Poem on Winter Season in Hindi – इस पोस्ट में आपको कुछ बेहतरीन Winter Season Poem in Hindi का संग्रह दिया गया हैं. यह सर्दी के मौसम पर कविता हमारे हिन्दी के लोकप्रिय कवियों द्वारा लिखी गई हैं. बच्चों को भी स्कूल में Poem on Winter in Hindi में लिखने को दिया जाता हैं. यह Sardi ke Mausam Par Kavita उन बच्चों के लिए भी सहायक होगी.
प्रकृतिक ने हमें कई प्रकार के मौसम उपहार स्वरूप दिए हैं. और सभी मौसम का एक अपना ही मजा होता हैं. बहुत सारे लोगों को वर्षा का मौसम पसंद आता हैं. तो कुछ लोगों को गर्मी का मौसम अच्छा लगता हैं. तो कुछ लोगों को जाड़े का मौसम पसंद आता हैं. जाड़े के मौसम में खाने – पीने की चीजों की बहार लग जाती हैं. तो हार कंपा देने वाली ठंढ भी पड़ती हैं. जो हमें रजाई और कम्बल में दुबकने को मजबूर कर देती हैं.
अब आइए नीचे कुछ Poem on Winter Season in Hindi में दिया गया हैं. इसे पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की आपको यह सभी Winter Season Poem in Hindi में आपको पसंद आएगी. इस सर्दी के मौसम पर कविता को अपने दोस्तों के साथ भी share करें.
सर्दी के मौसम पर कविता, Winter Season Poem in Hindi
1. Winter Season Poem in Hindi – सर्दी लगी रंग जमाने
सर्दी लगी रंग जमाने
दांत लगे किटकिटाने
नई-नई स्वेटरों को
लोग गए बाजार से लाने।
बच्चे लगे कंपकंपाने
ठंडी से खुद को बचाने
ढूंढकर लकड़ी लाए
बैठे सब आग जलाने।
दिन लगा अब जल्दी जाने,
रात लगी अब पैर फैलानेसुबह-शाम को कोहरा छाए
हाथ-पैर सब लगे ठंडाने।
सांसें लगीं धुआं उड़ाने
धूप लगी अब सबको भाने
गर्म-गर्म चाय को पीकर
सभी लगे स्वयं को गरमाने।
2. Poem on Winter in Hindi – सफेद चादर में लिपटी कोहरे की धुंध
सफेद चादर में लिपटी कोहरे की धुंध
ले आई ठंड की कैसी चुभन,
कोहराम करती वो सर्द हवाएं
छोड़ जाती बर्फ से ठंडी सिहरने,
कोहरे का साया भी ऐसा गहराया
सूरज की लाली भी ना बच पाया,
अंधेरा घना जब धुंधलालाया
रात के सन्नाटों ने ओस बरसाया,
कैसी कहर ये ठंड की पड़ी
जहां देखो दुबकी पड़ी है जिंदगी,
अमीरों के अफसानों के ठाठ हजार
गरीबी कम्बलों से निहारती दांत कटकटाती,
ठिठुरती कपकपाती सर्द रातों में
आग की दरस की प्यासी निगाहें,
याद आती है अंगूठी के इर्द-गिर्द
चाय की चुस्कियां लेती हो मजलिसे,
तन को बेचैन करती कोहरे ओढ़ें
आती सुबह शुष्क हवाओं संग,
कैसी कहर ये ठंड की पड़ी
जहां देखो दुबकी पड़ी है जिंदगी।
3. Winter Season in Hindi Poem – सर्दी आई, सर्दी आई
सर्दी आई, सर्दी आई
ठंड की पहने वर्दी आई।
सबने लादे ढेर से कपड़े
चाहे दुबले, चाहे तगड़े।
नाक सभी की लाल हो गई
सुकड़ी सबकी चाल हो गई।
टिठुर रहे हैं कांप रहे हैं
दौड़ रहे हैं, हांप रहे हैं।
धूप में दौड़ें तो भी सर्दी
छाओं में बैठें तो भी सर्दी।
बिस्तर के अंदर भी सर्दी
बिस्तर के बाहर भी सर्दी।
बाहर सर्दी घर में सर्दी
पैर में सर्दी सर में सर्दी।
इतनी सर्दी किसने कर दी।
अण्डे की जम जाए ज़र्दी।
सारे बदन में ठिठुरन भर दी।
जाड़ा है मौसम बेदर्दी।
जाती सर्दी
घर के बाहर खिसक रही है
धीरे धीरे सर्दी
आसमान भी खोल रहा है
घिसी सलेटी वर्दी।
सुबह सूरज आकर
धूप की चादर खोले
जाड़ा पंजों के बल चलता
अपनी राह को होले।
धूप की गर्मी में सिक जाएं
घर के कोने खुदरे
एड़ी तलवों और उंगलियों
की हालत भी सुधरे।
पहले उतरे ऊनी मोज़े
फिर मफ़लर भी जाए
4. Winter Poem in Hindi – किट किट दांत बजाने वाली
किट किट दांत बजाने वाली,
आई सर्दी आई।
भाग गये सब पतले चादर,
निकली लाल रजाई।
दादा, दादी, नाना, नानी,
सब सर्दी से डरते।
धूप सेंकते, आग तापते,
फिर भी रोज ठिठुरते।
कोट पहन कर मोटे वाला,
पापा दफ्तर जाते।
पहने टोपा, बांधे मफ्लर,
सर्दी से घबराते।
मम्मी जी की हालत पतली,
उल्टी चक्की चलती।
हाथ पैर सब ठन्डे ठन्डे,
मुँह से भाप निकलती।
लेकिन हमसब छोटे बच्चे,
कभी नहीं घबराते।
मस्ती करते हैं सर्दी में,
दिन भर मौज मनाते।
5. Poem on Winter Season in Hindi – ठंडी ठंडी चली हवा
ठंडी ठंडी चली हवा,
लगे बर्फ की डली हवा,
चुभती है तीरों जैसी,
कल की वो मखमली हवा,
बाहर मत आना भैया,
लिए खड़ी दोनाली हवा,
दादी कहती मफलर लो,
चल रही मुंह -जली हवा,
स्वेटर, कम्बल , कोट मिले,
नहीं किसी से टली हवा,
गर्मी में सब को भाये,
अब सर्दी में खली हवा।
6. Sardi Ke Mausam Par Kavita – सर्दी फिर से लौट आई है
सर्दी फिर से लौट आई है
मौसम कितना सरमाई है
मंज़र मंज़र बर्फानी है
गर्मी ने छुट्टी पाई है
थर थर सारे काँप रहे है
जैसे अन्दर से घबराई है
बिस्तर से है नौ दो ग्यारह
गर्मी कैसी हरजाई है
छत पर बर्फ जमी है जैसे
नम आलूदा अंगनाई है
मफलर स्वेटर दस्तानो की
शाम ही से मुंह दिखलाई है
पंखे कूलर बंद पड़े है
ए सी ने फुरसत पाई है
लस्सी शरबत गुम सुम गुम सुम
चाय की फिर बन आई है
एक बस्ता दीवार व दर है
ठंडक फर्श पे उग आई है
रात होते ही घर लौट आओ
हैदर इस में दानाई है
7. सर्दी पर कविता – ठिठुर रहे बच्चे बूढ़े सब
ठिठुर रहे बच्चे बूढ़े सब,
सर्दी की ऋतु आई।
तन पर बोझ बढ़ा कपड़ों का,
कैसी आफ़त आई।
रूई समान घने कुहरों से,
टप-टप टपके बूँदें।
पेड़ों पर दूबके पक्षीगण,
पल-पल आँखें मूंदे।
सूरज आँख मिचौली खेले,
व्यथित हुए जन सारे।
बड़ी-बड़ी रातें, दिन छोटे,
गायब चाँद-सितारे।
8. सर्दी के मौसम पर कविता – गर्मी भागी सर्दी आई
गर्मी भागी सर्दी आई
घर घर में निकली रज़ाई
लस्सी रोए जार बेज़ार
शरबत रोए बारंबार
कीट कीट कीट कीट दाँत बजाते
गिट पिट गिट पिट तोते बोलतें
पंखा कूलर छुप गये भाई
एसी ने अपनी दूम दबाई
चाय बजाने लगी शहनाई
कौफी ने उत्सव मनाई
उनी स्वेटर उनी मॅफ्लर
उनी शॉल उनी कंबल
सबने मिलके गुहार लगाई
जल्दी बाहर निकालो भाई
सूट बूट में सूरज चमका
जन जन में खुशियाँ दमका।
9. Winter Season Poem in Hindi – बारिश बीती ठंड आई
बारिश बीती ठंड आई,
बच्चों और जवानों के लिए खुशियाँ लाई
बूढ़ों की थोड़ी परेशानी बढ़ाई
पर सबने निकाल ली स्वेटर, कंबल और रजाई
मेरे नाना-नानी की हालत कड़कड़ाई
ओढ़ कर बैठे है कंबल और रजाई
बंदर टोपी लगाकर मेरी नानी शरमाई
अगर ठंड लग जाये तो खाना पड़ता है दवाई
नानी का बदंर टोपा देख सब जोर हँसे,
नानी ने मुझसे शीशा मंगवाया
फिर नानी को यह बंदर टोपा नहीं भाया
ठण्ड जाएँ भाड़ में नानी ने तो टोपा उतार बहाया।
10. Poem on Winter in Hindi – बचपन में हमें ठंड लगती सुहानी थी
बचपन में हमें ठंड लगती सुहानी थी
जब पूरे घर में चलती हमारी मनमानी थी
स्कूल में पूरे 15 दिन की छुट्टी होती थी
वो भी दिन क्या मस्ती भरी होती थी
इन छुट्टियों में जी भर के खेलते थे,
ठंड से तनिक भी नहीं डरते थे,
हमको ठंड नहीं लगेगी सबसे
हम यही कहते थे
ठंड में माँ बहुत ख्याल रखती थी,
ठण्ड लग जायेगी बाहर मत जाना
हमेशा यही कहती रहती थी
लेकिन अब ये जवानी बहुत सताती है
गर्मी हो ठंड रोज ऑफिस का रास्ता दिखाती है.
11. यह जाड़े की धूप
नानी की
लोरी सी लगती
यह जाड़े की धूप
दुआ मधुर
दादी की लगती
यह जाड़े की धूप
गिफ्ट बड़ा
दादू नानू का
यह जाड़े की धूप
जादू की
गुल्लक सी लगती
यह जाड़े की धूप
ऋतुओं में
ठुल्लक सी लगती
यह जाड़े की धूप
सपनों की
रानी सी लगती
यह जाड़े की धूप
बिन माँ की
नानी सी लगती
यह जाड़े की धूप
मक्के की
रोटी सी लगती
यह जाड़े की धूप
मक्खन, घी
मिश्री सी लगती
यह जाड़े की धूप
निर्धन के
चूल्हे सी जगती
यह जाड़े की धूप
पापा की
पप्पी सी लगती
यह जाड़े की धूप
भली नींद
झप्पी सी लगती
यह जाड़े की धूप
12. जाड़े में जब आई धूप
जाड़े में जब आई धूप
हमको लगी रजाई धूप
सूरज दादा ने ऊपर से
गरम गरम पहुंचाई धूप
उजली उजली चाँदी जैसी
सबके मन को भाई धूप
चार दिनों के बाद आज फिर
निकली है अलसाई धूप
बच्चों जैसी अंदर बाहर
घर घर में इठलाई धूप
कभी निकलती फीकी फीकी
मुरझाई मुरझाई धूप
थर थर थर थर काँप रही खुद
सकुचाई सकुचाई धूप
बर्फीली ठंडी में लगती
भली भली सुखदाई धूप
13. अरे बिसम्बर
अरे बिसम्बर
लगा दिसंबर
सिलगा ले सिगड़ी
सर्दी आई
बिना रजाई
हालत है बिगड़ी!
दांत बज रहे
राम भज रहे
पड़ने लगी ठिरन
सर्दी से डर
किरने लेकर
सूरज हुआ हिरण
धूप सुनहली
अभी न निकली
छाया है कुहरा
सिकुड़ सिकुड़कर
ठिठुर ठिठुरकर
यों मत हो दुहरा
दिखा न सुस्ती
ला कुछ चुस्ती
फुर्ती नई जगा
गरम चाय का
उड़ा जायका
जाड़ा दूर भगा
14. जाड़े की धूप
आती, फुर्र हो जाती
मम्मी के गुस्से सी
जाड़े की धूप
राहत सा देती है
पापा की हंसी सी
जाड़े की धूप
बड़ी भली लगती है
टीचर के प्यार सी
जाड़े की धूप
गरमाहट देती है
दोस्त के हाथ सी
जाड़े की धूप
15. पास नहीं है उसके कंबल
पास नहीं है उसके कंबल
और न है कोई ऊनी शाल
उकडू बैठा आंच सेकता
सड़क किनारे दीनदयाल
शीत लहर को संग लाई हो
घना कोहरा झोली में
मंगू ठिठुरा बैठा है जी
तुमसे डरकर खोली में
दांत किट्कता थर थर काँपे
नंगे पाँव खड़ किसना
ओ सर्दी कुछ रहम करो तुम
नहीं सताओ अब इतना
16. सर्दी आई छाया कोहरा
सर्दी आई छाया कोहरा
छिपा लिया सूरज ने चेहरा
दादी बैठी दांत बजाएं
हर घंटे बस चाय मंगाएं
दादाजी के दांत नहीं
पर देखों मूंगफली मंगवाएं
गोलू जी तो मस्त घूमते
पूरे घर में उधम मचाते
ठंड बढ़ी तो बढ़ गई छुट्टी
बाथरूम से कर ली कुट्टी
चार दिनों से मुंह न धोया
बात करें तो गंध आए
फिर मम्मी को गुस्सा आया
गोलू जी को दे धमकाया
गोलू बोले ठंड बड़ी है
मम्मी बोली देख छड़ी है
गोलू जी गुस्से में आए
स्वेटर पहनके खूब नहाएं
17. खूब सारी छुट्टियाँ लेकर आती
खूब सारी छुट्टियाँ लेकर आती
सर्दी मुझको खूब है भाती
स्वेटर हमको खूब रिझाते
रजाई कम्बल पास बुलाते
धूप में बैठ मूंगफली खाते
स्कूल को कुछ दिन भूल ही जाते
अम्मा चटपट स्वेटर बुनती
मटर की फलियाँ झटपट छीलती
गोद में बैठकर बाबा की
बात बनाते दुनिया भर की
क्यों आती साल में एक बार
आओ न सर्दी बारम्बार
18. सर्दी आई ओढ़ दुशाला
सर्दी आई ओढ़ दुशाला
सूरज ने भी मफलर डाला
धूप जरा सकुचाई लगती
चढ़े देर से जल्दीढलती
दिन लगते हैं सिकुड़े सिकुड़े
रातों की लंबाई खलती
इतराता है कंबल काला
सर्दी आई ओढ़ दुशाला
दांतों की किट किट भारी है
पानी से दुनिया हारी है
डर लगता है छूने में भी
रोज नहाना लाचारी है
यह कैसा है गडबडझाला
सर्दी आई ओढ़ दुशाला
लगती हवा तीर सी तीखी
चुभना बता कहाँ तू सीखी
जब तू हाड़ गलाती आई
दादा चीखे दादी चीखी
काम आज का कल पे टाला
सर्दी आई ओढ़ दुशाला
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