी में है तू और किरदार तेरे है
शब्द शब्द तुझे तराशते औरहक़दार तेरे है
तू ढलती गयी गीतों में और मैं तुझे गाता रहा
और महफ़िल में ये झुठे लोग तरफदार मेरे है ।।
चुमकर लब्ज़ लब्ज़ तेरा लब बेकरार मेरे है
इज़हार में झूम रहे हर गीत में इकरार तेरे है
नज़्म पढूं, ग़ज़ल कोई या गीत नया-पुराना
बात बात पर हो रहे है जो चर्चे हरबार तेरे है ।।
जिन्हें पढ़ रही है शौक से दुनियां वो अखबार तेरे है
कतरा रहे कुछ लोग अब मुझसे वो दावेदार तेरे है
कागज़ भी तेरा, कलम भी और लब्ज़ भी तू है
किस्से-कहानियां मेरे, मेरी तरह बस कर्ज़दार तेरे है ।।
मेरी हर कहानी में है तू और किरदार तेरे है ।।
51. रोशन हुआ
किसे खबर कि कब कब क्या क्या रोशन हुआ
इन गीतों में तू आज पहली मर्तबा रोशन हुआ
तू लिपट कर रोईं बेपनाह उससे इस कदर
जैसे मेरे बुझने से कही कोई और रोशन हुआ ।।
बातो, मुलाकातों को भुलाकर तू रोशन हुआ
यादो व जज्बातो को जलाकर तू रोशन हुआ
ख्वाब से इश्क़ में मैं और तू गर थे हमसफर
हक़ीक़त में ख्वाबो को जलाकर तू रोशन हुआ ।।
जवाब था मेरा पर तू सवालो में रोशन हुआ
रोज़ होना था तुझे पर सालो से रोशन हुआ
तेरे अपने भटक गए अंधेरो में कही आज
और तू है कि जाकर उजालो में रोशन हुआ ।।
52. उदास हूँ मैं
क्या करोगी
अगर कहूँ कि उदास हूँ मैं ?
चलो झूठ ही सही
बस इतना सा कह दो कि पास हूँ मैं ।।
बहुत दूर दरिया पार है गांव तेरा
हवाओ ने उलट दिया है बहाव मेरा
तू सूरज है तो मुझे पता है रात हूँ मैं ।
बस इतना सा कह दो कि पास हूँ मैं ।।
खामोश सांसो में सुन तेरा शौर है
बीता वक़्त तेरा मैं, तू मेरा हर दौर है
तू लब है अगर तो दबी हर बात हूँ मैं ।
बस इतना सा कह दो कि पास हूँ मैं ।।
क्यों दहलीज़ को तेरी इंतज़ार मेरा
क्यों छुपाती है सबसे नाम हरबार मेरा
तू रूह बने तो साया सा तेरे साथ हूँ मैं ।
बस इतना सा कह दो कि पास हूँ मैं ।।
तारो को बुलाकर मुझसे मिलना
दीये जलाकर मुझे तेरा वो खत लिखना
शायद उन्ही खतों की बुझी राख हूँ मैं ।
बस इतना सा कह दो कि पास हूँ मैं ।।
सजा रही हो दर नई महफ़िल के
सुनोगी कैसे मेरे गीत, किस्से मेरे दिल के
झुकाकर नज़रे बता देना कि खास हूँ मैं ।
चलो झूठ ही सही
बस इतना सा कह दो कि पास हूँ मैं ।।
क्या करोगी
अगर कहूँ कि उदास हूँ मैं ?
53. तुम कह रही बचपना
तुम कह रही हो हम दोनों के उस
दीवानेपन को बचपना
अगर था वो बचपना तो प्यार क्या है ।
वो वादे , वो कसमे, वो जिद्द , वो
जद्दोजहद एक दूजे के होने की
बाते है सब तो फिर एतबार क्या है ।
कभी बरसते सावन की बेजुबान रातों में
तभी बेबस सी तुम उसकी बाहो में
समझ बैठी इसे अगर तुम इश्क़ की दुनिया
तो मोहब्बत का हसीन संसार क्या है ।
अगर था वो बचपना तो प्यार क्या है ।।
खोया एक पागल, एक पागलपन
तुमने सौंपी मृत सी देह और रोता मन
तुम खोज रही थी तुम जिन सौदों में
जीत तुम्हारी
अगर यही जीत है तुम्हारी तो हार क्या है ।
अगर था वो बचपना तो प्यार क्या है ।।
लिखकर कहानी को जन्मो जन्मो
का तुमने ही वरदान दिया
फिर किरदार तुम्हारे ने ही किस्सो
को क्यों अनजान किया
जब मरना ही था प्रेम को पन्नो पर
कुछ बरसो में ही
तो सदियो से इस जीवन का सार क्या है ।
तुम कह रही हो हम दोनो के उस
दीवानेपन को बचपना
अगर था वो बचपना तो प्यार क्या है ।।
अब तुम्हे लगती है ये मोहब्बत
किताबो की कहानियां सी
मिट गया जिसमें भोलापन और
वो सारी जवानियाँ भी
जिसको कह ना पाई सामने तुम
अधिकार से अपना
बन गया है गीत वो इश्क़, अब
तुम्हारा अधिकार क्या है
अगर था वो बचपना तो प्यार क्या है ।।
54. शामिल है तू इस तरह
मेरी हर खुशी में शामिल है तू
कुछ इस तरह
हंस रहा हो भोला बचपन छिपकर
जिस तरह
जी रही हो कहानी में कोई जवानी
जिस तरह
भटकता है मन बावरा खोज में जिस
इश्क़ की खुशबू
तू महकती है उस कस्तूरी सी रूह में
कुछ इस तरह ।।
मेरी ख़ुशी में शामिल….
सबरी के प्रेम के बैरो में बस गए हो
राम जिस तरह
बैरागी कबीर के दोहो में बस गए हो
श्याम जिस तरह
अधुरा होकर भी पूरा सा लगता है ये
जीवन मेरा
बावरी मीरा को मूरत में हो सांवरे का
भान जिस तरह ।।
मेरी खुशी में शामिल…
सूरज ने बिखेरी है सुबह में कोई
सिंदूरी जिस तरह
रात ने चाँद को सौंपी हो इश्क़ की
मंजूरी जिस तरह
मोहब्बत कहूँ तुझको या नाम रखूं
जिंदगी तेरा
जी रहा हूँ तुझको खुद में हो सांसे
जरूरी जिस तरह ।।
55. ख्वाब तुम चले आओ
ख्वाबो में चले आओ
ख्वाब तुम चले आओ
दिल पर ना नियंत्रण है
नयनो का निमंत्रण है ।
इंतज़ार में निशा संवरी
थक गयी पलके प्रहरी
धडकनो ने साथ छोड़ा
साँसों का ये समर्पण है ।
दिल पर ना नियंत्रण है
नयनो का निमंत्रण है ।।
काजल, बिंदी, हार धरो
प्रेम का तुम श्रृंगार करो
दुल्हनरूप की आशा में
बैचैन खुद मन दर्पण है ।
दिल पर ना नियंत्रण है
नयनो का निमंत्रण है ।।
ख्वाबो में चले आओ
ख्वाब तुम चले आओ ।।
56. तारो को किसी ने नही देखा
सबने देखा चाँद और वो चांदनी
उन उदास तारो को किसी ने नही देखा
सबने सुनी मोहब्बत की कहानी
मरते किरदारों को किसी ने नही देखा
कैसे सुनाई देती सिसकियां लब्जो में
ग़ज़ल में दीवारों को किसी ने नही देखा
कैसे देखते दम तोड़ते गीत इश्क़ के
इश्क़ के पहरेदारो को किसी ने नही देखा
हँसते रहे लड़खड़ाते मेरे कदमो पर
संभालते मेरे यारो को किसी ने नही देखा
दोषी थी माना मेरी डूबती कश्ती भी
पर बेवफा पतवारों को किसी ने नही देखा
कैसे केवल मै जिम्मेदार मेरे जख्मो का
शायद तेरे किये वारो को किसी ने नही देखा ।।
57. वो यादों की गुलज़ार बस्ती
वो यादो की गुलज़ार बस्ती
वो तुम और स्वप्न मुलाकात
रिमझिम बरसता सावन वो
चाँद छुपाये बादल की रात
तुम उतर रही मध्यम मध्यम
दिल आंगन में बन मरहम
मदहोशी का शहद घुल रहा
नशा बन रही तेरी आवाज़
वो यादो की गुलज़ार बस्ती
वो तुम और स्वप्न मुलाकात
नैनो में तारों को भर लायी तू
सीने से लिपटी, सरमायी तू
साज़िश में हवा ठिठुरन लायी
आँचल में छुप रहा मैं आज
वो यादो की गुलज़ार बस्ती
वो तुम और स्वप्न मुलाकात
जुल्फे तेरी बादल से भी गहरी
बात कोई मेरे अधरों पर ठहरी
सांसे गूंज रही बिजली सी तब
छू गए मुझको तेरे सहमे हाथ
वो यादो की गुलज़ार बस्ती
वो तुम और स्वप्न मुलाकात ।।
58. बड़ा इश्क़ इश्क़ करते हो
बड़ा इश्क़ इश्क़ करते हो, मोहब्बत मोहब्बत चिल्लाते हो
तो बताओ फिर नज़रे झुकाकर दुनियां से क्या छिपाते हो ।।
कुछ भी तो नया नही तुम्हारी मेहंदी में मेरा नाम होना हर बार
फिर हर बार तुम इसे मेहंदी की गुश्ताखियाँ क्यों बताते हो ।।
पायल,काजल,आँचल हर श्रृंगार को क्यों मेरा नाम सुनाते हो
कलियों, शाखों और झूलो संग क्यों मेरे गीत गुनगुनाते हो ।।
वाकिफ हूँ, मेरी सलामती की दुआ रोज़ होती है तेरी हर सांस में
तो आइनों को देख कर हर बार मेरा प्यार क्यों झुठलाते हो ।।
आंगन की रंगोली में मेरी पसंद का लाल रंग क्यों सजाते हो
पसंद नही अगर लाल रंग तुम्हे तो हर दुप्पटा लाल क्यों लगाते हो ।।
सजा रखी है चौखट मैंने भी कबसे तेरे आने के इंतज़ार में
अब हक़ीक़त भी बन जाओ क्यों हर बार ख्वाब बन जाते हो ।।
59. मैं जिसे लिखता-गुनगुनाता हूँ
मैं जिसे लिखता-गुनगुनाता हूँ
वो इश्क़ आपको सुनाता हूँ ।
बादलो सा उड़ता तेरा आँचल
चाँद सा इसमे मैं सिमट जाता हूँ ।
वो इश्क़ आपको सुनाता हूँ ।।
तू बहते दरिया सी गुजरती है
मैं किनारों सा ठहर जाता हूँ ।
वो इश्क़ आपको सुनाता हूँ ।।
तेरी मुस्कान जैसे कोई महरम
देखकर हर दर्द भूल जाता हूँ ।
वो इश्क़ आपको सुनाता हूँ ।।
तेरे केशुओ की बगिया में
भंवरे सा मैं उलझ जाता हूँ ।
वो इश्क़ आपको सुनाता हूँ।।
तुझे भुलने की हर कोशिश में
मैं खुद को भी भूल जाता हूँ ।
वो इश्क़ आपको सुनाता हूँ ।।
60. प्रेम सिर्फ श्याम है
प्रेम सारी है कल्पना
प्रेम सिर्फ श्याम है
प्रेम सूचियाँ है बहुत
भाव सिर्फ श्याम है ।
प्रेम की है जो अर्चना
प्रेम की हर उपासना
प्रेम की हर भक्ति में
प्रेम नाम ही श्याम है ।
प्रीत के हर गीत सा
गीत में बसी प्रीत सा
मन की भावना से परे
शब्द शब्द भी श्याम है ।
प्रेम के अदृश्य लोक में
अलौकिक एक नाम है
प्रेम की कल्पना में भी
अकल्पनीय वो श्याम है ।।
हार कर कृष्ण को राधा
जीत का अमर प्रमाण है
वियोग पीर को सह सदा
प्रेमयुद्ध हारा वो श्याम है ।
मीरा के गिरधर गोपाल
विष प्याले में अमृतपान है
द्रोपती की हर पुकार का
मान सम्मान बस श्याम है ।।
प्रेम सारी है कल्पना
प्रेम सिर्फ श्याम है
प्रेम सूचियाँ है बहुत
भाव सिर्फ श्याम है ।।
61. मेरी लेखनी से सजे हो साजन
मेरी लेखनी से सजे हो साजन
गाए गीतों में तुम बसी हो
कभी हो आखर कभी हो पंक्ति
कभी तो ग़ज़लों में तुम रमी हो ।
तुम्हे खोजता है बावरा मन
मगर इसे ये खबर नही है
बस एक मेरे भाग्य में तुम
अगर कही हो तो तुम यही हो ।
बरसते नैनो से तुम छलकते
महकती रूह में तुम कहीं हो
धड़कती धड़कन में हो धड़कते
थमती सांसो में तुम चली हो
मेरे दिन और रात में तुम
नित खयालो में हो समाए
बस एक मेरा बावरा मन
जिसमे होकर भी तुम नही हो ।।
62. कैसी पहेली है ये
कैसी पहेली है ये, क्या अजब हो रहा है
मेरे शहर में आज कुछ तो गजब हो रहा है ।
बेचैन है सुखी जमीं मोहब्बत मे
और आसमाँ इश्क़ में रो रहा है
सुकूँ ढूंढ रही है घटाएं दर-ब-दर
बादलो का कारवां सब्र खो रहा है ।
कैसी पहेली है ये, क्या अजब हो रहा है ।।
मन बदलता रहा करवटे रातभर
ख्याल तेरा पलको पर सो रहा है
एक ख्वाब चल रहा था साथ मेरे
बरसते अश्क़ में वो आंख धो रहा है ।
कैसी पहेली है ये, क्या अजब हो रहा है ।।
चाँद बिजलियों से सहम गया आज
सिमट कर बाहो में मेरा हो रहा है
याद के चिराग जलाकर हर शाम में
मनआंगन में प्रेम जलती लौ रहा है ।
कैसी पहेली है ये, क्या अजब हो रहा है ।
मेरे शहर में आज कुछ तो गजब हो रहा है ।।
63. दिल के कोरे कागज पर एक गीत
दिल के कोरे कागज पर एक
नया सा कोई गीत लिखूं ।
लिख दूं तुमको अपनी मोहब्बत
या फिर अपना मीत लिखूं ।।
लिखा है तुमको हर गीतों में
ग़ज़ल ग़ज़ल में गाया है ।
हर आखर लिपट कर तुमसे
फिर कागज़ पर आया है ।
तुमको पूरा इश्क़ लिखूं या
इश्क़ की कोई रीत लिखूं ।
लिख दूं तुमको अपनी मोहब्बत
या फिर अपना मीत लिखूं ।।
मन के कोरे कागज पर एक
नया सा कोई गीत लिखूं ।
लिख दूं तुमको अपनी मोहब्बत
या फिर अपना मीत लिखूं ।।
बादल, बारिश, झील, चंद्रमा
सबसे तेरा श्रृंगार लिखूं ।
सांस के पृष्ठों पर सजाकर
तुमको जीवन सार लिखूं ।
पल पल हारा तुमसे ये मन
फिर भी तुमको जीत लिखूं ।
लिख दूं तुमको अपनी मोहब्बत
या फिर अपना मीत लिखूं ।।
मन के कोरे कागज पर एक
नया सा कोई गीत लिखूं ।
लिख दूं तुमको अपनी मोहब्बत
या फिर अपना मीत लिखूं ।।
मन के बृज की राधा तुमको
खुद को तेरा श्याम लिखूं ।
जन्म जन्म की डोर से बंधकर
हर जन्म मैं तेरे नाम लिखूं ।
लिखूं तुम्हे मेरा पागलपन या
इस पागल मन की प्रीत लिखूं ।
लिख दूं तुमको अपनी मोहब्बत
या फिर अपना मीत लिखूं ।।
64. जो लफ्ज़ कहे थे हमारे जवाब में
जो लफ्ज़ कहे थे तुमने कभी हमारे जवाब में
अब भी महक रहे है एक एक हमारे रुबाब में
खत संभाल कर सजा रखे है तुम्हारे आज तक
जैसे दिल निकाल रख दिया है हमने किताब में ।।
जिस जहां को हमने बना लिया था बात बात में
तुम्हारे संग जी रहे है अब भी वही तो ख्वाब में
बिछड़ ना जाओ तुम कही फिर से अब दोबारा
बरसो से संभाल रखा है पानी इसलिए आंख में ।।
सँवारे बैठा हूँ कबसे जिंदगी के सब रंग बाग में
रंग दे मुझे तू जिस दिन होली हो मेरे भी गांव में
दीप तो जलाता हूँ मैं भी औरो की तरह हर साल
सजाऊँ तुम संग जो मेरी दिवाली हो उस रात में ।।
65. उनका पैगाम आया है
उनका पैगाम आया है….
सूने सूने कमरे ने ले अंगड़ाई
दीवारों की खामोशी तोड़ी है
बिखरी सांसो ने नए साज बना
धुन उनके आने की जोड़ी है
बुझा बैठी थी चौखट दीपो को
हवा ने फिर उनको जलाया है
लगता है उनका पैगाम आया है ।
हां फिर उनका पैगाम आया है ।।
उनका पैगाम आया है….
रात अंधेरी में दिवस मान सा
फैला उनका ही उजियारा है
जीत रहा मन जिसे ख्वाबो में
पलको पर उनसे ही हारा है
सजा कर एक तस्वीर सुनहरी
आखर हर पंक्ति में लाया है
लगता है उनका पैगाम आया है ।
हां फिर उनका पैगाम आया है ।।
उनका पैगाम आया है….
दरवाजे भी उसी पीर पुरानी ने
उत्सुकता में आकर खोले है
जिन जख्मो ने साधी थी चुप्पी
वो सहमे सहमे फिर बोले है
होठो पर दबा रहा जो किस्सा
आंखों ने भर भर वो गाया है
लगता है उनका पैगाम आया है ।
हां फिर उनका पैगाम आया है ।।
उनका पैगाम आया है….
शबनम सी बरसी है मोहब्बत
बेरूत की छलकी घटाओ से
बहक रहे है फिर दरख पुराने
यादो में लिपट कर हवाओ से
जर्रे जर्रे में रमी महक पुरानी
जैसे कोई नया गुलाब आया है ।
लगता है उनका पैगाम आया है ।
हां उनका पैगाम आया है ।।
उनका पैगाम आया है….
मायूसी में खोए दिल वीराने में
बरसो बाद कोई दस्तक हुई है
संभाले थी ये आंखे जो कबसे
अश्को में गिरती तस्वीर वही है
कांप रहे थे होठ वो नाम पढ़कर
जिसका खत मेरे नाम आया है ।
आज उनका पैगाम आया है
हां हां उनका पैगाम आया है ।।
66. बस तुम मिल जाओ ना
हार गया है मन करते करते तुमसे गुज़ारिशे
तू ही बता कहां हो सिसकियों की सिफारिशें
जुदाई के जख्मो को कुरेतती है रोज़ तेरी यादें
तुम आकर खुद इन घावों को सिल जाओ ना
हर दर्द मिट जाएगा बस तुम मिल जाओ ना ।।
सांसो में खुद से ही बगावत का भारी शोर है
रातो में तन्हा मैं और तेरा साया चारो ओर है
पथराई इन आँखों में एक तस्वीर तेरी छपी है
तस्वीरों में नही अब तुम सामने दिख जाओ ना
हर झूठ सच हो जाए गर तुम मिल जाओ ना ।।
अटक से गए रास्ते अब तो मंजिल नसीब हो
थक गए है कदम मेरे, बोल दो तुम करीब हो
कब तलक भटकता रहूं मुफासिर सा अकेला
थाम लो हाथ तुम और कह दो रुक जाओ ना
वहीं जिंदगी हो बसर अब तुम मिल जाओ ना ।।
67. इश्क़ को इश्क़ सा हम समझते रहे
इश्क़ को इश्क़ सा हम समझते रहे
इश्क़ था पर हमारी समझ से परे ।।
इश्क़ का भोलापन इश्क़ में था वहम
छलिया बनके हमे इश्क़ छलता रहा ।
इश्क़ के हर पहर उजड़ा मेरा शहर
और मलबे में इश्क़ बचाते रहे ।।
इश्क़ को इश्क़ सा हम….
इश्क़ की सांझ में इश्क़ की चाह में
मन का सूरज हमेशा ही ढलता रहा ।
अंधेरो से घिरा भी इश्क़ रोशन रहे
सोचकर मन तन्हा ही जलता रहे ।।
इश्क़ को इश्क़ सा हम….
मन को बागी सा कर इश्क़ निर्दोषी था
और मन की सजाए ये लिखता रहा ।
अश्क़ की स्याही से आखिरी सांस तक
इश्क़ ही इश्क़ मन बस लिखता रहे ।।
इश्क़ को इश्क़ सा हम….
68. तेरी खामोशियाँ बतयाती है
तेरी खामोशियाँ कुछ यूं रातभर बतयाती है
सिसकती है, लिपटती है और शौर मचाती है ।
मेरा हाल पूछती है, मुझे बार बार चूमती है
गले लगा मुझे, ‘फरेब’ अपने अश्क़ छुपाती है ।
ना मजबूरियों का रोना, ना बेबसी का जिक्र
बेफिक्र माशूक़ है ये, जो रोज़ मिलने आती है ।
भीगी पलके, सूखे लब और टूटती आवाज़
जिद्दी है ये, रोकने पर भी मेरी ग़ज़ले गाती है ।
बिखरना इसका, लिपटकर बिलखना इसका
फिर आने का वादा कर चुपके से चली जाती है ।
तेरी खामोशियाँ कुछ यूं रातभर बतयाती है ।।
69. गंगा में बहा देना
मेरी यादो को गंगा में बहा देना
मेरे कागज़ तुम सब जला देना
जब पूछ लें आईने गिरते काजल से
बह गया आंख से मैं बता देना ।।
इन हवाओं में अगर मैं सुनाई दूँ
देखो खुद को और मैं दिखाई दूँ
गाने लगे धड़कने प्यार की एक धुन
ग़ज़ल मेरी तुम वो गुनगुना देना ।।
नींद बेघर हो आंखों से रातो में
खामोशी बिखरी हो जो बातों में
नींद में मुस्कान आने लगे जो होठो पर
ख्वाब था मैं खुद को समझा लेना ।।
70. कोई दस्तक नही जमाने से
मेरी दहलीज़ पे कोई दस्तक नही है जमाने से
लगता है सब रुठ गए है तेरे चले जाने से
कबसे चांद खड़ा है रातो में तन्हा भटका सा
क्यों चला आता नही इन बाहों में मनाने से ।।
बड़ी तल्खी है ख्वाबो की आंखों में आज
लगता है तस्वीर तेरी सरक गयी सिरहाने से ।।
लाख छुपाई है मोहब्बत फूलो सी किताबो में
महक जाती है ग़ज़ल तो तेरे नाम के आने से ।।
रोशन करना था जिन चरागों को घर मेरा
वो आफताब खुश है उसी घर को जलाने से ।।
शिकायत है मेरी मांझी से, लहरों से नही
साहिल को हासिल क्या कश्ती को डुबाने से ।।
71. सूर्य है तू अगर तो
सूर्य है तू अगर तो फिर निकलता क्यों नहीं
दर्द का है हिम जमा जो पिघलता क्यों नही
डर का अंधकार ढक रहा आस की ये चौखटे
तेरी रोशनी की राह से ये बिखरता क्यों नही ।।
हौसलो को कैद कर भय का कैसा राज़ ये
लड़ती हर सांस में हार बैठा कैसा आज ये
मौत ही जो जीत थी तो संघर्ष के मैदान पर
मांगता हूं हार मैं, फिर तू लिखता क्यों नही ।
सूर्य है तू अगर तो फिर निकलता क्यों नही ।।
कृष्ण सा थाम रथ, जीवन समर में साथ दे
थक रहा पार्थ जो उसको जीत की राह दे
हथियार भूल कर सब रण में हूँ मैं खो गया
है सुदर्सन तेरा ही तो फिर चलता क्यों नही ।
सूर्य है तू अगर तो फिर निकलता क्यों नही ।।
भाग्य का सब फैसला एक तेरे ही हाथ में
पलट दे बाज़ी सांसो की बस एक रात में
थक गया प्राण मथ,पीर का विष थाम कर
है कहीं नीलकंठ तो ये निगलता क्यों नही ।
सूर्य है तू अगर तो फिर निकलता क्यों नही ।।
दर्द का है हिम जमा जो पिघलता क्यों नही ।।
72. तेरी तस्वीर छुपा रखी है
तेरी तस्वीर को दुनियां से छुपा रखी है
देखो हमने तो नज़रे भी झुका रखी है ।
थामे बैठी है बरसती नज़रे तुम्हे बरसो से
देख खुद की क्या हालत मैंने बना रखी है ।।
उजाड़ी है कई तुफानो ने बस्ती को मेरी
तेरी यादों ने मेरी ये कश्ती बचा रखी है ।
बिछड़े कदमो के निशाँ गाए ग़ज़ल वो ही
जो ग़ज़ल हमने सिर्फ तुम्हे सुना रखी है ।।
दो किरदार है मर रहे किस्सो में जिंदा
क्या खूब मोहब्बत की सजा पा रखी है ।।
आएंगे नज़र गीतों में वो अमर किरदार
इसलिए हंसते हुए हर ग़ज़ल को गा रखी है ।।
73. मलंग हो तुम मस्त हो
मलंग हो तुम मस्त हो, व्यर्थ में तुम व्यस्त हो
क्या भला है जीत-हार, क्यों रोज़ तुम त्रस्त हो ।
हैं हज़ार फूल राह पर, मंजिलों की खोज में
बस तुमने रख लिए कांटे, तुम्हारी ही सोच में
जिंदगी की ख़ोज में, मन को दिए हैं घाव सौ
आराम दो जख्म को जो सूर्य आज अस्त हो ।
क्या भला है हार-जीत, क्यों रोज़ तुम त्रस्त हो ।।
घुट रहा है तू जहां, वो मुकाम किस काम का
मिट गया वजूद गर तो ये नाम किस काम का
जल गया है हर शाम तू, अब भले ही भोर हो
पतंग-चाह सी जिद्द लिए चराग खुद पस्त हो ।
क्या भला है हार-जीत, क्यों रोज़ तुम त्रस्त हो ।।
सांस के नित रण में तू, पार्थ सी कर बस प्रार्थना
अंहकार की हार है, जो हो रोज़ राम सी साधना
संबंध को सहेज कर, हर दहलीज़ प्रीत-गीत हो
हर हर में हर बसे, हर कोई मस्त हो-स्वस्थ हो ।
क्या भला है हार-जीत, क्यों रोज़ तुम त्रस्त हो ।।
74. तलब तेरी रोज़गार ने ढक रखी है
तलब तेरी इस कदर रोज़गार ने ढक रखी है
परियों की कहानी जैसे बचपन ने गढ़ रखी है
बहकता है, भटकता है रातभर चांद याद लिए
बिन मयखानों के जैसे कोई शराब चढ़ रखी है
आंखों में समंदर बेताब है तुफ़ां-ए-ख्वाब लिए
लगता लिखने से पहले मेरी किताब पढ रखी है
रोशनी की चाह में खाक तक ही था मेरा सफर
तो क्यूं चराग बुझ गये हैं, क्यूं रूह जल रखी है
बेजुबां दिल, सांसें खामोश, धुंधली तस्वीर कोई
ना जाने यादों की ये इमारत कबसे बंद रखी है
सौदों का शहर है ,इश्क़ की बोली लगाते लोग हैं
सब बिक गया मेरा, एक तेरी याद संभल रखी है ।।
75. किताबों से निकल मेरी जाना-1
किताबों से निकल मेरी जाना अब बाहों में आ
आंखों के मकां से बाहर हमसफर राहों में आ ।
कब तक महकती रहेगी तू खयालों में बस मेरे
गुलाब है मेरे जहां का तू, अब तो फिज़ाओं में आ ।
हर रंग से सजी पड़ी है तस्वीर तेरी कमरे में मेरे
आज़ाद हो दिवारों से, थकान भरी निगाहों में आ ।
अंधेरों की जद्द में है बरसों से तन्हा ये आस्माँ मेरा
दिन के उजालों सा मिल, चांद सा हर रातों में आ ।
लब भुलने लगे हैं अब पुकारना सही से नाम तेरा
बुलाने दे चीख कर तुझे, बेवजह इन बातों में आ ।
गीत-गज़ल, नज़्म-कविताएं वगैरह तो सब ठीक है
घुटने लगी हैं धड़कने अब, आ मेरी सांसों में समा ।
किताबों से निकल मेरी जाना अब आ बाहों में आ ।।
76. किताबों से निकल मेरी जाना-2
किताबों से निकल मेरी जाना अब बाहों में आ
आंखों के मकां से बाहर हमसफर राहों में आ
झरनों में आवाज़ तेरी, ठहरे दरिया में तेरा बिम्ब
पागल हो गया शायद, मिलने पागलखानों में आ
डूबता है मांझी यादों की मझधार में रोज़ यहाँ
लहरों सी मचल आज, कश्ती को किनारो पे ला
नासूर होने को है जख्म, खुद को कुरेदता है रोज़
दर्द मिट जाये, घाव सिल जाये, उन धागों में आ
लड़खड़ाते लफ्ज़-चोर नजरें मेरी, तेरे नाम पर
ना रहूँ बेउत्तर सा दुनियां को ऐसे सवालों में आ
स्याही से कर श्रृंगार, कागज़ हो तुम्हारा आंचल
जिन्दा हो कहानी बेबस, बस तू किरदारों में आ
किताबों से निकल मेरी जाना अब बाहो में आ ।।
77. तुम ना रही बस कहानियां रह गयीं
तुम ना रही बस कहानियां रह गयीं
किस्सों में अधुरी जवानियां रह गयीं
सिसकते गीतों में क्या है हमारे सिवा
मोहब्बत की कुछ निशानियां रह गयीं ।
एक तस्वीर, बिखरी चिठ्ठियां रह गयीं
बहते नैना और ये सिसकियां रह गयीं
मेरे घर में बचा ही नहीं कुछ तेरे सिवा
दरवाजे खुले और खिड़कियां रह गयीं ।
तन्हाई का आंगन, सुनी गलियां रह गयीं
वक़्त मरता रहा, चलती घडियां रह गयीं
छत से क्यूं उड़ता नहीं ये आज़ाद पंछी
कौनसी बेबसी है, कैसी बेड़ियां रह गयीं ।
वीराने मन की उजड़ी बस्तियां रह गयीं
डूबते मांझी को टूटी कश्तियाँ रह गयीं
मुक्त होती तो भी कैसे भटकती रूह मेरी
प्रवाहन को गंगा में मेरी अस्थियां रह गयीं ।।
78. तुम ना रहे बस पहेलियां रह गयीं
तुम ना रहे बस पहेलियां रह गयीं
स्वपन की जर्जर हवेलियां रह गयीं
छेड़ती थी कभी तुम्हारे नाम से मुझे
बेबस लाचार वो सहेलियां रह गयीं ।
खेल खेल में तन्हा गुडिया रह गयी
कुंकुम की बिखरी पुड़िया रह गयी
सोचकर ही तुम्हे खनक जाती थी जो
टूटकर हाथों से वो चूडियां रह गयीं ।
यादों की बेरंग तितलियाँ रह गयीं
जला कर खत चिमनियां रह गयीं
कुछ भी नहीं रहा तेरे बाद तेरे सिवा
खामोश लबों पर हिचकियाँ रह गयीं ।।
79. गीत तुम्हीं को जीते-जीते खुद को जीना भूल गया
गीत तुम्हीं को जीते-जीते खुद को जीना भूल गया
लिखते लिखते तुमको प्रियवर खुद को लिखना भूल गया ।
शापित पंक्ति, आखर भ्रमित, कल्पित है जग सारा
खोज में ढाई आखर की सब खोजें अक्स तुम्हारा
मिलन स्वप्न लेकर कागज़ पर खुद से मिलना भूल गया ।
गीत तुम्हीं को जीते-जीते……
दिवस रात से मिलना भूला, भूला प्रहर भी चलना
क्षितिज धरा से मिलना भूला, भूला बादल भी बहना
अंधियारों में जी कर जीवन वो दीपक जलना भूल गया ।
गीत तुम्हीं को जीते-जीते……
राधा से बिछड़े कान्हा और मीरा के एकाकी मोहन
अनसुना है विरह में गाती बांसुरी के स्वर का क्रन्दन
परपीड़ा से घायल केशव, निज़घावों को सीना भूल गया ।
गीत तुम्हीं को जीते-जीते खुद को जीना भूल गया
लिखते लिखते तुमको प्रियवर खुद को लिखना भूल गया ।।
80. आंखों में जो दबा तेरा सैलाब है
आंखों में जो दबा तेरा सैलाब है
गिर गया जो मोती नहीं तो ख्वाब है
कब तक सम्भाले तुफ़ां पलकों तले
टूटने को किनारे खुद ही बेताब हैं ।।
आंखों में जो दबा….
उठते इस ज्वार में तू मेरे साथ है
लौटकर घर इनमें बस तेरी बात है
दर्द का एक शहर रेत पर रह गया
यादें बस घर किये जहाँ तेरे बाद हैं ।।
आंखो में जो दबा….
तैरती एक कमी बस मेरी आंख है
डूब जायेगा मांझी फिर वही रात है
रोक लेना उफनती इन लहरों को यार
मर ना जाउँ कहीं, भारी बरसात है ।।
आंखों में जो दबा तेरा सैलाब है….
81. वक़्त
वक़्त की कमी को बस वक़्त झेलता रहा
वक़्त से ही वक़्त यूं हर वक़्त खेलता रहा
वक़्त वो बेवक़्त था वक़्त की कसौटी पर
वक़्त की हर चाल को ये वक़्त देखता रहा ।।
वक़्त से है दुश्मनी, इक वक़्त ही तो यार है
वक़त की है बेबसी कि वक़्त से ही प्यार है
वक़्त क्यों ये मौन अब वक़्त के सवाल पर
वक़्त को था जीतना, वक़्त की क्यों हार है ।।
वक़्त नभ स्वतंत्र है, वक़्त धरा सा पाबंद है
वक़्त कैद में है या वक़्त में सांस हर बंद है
वक़्त का सृजन रहा वक़्त की ही मौत पर
वक़्त अगर आरम्भ है तो वक़्त ही अन्त है ।।
82. ख्वाब जिसका था मुझे
ख्वाब जिसका था मुझे, ख्वाब में मिला मुझे
दिन में मिलना था जिसे, वो रात में मिला मुझे
जवाब में वो मिला नही, सवाल में मिला मुझे
भूलना था जिसे, वही बात बात में मिला मुझे
मेरे हाल से रहा खफा, मेरे हाल में मिला मुझे
मेरे गीत की तरह खामोश ताल में मिला मुझे
मंजिलों में था नहीं, वो बस राह में मिला मुझे
हमसफर वो याद का, रोज़ बाह में मिला मुझे
हाथ में जो लिखा नहीं वो आंख में मिला मुझे
मौत तक ले आई हिज्र, वो बाद में मिला मुझे ।
83. एक शक्स को गज़ल बनते देखा है मैंने
एक शक्स को गज़ल बनते देखा है मैंने
जख्म को लब्जों में बदलते देखा है मैंने
खामोश लबों का शोर सुनाना था शायद
उस दर्द को स्याही में ढलते देखा है मैंने
हिज्र में जलना कोई पुछे उसके साये से
रूह को कागज़ पर पिघलते देखा है मैंने
लड़खड़ाता रहा है जो हाथों में उमर भर
वो इश्क़ किताबों में संभलते देखा है मैंने
ख्वाब लिये तमाम रातें जागी दोनों आंखें
वो ही चेहरा अश्कों में बहते देखा है मैंने ।
84. देख तेरे बिन शहर में क्या क्या चल रहा है
देख तेरे बिन शहर मे, ये क्या क्या चल रहा है
सांसे थम गयी हैं और एक कारवां चल रहा है
बेबादल है आसमां, तो फिर क्या बरस रहा है
रो रहा है कोई या बेवक़्त मौसम बदल रहा है
क्यों एक परिंदा बेपंख उड़ने को मचल रहा है
लगता है दरख़्त सुखकर बारिश में जल रहा है
टूटे आइनों में एक चेहरा अब भी संवर रहा है
ख्वाब थामे काजल इन पलकों पर पल रहा है
मकां ढह गया है मेरा, एक नया घर बन रहा है
देख तेरे बिन शहर में, ये क्या क्या चल रहा है ।
85. एक शक्स अक्सर सुनाई देता है
एक शक्स अकसर गज़लों में सुनाई देता है
कभी आइनों, कभी आंखों में दिखाई देता है
याद का परिंदा रोज़ आ बैठता है मेरी छत
लगता है पिंजरा उसे खुद ही रिहाई देता है
शोक मनाता हूं रोज़ खुद के मर जाने का मैं
फिर जिन्दा कर जालिम, मुझे बधाई देता है
एक हसीं ख्वाब बरसों से दफन है पलकों पे
बह आंखों से, जिन्दा होने की गवाही देता है
मजबूर होगा अश्क़, जिसने तेरा गांव छोड़ा
वरना बेवजह दुनियां से कौन विदाई लेता है ।
86. मन के मन्दिर में तुम रहना
मन के मन्दिर में तुम रहना
जिसको पूजा वो मूरत बनना
एक नया गीत हम सुनायेंगे
जो लिख ना पाये थे वो गाएंगे
तुम भी गाना छोड़ सारी बन्दिशें
बिखरी सांसो को हम सजायेंगे
धड़कनों के स्वर में तुम बहना
मन के मन्दिर में तुम रहना ।।
नित यादों की भीड़ में तुम हो
मेरी पलकों की झील में तुम हो
बरसों इन्तजार में बहती हैं आंखें
इनकी छलकती पीड़ में तुम हो
सपनों के संसार में तुम मिलना
मन के मन्दिर में तुम रहना ।
जिसको पूजा वो मूरत बनना ।।
87. लब्ज़ चीखते हैं, कागज़ रोता है
लब्ज़ चीखते है,कागज़ तन्हा रोता है
देख मेरे साथ रोज़ क्या क्या होता है
चांद बुझता है, रात मातम मनाती है
मेरे मरने का जश्न हर गज़ल होता है
नींद हैरान है, आंखों में धुआं होता है
जलते शमसान में कोई कैसे सोता है
बस इसी सुकूं में मर जाता हूं रोज़ मैं
वो आता है, लिपट कर जोरों रोता है
कसमें देती है वो, मैं बोल नही पाता
मर गया हूं, अब इसी का गम होता है ।
88. धाम धाम में बसे (राम गीत)
धाम-धाम में बसे, वो ‘धाम’ फिर गये कहां
जग है सारा राम का तो राम फिर गये कहां
पूछता वचन अधूरा वो पिता की आस से
पूछता है सुना घर, भाई को छूटते साथ से
पूछता है पाषाण, जिसमे कैद देवी श्राप से
मुक्ति का जो मार्ग है वो पांव फिर गये कहां
जग है सारा राम का तो राम फिर गये कहां ।
पूछता है अट्ठाहस कर लंकेश हर घर-डगर
पूछता है मायामृग, हर मन काम-लोभ भर
पूछती है पग-पग कसौटी वेदैही के ताप से
धर्म की विजय में चले, बाण फिर गये कहां
जग है सारा राम का तो राम फिर गये कहां ।
पूछता है एक भक्त, सीने को फिर चीर कर
पूछता है जूठा बेर सबरी को नित धीर धर
पूछता है समुंद्र अचल तैरते साक्ष्य बान्ध से
लिख जिसे तर गये, वो नाम फिर गये कहां
सारा जग है राम का तो राम फिर गये कहां ।।
89. तेरी यादों का धाम लिये मन
तेरी यादों का एक पावन धाम लिये फिरता है मन
बैरागी जीवन जीकर सब तेरे नाम किये फिरता है मन ।
अश्रुधारा में बहकर तन चन्दन नित ही घिसता है
प्रेम की माला भज एक पागल प्रेमी भीतर बसता है
विरह के तप में निज सांसों का दान किये फिरता है मन
तेरी यादों का एक पावन धाम लिये फिरता है मन ।
प्रणय के कल्पित वृक्ष को ही जीवनभर हमने सींचा है
बिन छोर के श्रापित धागे को निरंतर हमने खींचा है
प्रेम की ये कैसी माया जिसमें प्राण दिये फिरता है मन
तेरी यादों का एक पावन धाम लिये फिरता है मन ।
घाट घाट नयनों का व्याकुल, घर-घर घोर उदासी है
इनसे बहती गंगा जमुना एक मूरत की दासी है
संगम तट पर भी एक प्यासा गांव लिये फिरता है मन
तेरी यादों का एक पावन धाम लिये फिरता है मन ।।
90. तो जनाब मरना पड़ेगा
इश्क़ किया है, तो जनाब मरना होगा
कमाल है अब जीने से भी डरना होगा
उमर बीत जानी है सोचकर दरख़्त की
पत्तों को तो हर साल ही झड़ना होगा
बड़ा ही बेरहम होगा ये सफर मेरी जां
प्यास को रेत के तुफान में चलना होगा
कहां लिखा है, परिंदों को खुला आस्माँ
कहीं ये कैद होंगे तो कहीं जलना होगा
कितना भी शोर कर ले दरिया रातभर
लहरों को तो किनारों पे ही मरना होगा ।
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